व्यंग्य/ स्थितप्रज्ञ हुए मनमोहन

-पवन कुमार अरविंद

देश के जाने माने अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह जब से प्रधानमंत्री बने हैं तभी से ‘स्थितप्रज्ञ’ गति को प्राप्त हो गए हैं। उन्होंने यूपीए-1 की सरकार का सफल नेतृत्व तो किया ही, यूपीए-2 की सरकार का भी नेतृत्व बड़े ही सहज और सफलता के साथ करते दिखाई दे रहे हैं। बड़े-बड़े ऋषि मुनियों को कठोर तपश्चर्या के बाद ही स्थितप्रज्ञता की अवस्था प्राप्त होती है; लेकिन मनमोहन ने बहुत ही आसानी से यह मुकाम हासिल कर लिया है। यह उनकी व्यक्तिनिष्ठा का प्रभाव ही कहा जाएगा कि वे ऐसी अवस्था को बिना कठोर तपश्चर्या के ही हासिल कर पाए हैं। जब उनके अंदर व्यक्ति-निष्ठा ने जन्म लेना आरम्भ किया तो उन्होंने अपने पराक्रम को ताक पर रख दिया और व्यक्ति की परिक्रमा शुरू कर दी। फलतः परिणाम आज सबके सामने है।

इस अवस्था में पहुंच जाने के कारण ही मनमोहन को कुछ भी दिखाई नहीं देता। जब किसी ऐसे विषम अथवा असामान्य स्थिति का आभास होता है तो वे अपनी आंख, कान और नाक बंद कर लेते हैं। यहां तक उनको किसी के संदर्भ में कुछ बुरा बोलना भी पसंद नहीं है। वे इस सृष्टि के सभी प्राणियों को अपने ही समान ईमानदार मानते हैं। देश-दुनिया में क्या हो रहा है और उनके मंत्रिपरिषद के सदस्य क्या कर रहे हैं, उनको इससे कुछ भी लेना-देना नहीं। ऐसा इसीलिए है क्योंकि उन्होंने अपनी आत्मा को स्वयं में ही संतुष्ट रखने की महारत हासिल कर ली है।

यह उनकी तपश्चर्या की सिद्धि ही कही जाएगी कि कई घोटाले उनकी नाक के नीचे हुए फिर भी वे महात्मा गांधी के तीनों बंदरों का अनुसरण करते रहे और अपने को इससे अलग रखने में कामयाब रहे। चाहे 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन के रूप में देश का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला हो या फिर राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों व अन्य मदों में किए गए हजारों करोड़ के हेर-फेर का मामला हो, इन सभी स्थितियों में उनकी स्थितप्रज्ञता कमाल की रही।

दरअसल ‘स्थितप्रज्ञ’ शब्द की चर्चा श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय में की गई है। गांडीवधारी अर्जुन लीलापुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि हे केशव, स्थितप्रज्ञ पुरुष के क्या लक्षण हैं ? श्रीकृष्ण कहते हैं- “हे पार्थ, जब व्यक्ति अपने मन में स्थित सभी कामनाओं को त्याग देता है और अपने आप में ही अपनी आत्मा को संतुष्ट रखता है, जो दुःख से विचलित नहीं होता और सुख से उसके मन में कोई उमंगे-तरंगें नहीं उठतीं, जो व्यक्ति इच्छा व तड़प, डर व गुस्से से मुक्त हो। अच्छा या बुरा कुछ भी पाने पर, जो ना उसकी कामना करता है और न उससे नफरत करता है, ऐसे व्यक्ति की बुद्धि ज्ञान में स्थित है। उदाहरण के तौर पर जैसे कछुआ अपने सारे अँगों को खुद में समेट लेता है, वैसे ही जिसने अपनी इन्द्रियों को उनके विषयों से निकाल कर खुद में समेट लेता है, ऐसे धीर मनुष्य को ही ‘स्थितप्रज्ञ’ कहा जाता है।” तो धन्य हैं मनमोहन सिंह।

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