साउथ के राजा की मंडी

पंडित सुरेश नीरव

बहुत समय पहले की बात है। भरतखंडे,जंबूद्वीपे, आर्यावर्ते दक्षिण में दयानिधान,भक्तवत्सल करुणानिधान नानके एक राजा हुए। राजा की कार्यकुशलता का ही चमत्कार था कि राज्य की कुल संपत्ति से कई गुना ज्यादा खुद राज़ा की संपत्ति थी। और अपनी संपत्ति को कैसे बढ़ाया जाए राजा इसी फिक्र में रात-रातभर जागता और दिन-दिनभर सोता। राजा की दरबार एक मंडी की तरह थी। प्रजा इसे दक्षिणी राजा की मंडी कहती। इस मंडी में जनता के धन मारन एक खलीफा नवरत्न की हैसियत में था। एक चोरों का राजा था और एक रूप की रानी थी। गबन और गोलमाल नामक 2-जी पर राजा का संविधान बना था। जिसे सम्मान से प्रजा 2-जी धनहरण कहती थी। एक दरबारी था तो दरबारी मगर अपने धनहरण हुनर के कारण वह ए ग्रेड राजा कहलाता था। राजा की रुप की रानी पुत्री सोनीमौड़ी कहलाती थी। रूप की रानी और चोरों का राजा यह जोड़ी राज्य की लोकप्रिय जोड़ी थी। ए ग्रेड राजा गोलमाल कला का जादूगर था। वह दूसरे राज्य के खजाने में सैंध मारने की कला में भी बड़ा माहिर था। रूप की रानी राजा के इस हुनर पर फिदा थी. वह पूरे उत्साह से राजा के कारोबार में हाथ बंटाती थी। प्रभु की कृपा से और झपट्टा मारन प्रतिभा की बदौलत उनका धन दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा था। जनता में धार्मिक भावना के प्रचार और प्रसार के लिए इन्होंने राज्य में एक अखंड चैनल चला रखा था। इस इलेक्ट्रोनिक यज्ञ की सफलता के लिए राजा-रानी बड़े विनीत भाव से धनपशुओं से चंदा उगाते थे। कहावत है न कि हवन करते में ही हाथ जलते हैं। इस हवन कांड में भी कुछ नाना प्रकार के असुर सुर-में-सुर मिलाकर इन पवित्र आत्माओं को तंग करने के लिए भिन्न-भिन्न ढंग के उत्पात करने लगे। एक दिन इन असुरों ने मौका देखकर राजा को पकड़कर कैद कर लिया। राजकुमारी परेशान हो कर इधर-उधर घूमने लगी। मौका देखकर असुरों ने राजकुमारी को भी पकड़कर उसी कैदखाने में डाल दिया। तिहाड़ की भीषण गर्मी में इनके हाड़ पिघलने लगे। जब ये खबर राजा करुणानिधान को मिली तो वे बीमारी की हालत में भी उन्हें कैद से छुड़ाने हवाई जहाज में उड़कर और पहिएवाली तिलस्मी कुर्सी पर बैठकर तिहाड़ जा पहुंचे। सेंधमारी की तमाम तरकीबें फेल हो गईं। निराश-हताश राजा दोनों को छुड़ाने की मंशा से दिल्ली गढ़ की महारानी के पास पहुंचे। हाथ जोड़कर और सारी रस्में तोड़कर दिल्ली गढ़ की महारानी से उन्होंने विनती की मगर सारी जोड़-तोड़ बेकार गई। दिल्लीगढ़ की महारानी का दिल नहीं पसीजा। दुखी राजा इधर रूप की रानी और चोरों के राजा को बचाने में लगे थे उधर ललिता नाम की एक बागी स्त्री ने राजा के राज्य पर हमला कर सारा राज्य हड़प लिया। जनता ललिता देवी की जय हो..जय हो ललिता की कहकर सड़कों पर मस्ती में नाचने लगी। और इस तरह सावधानी हटी कि दुर्घटना घटी के फार्मूले को चलाकर ललिता देवी राज्य की महारानी बन गई। करुणानिधान राजा राज्यविहीन होकर, पुत्री के कैद के दारुण दुख को भोगते हुए दर-दर भटकने लगे। तभी उन्हें दिल्लीगढ़ के जंगल में एक सिद्ध फकीर मिला। और उसने दुखी राजा के दुख से द्रवित होकर राजा को सोनिया माता के व्रत करने और उनकी कथा कहने का गूढ़ मंत्र दिया। राजा करुणानिधी अपनी लाढ़ली को कैद से छुड़ाने के लिए तरह-तरह के तांत्रिकों और सिद्धों से सलाह कर रहे हैं। देखें दुखिया करुण राजा के दिन कब बहुरते हैं। कब चोरों के राजा और रूप की रानी को रिहाई मिले। हाल फिलहाल राजा की मंडली राजा की मंडी में नहीं तिहाड़ में जमी हुई है। तिहाड़ में जमी साउथ के राजा की मंडी।

2 COMMENTS

  1. आदरणीय पंडित जी , सादर प्रणाम
    आगे हम सोनिया माता की कथा अवश्य पढ़ना चाहेंगे ….

  2. अब राजा को व् रूप की रानी दोनों को सोनिया माता का व्रत रखकर मन्नत तो माँगनी ही पड़ेगी

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