हृदय प्रदेश के माथे पर कुपोषण का कलंक

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-लिमटी खरे

समूचे देश में कुपोषित बच्चों की खासी तादाद देखने को मिल रही है। यह आज की कहानी नहीं है, आजादी के पहले से ही देश में बच्चों को पर्याप्त और पोष्टिक भोजन न मिल पाने के चलते उनका विकास अवरूद्ध होता रहा है। देश में कुपोषित बच्चों की तादाद में तेजी से इजाफा हुआ है। देश के हृदय प्रदेश माने जाने वाले मध्य प्रदेश में कुपाषित बच्चों की खासी तादाद होने के बावजूद भी सूबे के स्वास्थ्य और महिला बाल विकास महकमे की पेशानी पर चिंता की लकीरें कहीं भी परिलक्षित नहीं होती है।

एक अनुमान के अनुसार मध्य प्रदेश के बच्चे इन दिनों यूनीसेफ के रहमो करम पर ही जी रहे हैं। विडम्बना तो देखिए जो यूनीसेफ कल तक बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए दवा दारू और पोष्टिक भोजन का प्रबंध करता आ रहा था, वही यूनीसेफ आज मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को ब्रम्हास्त्र भी मुहैया करवा रहा है। कुपोषण से बचने के लिए यूनेसेफ द्वारा उपलब्ध करवाने वाले फंड के बोझ तले दबी मध्य प्रदेश सरकार अब कुपोषित बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने में असहाय ही महसूस कर रही है।

मध्य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले ही सूबे के बच्चों में फैले कुपोषण को माथे का कलंक समझा जाता हो और जमीनी हकीकत भी कुछ यही बयां कर रही है। इसके साथ ही साथ मध्य प्रदेश का स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग यूनीसेफ की मदद से इस मामले में अपनी खाल बचाता ही नजर आ रहा है। विश्व सम्वाद एजेंसी बीबीसी द्वारा हाल ही में प्रकाश में लाई गई एक रिपोर्ट के अध्ययन से साफ हो जाता है कि समूची दुनिया के सामने हिन्दुस्तान की कुपोषण के मामले में मदद करने वाला यूनीसेफ स्‍वयं ही इस मामले में हिन्दुस्तान के प्रति कितने प्रतिबध्द हैं।

विकासशील देशों में कुपोषण के शिकार बच्चों का 90 फीसदी हिस्सा एशिया और आफ्रीका में रहता है। किसी को यह जानकार आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इसका एक तिहाई हिस्सा भारत की सरजमीं पर है। आबादी के मामले में विश्व में नंबर दो का खिताब पाने वाले हिन्दुस्तान के लिए यह चिंता की बात है कि यहां अभी भी कुपोषित बच्चों की तादाद बहुत ही ज्यादा है। अगर देखा जाए तो पाकिस्तान में यह 42 और बंग्लादेश जैसे देश में महज 43 फीसदी ही है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे का प्रतिवेदन इस बात की ओर पुरजोर इशारा करता है कि इन देशों में कुपोषित बच्चों की हालत में दिनोंदिन सुधार ही हुआ है। हिन्दुस्तान की अगर बात की जाए तो 1992 में यहां 52 फीसदी था जो 2005 में घटकर 43 फीसदी तक पहुंचा था। इस सर्वे के अनुसार कुपोषण का शिकार बच्चों का बडा हिस्सा 24 देशों में पाया गया है। इनमे से पांच देशों में लगभग सवा आठ सौ करोड बच्चे कुपोषण का शिकार हुए हैं।

बच्चों और महिलाओं के प्रति खासे संजीदा मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान ने अपने सूबे में महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए अनेक योजनाओं को न केवल लाया बल्कि उन्हें अमली जामा भी पहनाया है। कुपोषित बच्चों के पुर्नवास के लिए शिवराज सिंह सरकार ने प्रदेश भर में ”पोषण पुर्नवास केंद्र” स्थापित किए हैं। इस योजना के माध्यम से शिवराज सिंह चौहान की मंशा बिल्कुल साफ थी कि इससे बच्चों को न केवल कुपोषण से मुक्त कराया जाएगा, वरन् उनकी माताओं की काउंसलिंग के माध्यम से उन्हें जागरूक भी बनाया जाएगा।

मध्य प्रदेश में कुपोषित बच्चों को खोजने की जवाबदारी महिला एवं बाल विकास के लगभग निठल्ले बैठे परियोजना अधिकारियों के कांधों पर दी गई थी। दो साल तक तो सब कुछ बिल्कुल ठीक ठाक ही चला, पर अचानक ही इस कार्यक्रम में कुछ अडंगे आने आरंभ हो गए। सूबे में अनेक गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों को अचानक ही यूनीसेफ ने कुपोषित मानने से भी इंकार कर दिया। इसी के चलते प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने महिला बाल विकास द्वारा सुदूर ग्रामीण अंचल से चिन्हित कर लाने वाले बच्चों की माताओं और आंगनवाडी कार्यकर्ताओं तक को हडकाना आरंभ कर दिया।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मापदण्डों के अनुसार ग्रोथ चार्ट से जब कुपोषित बच्चों का आंकलन महिला एवं बाल विकास विभाग के सहयोग से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा करवाया गया तो इनकी संख्या में तेजी से इजाफा परिलक्षित हुआ। कुपोषित बच्चों के पालकों द्वारा जब अपने बच्चों का रूख पोषण पुनर्वास केंद्र की ओर किया तब स्वास्थ्य विभाग को अपनी कमजोरी समझ में आई। अव्यवस्था का शिकार स्वास्थ्य विभाग के इन केंद्र में अपनी ही कमजोरी छिपाने के लिए विभाग ने यूनीसेफ से रायशुमारी कर इन केंद्रों में प्रवेश के इतने कडे नियम रच डाले कि वहां कुपोषित बच्चे का प्रवेश असंभव ही हो गया। नई गाईडलाईन में अब इन केंद्र में वे ही बच्चे प्रवेश पा सकेंगे जो मौत के मुहाने पर हों। इन परिस्थितियों में गंभीर कुपोषित बच्चे अब गैर चिकित्सकीय अमले के हाथों में जीवन मृत्यु के बीच संघर्षरत हैं।

मध्य प्रदेश में 74 लाख 75 हजार 696 बच्चों का वजन किया गया था, जिनमें से 47 लाख 11 हाजर 640 बच्चे सामान्य वजन के तो 23 लाखप 63 हजार 653 बच्चे कम वजन के निकले एवं अति कम वजन के बच्चों की संख्या 4 लाख 103 थी। मध्य प्रदेश में धार, झाबुआ, अलीराजपुर, खरगोन, अनूपपुर, सतना, सागर, शिवपुरी, श्योपुर आदि जिलों में कुपोषण के लिए अलख जगाने की आवश्यक्ता है, देखना है कि शिव के राज में बच्चों को न्याय कब नसीब हो पाता है।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

2 COMMENTS

  1. खरे साहब ने बहुत सही बात कही है. वाकई यह स्तिथि एक प्रदेश की नहीं बल्कि पूरे देश की है. हमारे देश के लिए बड़े शर्म की बात है की इतना उत्पादन होने के बाद भी और सरकार की अनेको योजनायो के बाद भी करोडो बच्चे भूखमरी का की कगार पर है. अगर भ्रष्टाचार हट जाये तो कम से कम कोइ भूखा तो नहीं रहेगा.

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