व्यंग्य : हे कुत्ते, तुझे सलाम!!

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greatdaneवे मेरे परमादरणीय पड़ोसी हैं। मेरे लिए रोल माडल हैं। परमादरणीय इसलिए कि उन्होंने मुझे दुनियादारी की बहुत सी बातें सिखाई हैं। उनके ही आशीर्वाद से मैं यहां तक मक्खन लगाने की कला में निपुण हो पाया हूं। वे न होते तो कसम खाकर कहता हूं कि आज मैं एक अच्छे पद पर होने के बाद भी कुछ भी खाने योग्य न होता। उनकी ही प्रेरणा से ही आज मैं दफ्तर की गाड़ी में अपनी तो अपनी पत्नी, अपने अडोस-पड़ोस की पत्नियों को भी बाजार घुमा आता हूं।

उन्होंने ही मुझे बताया कि सरकारी अस्पताल से हर हफ्ते झूठ की बीमारी बता कर लिखवाई दवाइयों के बदले कास्मेटिक्स ला पत्नी को कैसे उम्र की ढलान पर से फिसलने से निसंकोच बचाया जा सकता है।

कुल मिलाकर उनका मैं तहदिल से आभारी हूं। उनमें और भी बहुत से गुण हैं, कितने गुण गिनाऊं भाई साहब मैं। उनके गुणों का वर्णन करते-करते मेरी जीभ सूख जाए पर उनके गुणों का गुणगान खत्म न हो। उनके गुणों का वर्णन करते हुए पूरे मुहल्ले की जीभें सूख जाएं पर उनके गुणों का वर्णन खत्म न हो। वे तो वास्तव में हैं ही गुणों की खान। देश की बड़ी से बड़ी गुणों की खान बंद हो जाए तो हो जाए पर उनके गुणों की खान जरा भी बंद न हो।

अब मौत पर तो किसी का बस नहीं चलता न भाई साहब। सो उनका भी नहीं चला। हफ्ता पहले यमराज को पता नहीं क्या शरारत सूझी कि वह दिन दहाड़े उनकी पत्नी को उठा कर ले गया। उन्हें ले जाता तो गम न होता। एक मुहल्ले में दो तलवारें तो न रहतीं। जाली मेडिकल बिलों के सहारे जवान रखी बीवी को पता नहीं यमराज की नजर कैसे लग गई।

नजर लग गई तो लग गई भाई साहब। अब आज के बेशरम माहौल में आप पत्नी को किस किस की नजर से बचाते फिरें। आज के बेशरम माहौल में आप अपने को औरों की बुरी नजर से बचाएं या पत्नी को?

और उनके पास ले देकर रह गया वे और उनका कुत्ता। पत्नी के जाने पर वे उतना नहीं रोए जितना की उनका कुत्ता रोया। लगा कि मुहल्ले वालों की आंखों के आंसू भी जैसे कुत्ते की आंखों में आकर बस गए हों। देश में आने वाले मानसून ज्यों कुत्ते की आंखों में आकर थम गए हों। मैंने भी बड़ी मुस्तैदी से अपने हिस्से के आंसू उनके कुत्ते की आंखों में डाल दिए। पड़ोसी के बिलख-बिलख कर रोने पर लगा बंदा तो यार सच्ची को आदर्श पति था। वरना आज के पति तो पत्नी के मायके जाने पर भी सेल स्विच आफ कर नंगे पांव प्रेमिका के घर की ओर दौड़ पड़ते हैं। पीछे बीसियों कुत्ते पड़े हों तो पड़े रहें।

पड़ोसन के दस दिन जाने के बाद उस शाम मैं उनके घर गया था उनका तथाकथित दुख बांटने। पर उनके फ्लैट पर ताला लगा देखा तो अचरज हुआ, ‘यार अभी तो उनकी पत्नी की आत्मा घर से भी नहीं निकली है, ऐसे में बंदा कहां निकल गया? कम से कम धर्मशांति तो देख लेता ।’ मन ने चटकारा जेते पूछा।

‘मालिक कहां गया रे तेरा गमगीन कुत्ते?’ मैंने उनके कुत्ते से पूछा पर वह इतना गमगीन था कि कुछ न बोला। बस चुपचाप निरीह आंखों से मुझे ताकता रहा, आंसू बहाता रहा।

रात के दस साढ़े दस बजे क आसपास उनके फ्लैट पर लाइट जली देखी तो पत्नी के कहने पर उनके यहां चला गया। वे सामान पैक कर रहे थे। मैंने हैरानी से पूछा,’ कहां जा रहे हो? भाभी का कर्म करने हरिद्वार?’

‘नहीं, हनीमून पर जा रहा हूं।’ उन्होंने जिस जोश में कहा वह देखने काबिल था। कहीं से भी नहीं लग रहा था कि बंदे की पहली बीवी जा चुकी है।

और वे दूसरी के साथ हनीमून पर निकल गए। कुत्ता वहीं पड़ा आंसू बहाता रहा।

कुत्ता अभी भी वहीं लेटा आंसू बहा रहा है। मेरे लाख कहने पर भी न कुछ खा रहा है, न कुछ पी रहा है। अब आप ही इस कुत्ते को समझाइए न प्लीज कि……भगवान से दोनों हाथ जोड़कर निवेदन कि वह हर मालकिन को ऐसा मालिक दे या न दे पर हर मालकिन को ऐसा कुत्ता अवश्य दे।

-अशोक गौतम

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अशोक गौतम
जाने-माने साहित्‍यकार व व्‍यंगकार। 24 जून 1961 को हिमाचल प्रदेश के सोलन जिला की तहसील कसौली के गाँव गाड में जन्म। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला से भाषा संकाय में पीएच.डी की उपाधि। देश के सुप्रतिष्ठित दैनिक समाचर-पत्रों,पत्रिकाओं और वेब-पत्रिकाओं निरंतर लेखन। सम्‍पर्क: गौतम निवास,अप्पर सेरी रोड,नजदीक मेन वाटर टैंक, सोलन, 173212, हिमाचल प्रदेश

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