जासूसी पर अनावश्यक वितंडा

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-अरविंद जयतिलक-

gadkariसमझ से परे है कि जब केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया है कि उनके आवास पर कहीं कोई जासूसी डिवाइस नहीं पायी गयी तो फिर विपक्ष को इसपर अनावश्यक छाती पीटने की क्या जरूरत है। बेहतर होता कि वह इसके बजाए जनसरोकार से जुड़े मुद्दे पर सरकार का ध्यान आकर्षित करते ताकि देश का भला होता। लेकिन प्रतीत होता है कि आमचुनाव में करारी शिकस्त खाने के बाद भी कांग्रेस, एनसीपी और वामदलों ने कोई सबक नहीं ली है और अभी भी इस विचार पर कायम हैं कि वितंडा की राजनीति से वे सत्ता का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। गौरतलब है कि एक अंग्रेजी अखबार ने खुलासा किया है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के दिल्ली में 13 तीन मूर्ति लेन में स्थित आवास में उच्च क्षमता वाले जासूसी उपकरण पाए गए और फिर उसे तुरंत हटाने के आदेश दिए गए। फिलहाल कहना कठिन है कि अखबार का खुलासा कितना सच है। पर इसकी आड़ में जिस तरह विपक्ष द्वारा सरकार की घेराबंदी की जा रही है, यह उनकी हताशा को ही उजागर करता है।

दरअसल, विपक्ष यह साबित करना चाहता है कि मोदी सरकार के मंत्रियों के बीच परस्पर विश्वास और भरोसे की कमी है और वे एकदूसरे की जासूसी करा रहे हैं। चूंकि यह मामला आरएसएस के बेहद करीब समझे जाने वाले नितिन गडकरी से जुड़ा है ऐसे में कांग्रेस आवश्यकता से कुछ अधिक ही सक्रियता दिखा रही है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मसले पर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी आष्चर्यजनक रुप से चुप्पी तोड़ी है, जो अकसर अपने सरकार के मंत्रियों की काली कारस्तानी और घपले-घोटाले पर चुप रहा करते थे। निःसंदेह रूप से कांग्रेस और डॉ. मनमोहन सिंह को इस मसले पर जांच की मांग का अधिकार है, लेकिन उन्हें यह भी बताना होगा कि जब उनके प्रधानमंत्रित्वकाल में इसी तरह के मामले सामने आए तो उन्होंने देश को सच्चाई से अवगत क्यों नहीं कराया? याद होगा प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संपादकों के एक समूह के साथ बैठक में खुलासा किया था कि प्रणव मुखर्जी ने उनसे शिकायत की है कि गृहमंत्रालय उनकी जासूसी करा रहा है। उस समय गृहमंत्री पी चिदंबरम थे। सत्ता के गलियारों में यह भी आवाज गूंजी कि दस जनपथ के इशारे पर ही गृहमंत्री ने वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की जासूसी करायी। मामला गंभीर होते देख प्रधानमंत्री को आईबी से जांच कराने का आदेश देना पड़ा। पर उस जांच का क्या हुआ, किसी को कुछ भी पता नहीं। जासूसी के मामले में कांग्रेस और उसके नेतृत्ववाली सरकारों का इतिहास बदनामी भरा है। याद होगा पूर्व कैबिनेट सचिव बीजी देशमुख पहले ही खुलासा कर चुके हैं कि जब देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे, उस दौरान राष्ट्रपति भवन आने-जाने वालों पर कड़ी निगाह रखी जाती थी। इससे तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह बेहज नाराज थे। उन्हें इस बात की आशंका थी कि उनका कार्यालय खुफिया कैमरों की जद में है। आईबी के पूर्व संयुक्त निदेशक एमके धर ने भी अपनी बहुचर्चित पुस्तक ओपन सिक्रेट्सः इंडियाज इंटेलिजेंस अनवील्ड में खुलासा किया है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तत्कालीन गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह की जासूसी कराती थी।

धर ने यह भी उल्लेख किया है कि उन्हें गुरुद्वारा बांग्ला साहिब में जैल सिंह और भिंडरवाले के एक सहयोगी के बीच हुई वार्ता को रिकार्ड करने का आदेश दिया था। उनके मुताबिक उन्होंने इस काम को पूरा कर रिपोर्ट सीधे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सौंपा। इसके अलावा धर ने अपनी पुस्तक में जासूसी के कई अन्य प्रसंगों का भी उल्लेख किया है। मसलन उन्होंने मेनका गांधी और उनके दोस्तों पर भी नजर रखने की बात स्वीकारी है। पुस्तक में लिखा है कि इंदिरा गांधी ने मेनका गांधी की पत्रिका सूर्या के कार्यालय में जासूस बिठाने का भी आदेश दिया था। जासूसी के मसले पर भाजपा को उपदेश बघारने वाली कांग्रेस पर समर्थन से बनी सरकारों की जासूसी का भी आरोप है। जासूसी प्रकरण मामले में ही कांग्रेस समर्थित चंद्रशेखर की सरकार कुर्बान हो गयी। ऐसे में कांग्रेस का नितिन गडकरी जासूसी मामले में बिलावजह छाती पीटना और देश की सुरक्षा का विलाप कर राजनीतिक रोटियां सेंकना अच्छी तरह समझ में आता है। उचित होगा कि मोदी सरकार देश को बताए कि जासूसी मामले की असल सच्चाई क्या है? यह ठीक नहीं कि भाजपा के नेता कुछ और कहें और सरकार के मंत्री कुछ और। इससे देश में गलत संदेश जा रहा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार कुछ छिपा रही है। यह संतोषजनक और पर्याप्त नहीं कि गृहमंत्रालय द्वारा जांच की मांग को खारिज कर दिया गया है। गौर करना होगा कि अभी भी भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी इस दलील पर कायम हैं कि नितिन गडकरी के आवास पर जासूसी के उपकरण लगे थे।

उनका कहना है कि जासूसी के उपकरण अक्टूबर या इससे पहले प्लांट किए गए जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी। कहीं न कहीं उनका इषारा कांग्रेस की ओर है। बहरहाल, यह जांच का विशय है कि इस जासूसी कांड में कांग्रेस या उसके नेतृत्ववाली यूपीए सरकार की संलिप्तता रही है या नहीं। पर इस जासूसी कांड में ऊंगलियां अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) की ओर भी उठ रही है जिस पर पिछले दिनों आरोप लगा कि उसने दुनिया के कई देशों के प्रमुख राजनीतिक दलों समेत भारत के प्रमुख राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी की जासूसी की है। बता दें कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी एनएसए को 2010 में अमेरिकी कोर्ट से भारतीय जनता पार्टी समेत दुनिया भर के पांच राजनीतिक दलों पर नजर रखने की इजाजत मिली थी। इस बात का खुलासा अमेरिका के प्रमुख अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने किया है। उसने दावा किया है कि उसे यह जानकारी अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) के पूर्व कॉन्ट्रैक्टर स्नोडेन ने उपलब्ध करायी कि भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं की जासूसी हो रही है। बता दें कि इस खुलासे के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अमेरिका से कड़ा ऐतराज जताया था। लेकिन वह अब नहीं चाहती है कि यह मामला अनावश्यक तूल पकड़े। इसलिए और भी कि चंद रोज बाद ही अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी भारत आ रहे हैं। अगर यह मामला इसी तरह बवंडर बना रहा तो बातचीत में खटास पैदा हो सकता है। हालांकि माना जा रहा है कि सरकार भले ही उपरी तौर पर इस मामले पर पर्दादारी कर रही है लेकिन वह अमेरिकी विदेश मंत्री से उसकी खुफिया एजेंसी एनएसए की जासूसी पर अपनी आपत्ति जता सकती है। पिछले दिनों राज्यसभा में दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद कह भी चुके हैं कि सरकार भारतीय लोगों की निजी आजादी के अधिकार के हनन को बर्दाश्त नहीं करेगी। निश्चित रूप से मोदी सरकार को अमेरिका से बेहतर रिष्ते की दिशा में आगे बढ़नी चाहिए। बदलते वैश्विक राजनीति में दोनों देशों का साथ आना जरुरी भी है। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि अमेरिका भारत के गोपनीय मामलों में ताकझांक करे जिससे देश की सुरक्षा व संप्रभुता प्रभावित हो। यह भी उचित नहीं कि देश के विपक्षी दल इस मसले पर अनावश्यक बवंडर खड़ा कर एक जवाबदेह और जिम्मेदार सरकार की छवि मलिन करें।

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