प्रमोद भार्गव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्टार्टअप इंडिया की शुरूआत करके उद्यमशीलता को बढ़ावा देने का कारगर उपाय किया है। छोटे व्यवसायों और देश-विदेश में क्रियाशील युवा उद्यमिता को प्रोत्साहित व देश में ही काम करने की दृष्टि से ये अहम् पहलें हैं। इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत तीन साल के लिए आयकर एवं निरीक्षण में छूट। त्वरित मंजूरी और उद्योग शुरू करने के लिए जरूरी कानूनी दस्तावेजों के स्वप्रमाणन के अलावा चार साल के लिए 10 हजार करोड़ के कोष की भी स्थापना की है। मसलन हर साल ढाई हजार करोड़ रुपए स्टार्टअप योजना में भागीदारी करने वाले युवाओं को दिए जाएंगे। नवाचारियों के आविष्कारों को पेटेंट की सुविधा का भी सरलीकरण किया गया है। लेकिन इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने उ़द्यमियों से अपेक्षा की है कि वे सूचना तकनीक के सीमित दायरे से बाहर निकलें और कुछ ऐसा नया सोचें व करें,जिससे आम लोगों की रोजमर्रा की समस्याओं का समाधान हो और वे बेहतर जीवन को अपना सकें। दरअसल युवाओं से इसी राष्ट्रीय दायित्व के निर्वाह की अपेक्षा है।
सरकार भावी युवा उद्यमियों के लिए कारोबार शुरू करने और असफलता की स्थिति में उससे छुटकारा पाने के आसान उपाय कर रही है,ताकि भारत में स्टार्टअप के पक्ष में अनुकूल वातावरण बन सके। इस नाते ‘दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता 2015‘ का प्रारूप तैयार है। इसके तहत दिवाला के दायरे में आईं एवं अन्य कारणों से संकटग्रस्त कंपनियों के लिए आसानी से बाहर निकलने का विकल्प सुझाया जाएगा। फिलहाल इस संहिता का प्रारूप 30 सदस्यीय सांसदों की बहुदलीय समिति के पास समीक्षा व सुझाव के लिए भेजा गया है। ये सुविधाएं बिना किसी बाधा के युवाओं को हासिल होती हैं तो तय है,विदेशी काम कर रहे भारतीय युवा देश में निवेश की इच्छा जताएंगे और नए युवा विदेश का रुख नहीं करेंगे। इन उपायों को कारगर ढंग से अमल में लाने के नजरिए से लाइसेंस राज की निरंकुशता भी खत्म की जा रही है।
हालांकि अभी भी देश में करीब 1500 तकनीक आधारित और एक सौ के करीब गैर तकनीकी क्षेत्रों में स्टार्टअप शुरू हो रहे हैं। यह स्थिति भारत में उपलब्ध तकनीक विशेषज्ञों और आबादी के अनुपात में ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। अमेरिका में स्टार्टअप और छोटे कारोबारियों के जरिए 70 प्रतिषत रोजगार के अवसर युवाओं को मुहैया होते हैं। यदि हमारे यहां घोषित की गई नीति के चलते,यदि महज एक फीसदी आबादी को हो सक्षम उद्यमी बनने के अवसर मिलते हैं तो देश की समूची अर्थव्यस्था का कायापलट हो सकता है। क्योंकि हमारे यहां दूसरे देशों की तुलना में प्राकृतिक संपदा,विविध रूपों में देश के कोने-कोने में उपलब्ध है। जरूरत है,इसके नष्ट होने से पहले इसका सरंक्षण हो और इसका कायातंरण मसलन इसका रूप बदलकर इसे आसान खाद्य पदार्थ बनाकर बाजार में उतार दिया जाए।
इस नाते प्रधानमंत्री ने नब्ज पर हाथ रखते हुए सूचना तकनीक के महारथियों से अपील की है कि वे आईटी के खोल से बाहर से निकलें और स्टार्टअप के जरिए देशव्यापी समस्याओं के हल ढूंढें ? मोदी ने कहा है कि हमारा फसल उत्पादक किसान बेइंतिहा श्रम करता है। बावजूद बड़ी मात्रा में रख-रखाव की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण अनाज खराब हो जाता है। कमोवेश यही हालात फल,फूल और सब्जियों के हैं। इस लिहाज से जरूरत है कि अनाजों के तले व सिके उत्पाद बनाए जाएं और फलों व सब्जियों को पेय पदार्थों में बदला जाए। तिलहनों से तेल भारत में ही बनाया जाए। इस नीति के लागू होने के बाद यदि ऐसा संभव होता है तो किसान की आमदनी में भी बढ़ोत्तरी होगी और हमें फसल आधारित तेल व अन्य वस्तुओं के आयात से मुक्ति मिलेगी। इन कामों में चुनौती जरूर है,लेकिन सरकार जब मदद को तैयार है और लागत देने व प्रक्रियागत जटिलताओं को दूर करने पर आमादा है तो भावी युवा उद्यमियों का दायित्व बनता है कि वे इस चुनौती को सहजता से स्वीकारें। देश के लिए थोड़ा जोखिम भी उठाएं,क्योंकि यह एक रचनात्मक अवसर है। शायद इसीलिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को कहना पड़ा है कि ‘भारत इस दिशा में देर से जागा है और इसके लिए मैं भी जिम्मेदार हूं।‘ महामहिम द्वारा अवसर की यह चूक, इशारा करती है कि जब वे स्वयं संप्रग सरकार के कार्यकाल में वित्त मंत्री थे,तब यह अहम् फैसला लेने से क्यों चूक गए ?
स्टार्टअप योजना की शुरूआत करते हुए प्रधानमंत्री ने देश के कोने-कोने में फैले उन नवाचारियों का भी जिक्र किया है,जो जुगाड़ से आविष्कार में जुटे हैं। यह सही भी है,हमारे देश में कई बिना पढ़े-लिखे या कम पढ़े-लिखे लोगों ने अपने दिमाग का सार्थक उपयोग कर सिंचाई,ऊर्जा,खेती और मनोरंजन के उपकरण इजाद किए हैं। साथ ही उनका सफलतापूर्वक प्रयोग करके अपनी जरूरतों की पूर्ति की है। यदि इन उपकरणों को युवा उद्यमी कारखानों में आकार देने लग जाएं तो हम स्थानीय समस्याओं के स्थानीय संसाधनों से समाधान निकालने में सफल हो सकते हैं। ऐसी बौद्धिक संपदाओं का पेटेंट भी कराया जाए,जिससे जो मूल आविष्कारक है,उसे राॅयल्टी मिलती रहे। इस नाते पेटेंट की प्रक्रिया को सरल बनाने के साथ ही इसकी शुल्क में भी 80 प्रतिशत की कटौती की गई है। नवाचारियों के लिए प्रक्रिया का सरलीकरण किसी तोहफे से कम नहीं है। कालांतर में आविष्कार को अकादमिक शिक्षा की अनिवार्यता से भी मुक्त करने की जरूरत है। क्योंकि स्थानीय संसधानों से जो उपकरण निर्मित किए गए हैं,उनके निर्माण की कल्पना करने वाले ज्यादातर आविष्कारक शिक्षित नहीं हैं। बावजूद अमेरिका की प्रसिद्ध पत्रिका ‘फोब्र्स‘ इन आविष्कारों का कई बार उल्लेख कर चुकी है। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री ने कहा है कि ‘गांव में बैठकर आम आदमी जो चीजें बना रहा है,वे बेहतर या परिष्कृत रूप में सामने आएं।‘ क्योंकि परिष्कृत रूप में ही इन उपकरणों को बाजार मिलेगा।
नबोन्वेशी चिकित्सीय जांच और साइबर सुरक्षा से जुड़े उपकरणों के निर्माण में भी अपनी बुद्धि लगा सकते हैं। फिलहाल भारत इन क्षेत्रों से जुड़े ज्यादातर उपकरण आयात करने को विवश है। स्टार्टअप के लिए फिलहाल भारत में इन क्षेत्रों में कोई प्रतिस्पर्धा भी नहीं है। हमारे तकनीकी विशेषज्ञों में इस दिशा में बेहतर काम करने की क्षमताएं हैं। वे अपनी इस क्षमता का लोहा विदेशी धरती पर मनवा भी रहे हैं। धार मध्यप्रदेश की रहने वाली पल्लवी तिवारी ने अमेरिका की केस वेस्टर्न रिजर्व विश्वविद्यालय में पढ़ाते हुए ब्रेन कैंसर की स्टेज को परख लेने वाला साॅफ्टवेयर बनाया है। यह कैंसर की ऐसी गणना करने में समर्थ है कि रोगी को किस स्तर के इलाज की जरूरत है। इस साॅफ्टवेयर का निर्माण हमारे यहां भी संभव था,क्योंकि दिमागी कैंसर के मरीजों की कमी तो यहां भी नहीं है। लेकिन अनुसंधान का उचित माहौल नहीं मिलने के कारण अधिकतर युवा नवाचारी पलायन को मजबूर हो जाते हैं। भारतीय मानवता को बचाने के लिए नवाचार के ये प्रयोग अब हमारे यहां होने चाहिए।
फिलहाल स्टार्टअप के जरिए नवाचार की शुरूआत ई-काॅमर्स,यातायात संबंधी समाधान,स्वास्थ्य सुरक्षा,मोबाइल साॅफ्टवेयर एवं सेवा और आॅन डिमांड सर्विसेज क्षेत्रों में की जा रही है। आसानी से अमल के लिए फरवरी में जब नया बजट पेष होगा तब अनुकूल कराधान प्रणाली की भी घोशणा संभव है। ऐसा होता है तो इससे स्टार्टअप को स्थापित करने में युवा प्रोत्साहित होंगे। नवाचारियों के द्वारा उत्पादित सामग्री को सरकारी खरीद में भी प्राथमिकता दी जाएगी। निविदा आमंत्रित करते वक्त वार्शिक टर्न ओवर दिखाने और अनुभव जैसी जरूरतों की अनिवार्यता खत्म कर दी जाएगी। ऐसा बेहूदी शर्तों को हटाने से नवाचारियों का इच्छाबल मजबूत होगा। इससे वास्तव में युवा नौकरी लेने की दिशा में नहीं,बलिक देने की दिशा में बढ़ेंगे।
स्टार्टअप की खासियत यह भी है कि स्टार्टअप इकाईयों की स्थापना के लिए बैंक और सरकार दोनों ही संसाधन उपलब्ध कराएंगे। साथ ही सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बैंक की हरेक शाखा अनुसूचित जाति व जनजाति की एक माहिला समूह से जुड़े स्टार्टअप को आर्थिक सुविधा हासिल कराएंगे। यह भी एक नूतन पहल है कि 5 लाख पाठशालाओं के 10 लाख बच्चों में नवाचार से जुड़ी बौद्धिकता के गुणों तलाष होगी। फिर इन्हें नवाचार के लिए अनुकूल वातावरण में षिक्षित व दीक्षित किया जाएगा। बालकों में नवाचार का यह प्रयोग मौलिक आविश्करकों को बड़ा जनक बन सकता है ? क्योंकि उनकी कौषल दक्षता को विकसित करने पर षिक्षकों का ध्यान केंद्रित शुरूआत में ही हो जाएगा। दरअसल,अब हरेक भारतीय को खुद को साबित करने का अनुकूल अवसर मिलने जा रहा है,इसलिए अब बारी उनकी है कि वे स्वयं को साबित करें।
देश के नेता एवं कर्मचारीतंत्र अब तक उद्यमशीलता को कुंठित करने का काम करते आए है। जैसे उद्यम करना कोई जुर्म हो। जटिल लाइसेंस प्रक्रीया और कर राजस्व कानून के कारण युवा वर्ग अपना उद्यम खोलने की इच्छा को दमित कर नौकरी करना श्रेयस्कर समझने लगे। आज भी बंगाल में किसी उद्यमी युवा की शादी नही होती और सरकारी नौकरी वाले युवा की शादी हो जाती है। गुजरात में स्थिति उल्टी है, वहां उद्यमी अधिक महत्व पाता है। उद्यमशीलता के सम्मान के बगैर देश तरक्की नही कर सकता। मोदी जी ने सही कदम चला है, भारत के युवाओ को प्रोत्साहन मिले तो वह जादू कर सकते है।