व्यंग्य/ किरकिटवा उर्फ किस्सा ए सत्र

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अशोक गौतम

पहाड़ों से ऊंचे पेड़ों से सूरज पूरी तरह ढका होने के बाद भी जनता के हिस्से की चुराई गुनगुनी धूप का आंनद ले रहा था कि सामने अपने सरकारी प्राइमरी स्कूल में छुट्टियां होने के बाद अपने बेड़े के बच्चे तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार गुड्डू मौसी के फटे कुरते की गेंद, छिंबा ताऊ के सड़े दरवाजे का बैट बना किरकिट खेलने के लिए इकट्ठे होने शुरू हो गए । वैसे ये बात दूसरी है कि अपने प्राइमरी स्कूल में बारहों महीने छुट्टियों सा माहौल रहता है।

क्या है न कि मेरा बेड़ा गांव में बसता है इसलिए यहां जो कुछ भी होता है देसी होता है। देसी ढंग से होता है। फॉर एग्जांपल! यहां के लोग देसी दारू पीते हैं। जमकर पीते हैं। उनके पास न तो कहने के लिए अंग्रेजी है और न पीने के लिए। जाम भी देसी और जबान भी देसी।

और लो जी! शुरू हो गया किरकिट का देसी संस्करणवा! एक तरफ पांच तो एक तरफ छ:! कोई बात नहीं। टीम बराबर हो गई तो चल ली सरकार! किसनू पटवारी का लड़का गायों को पानी पिलाकर आने वाला है तो छ: छ: हो जांएगे। रामलाल चपरासी के लड़के ने पीछे से फटी निकर की जेब से चवन्नी निकाली और हेड टेल हो गया। बिरजू के लौंडे ने हैड मांगा सो किस्मत से अबके भी वही आया। यों ही नहीं है वह पिछले साल से टीम का कैप्टन! वह कहीं भी खड़ा हो टीम उसके बाद ही बनती है। उसकी टीम के तालियां बजाने वाले जैसे पार्टी के जलसे में अपने ही बंदे होते हैं। ओपनर रामू चाचा के लड़के ने अपनी दोनों टांगों में फटी चीनी के बोरे के टुकड़े घुटनों तक बांधे और कंधे पर ताऊ के सड़े दरवाजे का बैट लिए सचिन हो चला षतक जमाने। सामने बेनापी दूरी पर बांस की तीन विकेट। विकेट कीपर ने बैट्समैन को जल्दी आउट करने के लिए उन्हें दूसरों की नजर बचा कर कुछ चौड़ा कर दिया। विधेयक उसके बीच में से निकल जाए तो निकल जाए।

कच्ची सड़क पर देखते ही देखते बड़ोदरा का स्टेडियम आ धमका। कमेंटरी बोलने के लिए दर्जी का चौथी में चार बार फेल हुआ लौंडा! कमेंटरी ऐसी करता है कि जसदेव सिंह को चित्त कर दे। पर क्या मजाल जो परीछा में अपने बाप के नाम की मात्रा भी ठीक लगा दे। माना मास्साब बारहों महीने उनके ही घर का मट्ठा पीते हैं पर एक दिन तो उन्हें भी यमराज के दरबार में हाजिरी भरनी है न!

बिजली वाले मदनु के लड़के ने अपनी फील्ड जमाई मानों अपोजीसन अबके सरकार से का नाक काट कर ही रहेगा। जो मर्जी आएगा करेगा। वह सत्र नहीं चलने देगा तो नहीं चलने देगा। आप कौन होते हो समय की बरबादी का फतवा जारी करने वाले? आपने उनको संसद भेजा है। अब वे संसद देखेंगे। ये उनकी मर्जी है कि वे उसे चलने देते हैं कि उसकी टांग तोड़ उसे बैठा कर देते हैं। आप राशन की दुकान पर राषन आया कि नहीं यह देखो! आप आपके नलके में पानी आया कि नहीं यह देखो! वे अपने हिसाब से तो आप अपने हिसाब से। इस देष में और अपना- अपना हो या न! पर हिसाब अपना अपना!

मेरे गांव में और भी सबकुछ अपने ही हिसाब से होता है। कायदे कानून से नहीं। कायदे कानून किताबों की बातें हैं भाईसाहब! उन्हें किताबों से बाहर मत आने दीजिए नहीं तो प्रलय हो जाएगा! इसलिए यहां प्यार करना मना है। यहां पर न तो जिया जाता है और न जीने दिया जाता है। जिसका दाव लग गया वह बीसियों को पछाड़ अपने खेत में पानी लगा गया तो लगा गया! बारी जाए भाड़ में। बारी की इंतजार में बैठे रहे तो भैया अगली फसल को भी खेतों पानी की बारी न आए।

तो लो! किरकिटवा शुरू। किसनवा का लड़का बालर! सिर के बालों को छोड़ पजामे के पीछे चू चू सरसों का तेल लगाए हुए। बाल डाले कि बंदर भगाने के लिए पत्थर मारे।…. और ये ओवर की दसवीं बाल! तय है ओवर तब तक चलेगा जब तक या तो बैट्समैन आउट न हो जाए या फिर बालर न थक जाए। पर इस देस में कोई थकने वाला नहीं। न बालर ,न बैट्स मैन!

ओह नो! बालर थक गया। पर जो सत्ता इतनी जल्दी हार मान ले तो खेल पांच साल कैसे चले? अब आया बिसनवा का फटा कच्छा पहने देश का होने वाला बालर नंबर वन! बाप को उससे कोई उम्मीद हो या न! पर टीम को उससे बहुत उम्मीदें हैं। बंदे ने विकेट कीपर को चोरी से आंख मारी और उसने अंपायर और बैटिंग करने वाले खिलाड़ियों की आंख बचा झटके में विकेट कुछ और खुले कर दिए।

पर अचानक ये क्या हो गया! भला चंगा ईमानदारी से तो नहीं पर चलो फिलहाल खेल चल रहा था कि दोनों टीमों के खिलाड़ी खेलना बंद कर पता नहीं किस बेमुद्दे पर एक दूसरे से उलझ पड़े। किसीके हाथ में बाल तो किसी के हाथ में विकेट! बैट्समैन पूरी हिम्मत से हवा में बैट लहराता हुआ। उसकी टांगों में बंधे चीनी की बोरी के टुकड़े पता ही नहीं लगा कौन खींच ले गया! किसीके हाथ में किसीके कुरते का टुकड़ा तो किसीके हाथ में किसीके पाजामे का। किनारे खोले जूते चप्पल एक दूसरे पर पड़ने लगे। अंपायर बेचारे को खुद को बचाना मुष्किल हो गया। वह अपना पजामा पकड़े घर को भागा! उसने बाप के पहने चप्पल हाथ में लिए और भाग खड़ा हुआ। वह इसके लिए पहले से ही तैयार था। उसे पता था कि यह तो होना ही है। इसीलिए वह खिलाड़ी नहीं अंपायर बना था। उसके घर में केबल का कुनैक्षन जो है। देस प्रदेस की बातें देखता रहता है।

तो लुत्फ उठाइए एक और सत्र के सीधे प्रसारण का!

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