व्यंग्य/ तालियां! तलियां!! तलियां!!!

2
180

waterपहाड़ पर एक गांव था। गांव में सबकुछ था। पर पानी न था। कई बार चुनाव आए। वहां के लोगों से भरे पूरे मुंह मंत्रियों ने वोट के बदले पानी पहुंचाने के वादे किए और वोट ले रफूचक्कर होते रहे। और वे बेचारे पहाड़ पर से कोसों नीचे बहती नदी को देख अपनी प्यास बुझाते रहे। शुक्र है उस गांव से नदी के दर्शन तो हो जाते थे। वर्ना वहां के रहने वालों का क्या हाल होता वे ही जाने। मैंने उनके बारे में राम से पूछना चाहा तो उन्होंने कहा कि अब उन्होंने प्रजा के बारे में तो सोचना छोड़ ही दिया है बल्कि अब तो वे अपने बारे में भी नहीं सोचते।

देश में बेरोजगारी बढ़ी, पर वहां के लोगों को पसीना नहीं आया। देश में गरीबी बढ़ी, पर वहां के लोगों को पसीना नहीं। देश में महंगाई बढ़ी, पर वहां के लोगों को फिर भी पसीना नहीं आया। देश में लूटमार बढ़ी पर वहां के लोग फिर भी पसीना नहीं आया। देश में बेईमानी बढ़ी पर वे लोग फिर भी बेपसीना ही रहे।

एक दिन मंत्री के खासमखास चमचे ने वहां के मंत्री को बताया, ‘हजूर! यहां आपको चौबीसों घंटे विपक्ष वाले पसीना पसीना किए रहते हैं वहां आपके चुनाव क्षेत्र का एक वह गांव है कि वहां के जवानों तो जवानों को, बूढ़ों को भी जून महीने की दोपहरी तक में पसीना नहीं आता।’

‘हद है यार! मुझे वोट पाने के बाद भी गांव वालों की मैंने ऐसी की तैसी घुमा कर रख दी और उनको फिर भी पसीना नहीं!’ वे बेहाल हो उठे। किस चीज की कमी है उनके पास! सारे रिश्तेदार तो अच्छे पदों पर लगा दिए हैं। अपने बंदों को भी उनसे कोई शिकायत नहीं है। चमचों को भी उनकी औकात के यथा योग्य फिट कर दिया है। पर साला उसके बाद भी एक यह पसीना है कि छूटने का नाम ही नहीं लेता। सत्ता पक्ष को भगवान सबकुछ दे, पर पसीना लाने वाला हारमोन न दे।

आनन-फानन में मंत्री जी ने उस गांव में चिकित्सकों की टीम दे मारी। चिकित्सकों ने गांव वालों को अपने घर से बैठ कर ही चेक करने के बाद पाया कि ऐसे बुरे दौर में भी इनके पसीना न आने का कारण वहां पानी का न होना है। गांव वालों को पीने के लिए पर्याप्त मात्रा में पीने को पानी ही नहीं मिलता तो पसीना कैसे आए। और मंत्री जी थे कि हर हाल में उस गांव के लोगों को पसीना लाना चाहते थे। पसीना लाने के लिए उन्हें व्यवस्था का पसीना बहाना पड़े तो कोई गम नहीं।

और लो साहब! मंत्री जी के गांव में आने का आनन फानन में कार्यक्रम तय हुआ। गांव वाले यह सुन परेशान! यार हमने वोट तो इसको ही पाया था फिर यह मंत्री यहां क्यों आ रहा है? वोट मारने के बाद तो अगले वोट लेने तक के लिए यहां आज तक कोई नहीं आया।

पूरा का पूरा गांव सकते में था। गांव में जितने मुंह उससे अधिक बातें। मजे की बात! उस गांव में नियत समय पर मंत्री जी आ पहुंचे। पानी मकहमे ने पहले ही सारा इंतजाम कर रखा था। अफसरों के सिवाय और सभी को कहा गया था कि कोई भी अपना मुंह न खोले। जो मुंह खोलेगा उसका मुंह सदा के लिए सिल दिया जाएगा। चमचे फूलों की अपने से लंबी मालाएं लिए खड़े थे। कुछ चमचे जहां मंत्री जी के खाने का इंतजाम किया गया था सबकुछ छोड़ वहीं मंडरा रहे थे। तरह तरह के पकवानों ने उनका जीना मुहाल कर रखा था। उनकी जीभ थी कि बिन मूत के भी मूते जा रही थी। किसीकी नजर काजू की प्लेट पर जीम थी तो कोई बर्फी को देख मूतियाए जा रहा था।

पानी मकहमे ने रात में ही अपने दो मजदूर चार पानी बाल्टी लेकर ऊपर पहाड़ की चोटी पर ओट में तैनात कर दिए थे। उन्हें हिदायत दी गई थी कि जैसे ही दूसरी पहाड़ी पर बैठा मजदूर हाथ हिलाए वे पाइप में बाल्टियों का पानी उड़ेल दें। वहां से गांव के लिए रात में ही पाइप भी बिछा दी गई। सुबह गांव वाले जागे तो बेहड़ में नल लगा देख दंग रह गए।

‘देखा यार! सरकार अपने पर आए तो कुछ भी कर सकती है।’ एक गांव वाले ने फटी धोती में से कहा।

‘पर ऊपर पानी पानी मकहमे ने चढ़ाया कैसे?’

‘सरकार महंगाई चढ़ा सकती है तो क्या पानी नहीं चढ़ा सकती।’

‘बिन मोटर ही?’

‘सरकार चाहे तो कुछ भी कर सकती है। बिन सड़क लारी पहुंचा देती है। डीओ नोट हाथ में थमा गधे को भी स्वर्ग पहुंचा देती है। वह चाहे तो गधे को भी क्लैक्टर बना सकती है।’

‘अगर वहां गधा लीद कर दे तो?’

‘तो यमराज साफ करवाए जिसका इलाका है। जमादार को और करना ही क्या है? सरकार ने तो जो करना था सो कर दिया। अब गधा है तो क्या हुआ? है तो अपना ही बंदा न? जब अपने गांव में पानी आ जाएगा तो तू क्या करेगा?’

‘पहले तो अपने भैंसे को जी भर के नहलाऊंगा फिर खुद रगड़-रगड़ कर नहाऊंगा। और तू क्या करेगा?’

‘उस पानी को जमकर गालियां दूंगा जो आठ कोस नीचे निकला है। इसका क्या जाता जो वहां के बदले यहीं निकल आता।’

 

मंत्री जी आए। साथ में विदेशी नलों से भरी पानी की बोतलें। भाषणों का दौर शुरू हुआ। जो चमचा घर वाली के सामने चूं तक न करता था, धोती फाड़ फाड़कर बोला।

पेट पर हाथ फेरने के बाद मंत्री जी ने नलके का उदघाट्न किया। उधर उनके चमचे थे कि उनसे अपने पेट ही नहीं संभाले जा रहे थे। देखते ही देखते नल में पानी आया। इधर नलके में पानी आया तो ऊधर गांव वालों की आंखों में। मंत्री जी ने गिलास से सबको पानी पिलाया। सबके चेहरे पर मंत्री जी ने पसीना देखा तो गद् गद् हुए। तालियों की गड़गड़ाहट से आसमान कई जगहों से फट गया।

मंत्री जी गए तो उनके साथ पानी भी चला गया।

इतना भी समझते काका! पानी मंत्री जी के साथ नहीं रहेगा तो क्या फूटी गागर वालों के पास रहेगा?

तालियां!! जोर से तालियां!!! और जोर से तालियां!!!!

-डॉ. अशोक गौतम

Previous articleShare with Care : शेयर विथ केयर
Next articleबिगड़ी हालत सेहत की-हिमांशु शेखर
अशोक गौतम
जाने-माने साहित्‍यकार व व्‍यंगकार। 24 जून 1961 को हिमाचल प्रदेश के सोलन जिला की तहसील कसौली के गाँव गाड में जन्म। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला से भाषा संकाय में पीएच.डी की उपाधि। देश के सुप्रतिष्ठित दैनिक समाचर-पत्रों,पत्रिकाओं और वेब-पत्रिकाओं निरंतर लेखन। सम्‍पर्क: गौतम निवास,अप्पर सेरी रोड,नजदीक मेन वाटर टैंक, सोलन, 173212, हिमाचल प्रदेश

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here