मध्य प्रदेश में महिलाओं की स्थिति

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राज्‍य में इन दिनों प्रशासन प्रदेश में महिलाओं सुदृढ़ स्थिति को लेकर फुले नहीं समा रहा है। राज्य सरकार का मानना है कि प्रदेश में महिलाओं की दयनीय हालत में सुधार हुआ है। विगत विधान सभा से लेकर पंचायत चुनावों तक महिलाए सशक्त रूप से सामने आई है, किन इस महिमा मंड़न के बाद भी प्रदेश में महिलाओं के साथ क्या-क्या हो रहा है यह बात किसी से छुपी नहीं है। प्रदेश में महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए ना कितने तरह से प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन बावजूद इसके हालात अब भी चिंताजनक ही हैं।

राजनीतिक स्थिति और हकीकत

शासन का दावा है कि प्रदेश में महिलाओं के मौजूदा हालातों में सुधार हुआ है महिलाओं को पुरूषों के बराबर का स्थान मिला है पर कितना। प्रशासन की कहना है कि इस समय प्रदेश में एक लाख अस्सी हजार महिला पंच हैं, ग्यारह हजार पांच सौ बीस महिला सरपंच हैं, तीन हजार चार सौ महिला जनपद सदस्य हैं, चार सौ पंद्रह महिला जिला पंचायत सदस्य हैं, पांच सौ छप्पन जनपदों और पच्चीस जिला पंचायतों में महिला अध्यक्ष हैं, एक हजार सात सौ अस्सी महिला पार्षद हैं, पन्चानवे नगर पंचायत में महिला अध्यक्ष हैं, बत्तीस नगर पालिका में महिला अध्यक्ष हैं, आठ नगर निगमों में महिला महापौर हैं, ये आंकड़े हैं राज्य भर में महिलाओं की राजनीतिक स्थिति के, यानी की प्रदेश की कुल 6 करोड़ की आबादी मे महिलाओं की जनसंख्या 2.5 करोड के आसपास हैं इस पूरी जनसंख्या में 3 करोड़ से भी ज्यादा पुरूष हैं। ऐसे में सिर्फ उंगलियों की संख्या में गिनी जाने वाली महिलाओं की इस उपलब्धता पर किसे गर्व करना चाहिए। 6 करोड़ आबादी वाले इस प्रदेश में महिलाएं आज भी हाशिये पर हैं। इनके पास आज भी इनकी आंखों में आंसुओं के आलवा कुछ भी नहीं है। शिवराज द्वारा घोषित महिला नीति का अभी तक क्रियान्वयन नहीं हुआ। प्रदेश सरकार भले ही यह कहकर हल्ला मचा रही है कि राज्य में महिलाओं को पुरूषों के बराबर हक दिया गया है तो खुद शिवराज की सरकार में महिलाओं की कितनी पहुंच है इसका जीता जागता प्रमाण भी है कि 230 सदस्यों वाली विधानसभा में कुल 25 महिलाएं विधायक हैं, सिर्फ दो महिलाएं ही मंत्रिमंडल में जगह पा सकीं एक हैं कैबिनेट मंत्री अर्चना चिटनीस हैं तो दूसरी स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री रंजना बघेल हैं। शिवराज सिंह चौहान के दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद होने वाले पहले विस्तार को लेकर महिला विधायक अपनी बारी का इंतजार कर रहीं थीं मगर ऐसा नहीं हुआ।

अत्याचार और महिलाएं

यानी कहा जाये कि शासन के आकंड़े सिर्फ दिखावे के लिए हैं तो कोई ज्यादती नहीं होगी। ये बात रही महिलाओं की राजनीतिक पोजिशन की। लेकिन इन सबसे दूर समाज की एक और हकीकत है जहां आज भी महिलाओं पर अत्याचार बदस्तूर जारी हैं। ख़ुद को घुटन से आजादी दिलाने में लगी महिलाओं ने जब भी अपने लिए आवाज उठाई हैं उन्हें इस पुरूष प्रधान समाज में अगर कुछ मिला है तो सिर्फ यातना और कुछ नहीं। हालातों को चाहे जैसे दिखाया जाये लेकिन राज्य भर में महिला उत्पीड़न के मामले बढ़ते जा रहे हैं। प्रदेश सरकार भले अपने 5 सालों के आंकड़ों पर गर्व से सीना ठोंक रही हो लेकिन पिछले एक साल के आंकड़े ही इस पूरे महिमा मंड़न का मिथक तोड़ रहैं हैं। आज भी महिलाएं समाज के ठेकेदारों के लिए सिर्फ अपने रौब को जमाने का माध्यम मात्र हैं। इसकी जीती जागती मिसाल है ये आंकड़े। देश में महिलाओं के साथ बलात्कार के मामलों में तीस प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। इसमें मध्यप्रदेश पहले नंबर है। भाजपा की प्रदेश में सरकार बनने से लेकर अब 13 हजार से भी ज्यादा महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना घटी हैं। धार जिले में दो महिलाओं को बुरी तरह पीटा गया और उनके मुंह पर कालिख पोतकर उन्हें निर्वस्त्र किया गया। प्रदेश में आदिवासी, दलित एवं नाबालिक युवतियां बड़ी संख्या में बलात्कार की शिकार हुई हैं। शिवपुरी जिले के पिछोर थाना एक मां अपनी सामाजिक प्रताड़ना से तंग आकर तीन बेटियों के साथ आत्महत्या कर लेती हैं। सिर्फ इतना ही नही ये आंकड़े तो उन जगहों के हैं जहां पर महिलाओं का शोषण कोई नयी बात नहीं हैं,लेकिन एक और पहलू है जहां पर महिलाएं की सुरक्षा खुद कई सवाल खड़े करती है। जी हां मैं बातकर रहा हूं पुलिस महकमे की। प्रदेश में ऐसे कई घटनाएं हैं जिन्होंने कानून को भी दीगर शोषणकर्ताओं के साथ लाकर खड़ा कर दिया है। कानून के ठेकेदार आज खुद ही महिलाओं के दलाल बन गये हैं। प्रदेश में ऐसे कई मामले हैं जिनसे वर्दी भी दागदार हुई है। बालाघाट जेल में 15 फरवरी 05 की रात 9 बजे एक जेल अधिकारी ने महिला वार्ड खुलवाकर महिला बन्दियों के साथ बलात्कार किया। आमला थाने में एक दलित महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। नीमच में 20 अक्टूबर 07 को 15 वर्षीय बालिका के साथ 5 युवकों ने बलात्कार किया और विरोध करने पर भरी पंचायत में बालिका के परिवार को अपमान सहना पड़ा। इन आकंड़ों पर तो कोई भी कह सकता है कि पुरानी बात है लेकिन मैं आपको बता कि जनवरी 2009 से जनवरी 2010 तक आंकडे किसी की भी आंखें खोलने के लिए पर्याप्त होंगे। इस एक साल के महिलाओं पर हुए आत्याचारों पर नज़र ड़ाली जाये तो इस समय सीमा में पूरे प्रदेश के 17 जिलों में महिलाओं केसाथ बलात्कार के 755, हत्या के 110, हत्या के प्रयास के 147, दहेज से मौत के 248 और अपहरण के 220 मामले सामने आये हैं। इनमें बलात्कार के सबसे ज्यादा मामलों में बैतूल 130 खंडवा 70 राजगढ़ में 67 और छ्त्तरपुर में 64 मामले दर्ज किये गये हैं। ये तो वे आकंड़े हैं जो पुलिस रिकार्ड़ में दर्ज हैं। इनके आलावा ना जाने और ऐसे कितने अमानवीय कृत्य हैं जिनकी सच्चाई सामाजिक बंधनों और ड़र की वज़ह से सामने नहीं आ पाये।

प्रशासन की योजनाएं और महिलाएं

यह अलग बात है कि शासन हर स्तर पर महिलाओं के लिए शासकीय योजनाओं का ठीठोंरा तो पीटती रहती है। महिलाओं के हितों में काम करने के लिए शासन के कई विभाग बना दिये गये हैं। कई योजनाएं क्रियान्वित की गई लेकिन हालात आज भी हैं। समाचार पत्रों और बड़े-बड़े आयोजनों के माधयम से मध्‍यप्रदेश में महिला सशक्तिकरण की मुनादी भले ही की जा रही है। पूर्व से संचालित परिवार परामर्श केन्द्रों की तरफ शासन का धयान शायद हट सा गया है इनके कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दिया जा रहा है। यह परिवार परामर्श केन्द्र बंद होने की स्थिति में आज खड़े हैं। यही हाल महिला परामर्श केन्द्रों का भी है वहाँ भी शिशु-बालिका भ्रूण हत्या को प्रदेश सरकार ने कठोर अपराधों की श्रेणी में रखा है। लेकिन पिछले कई वर्षों में एक भी प्रकरण इसके अंतर्गत पंजीबध्द नहीं किया। इसी प्रकार भ्रूण हत्या की जानकारी देने वाले व्यक्ति की 10 हजार रुपये का इनाम देने की घोषणा इस सरकार ने की थी, किंतु पिछले वर्षों से किसी को भी यह ईनाम नहीं बांटा गया। इस बात बिल्कुल इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत के 14 जिलों में से मधयप्रदेश के भिण्ड और मुरैना में सर्वाधिक भ्रूण हत्याऐं होती हैं। महिलाओं के लिये संचालित अनेक योजनाएँ भ्रष्टाचार से अछुती नहीं है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका पर्यवेक्षक, आदि की नियुक्ति में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। साइकिल घोटाला, जननी सुरक्षा योजना, पोषण आहार, गरीबी रेखा, राशन कार्ड में धांधाली, पेंशन, नर्सिंग, कन्यादान योजनान्तर्गत दहेज खरीदी, लाड़ली लक्ष्मी योजना, अन्न प्राशन योजना, गोद भराई आदि योजनाएँ मात्र विज्ञापन और कागजों पर ही फलफूल रही हैं।मुख्य मंत्री कन्यादान योजना के अंतर्गत शहडोल जिलें में जिस तरह से महिलाओं के साथ कोमोर्य परीक्षण का मामला हमारे सामने है। बावजूद इसके शासन का यह दावा कि प्रदेश में महिलाएं सुरक्षित, समृद्ध और सशक्त हैं किसी आलिफ लैला की कहानियों से कम दिलचस्प नहीं है।

-केशव आचार्य

2 COMMENTS

  1. -महिलाओं की दुर्दशा अत्यंत निंदनीय है और सभ्य कहलाने वाले समाज के जिए शर्म की बात है.
    -क्या यह हैरानी की बात नहीं कि तथाकथित विकसित कहलाने वाले समाज में महिलाओं पर अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं?
    -केवल भारत में नहीं, केवल मुस्लिम समाज और मुस्लिम देशों में नहीं ; सभ्य समझे जाने वाले विकसित देशों में मुस्लिम देशों के बाद महिलाओं की दुर्दशा सबसे अधिक है. सबसे अधिक बलात्कार, सबसे अधिक तलाक, सबसे अधिक वेश्याव्रित्ती. इन सबका शिकार औरत ही तो है न? आखिर क्यों है ऐसा ?
    -ज़रा थोड़ा सा विचार करके देखें कि हम सभ्य बन रहे हैं या हिंसक पशु बन रहे हैं ? बढ़ते अपराध, चिकित्सकों द्वारा मानव अंगों का व्यापार, शासकों द्वारा अस्सीमित भ्रष्टाचार, आतंक, असुरक्षा ; ये सारे विकास और सभ्यता के पैमाने हैं या जंगली, क्रूर पशु बनने के ?
    * क्या इसका यह अर्थ नहीं कि हमने यानी भारत सहित संसार ने विकास का जो माडल चुना है वह सही नहीं है ,वह हमें विनाश की ओर ले जा रहा है.
    ** याद करें कि भारत ने एक ऐसा माडल संसार को दिया था जिमें कभी किसी स्त्री का अपमान नहीं होता था, कोई निर्धन नहीं था, कोई अपराध नहीं थे.
    **( विश्वास न हो तो पूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्री अब्दुल कलाम का वह उद्धरण पढ़ लें जिसमें टी.बी.मैकाले ने २ फरवरी,१८३५ को ब्रिटेन की संसद में कहा है कि उसे भारत में एक भी चोर, भिखारी नहीं मिला.यहाँ के लोग बड़े समृद्ध, बड़े चरित्रवान और अत्यंत बुधीमान हैं.)
    *प्रिय मित्रवर केशव आचार्य जी, विश्व सहित भारत में महिलाओं की हो रही दुर्दशा का मार्मिक वर्णन कर देने मात्र से हमारा कर्तव्य समाप्त हो जाता है ? क्या हम सब का एक महत्वपूर्ण कर्तव्य यह नहीं कि हम गहराई तक पहुँच कर देश, समाज व महिलाओं की दुर्दशा के कारणों को ढूंढें और उसका समाधान करने का एक सशक्त, सार्थक प्रयास करें ?
    * मुझे लगता है कि पशु प्रवृत्ती वाले, भोगों को ही जीवन का सार समझने वाले पश्चिम के अंधानुकरण तथा इस्लामी संस्कृति में ही इस बर्बादी की जड़ें हैं. अतः इस विषय पर आप जैसी संवेदनशीलता व इमानदार सोच के सज्जनों द्वारा थोड़ा गहराई से चिंतन-मनन हो तो समाधान अब भी संभव है.
    * एक और बड़े महत्व का बिंदु यह है कि मुस्लिम समाज मूल रूप से बुरा नहीं, अत्यंत भावुक है जिसके कारण वह अनेकों अमानवीय कर्म कर डालता है. अपना बलिदान देने के साथ वह दूसरों का भी बलिदान करता है. पर वह अपने उद्देश्यों के प्रती इमानदार है. अतः उसके बहुत बड़े वर्ग को समझाया जा सकता है, बदला जा सकता है. इतिहास गवाह है कि हज़ारों इस्लामी आस्था के लोग भारत की मुख्य धरा से जुड़ते रहे हैं और आज भी अनेकों हैं जो जुड़ रहे हैं. आर्ट ऑफ़ लिविंग में अनेकों हैं जो जघन्य हत्याएं करने के बाद आज शांती के दूत बनकर ज़बरदस्त काम कर रहे हैं.
    * भोगवादी पश्चिम की प्रकृती इससे बिलकुल अलग है. उनका कोई नियम, सिद्धांत नहीं. अमानवीय सोच के ये लोग ” करोड़ों ” की हत्याओं के अपराधी हैं. सत्ता, संपदा व संसाधनों के लिए ये कुछ भी करते हैं और आज भी कर रहे हैं. अफ्रीका, ब्राजील, ईराक, अफ्गानिस्तान, भारत इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं. इन्हें बदलना, समझाना अत्यंत कठिन है. जो लोग स्वामी विवेकानंद आदि के अनुयायी बने वे पश्चिम का सरल, सीधा आम समाज है. इनको अपने हितों की बली चढाने से संसार के गुप्त शासक कभी पीछे नहें हटाते फिर चाहे वे उनके अपने ही देशवासी क्यों न हों.
    * वास्तव में संसार की आज की सारी सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक तबाही का सबसे बड़ा कारण ये पश्चिम की बहुराष्ट्रीय कम्पनियां / व्यापारी ताकतें / संसार के गुप्त शासक हैं. उन्हीं के इशारों पर दुनिया के देशों की आर्थिकी, संस्कृति, समाज व्यवस्था को नष्ट-भ्रष्ट किया जाता है.
    ** विश्वास न हो तो अमेरिका के एक आर्थिक हत्यारे की अपराध स्वीकृती ( कन्फैशन) पढ़ लें जो उसी व्यक्ती की लिखी पुस्तक ” कन्फैशन ऑफ़ ए इकोनोमोक हिट मैन ” पढ़कर देख लें. इस पुस्तक के अनुसार अमेरिका किसी देश की तबाही के लिए अपने आर्थिक हत्यारों को आर्थिक विशेषग्य के नाम पर भीजता है जो उस देश की तबाही इस ढंग से करता है कि वह ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ ( आई.एम्.ऍफ़.) और ‘विश्व बैंक’ से क़र्ज़ लेने पर मजबूर होजाए और उनकी गुलामी करने लगे यानी परोक्ष में अमेरिका की कंपनियों का गुलाम बन कर उनके इशारों पर अपना देश उनके हवाले कर दे, अपने सारे संसाधन उन्हें सौंप दे.
    ***** ये है आज की आधुनिक गुलामीन का असली चेहरा, एक ऐसा रहस्य जिसे प्रयत्न पूर्वक छुपाया जाता है.
    ** दुनिया अनेकों देश इस गुलामीन का शिकार धोखे, फरेब से बनाए जा चुके हैं. अपना देश भारत भी उनमें से एक है. कहने को आपकी चुनी सरकार देश को चला रही है, वास्तविक शासन तो इन अपराधी प्रवृत्ती के अंतर्राष्ट्रीय व्यापारियों का है. तभी तो अनेकों जन विरोधी फैसले हमारी सरकार हर रोज़ कर रही है.
    -देश के जंगल, ज़मी, संसाधा, संपदा विदेशियों को सौंपने के पीछे यही कारण है कि हमारी सरकार उन ताकतों के आगे समर्पण कर चुकी है, देश को उनका गुलाम गुप्त रूप से बना चुकी है.
    ‘ इसे समझाने की ज़रूरत है. सही रोग का निदान करेंगे तभी तो समाधान संभव होगा. ‘
    *** यदि अमेरिका के आर्थिक हत्यारे हैं तो क्या स्वास्थ्य, संस्कृति, इतिहास, नैतिकता के हत्यारे नहीं होंगे ? हमारे आत्म विश्वास की ह्त्या करने वाले हत्यारे नहीं होंगे ? इसी नज़र से मीडिया के कार्यक्रमों, समाचारों को, लेखकों और टिप्पणीकारों की भाषा और नीयत को परखने का प्रयास करें जो सदा भारत की संस्कृति, परम्पराओं, इतिहास, व्यवस्था, और महान पुरुषों के केवल-केवल विरुद्ध लेखन कर-कर के हमारे आत्म विश्वास को तोड़ने का काम कर रहे हैं.
    * स्त्रियों का सबसे अधिक मान-सम्मान करने वाले देश भारत में स्त्रियों की हो रही आज की दुर्दशा का कारण ये पश्चिमीकरण तो है ही पर समझने की बात ये है कि यह भूल वश है या सुनियोजित है. इसे समझे बिना तो हम इसका समाधान कभी भी नहीं कर पायेंगे. बस केवल आत्म निंदा कर-कर के हीनता बोध के शिकार बनते -बनाते रहेंगे.
    * अंत में लेखक महोदय को सशक्त लेखन के लिए साधुवाद व शुभकामनाएं. विश्वास है कि वे आगे भी मार्मिक और समाज हित के मुद्दों को सार्थक व समाधानकारी दृष्टी से उठाते रहेंगे.

  2. भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार हो रहा है और यही आपेक्षित भी है ………….लेकिन वो सर्व स्वीकार्यता नहीं है जो होनी चाहिए ………लेख के लिए धन्यवाद

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