कीचड़ उछालने वाली करतूतों को बंद करें: राजनाथ

rajnathjiभाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह द्वारा अप्रैल 15, 2009 को बैंगलूरू में जारी वक्तव्य

केन्द्र में संप्रग सरकार का शासनकाल अब लगभग समाप्त होने के निकट है। इस सरकार ने अपने पीछे प्राय: सभी मोर्चो पर विफलताओं की एक लम्बी सूची छोड़ी है। इन पांच वर्षो के दौरान देश को अनेक अभूतपूर्व संकटों का सामना करना पड़ा। केन्द्र में एक मजबूत इच्छाशक्ति वाली सरकार और ढृढ-संकल्पी नेतृत्व के अभाव ने इस संकट को और अधिक गहरा कर दिया है।

गर्तोन्मुख संप्रग की तुलना में मजबूत होता राजग

भाजपा को किसी भी कीमत पर सत्ता से बाहर रखने की राजनीतिक विवश्ता के कारण संप्रग 2004 में अस्तित्व में आया। कोई भी ऐसा गठबंधन लम्बे समय तक बना नही रह सकता है जो घोर अवसरवादिता और अनुचित सौदेबाजियों को आधार बना कर किया जाता है। संप्रग के कुछ घटक दलों ने अधिक घास वाले चराहागाहों को देख कर कांग्रेस से हाल ही में किनारा कर दिया है।

इससे गठबंधन का निर्वाह करने में कांग्रेस की अन्तर्निहित अक्षमता उजागर होती है। कांग्रेसनीत गठबंधन से बाहर जाने की इस अचानक फूर्ती का दूसरा कारण संप्रग सरकार का घटिया ट्रैक-रिकार्ड है। संप्रग की अक्षमता और निकम्मेपन के कारण इसके सहभागियों को उससे दूर जाने के लिए विवश होना पड़ा। इसमें कोई हैरत नहीं है कि संप्रग एक डूबता जहाज बन गया है, जिसकी डैक से उसके सहयोगी अपने आपको बचाने के लिए छलांग लगा रहे हैं।

इसके विपरीत भाजपा नीत राजग ने श्री अटल जी के कुशल नेतृत्व में गठबंधन के सहयोगियों को जोड़े रखने की कला में महारत हासिल कर ली है। अब श्री आडवाणी जी सबको साथ लेकर चलने की कला में पारंगत हो रहे है। राजग 2004 के लोकसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर जिस स्थिति में था, आज उससे कही बेहतर स्थिति में है क्योंकि भाजपा ने अपने अधिकांश प्रमुख सहभागियों को सफलतापूर्वक अपने साथ जोड़कर रखा है। राजग के सभी घटक दलों – अकाली दल, शिव सेना, जद(यू), एजीपी, आरएलडी और ईएनएलडी ने भाजपा और प्रधानमंत्री के पद के लिए इसके प्रत्याशी श्री लालकृष्ण आडवाणी को अपने बिना शर्त समर्थन का वचन दिया है।

राजग के बाहर भी हमारे अन्य कई मित्र हैं, जो चुनाव परिणाम घोषित हो जाने के बाद हमसे जुड़ जाएंगे। राजग अपनी उल्लेखनीय एकता, सामंजस्य और कठिन समय में दृढ़ता दर्शाने के कारण ही भारतीय राजनीति में एक सशक्त ताकत बनकर उभरा है।

इसमें एकमात्र अचरज की बात उड़ीसा में बीजद द्वारा किया गया विश्वासघात है। मूझे पूर्ण विश्वास है कि कर्नाटक के लोगों से सीख लेकर उड़ीसा के मतदाता भी बीजद के राजनीतिक विश्वासघात और अवसरवादिता को ठुकराकर उसको करारा सबक सिखाएंगे।

संप्रग की नीतियों से सबसे अधिक व्यथित आम आदमी

संप्रग शासनकाल के दौरान संप्रग की नीतियों ने सबसे भारी चोट आम आदमी को पहुंचाई है।

आज भारत की अर्थव्यवस्था मंदी के दबावों के नीचे कसक रही है। निर्यात घटकर निम्न धरातल पर आ गए है। छटनी के कारण लाखों कामगार अपना रोजगार गंवा बैठे हैं। देश में औद्योगिक उत्पादन नकारात्मक वृध्दि की मार झेल रहा है।

यद्यपि संप्रग सरकार मुद्रास्फीति को शून्य बिन्दु तक लाने की शेखी बघार रही है किन्तु यह इस तथ्य को छुपा रही है कि आवश्यक वस्तुओं के मूल्य अभी भी बढ़ रहे हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक स्पष्ट रूप में दर्शा रहा है कि वास्तविक मुद्रास्फीति में अभी भी 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है।

सत्ता में आने के पश्चात् श्री आडवाणी के नेतृत्व में राजग सरकार देश में मूल्यों पर नियंत्रण करने और विकास प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए एक समेकित तथा द्रुत कार्य योजना पर शिद्दत से काम करेगी।

कांग्रेस का कार्य निंदा और मिथ्यापवाद करना

कांग्रेसनीत संप्रग सरकार भाजपा और इसके नेतृत्व पर आधारहीन आरोप लगाते हुए एक मिथ्या अभियान चला रही है ताकि लोगों का ध्यान वास्तविक मुद्दों से हट जाए।

भाजपा सामयिक मुद्दों – जैसे आतंकवाद, मूल्यवृध्दि, मंदी, सुरक्षा और विकास पर एक गंभीर बहस करना चाहती है किंतु कांग्रेस ऐसी बहस से दूर भागना चाहती है क्योंकि इन मोर्चों पर उसके पास कहने को कुछ नहीं है।

कांग्रेस पार्टी की ज्यादा दिलचस्पी विगतकालीन मुद्दों को उठाने में है। परसों प्रधानमंत्री जी ने कंधार का मुद्दा उठाया और भाजपा के विरूद्ध बेबुनियाद आरोप लगाने का प्रयास किया।

यह एक सर्वज्ञात सच्चाई है कि कांग्रेस पार्टी कंधार संकट के दौरान लोगों में घबराहट फैलाने की प्रमुख दोषी थी। इस पार्टी ने ही राजग सरकार के विरूद्ध आंदोलन को समर्थन दिया था, जिसमें अगवा किए गए वायुयान के सभी यात्रियों की तत्काल रिहाई की मांग की गई थी।

जब राजग सरकार ने इस संकट को सुलझाने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई तब भी कांग्रेस पार्टी उसमें उपस्थित थी। किंतु इस पार्टी ने सभी यात्रियों की सुरक्षित रिहाई सुनिश्चित करने के लिए आम सहमति के विरूध्द एक शब्द भी विरोध में नहीं बोला था।

एक ओर कांग्रेस ने कंधार मुद्दे पर, जिसमें स्वयं कांग्रेस पार्टी लिए गए निर्णय में एक पक्षकार थी, रोष व्यक्त करती है, दूसरी ओर इसने चरारे-शरीफ में अपने स्वयं के कुकर्मों को पूरी तरह भूला दिया है जब कांग्रेस सरकार ने पांच खतरनाक आतंकवादियों को बच निकलने का सुरक्षित रास्ता सुनिश्चित किया था वह भी इस स्थिति में जब कोई बंधक नहीं बनाया गया था।

जिन लोगों ने चरारे-शरीफ में आतंकवादियों के साथ बातचीत की थी। वे ही लोग हमारे ऊपर आज उस निर्णय का दोषारोपण कर रहे हैं, जो संकटकाल में लिया गया था। कांग्रेस पार्टी को उस पुरानी कहावत को ध्यान में रखने की जरूरत है कि कांच के घरों में रहने वाले लोगों को दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए।

कांग्रेस पार्टी का चुनावी एजेंडा भी विगतकालीन मुद्दों पर आधारित है। जबकि भाजपा का एजेंडा अधिक समसामयिक और प्रगतिशील है क्योंकि भाजपा का चुनावी नारा सुशासन, विकास और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर आधारित है।

एक स्वस्थ्य लोकतंत्र में विपक्षी नेताओं पर वैयक्तिक प्रहारों को कभी भी ठीक नहीं माना जा सकता। जिम्मेदार प्रतिपक्षी दलों का यह नैतिक दायित्व है कि वे पदस्थ सरकार की रचनात्मक आलोचनाओं के अधिकार का प्रयोग करे। यदि प्रतिपक्षी दल प्रधानमंत्री की उनके कार्यों के लिए आलोचना करते है तब प्रधानमंत्री को स्वयं को बचाने की बजाय उनकी पार्टी को उनका बचाव करने के लिए आगे आना चाहिए।

प्रधानमंत्री को कभी भी किसी तरह के कलंकित करने वाले अभियान में वैयक्तिक रूप से शामिल नहीं होना चाहिए। मैं आशा करता हूं कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह स्वयं चुनाव अभियान के नाम पर की जा रही इन कीचड़ उछालने वाली करतूतों को बंद करने की पहल करेंगे।

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