तब मैं दफ्तर से कइयों की जेब काट कर शान से सीना चौड़ा किए घर आ रहा था कि रास्ते में मुहल्ले का वफादार कुत्ता मिल गया। कुत्ता वैसे ही उदास था जैसे अकसर आजकल समाज में वफादार लोग चल रहे हैं।
‘और कुत्ते क्या हाल हैं? रोटी राटी मिली आज कि…..’
‘साहब ! रोटी मिले भी तो कहां से? जनता की जेब तो आप खाली कर देते हो। पहले दो घरों में जाकर ही पेट भर जाता था पर जबसे देश में भ्रष्टाचार बढ़ा है बीसियों खोलियों में जाकर एक रोटी के बराबर होता है। अब तो लोग कुत्ते, कौवों के लिए रखी रोटी को भी खुद ही खाने लगे हैं। पर अब तो दूसरा ही डर सता रहा है।’
‘क्या??’कुत्ते कबसे डरने लग गए?’
‘जब से कुत्तों की दूसरी संभ्रांत नस्ल आ गई। पर एक बात तो बताओ…’
‘कहो??’
‘ये व्यवस्था वफादारों को हमेशा जहर देकर क्यों मारती आयी है?’
‘ये इस देश में क्या देख रहा हूं रे कुत्ते!’
‘क्या साहब!’
‘कि कुत्ते बुद्धिजीवी हो रहे हैं और बुद्धिजीवी……’
‘खुदा कसम साहब! बहुत उदास हूं। कल व्यवस्था के लोग मुझे मारने आ रहे हैं। हम तो समाज को चोरों से ही आगाह करते आए हैं जनाब! अगर आपको आगाह करना बुरा लगता है तो मार डालिए हमें। पता नहीं क्यों ये समाज अब चोरों से ज्यादा पुलिस को शक की निगाह से देखने लगा है। मरना तो एक न एक दिन सबको ही है। पर आप एक बत बता देते तो, कुत्ता हूं न। मुझे पता नहीं।’
‘क्या?’
‘मोक्ष कैसे मिलता है?’
‘समाज में डटके गंद पाकर।’
‘मतलब?’कुत्ता सोच में पड़ गया। वह क्या जाने मोक्ष का नया फंडा।
‘मतलब यार कि जो समाज में डटकर गंद डालता है मरने के बाद भगवान उसे पुन: यहां नहीं भेजता।’
‘क्यों? उसे तो भगवान को तब तक मृत्युलोक में भेजते रहना चाहिए कि जब तक वह न सुधरे।’ कुत्ते को कुत्ता यों ही थोड़े कहते हैं दोस्तो!
‘इसलिए कि अगर उसे फिर यहां भेज दिया तो पिछले अनुभव के आधार पर वह पैदा होते ही गंद पाना षुरू कर देगा। बस इसी डर से वह गंदे बंदे को मोक्ष दे देता है।’
‘और शरीफ बंदों को?’
‘उन्हें वह बार बार इस लोक में भेजता रहता है।’
‘क्यों???’
‘यार, खाने वालों को भी तो कुछ चाहिए न! अगर शरीफ यहां नहीं आए तो खाने वाले तो भूखे मर जाएंगे न! फिर ये समाज कैसे चलेगा?’
‘ये बात तो ठीक है सर! कुत्ता हूं। इतनी छोटी सी बात भी न समझ पाया। आप सच्ची को बहुत विद्वान हो गुरूदेव। चाहता हूं आपका शिष्य हो जाऊं।’ कह कुत्ते ने मेरे ज्ञान से अभिभूत हो अपने आगे के दो पांव मुझे जोड़े,’ आपके धर्म के चर्चे दूर दूर तक सुने हैं। आप जैसा दयालु पूरे दफ्तरों में नहीं। आप बंदे की जेब पूरी खाली नहीं करते। उसकी जेब में घर जाने लायक किराया छोड़ देते हैं। अब मेरा भी एक काम कर दें तो आप के धर्म के झंडे स्वर्ग में भी गड़ जाएं।’
‘कहो मित्र! ‘मेरी नसों में शराब की जगह धर्म का खून दौड़ने लगा। नसें थीं कि फटने को बेताब थीं।
‘मैं मर जाऊं तो मुझे गंगा स्पर्श करा देना ताकि कम से कम कुत्ता योनि से मुक्त हो जाऊं।’ कह वह निरीह भाव से मेरा मुंह देखने लगा।
‘कुत्तों के स्पर्श से गंगा गंदी नहीं हो जाएगी?’
‘तो आज तक उसे किसने गंदा किया??’
‘ठीक है ठीक है। तुझे गंगा दशर्न करवा दूंगा।’मैंने जोश में आकर हां कर दी यह सोच कि लगे हाथ मैं भी अपना मैल वहां छोड़ आऊंगा ताकि फिर तरोताजा होकर जन सेवा कर सकूं।
वफादार कुत्ते की किस्मत में सब वफादारों की तरह वक्त से पहले मरना लिखा था सो मर गया। उसके दांत लेकर गंगा पहुंचा। पंडे ने उसके दांत देखे तो हैरान हो पूछा,’भाई साहब! माफ कीजिएगा। खाते तो हम भी मरे हुओं को दिन रात हैं। पर ऐसे दांत तो हमारे भी नहीं। क्या काम करते थे ये? इनका नाम?’
‘अनाम था बेचारा। पर वफादार था।’
‘किसका?’
‘समाज का।’
‘तभी तो मैं सोचूं कि इस देश में दो के ही दांत इतने बड़े हो सकते हैं या तो उनके जिन्हें औरों के पेट से भी निकाल कर खाने में महारत हासिल हो हराम का खाने की आदत हा या फिर उनके जिन्हें अपने पेट की रोटी भी औरों को खिलाने की आदत हो।’
पंडे से मैंने कुत्ते के दांत आदमी के दांतों के रेट में प्रवाहित करवा डाले। पंडे ने अपना काम कर मुझसे कहा, ‘तीर्थ पर आए हो, मन में संकल्प कर कोई बुरी आदत छोड़ दो। गंगा मैया तुम्हें वह संकल्प निभाने की शक्ति देगी।’
मैंने मन ही मन संकल्प लिया, ‘हे गंगा मैया! मैं संकल्प लेता हूं कि मुझमें ईमानदारी बरतने की घास के तिनके की नोक भर जो बुरी आदत बची है मैं उसे आज तुम्हारी शपथ लेकर यहीं छोड देता हूं। यांतु ईमानदारी सर्वे यस्मान स्थानात उपागता: सर्वेते दृष्टमनस:सर्वान्कामान्ददंनुमे।’
……….. अब मजे हूं। मन में जो थोड़ी शंका कभी कभार जाग जाती थी, अब वह भी सदा-सदा के लिए सो गई या कि मुझे तो लगता है कि मर गई।
-अशोक गौतम
I read a few topics. I respect your work and added blog to favorites.
hello, i will only say that in this creativity i got new thinks. and its very good, and thanks to you for reaching it to me.