सोनियाःअब सहानुभूति नहीं, बड़ी उम्मीदें

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उनका कांग्रेस अध्यक्ष बनना चौंकाने वाली खबर नहीं

-संजय द्विवेदी

देश की 125 साल पुरानी पार्टी ने एक बार फिर श्रीमती सोनिया गांधी को अपना अध्यक्ष चुन लिया है। जाहिर तौर पर यह कोई चौंकाने वाली सूचना नहीं है। पार्टी के 125 सालों के इतिहास में 32 वर्ष इस दल पर नेहरू परिवार के वारिसों का कब्जा रहा है, श्रीमती गांधी की उपलब्धि यही है कि वे इन वारिसों के बीच में सर्वाधिक समय तक अध्यक्ष रहने वाली बन चुकी हैं। पिछले 12 सालों में सोनिया गांधी ने कांग्रेस को पिछले दो चुनावों में सत्ता के केंद्र में पहुंचाया और दल को एकजुट किया। इस सफलता के चलते आज वे देश की सबसे प्रभावी नेता बन गयी हैं। कांग्रेस जहां पर सत्ता और संगठन एकमेक थे, वे वहां पर संगठन की पुर्नवापसी की प्रतीक बन गयी हैं। इसके साथ ही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि उन्होंने अपने पुत्र राहुल गांधी को जिस खूबसूरती के साथ राजनीतिक क्षेत्र में लांच किया, वह एक मिसाल है। सत्ता में होते हुए सत्ता के प्रति आशक्ति न दिखाकर सोनिया और राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं ही नहीं देश की जनता के मन में एक बड़ी जगह बना ली है।

अब जबकि वे चौथी बार कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी जा चुकी हैं तो उनके लिए यह कोई उपलब्धि भले न हो पर उनकी चुनौतियां बहुत बढ़ गयी हैं। क्योंकि इसी दौर में उन्हें मनमोहन सिंह के विकल्प के रूप में अपने सुपुत्र को स्थापित करना है और अगला लोकसभा चुनाव भी जीतना है। किंतु देखें तो यह समय कांग्रेस के पक्ष में नहीं दिखता। उनके नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार आज आरोपों के कठघरे में है। पार्टी की सबसे प्रभावी नेता होने के नाते सोनिया को इन सवालों के ठोस और वाजिब हल तलाशने ही होंगें, क्योंकि वोट मांगने के मोर्चे पर मनमोहन सिंह जैसे मनोनीत प्रधानमंत्री नहीं, नेहरू परिवार के वारिस ही होते हैं। क्या कारण है कि गरीबों की लगातार बात करने के बावजूद उनकी सरकार का चेहरा गरीब विरोधी बन गया है ? राहुल गांधी ने अपनी राजनीति से जरूर गरीब और दलित समर्थक होने की छवियां प्रस्तुत कीं किंतु उनकी सरकार का चेहरा तो गरीब विरोधी ही बना रहा। परमाणु बिल जैसे सवालों पर तो उनके प्रधानमंत्री अतिउत्साह में नजर आए किंतु गरीबों को अनाज बांटने के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट की दोबारा फटकार के बाद उनकी सरकार को होश आया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सोनिया और राहुल गांधी द्वारा लगातार गरीबों की बात करने के मायने क्या हैं, जब उनकी सरकार का हर कदम आम आदमी की जिंदगी को नरक बनाने वाला है। महंगाई के सवाल पर कांग्रेस संगठन ने सरकार पर दबाव बनाने का कोई प्रयास नहीं किया। भोपाल गैस त्रासदी के सवाल पर भी लंबे समय तक सोनिया और राहुल खामोश रहे। भला हो कि इस देश में सुप्रीम कोर्ट भी है। क्या इसके ये मायने निकाले जाएं कि गांधी परिवार के वारिस मनमोहन सिंह को एक विफल प्रधानमंत्री साबित कर अपने लिए राजमार्ग सुगम बना रहे हैं। या गरीबों के प्रति उनकी ममता सिर्फ वाचिक ही है।सोनिया गांधी को अपने इस कार्यकाल में इन सवालों से जूझना पड़ेगा। देश के सामने मौजूद जो महत्व के सवाल हैं, उस पर नेहरू परिवार के दोनों वारिसों के क्या विचार हैं, यह देश जानना चाहता है। नक्सलवाद के सवाल पर कांग्रेस के मंत्री और नेता ही आपस में टकराते रहते हैं, सोनिया जी को साफ करना पड़ेगा कि वे इस सवाल पर कहां खड़ी हैं और कांग्रेस में इसे लेकर इतना भ्रम क्यों है ? आतंकवाद को लेकर नरम रवैये पर भी उनको जवाब देना पड़ेगा। आखिर आतंकवाद को लेकर हमारी सरकार इतनी दिशाहीन क्यों है? उसके पास इस सवाल से जूझने का रोड मैप क्या है ?भोपाल गैस त्रासदी जिसमें पंद्रह हजार लोगों की मौतों के बाद, आज 25 साल के बाद, एक भी आरोपी जेल में नहीं है, पर उनकी दृष्टि क्या है? देश के सामने मौजूद ऐसे तमाम सवाल हैं जिनके उत्तर उन्हें देने होंगें, क्योंकि अब वे एक समर्थ नेता हैं और उनसे देश अब सहानुभूति नहीं वरन बड़ी उम्मीदें रखने लगा है। कांग्रेस नेतृत्व ने भले ही एक अराजनैतिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का चयन किया है उसे जनता की भावनाएं भी समझनी होंगी। यदि वर्तमान शासन एवं प्रधानमंत्री को अलोकप्रिय कर, कांग्रेस के युवराज को कमान संभालने और उनके जादुई नेतृत्व की आभा से सारे संकट हल करने की योजना बन रही हो तो कुछ नहीं कहा जा सकता। किंतु ऐसा थकाहारा, दिशाहारा नेतृत्व आखिर हमारे सामने मौजूद चुनौतियों और संकटों से कैसे जूझेगा।

श्रीमती सोनिया गांधी के सामने अपने संगठन को बिहार, उत्तरप्रदेश, मप्र, गुजरात और छत्तीसगढ़ में भी स्थापित करने की चुनौती है जहां उसे अपना पुराना वैभव हासिल करने में बहुत पसीना बहाना होगा। कांग्रेस अध्यक्ष को यह पता है कि उनसे देश की उम्मीदें बहुत हैं और वे देश के सामने उपस्थित कठिन सवालों का सामना करें। सबसे बड़ा सवाल महंगाई है और दूसरा राष्ट्रीय सुरक्षा का। इन दोनों सवालों पर सरकार में बदहवाशी दिखती है। उसके पास कोई दिशा नहीं दिखती। भ्रष्टाचार के सवाल पर भी सरकार का रिकार्ड बहुत बेहतर नहीं है। ऐसे में उन्हें अपने दल को व्यापक लोकस्वीकृति दिलाने के लिए भगीरथ प्रयास करने होंगें। एक राष्ट्रीय दल के तौर पर कांग्रेस की ताकत कम हो रही है, उसके लिए भी उन्हें सोचना होगा। यह सही बात है कि कांग्रेस ने जिस तेजी से अपनी जगह छोड़ी उसकी प्रतिद्वंदी भाजपा उसे भर नहीं पाई, किंतु क्षेत्रीय दलों की चुनौती उसके लिए चिंता का एक बड़ा कारण है। राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का संकुचन देश की राजनीति के अखिलभारतीय चरित्र के लिए चिंता का एक बड़ा विषय है। इसके चलते स्थानीय स्वार्थ और क्षेत्रीय भावनाओं का विकास हो रहा। ऐसे में राष्ट्रीय दलों की मजबूती इस देश में अखिलभारतीय चरित्र के विकास के लिए अपरिहार्य है। सो कांग्रेस की अध्यक्ष के नाते जनता की तमाम समस्याओं के निदान के लिए लोग उन्हें आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं। कांग्रेस की सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में लोगों को खासा निराश किया है, क्या श्रीमती गांधी इतिहास की घड़ी में अपनी सरकार से जनधर्म निभाने और जनता की भावनाओं के साथ चलने के लिए कहेंगीं। पार्टी अध्यक्ष और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष होने के नाते उन्हें कुछ अधिक कड़े तेवर अपनाने होंगें, इससे ही उनकी सरकार से कुछ अनूकूल परिणाम पाए जा सकते हैं।

7 COMMENTS

  1. सरदार है चमकता पर कलई है निक्किल,
    मैडम की रहती है हर शै विजिल
    बाबा को है पढाना और बढानी है स्किल
    बंद करी राग दरबारी उम्र रही है फिसिल
    करी मेहनत खूब पर है बढ़ी मुस्किल
    जब हों DMK TMC जैसे मुवकिल

    समेट ले खोमचा, लग गए कुनबों के ठेले ग़ालिब,
    अब नहीं रही कोई उम्मीद फॉर एनी तालिब.

  2. sanjay ji bahut achchha lekh hai. this is a current crisis on indian politics. if manmohan will refuse to vacate the pm seat then sure country will paralysed. becasue sonia is in try to establish her son rahul as a pm. we can only watch this game.

  3. Sanjay Ji, Soniya Gandhi ke Congress President banane par likhe gaye es satik aalekh par aapko ko dhanaywad. Congress Parti oor Soniya Gandhi ko lekar kafi samay bad yah satik likha aalekh parne ko mila hai. Vese bhi Soniya Gandhi ka Cogress Parti ka President banana koi uplabdhi vali bat bhi nahi. Kyonki Congress me ‘Loktantra’ ke nam par Congress ke ‘Supreme Parivar’ ke prati bane huye “Yes Sir” ke ‘Anusashan’ ki ‘niyti’ me kisme etna sahas hai ki vah Madam Soniya Gandhi ke ya Yuvraj Putra Rahul Gandhi ki soch ke khilaf apni bat kah sake ? Indira ji ke Aapatkal ke samay ke Yuvraj Putra “Sanjay Gandhi” ke kisse aaj bhi desh ke Jagruk kahe jane wale Nagriko ko jarur pata honge.

    Ab aage kya hoga – upar wala hi jane. Damit oor Dalit bane huye Deshwasiyo ki majburi yah hai ki- Uske pas us Congress Parti ke alawa dusra koi vishvasniy ‘Viklap’ nahi hai, jis par ‘Vishvas’ kiya ja sake. Aaj har “Dal” dal-dal bankar Desh ko lutne me hi laga hua hai. JP oor unki ‘Samgra Kranti’ ki Unhi ke variso ne usi tarah se hatya kar di hai, jis tarah se Mahatama Gandhi ke Sidanto ki Unhi ke variso ne hatya ki hui hai.

    Aab to es desh oor deshvashiyo ka “Allah – God – Ishwar” hi rakhwala hai. Jisse hamari yahi parthna hai ki- Wo, ham–sabki raksha kare.

    – Jeengar Durga Shankar Gahlot, Publisher & Editor, “SAMACHAR SAFAR” [Fornightly], Satti Chabutre ki Gali, Makbara Bazar, Kota – 324 006 [Raj.] ; Mob.: 098872-32786

  4. संजय जी आप का लेख अत्यंत सौम्य पर सशक्त रूप में कांग्रेस की कमियों और दोषों को रेखांकित करता है.बहुत अछा होता यदि आप कांग्रेस की असफलताओं व दोषों को लेकर उठाये प्रश्नों को बिन्दुओं के रूप में प्रदर्शित करते. लेख के पठनीयता बढ़ जाती और सन्देश स्पष्ट हो जाता. अस्तु सारगर्भित, सामयिक, सशक्त लेख हेतु साधुवाद.

  5. ab kisi bahumat prapt sattaseen dal ka adhyksh banane ke shubhkamnayen dene ki jagah apna vaicharik gyaan tb tk kisi kam ka nahin jb tk savit na ho jaaye ki vartmaan neetiyon pr soniaji ka nahin amerika ki pakad hai .
    yadi adhyksha mahoday chaahteen hain ki unke p m supreem court ko aankh dikhane ke vanaspat desh ki nangi bhookhi 30 karod janta ke aanshu ponchhne ki baat karen .

  6. संजय जी, मुझे समझ नहीं आ रहा ………. आप इस महिला से क्या उम्मीदें रख रहे हैं……

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