भूख की रोटी, बोल के घी में लिपटाई है

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-जावेद उस्मानी- poem

भूख की रोटी, बोल के घी में लिपटाई है
खाली कटोरी पर, लिखी गई मलाई है
बेवफा वादो की चटनी के साथ फिर
सपनों वाली वही बासी मिठाई है
सजाए हुए बैठे हैं सब एक सी थाली
ऐ सियासत तेरी अदाएं निराली !!
नकली आंसू और वादो की भरमार हैं
कुछ अजब सा, गज़ब एक कारोबार है

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