गौरैया कंही गुम हो गई

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बीनू भटनागर

sparrow

चिड़ियाँ बहत कम हो गईं,
कबूतर ही बस रह गये ,
गौरैया कंही गुम हो गई।

दाना पानी नहीं मिला,
या ठिकाना पेड़ पर,
आम सी चिडिया थी वो,
गौरैया कंही गुम हो गई।

कंक्रीट के जँगल खा गये,
या प्रदूषण वायु का,
छोटी सी वो प्यारी सी,
गौरैया कंही गुम हो गई।

या संक्रमण कोई हुआ जो,
पूरी प्रजाति ही निगल गया,
छत की मुंडेर पर चहकती,
गौरैया कंही गुम हो गई।

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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