व्यंग्य/ कांग्रेस और गांधी जी की बकरी

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 जग मोहन ठाकन

महात्मा गांधी ने जो भी आंदोलन किये , अहिंसा व शांति के बलबुते पर कामयाबी पाई । गांधी जी की नीतियों व सिद्धान्तों पर चलने का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी गांधीवादी रास्ते से पाई हुई स्वसता का रसास्वादन मजे से बैठ कर करती रही है। कांग्रेस ने ऐसा पाठ पढ़ लिया है कि जहां कहीं कोई दिक्कत आती है , गांधी जी का नाम लेकर संकट रूपी दरिया को पार कर लेती है । गांधी जी अपने पास एक लाठी व एक बकरी रखते थे । यह बात नहीं है कि गांधी जी गाय या भैंस रखने में समर्थ नहीं थे या गाय व भैंस का दूध उन्हें हजम नहीं होता था। परन्तु गांधी जी भारत की जनता की नब्ज को पहचानते थे ।

वे लाठी व बकरी प्रतीक के रूप में रखते थे । बकरी गरीब के घर की कामधेनू थी। गरीब व निचले तबके का प्रतिनिधित्व करती थी । इसी लिए गांधी जी ने बकरी को अपनाया । बकरी को कोई खतरा ना हो , इसलिए अपने पास लाठी रखी । लाठी का सिद्धान्त है कि उसे चलाने की मूर्खता कभी नहीं करनी चाहिये ं,उसे तो ठरका ठरका कर लोगों को केवल यह जतलाने की जरुरत है कि उसके पास लाठी है । और जिसकी लाठी उसकी भैंस ।

कांग्रेस ने भी निचले व गरीब तबके को अपने साथ जोड़े रखने व उसका वोट रूपी दूध पाने के लिए बकरी का आचरण स्वीकार करना बेहतर समझा ।आज भी कांग्रेस बकरी की प्रकृति को आत्मसात किये हुए है । तभी जनता में नरेगा का चारा डाला जा रहा है। बकरी को लगातार चरना बड़ा पसंद है । वह बार-बार सारा दिन कुछ न कुछ खाती रहती है । बकरी का हाजमा बड़ा ही विचित्र है। वह आक के कड़वे पतों से लेकर कांटेदार झाड़ियों के नुकीले कांटों को भी अपना भोजन बना लेती है। वह हरा व कोमल घास बड़े चाव से खाती है तो सूखा चने का भूसा भी उतने ही प्यार से खाती है । आमतौर पर बकरी अपनी रक्षा अपने सींगों से विपक्षी पर वार करने के दिखावे से ही कर लेती है। उसे सींग चलाने की जरूरत नहीं पड़ती । परन्तु यदि बकरी को लगे कि यहां सींगों की दाल गल सकती है ,वहां सींगों से विरोधी पर वार भी कर देती है। बकरी के जो छोटे मोटे दुश्मन होते हें वो इन्ही दो प्रक्रियाओं से ध्वस्त हो जाते हैं । बकरी के इन्हीं दो योगासनों का प्रयोग करके ही कांग्रेस ने बाबा रामदेव की झण्डी उखाड़ दी थी । बाबा रामदेव योग गुरू तो थे पर वे बकरी चरित्र से नावाकिफ थे। खैर इसीलिए फेल हो गयें। परन्तु अन्ना हजारे जी गांधीवादी सिद्धान्तों को निचली तह तक जानते हैं। उन्होंने गांधी जी के ‘‘ सत्य के प्रयोग ‘‘ की तरह अनशन रूपी हथियार के प्रयोग बार-बार आजमाये हैं। जनता के पेट में दर्द कहां है ,उसे वे भली भांति जानते हैं । अन्ना जी को बकरी चरित्र का भी पूर्ण ज्ञान है । उन्हें यह भी पता है कि बकरी दूध तो देती है ,परन्तु पहले मिमियायेगी फिर मेंगनी करके दूध देगी । बकरी को मिमियाने को बाध्य करने की कला में अन्ना हजारे निपुण हैं और इसी कला के सहारे उन्होने बकरी का दूध निकाल ही लिया। परन्तु अन्ना जी , बकरी बिना खाये दूध कैसे देगी ? कुछ तो रहम करो ।

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  1. बकरी को मिमियाने को बाध्य करने की कला में अन्ना हजारे निपुण हैं और इसी कला के सहारे उन्होने बकरी का दूध निकाल ही लिया। परन्तु अन्ना जी , बकरी बिना खाये दूध कैसे देगी ? कुछ तो रहम करो ।…बहुत खूब ,,मगर बकरी को हलाल करना अन्ना के बस का नहीं ..उसे ‘चरने’ से कोई नहीं रोक सकता.. और हाँ दूध भी देगी तो मीन्गने डाल कर….उतिष्ठकौन्तेय

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