आम चुनाव से पूर्व का हलचल!

फखरे आलम

2014 आम चुनाव से कापफी पहले ही राजनीति गहमागहमी देखने को मिलने लगी थी। मगर चुनाव की घोषणा से पूर्व का कोलाहल बड़ा चिलचस्प है। अब बारी है जनता की! देखने और दिखलाने का! जिस प्रकार से राजनीति दलों ने जनता की नहीं सुनी, जनता की मूलभूत सुविधओं को अनदेखी की, जनता की परवाह किऐ बगैर, अपनी करते रहे और अपनी चलाते रहे। अब मतदान से पूर्व पहले जनता इन राजनीति दलों की उठापटक का नजारा लेगी फिर अपने जनादेश से पिछले पीड़ा का हिसाब-किताब चुकाएगी।

अब राष्ट्रीय दलों के साथ साथ क्षेत्रीय दलों के मतभेद भी खुलकर घरों से सड़कों पर दिखार्इ देने लगे हैं। दूर-दूर के सम्बन्ध् भी निकट होने लगे हैं। अनजाने चेहरे भी पहचान के और परिचित भी बेगाने दिखार्इ देने लगे हैं। घोर विरोधी और आलोचक भी गुणगान करने लगे हैं।

आम चुनाव को सफल और शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न कराने के लिऐ चुनाव आयोग की रणनीति बेहद सराहनीय है। सत्ताधरी यू.पी.ए. और काँग्रेस पार्टी खामोश है। जैसे लगने लगा है कि सत्ता से वह बेदखल होने वाले हैं और पार्टी ने तीसरी बार सत्ता में लौटने की आशा छोड़ ही दी हो। वैसे पार्टी और सरकार ने अपनी ओर से अपने प्रचार और उठाए गऐ कदमों को जनता के समक्ष प्रस्तुत करने में कोर्इ कमी नहीं छोड़ रखी है। मगर भारत की निराश, परेशान और हताश जनता ने जैसे उनकी विकास की गाथा को अनसुना करने का प्रण सा कर रखा हो। काँग्रेस पार्टी से लगातार बड़े और वरिष्ठ नेताओं का पार्टी से रिश्ता तोड़ने और अन्य दलों में जाने का क्रम जारी है। लगातार काँग्रेस पार्टी भाजपा और संघ पर आक्रमण कर रही है। और सब सिर्फ सत्ता में बने रहने के लिऐ काँग्रेस कर रही है। सत्ता में बने रहने के लिए पार्टी ने कभी भी जनता की नहीं सुनी। जनता की राहत के वास्ते, महंगार्इ, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और रसोर्इ गैस की सुविधओं की नहीं सोची। तो अब जनता कैसे उनकी सुनेगी? दो-दो अवसर दिऐ गए, यूपीए गठबंध्न और काँग्रेस पार्टी को! अब अगला अवसर किसी और को दिया जाना चाहिऐ। 11 दलों का गठबंधन को तो देखिऐ। जनता की समस्याओं देश के समक्ष परेशानियों के समय तो यह राजनेता और पार्टियां न जाने कहां चले जाते हैं? संसद में जब कामाकज ठप पड़ जाता है। जनता परेशान होती है। उनकी रसोर्इ प्रथम महंगार्इ के कारण और फिर रसोर्इ गैस के कारण बंद होती है। तब वह पार्टी कहां होते हैं। आज सत्ता प्राप्ति के वास्ते सरकार के गठन के लिऐ 11 दलों ने हाथ मिला लिया। क्या जिस प्रकार से यह सरकार बनाने की चुनौती स्वीकार करने के लिऐ मैदान में आऐ हैं उसी प्रकार से जनता की समस्याओं और सुचारू रूप से सरकार चलाने में सफल होंगे। अथवा अव्यवस्था और समस्याऐं और अधिक बढ़ेगी। यह कोर्इ सर्वे और समीक्षा नहीं है बलिक हमारे अनुमान का आकलन है कि एन.डी.ए. और यू.पी.ए. का परिणाम कामावेश उपर नीचे रहने की संभावना है। नरेन्द्र मोदी से भारत के बड़े वर्ग की उम्मीदें लगी है। क्षेत्रीय दलों में मायावती, ममता और जयललिता का परिणाम बढि़या रहेगा। परिणाम के पश्चात या तो अन्य दलों के समर्थन से भाजपा सरकार बनाएगी अथवा 11 पार्टियों के गठबंध्न के अतिरिक्त एक नऐ गठबंध्न का उदय हो सकता है। जिसे बाहर से काँग्रेस समर्थन देकर सरकार बनवा सकती है और फिर सरकार को गिरा भी सकती है। नरेन्द्र मोदी की हवा ने अगर भाजपा को सत्ता के करीब तक नहीं पहुंचाती है तो भाजपा के लिए बड़ा दुर्भाग्य ही होगा। लालू और नीतिश के साथ-साथ मुलायम की समाजवादी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाऐगी। आप पार्टी के केजरिवाल ने जिस प्रकार से मोदी के किलों का पर्दाफाश करने का बीड़ा उठाया है उससे आम पार्टी को बहुत उचित सीटें तो नहीं मिलेगी मगर एक नवजागरण को हवा अवश्य ही मिलेगा। 2014 का परिणाम चाहे जो कुछ भी हो मगर परिणाम के पहले जिस प्रकार की भ्रम है। उसी प्रकार से स्थिति स्पष्ट नहीं रहने की अधिक से अधिक संभावना है।

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