श्रद्वांजलि:जगजीत सिंह

शादाब जफर ”शादाब

होठो से छू लो तुम…………………….

”होठे से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो…..” 1981 में रमन कुमार द्वारा निर्देशित हिन्दी फिल्म ”प्रेम गीत के इस गीत को अपने होठो से छूकर वास्तव में स्व: जगजीत सिह जी ने अमर बना दिया। आज भी जब जब ये नगमा लोगो के कानो में पडता है तो इस नगमे की कशिश खुद बे खुद लोगो को अपनी ओर खीच लेती है और आदमी दिन भर की थकान भूल इस नगमे में एक पल के लिये कहा खो जाता है उसे खुद भी पता नही चलता। कौन सोच सकता था कि 10 अक्तूबर 2011 का दिन ऐसा भी आयेगा जब सुबह करीब सवा आठ बजे गजल की दुनिया का ये बेताज बादशाह सदा के लिये अपनी आखे मूंद लेगा। न जाने कितनी गजलो को अपनी मखमली आवाज देकर अमर कर देने वाला शक्स खुद अमर हो जायेगा और सिर्फ रह जायेगी ना भुलार्इ जाने वाली उन की यादे। स्व: जगजीत सिह की आवाज के साथ ही उन का संगीत भी काफी मधुर होता था। खालिस उद्र्व जानने वालो की मिलिकयत समझी जाने वाली, मुशायरो, नवाबो और तवायफो की महफिलो में वाह वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लो को मधुर संगीत की चाशनी में डूबो कर आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को जाना चाहिये तो सब से पहले स्व: जगजीत सिह जी का नाम जुबा पर आता है। उन्होने ग़ज़ल सिर्फ नाम पैसा कमाने के लिये नही गार्इ बलिक उन की ग़ज़लो ने उद्र्व के कम जानकारो के बीच शेरो शायरी की समझ में भी इजाफा किया और ग़ालिब, फिराक, मीर, जोष, मजाज, गुलजार, निदा फाजली, बषीर बद्र, अटल विहारी वाजपर्इ और सुर्दषन फकिर जैसे कवि और शायरो का उन से परिचय भी कराया।

ग़ज़ल सम्राट स्व: जगजीत सिह जी का जन्म 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के गंगानगर के एक सिख परिवार में हुआ था। जगजीत सिह का परिवार यू तो पंजाब के रोपड जिले के दल्ला गांव का रहने वाला था। इन की मा बच्चन कौर भी पंजाब के ही समरल्ला के उटटालन गांव की रहने वाली थी। इन के पिता सरदार अमर सिह धमानी केंद्र सरकार में सर्विस करते थे और नौकरी के कारण ही राजस्थान के गंगानगर में वो पंजाब से आकर बस गये थें। इन के माता पिता इन्हे बचपन में जीत कहकर बुलाते थे। जगजीत सिह के माता पिता क्योकि पंजाब के रहने वाले थे इस लिये अकसर इन के घर में गीत संगीत के आयोजन होते रहते थें। इन के पिता की आवाज बडी सुरीली थी इस कारण जगजीत सिह जी को संगीत बचपन में अपने माता से विरासत में मिला। पढार्इ के दौरान ही इन्होने राजस्थान गंगानगर में ही पंडित छगन लाल षर्मा जी से अपने शुरूआती दिनो में दो साल तक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। आगे चलकर इन्होने सैनिया घराने के उस्ताद जमाल खान साहब से ख्याल, ठुमरी और धुपद की बारीकिया सींखी। जगजीत की संगीत में इतनी ज्यादा रूचि देख इन के पिता को थोडी चिंता होने लगी थी। क्या की उन की ख्वाहिशथी कि उन का बेटा उन्ही की तरह भारत सरकार की सेवा करे। इन के पिता का ये भी सपना था की जगजीत भारतीय प्रषानिक सेवा (आर्इएएस) में जाए लेकिन जगजीत सिह जी पर गायक बनने की धुन सवार थी। इन की प्रारमिभक षिक्षा राजस्थान गंगानगर के खालसा स्कूल में हुर्इ और बाद में ये पढने क लिये जालंधर आ गये। और डीएवी कालेज जालंधर में इन्होने स्नातक तक षिक्षा प्राप्त करने के बाद कुरूक्षेत्र विश्वविधालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। कुरूक्षेत्र विश्वविधालय में पढार्इ के दौरान संगीत में उन की दिलचस्पी देखकर विश्वविधालय के कुलपति प्रोफेसर सूरजभान जी ने जगजीत सिह जी को काफ़ी उत्साहित किया और जगजीत सिह जी उन की बात मानकर 1965 में मुंबर्इ आ गये। बस यही से वो दौर शुरू हुआ जिस में जगजीत सिह जी ने बहुत ज्यादा संघर्ष किया। छोटे मोटे विज्ञापन, जिंगल्स, शादी समारोह वगैरह में फिल्मी गायको के गाये गीत ग़ज़ले गाकर वो जैसे तैसे अपनी रोज़ी रोटी का जुगाड कर अपनी जिन्दगी की गाडी को खींचते रहे। मुबर्इ जैसे महंगे शहर में बतौर पेइंग गेस्ट किसी ने उन्हे सर छुपाने की जगह भी दे दी। इसी दौरान 1967 में जगजीत की मुलाकात चित्रा से हुर्इ वो भी उन दिनो फिल्मी दुनिया में स्थापित हाने के लिये संधर्ष कर रही थी। इस मुलाकात ने जगजीत की किस्मत बदल दी। चित्रा का साथ मिलते ही जगजीत सिह जी को काम मिलने लगा और दोनो 1969 में परिणय सूत्र में बंध गये।

जगजीत सिह अपने पहले प्यार को कभी नही भूला पाये। अक्सर अपने पहले प्यार को याद करते हुए अक्सर वो किसी खूबसूरत ख्वाब की तरह उस लडकी को याद किया करते थें जिस के साथ जालंधर में पढार्इ के दौरान सार्इकिल पर वो घर आते या कालेज जाते तो उस के घर के सामने अक्सर सार्इकिल की चैन ठीक करने बैठ जाते या फिर हवा निकलने का बहाना कर चुपके चुपके उस लडकी को देखा करते थे। जगजीत सिह जी का सपना था कि वो फिल्मी दुनिया में प्लेबैक सिंगर बने पर उस वक्त तलत महमूद, मौहम्मद रफी जैसे दिग्गजो की फिल्मी दुनिया में तूती बोलती थी। और गजल गायकी में में बेगम अख्तर, मुन्नी बेगम सुन्दर लाल सहगल , मेहन्दी हसन आदि गजल गायको की तूती बोलती थी। जगजीत सिह सघर्ष के दिनो बुरी तरह से टूट चुके थे। इनके गाये शास्त्रीय संगीत के गीतो पर पबिलक हुठ करती थी। इसी दौरान मशहूर कम्पनी एचएमवी को लाइट क्लासिकल्स ट्रेड पर टिके संगीत कर दरकार थी। जगजीत सिह जी को जब यह पता चला तो उन्होने अपनी किस्तम अजमाने के लिए एचएमवी से सम्पर्क किया और उनका पहला एलबम द अनफारगेटेबल्स 1976 हिट रहा उन दिनो इसी सिंगर को एल पी0 (लाग प्ले डिस्क) मिलना बहुत फर्क की बात हुआ करती थी। जोकि जगजीत सिह जी को अपनी पहली ही एलबम मे प्राप्त हो गयी थी। बहुत कम लोग जानते है कि यही से सरदार जगजीत सिह धीमान इसी एलबम के रिलीज पर अपने लम्बे बाल कटाकर सरदार जगजीत सिह बनने की राह पकड चुके थे जगजीत सिह ने इस एलबम की कामयाबी के बाद मुम्बर्इ मे अपना पहला फ्लैट खरीदा था।

जगजीत सिह पहले ऐसे गजल गायक थे जिन्होने गजलो को फिल्मी गानो के अंदाज में गाया। 1981 में प्रेमगीत और 1982 की फिल्म अर्थ के गीतो को लोग आज भी सुनकर वाह कर उठते है फिल्म अर्थ में जगजीत साहब ने संगीत भी दिया था। अर्थ फिल्म के गीत लोगो की जुबान पर आज भी चढे है प्रेमगीत का गाना ” होठो से से छू लो तुम ”खलनायक का ओ मा तूझे सलाम ”दुष्मन” का चिटठी न कोर्इ संदेष” ”जागर्स पार्क का बडी नाजुक है ये मंजिल ”साथ साथ का ये तेरा घर ये मेरा घर ”सरफरोश का होशवालो को खबर क्या” ट्रैफिक सिगनल का हाथ छूटे भी तो रिष्ते नही तोडा करते ”तरकीब का मेरी आखो ने चुना है तुझ का दुनिया देखकर आदि जगजीत साहब के ऐसे तमाम गजले और गीत है जिन्हे वो संगीत प्रेमियो के दिलो में हमेशा जिन्दा रखेगी। इस महान गजल गायक के यू अचानक चले जाने पर केवल इतना ही कहा जा सकता है ” बडे षौक से सुन रहा था जमाना, तुम्ही सो गये दास्ता कहते कहते।

 

मैं जागता रहा तो ग़ज़ल जागती रही

मैं सो गया तो साथ मेरे सो गयी ग़ज़ल

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