कहानी/ फ़ैसला

दिव्या माथुर

सोफ़े पर अधलेटा सा सन्नी मेज़ पर अपनी टांगे पसारे टी वी पर समाचार देख रहा था. जेड गूडि की आकस्मिक मृत्यु की ख़बर सुन कर वह मन ही मन कलपने लगा कि वह कहाँ रेचल मूर से ब्याह रचा के फंस गया. जेड का इक्कीस साल का ब्वाय फ़्रैंड उसके बच्चों को पाले न पाले, मिलिनेयर तो हो ही गया. माँ की बात मान लेता तो आज वह भी एक सुन्दर सलोनी इंडियन लड़की से ब्याह रचाकर घर बसा चुका होता जो मिलियन लाती न लाती कम से कम माँ के पाँव दबाती और उसका सिर सहलाती. मीता भाभी की डाक्टर भतीजी लता भी इस भूतनी से तो अच्छी ही रहती. बंधे हुए वेतन के अलावा वह घर में सबकी सेहत का ध्यान रखती, चन्नी और भाभी भी ख़ुश हो जाते और जैसा कि चन्नी कहता रहता था कि सोसाइटी में उसकी इज़्ज़त भी बढ़ जाती. कम से कम, जैसे कि उसकी माँ कहती थी, रेचल मूर के ‘फ़किंग ये’ और ‘फ़किंग वो’ से उसके घर आँगन तो प्रदूषित नहीं होते.

‘इफ़ यू वर ए लिट्टल बिट स्मार्ट रेच, सन्नी वुड डांस एरायुंड यौर लिट्टल फ़िंगर.’ रेचल की बदमिज़ाज़ चील जैसी माँ नोरीन, रेचल को अलग भड़काती रहती थी.

‘मम, ही विल लीव मी फ़ौर शयोर.’ रेचेल को डर था कि माँ अमृत के बहकावे में आकर सन्नी उसे कहीं छोड़ ही न दे. ऐसा हैंडसम और कमाउ पति उस जैसी दसवीं पास को कहाँ मिलेगा?

‘यू फ़ूल, ईवन इफ़ ही वांट्ड टु, ही कांट.’ नोरीन सच ही कह रही थी. सन्नी चाहता भी तो रेचल को छोड़ नहीं सकता था दो बच्चों, कारा और शौन, का साप्ताहिक भत्ता भरते भरते उसका कचूमर निकल जाएगा. पिचहत्तर प्रतिशत वेतन रेचल को देकर उसके पास क्या बचेगा?

उसके हम-प्याला और हम-निवाला दोस्तों के अनुसार उसे रेचल को छोड़ने का विचार भी मन से निकाल देना चाहिए.

‘मस्ती करने से तुझे कौन रोकता है, सन्नी? ज़्यादा झिक झिक करे तो तू उसे फूलों का गुलदस्ता या एक सस्ता सा तोहफ़ा देकर उसका मुँह बंद रख सकता है.’ राजन ने सलाह दी.

‘होर कुज नई ते तेरी सैलेरी तो तेरे कोल रउगी, तू शान नाल गुलछर्रे उड़ा सकदा ए.’ कुलविन्दर ने कहा.

‘मेट, विद टू लिट्टल वंज़, वेयर विल शी फ़ाइंड टाइम टु फ़ौलो यू ऐनिवे?’ डैन्नी ने कहा.

‘यार, रोज़ रोज़ कोई क्या बहाने मारे?’ सन्नी बोला.

‘अरे, बहानों की कोई कमी है क्या? रोज़ रोज़ कितनी ट्रेनें कैंसल हो जाती हैं, सड़कों पर ट्रैफ़िक की हालत तो सभी को पता है; बिना नोटिस के ओवरटाइम करना पड़ता है…’ राजन ने बहाने गिनवाने शुरु किए.

‘ओए, तैनूं रात वी बार गुज़ारनी पवे तो सानु दस. अस्सी तेरी एलीबाई बनन नू तैय्यार हन, वरी नौट.’ आँख मारते हुए कुलविन्दर ने उसकी हिम्मत बढ़ाई.

‘यू आर ए मेट, कुलविन्दर.’ डैनी ने कुलविन्दर के गले में हाथ डालते हुए कुछ इस तरह कहा कि जैसे उसे एलीबाई की ज़रूरत हो.

‘ओए, यारां दे यार हां अस्सां.’ कुलविन्दर को अच्छा लगा कि डैनी ने उसके सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाया था.

सन्नी ने ये सब तरीक़े पहले से ही आज़माने शुरु कर दिए थे और धीरे धीरे वह निडर भी होता जा रहा था. जहाँ अमृत उसके बहानों को नज़रान्दाज़ कर देती, नोरीन उसके झूठ एक नज़र में ताड़ जाती पर उसने नोरीन की परवाह करनी बिल्कुल छोड़ दी थी. नोरीन के सिखाए में आकर रेचल कभी कभी बच्चों समेत उसी के घर जा बैठती तो नोरीन को लगता कि जैसे उसने अपने पाँव पर ख़ुद ही कुल्हाड़ी मार ली हो क्योंकि सन्नी और अमृत उसे वापिस आने के लिए फ़ोन तक नहीं करते. अमृत रोज़ बेटे के लिए ताज़ा और स्वादिष्ट भोजन पकाती, वह मज़े से खाता और फिर बैठकर दोनों गप्पें मारते.

‘यू डोन्ट वांट अस टु बी हैप्पी.’ मुँह फुलाए वापिस आकर रेचल अमृत को दोषी ठहरा देती.

सन्नी सोचता कि न जाने वो कौन सा दिन था जब वह रेचल की सफ़ेद चमड़ी और हरी आँखों पर फ़िदा हो गया था. दोस्तों ने उसे चुनौती दी थी कि वह रेचल के साथ एक रात बिताए तो वे उसका लोहा मान जाएंगे. सन्नी से शर्त लगाने में उसके दोस्तों को मज़ा आता था क्योंकि वह बड़े से बड़ा जोखिम उठाने को झट तैय्यार हो जाता था. इस बार सन्नी को कोई मुश्किल नहीं हुई थी क्योंकि किशोरी रेचल तो मानो इसके लिए तैय्यार ही बैठी थी. वह तो उसके चुम्बनों से ही आतंकित हो गया था पर रेचल रोके नहीं रुकी थी. ईश्क का भूत जब दोनों के सिर से उतरा तब तक वे कारा नाम की एक बच्ची के माँ बाप बन चुके थे. उस समय रेचल केवल सतरह बरस की थी और सन्नी बीस का.

सन्नी की शादी धूमधाम से रचाने के सारे अरमान ख़ाक हो गए थे. रेचल के घरवालों ने सन्नी को एक कमीज़ तक नहीं दी, अमृत की तो बात ही छोड़ो. शादी का ख़र्चा और दावत भी अमृत के सिर पर थे. सन्नी की कमाई तो उसके एशो आराम के लिए ही काफ़ी नहीं थी. रेचल के सगे भाई और बहन, दो सौतेले भाई, सौतेला पिता, उसकी पत्नी और नोरीन के पीहर वाले सब सज धज के चले आए थे. कोक की बड़ी बोतलें वे सीधे मुँह लगाकर पी रहे थे. बियर के क्रेट के क्रेट ख़ाली हो गए थे और अभी सन्नी के दोस्त और अमृत के रिश्तेदार पहुंचे भी नहीं थे. एक अजब सा आलम था कि बेटे की माँ भागदौड़ कर रही थी और बहु के घरवाले मज़े कर रहे थे.

अमृत के हाथ पाँव जोड़ने पर चन्नी शादी के लिए लन्दन तो आ गया पर जैसे ही वह रेचल और उसके परिवार से मिला, उसने अपनी नाराज़गी साफ़ ज़ाहिर कर दी.

‘तो तूने अपने स्टैंडर्ड की कुड़ी ढूंढ ही ली? मीता की भतीजी से शादी कर लेता तो हमारे ख़ानदान का नाम ऊँचा कर सकता था पर नहीं तूने तो कसम खाई हुई है हमारा नाम डुबोने की.’ चन्नी ने ताना मारा. अमृत भी यही चाहती थी ताकि भाइयों के बीच की खाई किसी तरह पाट दी जाए. सन्नी ने उसकी एक नहीं सुनी थी और शायद इसीलिए चन्नी मीता और बच्चों को शादी में नहीं लाया था.

‘तू अपना स्टैंडर्ड कायम रख. जैसी भी हैं हम ख़ुश हैं, तुझसे माँगने तो नहीं आते.’ सन्नी बोला. दोनों में जम के बहस हुई और अंत में दोनों ने भविष्य में न मिलने की कसम खाई थी. सन्नी अपने पिता और भाई की तरह ज़्यादा पढ़ा लिखा नहीं था, जिसकी वजह से वे उसे हमेशा दुत्कारते रहते थे. कभी अमृत बीच बचाव करवाने की कोशिश करती भी तो वे सारा दोष उसपर ही मढ़ देते.

अमृत को याद आई अपने बड़े बेटे चन्नी की शादी, जिसमें मीता के घरवालों ने उन्हें ज़मीन पर पाँव नहीं रखने दिया था. कैसी ख़ातिर की थी और क्या नहीं दिया था दहेज में उन्होंने आसमान पर चढ़ाके जैसे किसी को ज़मीन पर धकेल दिया गया हो, ऐसा ही लगा था अमृत को जब मीता और चन्नी अमेरिका जा बसे थे. अमृत उनके बच्चों को देखने को तरस गई थी; आर्यन पाँच का हो चला था और छोटा अर्णव इस अक्तूबर में तीन बरस का हो जाएगा. बहुत ज़िद करने पर दो साल पहले चन्नी ने दो तस्वीरें भेजी थीं, न जाने वे अब कैसे लगते होंगे? पिता की मौत के वक्त जब चन्नी आया था तो सिर्फ़ दसवें तक ही रुका था. सब कुछ बेचारे सन्नी ने ही सम्भाला. अमेरिका लौटने के बाद चन्नी ने उसे फ़ोन तक नहीं किया कि माँ ज़िन्दा भी थी कि मर खप गई. फिर भी अमृत को चन्नी की बहुत याद आती थी. न जाने वह उसके परिवार को कभी देख भी पाएगी कि नहीं!

अमृत यही सोच के तसल्ली कर लेती थी कि चलो सन्नी और उसका परिवार तो उसके पास है. शुरु शुरु में तो रेचल भी एक आइडियल इंडियन बहु बनी रही, भारतीय गहने और कपड़े पहन कर वह सन्नी और सास को ख़ूब रिझाती. अमृत ने भी अपने कीमती ज़ेवर और भारी साड़ियाँ आदि पहना कर रेचल के ख़ूब लाड़ किए. अपनी गोरी बहु को अपने सम्बन्धियों और सहेलियों के बीच प्रदर्शित करते हुए उसका सिर गर्व से ऊँचा हो जाता था कि देखो गोरी होते हुए भी उनकी बहु कैसी विनम्र और सुघड़ थी. सन्नी और रेचल भी ख़ुश थे.

पोती के जन्म पर अमृत की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था क्योंकि उसके अपने दो बेटे ही थे; चन्नी और सन्नी यानि कि चन्दर और सुनील और चन्नी के भी कोई बेटी नहीं थी. बच्ची के नामकरन पर अमृत, नोरीन और रेचल की ख़ूब लड़ाई हुई. ’भला ‘कारा’ भी कोई नाम हुआ, कारा का मतलब हिन्दी में काला होता है.’ अमृत कहती रह गई पर नोरीन और रेचल के सामने उसकी एक नहीं चली.

‘मैं और सन्नी तो उसे राका ही कहकर बुलाएंगे, क्यों सन्नी?’ नोरीन और रेचल के मना करने के बावजूद कारा, राका के नाम से दादी और पिता की बात सुन लेती थी, विशेषत: जब बात उसके अपने फ़ायदे की होती. फिर जब पोता हुआ तो एक बार फिर वही जद्दोजहद पर इस बार सन्नी पहले से ही तैय्यार था. उसने बेटे का नाम ‘शान’ रखा था, रेचल और उसके घर वाले उसे ‘शौन’ पुकार कर ख़ुश थे.

शान के जन्म के बाद रेचल बदलने लगी. कारा ने अलग सिर उठा रखा था. चौबीसों घंटे वह रोती चिल्लाती, शान को पीटती या काटती. राका को दुतकारती हुई अमृत शान को सीने में छिपाए रखती कि कहीं कारा उसे मार ही न डाले. इसी वजह से अमृत और रेचल के बीच तनाव बढ़ने लगा. अमृत के सिले पंजाबी सूट्स रेचल उठा के जब औक्सफ़ैम में दे आई तो अमृत जल भुन के राख़ हो गई. सन्नी को मन ही मन में ख़ुश था क्योंकि रेचल का गोरा बेडौल शरीर सूट की सीवनों से बाहर निकलने को हाय हाय करता था. घर में पका खाना छोड़ कर रेचल फ़िश एण्ड चिप्स खाती या मैकडोनैल्ड चल पड़ती. सन्नी के सामने अमृत रेचल के आगे पीछे घूमती थी पर जब सन्नी घर में नहीं होता था तो उसे खरी खोटी सुनाती थी. रेचल सकपकाके कुछ कह देती तो सन्नी बिना वजह जाने उसे पीट देता. जब भी झगड़ा होता, सन्नी माँ की तरफ़दारी करता और रेचल अमृत को दोष देती. उसके हिसाब से अमृत को अपना घर अलग बसा लेना चाहिए था. चन्नी और मीता ने एक बार भी उसे अमेरिका आने को नहीं कहा था. वह जाए तो कहाँ जाए? उसने अपनी सारी जमा पूंजी सन्नी को पढ़ाने लिखाने और उसकी शादी में लगा दी थी. इस फ़्लैट के अलावा, उसके पास कुछ नहीं था. अपनी स्टेट पैंशन भी वह पोता पोती पर ख़र्च कर देती थी.

‘दिस इज माइ फ़्लैट, यू लीव.’ जब भी रेचल उसे बहुत दुखी करती, ग़ुस्से में अमृत कह उठती. वह चाहती तो उन्हें धक्का देकर बाहर निकाल सकती थी पर कोई अपने ही बच्चों और पोता पोतियों को बेघर कर सकता है?

रोज़ रोज़ की कलह से बचने के लिए अमृत ने काउंसिल के फ़्लैट के लिए आवेदन दे दिया. सन्नी को लिख कर देना पड़ा कि वह माँ को ‘डिसलौज’ यानि कि घर से खदेड़ रहा था, जो उसे बहुत खला. रेचल ने जब ज़िद की कि सन्नी ‘रीज़न’ के कौल्म्न में लिख दे कि दो बच्चों के लिए जगह पूरी नहीं पड़ रही थी इसलिए अमृत को अपने लिए दूसरी जगह ढूंढनी होगी; सन्नी ने उसके गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया.

जगह सचमुच तंग हो गई थी. सन्नी के बच्चे अमृत के कमरे में ही सोते थे. उनके कौट्स ने ही पूरे कमरे को घेर रखा था. अलमारी में कपड़े रखने और निकालने के लिए अमृत को कौट्स को सरकाना पड़ता था पर फिर भी उसने आज तक चूँ नहीं की थी.

ख़ैर, अमृत को जल्दी ही एक कमरे का फ़्लैट मिल गया पर अकेली काउंसिल फ़्लैट में वह करती तो क्या करती? अपराध भावना से ग्रस्त सन्नी दफ़्तर से सीधा माँ के पास चला आता. दिन में टौफ़ियाँ और खिलौने लिए अमृत राका और शान से मिलने चली आती. रेचल जलती भुनती रहती पर क्या करती; सन्नी से कुछ कहना ही बेकार था.

काउंसिल फ़्लैट्स के पीछे ही चेनीज़ पार्क था, जिसे कुछ बूढ़े बूढ़ियों ने मिलकर गोद ले लिया था. काउंसिल की मदद से उन्होंने इस पार्क की शक्ल बदल डाली थी. दूर दूर से लोग अपने बच्चों को लेकर यहाँ आते और पार्क में लगाए गए झूलों, स्लाइड्स और बच्चों के तमाम उपकरणों का उपयोग करते. आस पास के मृत निवासियों की याद में उनके परिवार वालों ने पार्क के चारों तरफ़ बैंचस लगवा रखे थे जिनपर बैठकर वृद्ध लोग अपने अपने परिवार का रोना रोते या गाना गाते, दूसरों के बच्चों को देखकर आहें भरते और शाम ढलते ही अपने अपने फ़्लैट्स में जाकर बन्द हो जाते.

सन्नी को तो माँ का एक कमरे का काउंसिल फ़्लैट भी स्वर्ग लगता था. सफ़ाई, शांति और सुकून तो रहता था वहाँ. क्या हुआ जो वैलकम होम के ज़्यादातर बाशिन्दे पैंसठ बरस के ऊपर थे. सदा मुस्कुराते हुए वे शालीनता से पेश आते; उनके पास हर एक के लिए समय था, चाहे कोई रास्ता पूछ रहा हो या अपने बिगड़े सम्बन्धों को रो रहा हो, ये लोग सभी को बड़े अपनेपन और स्नेह से सलाह देने को हमेशा तैय्यार रहते थे. अमृत के कहने पर सन्नी बूढ़े लोगों के छोटे मोटे काम कर दिया करता था. घर से ज़्यादा वह काउंसिल फ़्लैट्स के आस पास नज़र आने लगा था.

रात को रोते धोते बच्चों के बीच उधड़े हुए सोफ़े पर हाथ में बीयर का एक कैन लिए सन्नी रेचल की उपेक्षा करते हुए टी वी देखता. भिनकते बिस्तर में बिफ़रती रेचल को छोड़ सन्नी अकसर सोफ़े पर ही पसर जाता और टी वी पर कोई पोर्न फ़िल्म लगाकर मास्टर्बेट करता सो जाता. उसके घर होने या न होने से रेचल को कोई फ़र्क नहीं पड़ता चाहिए था पर नहीं, एक दिन उसे देर हो जाए तो रेचल के रौद्र रूप से आस पड़ौस के लोग भी नहीं बचते. नोरीन दौड़ी दौड़ी आती और बात और बिगड़ जाती. और तो और चार साल की कारा, जो बिल्कुल अपनी माँ और नानी पर गई थी, दिन भर ‘शट अप, शट अप’ चिल्लाती रहती थी. कारा को गालियाँ देते सुन रेचल और नोरीन को ख़ूब मज़ा आता था पर अपने कान बन्द किए अमृत राम राम जपने लगती. रेचल सन्नी की हर क्रिया कलाप पर नज़र रखती. वह कब उठा, उसने कितनी देर में बाथरूम में लगाई, फ़ोन पर किससे और कितनी देर बात की. नोरीन ने ही अपनी बेटी को ये सब बातें डाएरी में लिखने की हिदायत दी थी ताकि तलाक के समय जज सन्नी को पूरी तरह से दोषी ठहरा दे और उसे हर हफ़्ते ढेर सा पैसा देना पड़े.

’वेयर यू थिंक यू आर गोइंग, यू स्टुपिड वूमेन?’ कारा ने अपनी नानी की नकल उतारते हुए रेचल से पूछा जो कहीं बाहर जा रही थी. जवाब में रेचल ने उसके गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया.

‘यू सिल्ली काउ.’ कारा ने माँ को गाली दी और धम धम करती सीढ़ियों पर जा बैठी.

‘बी ए डियर, राका, से सौरी टु यौर मम.’ अमृत ने बीच बचाव कराना चाहा. ’यू स्टुपिड ईडियट.’ कारा ने अमृत को भी नहीं बख़्शा. ’स्टुपिड होगी तेरी माँ ते इडियट होगी तेरी नानी, बन्दरिया की औलाद.’ अमृत ग़ुस्से में बोली.

‘हाउ डेयर यू काल मी बन्दरिया?’ रेचल चीख़ने लगी. अमृत भूल जाती थी कि उसी ने रेचल को हिन्दी और पंजाबी सिखाने की कोशिश की थी और रेचल को उन लोगों की काफ़ी बातें समझ आ जाती थी.

‘ब्लडी बिच, मेरा सोने वर्गा मुंडा तेरे चक्करां विच फ़ँस गया.’ घर से निकलते हुए अमृत ने एक और तीर छोड़ा. शान को गोदी में लेकर वह अपने सीने को दबाती हुई बाहर निकल गई. लगा कि जैसे उसे दिल का दौरा पड़ने वाला हो. अमृत की अंग्रेज़ी गाली सुनकर सन्नी ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा.

‘यौर मदर हैज़ गौन कम्प्लीटली बौंकर्स, आइ फ़ियर व्हाट शी विल डु विद अवर सन, डू यू हियर मी?’ पाँव पटकती हुई रेचल अपने पति की ओर मुख़ातिब हुई.

’शी इज़ हिज़ ग्रैंडमदर, शी इज़ नौट गोइंग टु किल हिम, इज़ शी?’ रेचल की बात को काटता सन्नी ग़ुस्से में बोला.

‘ईवन इफ़ शी वाज़, वाट डू यू केयर?’ रेचल उसके पास सोफ़े में धँस गई.

‘एंड यू डू!’

‘व्हाट डू यू मीन?’ ‘नथिंग, आई मीन फ़किंग नथिंग.’ सन्नी सरक कर थोड़ा दूर जा बैठा.

‘ड्रौप डैड!’ रेचेल मुँह फेरते हुए चिल्लाई.

सन्नी एक झटके से उठा और खूंटी से अपनी जैकेट खींचता हुआ बाहर निकल गया. रेचेल चीखती हुई घर के बाहर तक चली आई. कारा को अकेले घर में छोड़ कर वह कहीं नहीं जा सकती थी.

अमृत चेनीज़ पार्क में बैठी एक दक्षिण भारतीय महिला से बात कर रही थी, जिसने नाक में सोने की चमकती हुई लौंग पहन रखी थी.

‘दिस इज़ माइ सन, सुनील.’ अमृत ने अपनी सहेली शालिनी को बेटे से मिलवाया. सन्नी ने झुक कर शालिनी के पांव छुए.

‘हैलो … ब्लैस यू.’ शालिनी ने झिझिकते हुए कहा. अमृत को भी अपने बेटे पर गर्व हो आया. ‘ते शौन दे नाल जे खेड़दी पई है, ओ एनादी दोती है शिखा.’ पास में ही शान और एक बच्ची प्लास्टिक की रंग बिरंगी कुदालों से मिट्टी खोद रहे थे.

’घर चलो माँ, ठंड बढ़ गई है, तुम्हारे सीने में फिर दर्द होने लगेगा.’ सन्नी ने कहा.

शान को कन्धे पर बैठाकर सन्नी माँ के साथ उनके फ़्लैट की ओर चल दिया.

‘रेचेल तेरी रा तकदी होवेगी.’ अमृत ने सिर्फ़ दिखावे के लिए सन्नी को याद दिलाया. मन ही मन तो वह ख़ुश थी कि सन्नी रेचल को छोड़ कर उसके पीछे चला आया था. ‘ते करे.’ सन्नी ने भी अमृत को ख़ुश करने के लिए एक छोटा सा उत्तर दे दिया.

शान और शिखा के साथ शालिनी और अमृत की दोस्ती भी बढ़ने लगी थी. अमृत शालिनी से अपनी घरेलु परेशानियों का ज़िक्र करती रहती थी और शालिनी हमेशा बड़े ध्यान से उसकी बातें सुनती थी पर एक महीने में एक बार भी उसने कभी अपने परिवार के बारे में कोई बात नहीं की थी. उसके सौम्य चेहरे पर हमेशा सुकून छाया रहता. उसकी बेटी अदिति भी तो माँ का कितना ख़याल रखती थी. जब भी दफ़्तर से आती, सीधे पार्क में आकर माँ के गाल पर एक प्यार भरा चुम्बन देती और उसे गले लगाकर शालिनी दुलार में भरकर उसका माथा चूम लेती. दामाद आनन्द भी वही सब करता था पर एक झिझक के साथ. एक दिन अमृत से रहा नहीं गया और उसने शालिनी से उनके इस सुकून का राज़ जानना चाहा.

‘काय को टैंशन लेने का अमृत?’ शालिनी ने एक वाक्य कहकर उसे टालना चाहा.

‘क्या करूँ, मेरे कार विच ते सबी अनहैप्पी हैं.’

‘तुम बगवान में बिलीव करता है न? सब उसपर काए नईं छोड़ देता? जो बी वो दे, तुमें उइच एक्सैप्ट करने का, क्या? तुमारे हात में कुच नई तो सारी टैंशन बी उसी को होने का, नई?’ शालिनी ठीक ही कह रही थी पर कहना एक बात है और उस पर अमल करना दूसरी.

‘सुपोज़, यौर डाटर तुमसे आके बोलता कि अम्मा मेरा हज़बंड गर आने को नई मांगता, हर वकत मां मां मां करता, हमारे सात काना नई काने का, बैटने का नई, गूमने का नए, अइ अइ ओ, क्या करने का अम्मा?’ शालिनी की हिन्दी पर अमृत को हंसी आ गई. शालिनी ने शायद उसके घर की कलह का कारण जान लिया था. अमृत को याद आया कि शादी के प्रारम्भिक दिनों में जब सन्नी रेचल के आगे पीछे नाचता था तो अमृत को कितना बुरा लगता था. अपने बेटी होती तो शायद अमृत को रेचल की परेशानी समझ आ जाती.

‘रेचल को तुमारा डाटर समजो तो प्रौबलम्स इल्ले, अमृत.’

‘मैं तो ओनु बेटी वर्गा प्यार दित्ता, शालिनी, पर वोहो नई बदली. यू नो, सन्नी ते शान नु इंडियन खाना एन्ना पसन्द ए कि मैं त्वानु की दस्सां, बट साड्डी रेचल एवरी सिंगल डे, सौसेज्स, बर्गर ते फ़िश एण्ड चिप्स बनाउन्दी ए. यू नो शाइनी, अस्सां हिन्दु पंजाबी बीफ़ नई खान्दे ने बट ओन्नु एसदी कोई परवा नई…’ अमृर का रिकार्ड शुरु हो गया था. ’अइ अइ ओ, तुम कितना दिन जिन्दा रैने का अमृत, तब्बी तो ओइच बनाएगा ओइच खाएगा. सादी के बाद तुम और सन्नी चेंज हुआ क्या जो तुम उसको चेंज करने को माँगता?’ शालिनी ने उसे टोका.

‘मैंन्नु लगदा ए कि त्वाडे वर्गी मेरी वी एक डाटर हुन्दी जिन्नु मैं समज सकदी कि ओहो कि चाहुन्दी ए.’ अमृत सोच में डूब गई.

‘अदिति मेरा बेटी नई, डौटर-इन-ला होता, अमृत.’ अविश्वास से आँखे फाड़े अमृत शालिनी को देख रही थी.

‘इफ़ यू रियली वांट टु मेक ए डिफ़रैंस, यू नीड टु सीरियसलि थिंक फ़्रौम देयर पौइंट औफ़ वियु.’

‘मैं कुज वी करन नु रैडी हाँ, शालिनी.’ अमृत अब भी विस्मित थी कि कोई बहु अपनी सास को ऐसे चूम सकती थी.

‘ओ के देन, अम तुमारा हैल्प करने का. थोड़ा बच्चा लोग का ध्यान रखने का अमृत, अम अबी आता.’

शालिनी उठ कर अपने फ़्लैट से कुछ ब्रोशर्स उठा लाई और अमृत को देते हुए कहा कि वह चाहे तो उसके साथ यूस्टन चल सकती थी जहाँ हर बुधवार को लैंडमार्क फ़ोरम का गैस्ट-डे होत्ता था. अमृत को लगा कि वह शायद न जा पाए क्योंकि उसकी अंग्रेज़ी बस कामचलाऊ थी. वैसे भी उसे अंग्रेज़ों के बीच झिझल होती थी.

घर आते ही अमृत ने कच्चा दूध पिया. शालिनी ने उसे बताया था कि कच्चे दूध से सीने की जलन मिट जाती है. रात को देर तक बैठकर उसने सारे ब्रोशर्स चाट डाले. उसे लगा कि उसमें लिखी हिदायतों से शायद वह परिवार में ख़ुशी ला सके. सभी हिदायतें बातें सर्वविदित थीं पर कभी कभी ज़िन्दगी से जूझते हुए लोग भूल जाते हैं वो छोटी छोटी बातें जो उन्हें ख़ुशी देती हैं. अतीत से भरे दिमाग़ में जगह ही नहीं रहती ताज़ा हवा के लिए.

शालिनी के हिम्मत बंधाने अमृत उसके साथ लैंडमार्क भवन जाने को तैय्यार हो गई. बहुत से लोग, जिन्होंने हाल ही में लैंडमार्क फ़ोरम कोर्स किया था, अपने मित्रों और परिवार को साथ लेकर आए थे. आनन्द और अदिति, भी आए हुए थे जो लैंडमार्क-वौलिंटियर्स थे. लोगों ने अपने अपने अनुभव बताने शुरु किए कि उन्हें इस कोर्स से क्या फ़ायदा हुआ, उनका जीवन रातों रात कैसे बदल गया आदि. यदि अदिति ने उसे शुरु में ही सावधान न कर दिया होता तो अमृत उठ के चल दी होती. उसे लगा कि ये सब दिखावा केवल प्रचार और प्रसार के लिए ही किया गया था जैसे कि चर्च के लोग घरों में जाकर जीसस के गुण गाते हैं.

ख़ैर, लैंडमार्क-वौलिंटियर्स के दबाव में आकर और शालिनि और उसके बहु बेटे की शर्माशर्मी में अमृत ने लैंडमार्क-फ़ोरम के लिए फ़ार्म भर दिये और क्रैडिट कार्ड से पैसे भी दे दिए. शालिनी अब एडवांस्ड कोर्स करने जा रही थी. इस कोर्स में कुछ तो ऐसा होगा ही कि शालिनी के बेटा-बहु पांच सौ पाउंड्स देने को भी तैय्यार थे. अमृत को बस यही दुख था कि शालिनी उसके साथ नहीं होगी.

‘माँ, तुम्हें तो कोई भी बेवकूफ़ बना सकता है.’ सन्नी को पता चलेगा तो वह ज़रूर कहेगा कि इतना पैसा बर्बाद करने की क्या ज़रूरत थी. अमृत ने सोचा कि अब जीवन में बचा ही क्या था, ये तीन सौ पाउंड उसके साथ तो जाएंगे नहीं. वह तो ये सोच के ख़ुश थी कि सन्नी और रेचल हैरान रह जाएंगे ये जानकर कि अमृत तीन दिन के लिए कहाँ ग़ायब हो गई!

सुबह आठ बजे से लेकर रात के दस बजे तक लगातार तीन दिन अमृत को लैंडमार्क भवन में रहना था. ग्यारह और तीन बजे चाय पानी के लिए आधा आधा घंटा और एक और सात बजे खाने के लिए एक एक घंटे का समय निर्धारित था. अमृत बोरियत की वजह से ऊंघ रही थी कि लीडर ने कहा कि वे सदस्य जो सोचते हैं कि वे समय और पैसे बर्बाद कर रहे हैं, अपने पैसे वापिस ले लें और चले जाएं. एक व्यक्ति सचमुच ही उठके चल दिया. अमृत को भी लगा कि यह अच्छा मौका था अपने पैसे वापिस लेके भाग लेने का पर अपनी कुर्सी पर जड़ हुई वह सोचती ही रह गई. न जाने उसके लिए शान हुड़क रहा हो! असली घी के परांठे पर बूरा बुरक कर रोज़ खिलाती थी अमृत उसे. रेचल तो उसे सौसेज और चिप्स खिला रही होगी. सन्नी को भी तीन दिनों तक सुपरमार्केट का रोस्ट्ड चिकन और सूप ही खाने को मिलेगा. सन्नी फ़्लैट पर नहीं आया तो पड़ौसियों के काम रुक जाएंगे आदि आदि. राम राम करते किसी तरह दोपहर के खाने का समय हुआ तो अमृत का समूह पास ही एक कैफ़े में जा बैठा ताकि उनका समय न व्यर्थ हो. अमृत ने चाय और एक जैकेट पोटेटो और्डर किया और बाकी के लोगों ने सैंड्विच और काफ़ी.

पहले ही दिन दोपहर के खाने के बाद एक लड़की और उसका ब्वायफ़्रैंड पांच मिनट देर से पहुंचे तो पूरे 98 सदस्यों को इसकी सज़ा मिली. दो घंटे सिर्फ़ ‘कमिटमैंट’ यानि कि प्रतिबद्धता पर चर्चा हुई. फिर किसी की हिम्मत नहीं हुई कि देर से आते.

शालिनी ने अमृत के लिए यूस्टन रोड पर ही एक कमरे का इंतज़ाम कर दिया था कि रात बेरात को उसे अकेले घर न आना पड़े. अमृत को ये आज़ादी और खुलापन अजीबोग़रीब लग रहा था. वह यूँ ही घबरा रही थी कि उसे कुछ समझ नहीं आएगा; वहाँ कई लोग विदेशों से थे जिनकी अंग्रेज़ी अमृत से भी गई-बीती थी.

लोगों के दुखड़े सुन सुनकर अमृत को लगा कि उनके मुकाबले में उसकी अपनी परेशानियाँ तो कुछ भी नहीं थीं. एक माँ अपने अकेलेपन को रो रही थी कि उसके बच्चे स्वार्थी हो गए थे, पत्नी कह रही थी कि पति उसकी मदद नहीं करता और पति कह रहा था कि पत्नी के पास उसके लिए समय नहीं था, एक मुसलमान युवक का पिता बचपन में रोज़ उसके साथ बलात्कार किया करता था; उसकी बीवी भी, जो इस कोर्स में उसके साथ ही थी, बलात्कार की शिकार थी. उसकी बातों से ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके परिवार में पुरुषों को बच्चियों के साथ बलात्कार जायज़ था. एक पोलिश लड़की थी जो आँधी पानी के लिए भी ख़ुद को ज़िम्मेदार समझती थी और जब देखो रोना शुरु कर देती थी. अमृत का दिमाग़ घूम गया. उसने तो जीवन में अपनी ग़लती कभी मानी ही नहीं; सदा यही सोचा कि वह ग़लत हो ही नहीं सकती.

पहले पहल तो अमृत को लगा कि ये लोग कैसे अपनी इतनी निजी बातें सबके सामने बता रहे हैं पर फिर लगा कि यहाँ कौन किसी को जानता है, अपने मन की भड़ास निकालने का इससे अच्छा मौका फिर कब मिलेगा! धीरे धीरे सभी खुलने लगे. खाड़ी के एक बहुत बड़े जनरल की बेटी थी, सादिया, जिसका कहना था कि माँ का प्यार अशर्त होना चाहिए पर उसकी माँ उसे पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने पर ही प्यार देती थी. इस बात को लेकर इतनी बहस हुई कि टीम लीडर को बीच बचाव करना पड़ा. उसके बहुत से प्रश्न पूछने के बाद ये सामने आया कि पत्नी और बेटियों की आँखों के सामने जनरल की नृशंस हत्या कर दी गई थी. लीडर ने जानना चाहा कि कभी उसने ये जानने की कोशिश की कि देश में चल रहे दंगे फ़साद के बीच दो जवान बेटियों की विधवा माँ पर क्या बीती होगी. राजघराने में पली बढ़ी उसकी माँ एकाएक बाज़ार में खड़ी कर दी गई, घर बार से बेदखल. अपने दुख को भुलाकर उसने बेटियों को पढ़ाया लिखाया और उन्हें अपने पाँव पर खड़ा होने के लिए ललकारा. टीम लीडर ने कहा कि ऐसी स्थिति में माँ ने जो बहादुरी दिखाई, उसके लिए बेटियों को उसका आभार मानना चाहिए.

98 लोगों को सात सदस्यों के स्मूहों में बांट दिया गया था, जिन्हें अभ्यास और होमवर्क इकट्ठे बैठकर अथवा फ़ोन या ई-मेल के ज़रिये करना होता था. किसी एक सदस्य ने भी यदि अपनी ‘कमिटमैंट’ पूरी न की हो तो पूरे समूह को असफल माना जाता था. रात को नौ बजे घर पहुंचने के बाद भी सदस्य एक दूसरे को फ़ोन करते थे कि होमवर्क पूरा हो गया या नहीं. खाने या चाय के लिए बाहर जाते तो एक दूसरे को याद दिलाते कि चलो भागो समय हो गया था.

‘कमिट्मैंट, कमिट्मैंट ऐंड कमिट्मैंट दिस कोर्स इज़ आल एबाउट कमिट्मैंट ऐन्ड टेकिंग रिसपौंसिबिलिटि फ़ौर यौर ऐक्शंस.’ उठते बैठते फ़ोरम लीडर सभी को याद दिलाता रहता. उसके ‘लाइफ़ इज़ नथिंग, नो-थिंग’ वाले कथन पर कई लोग चिढ़ गए. ‘हाउ कैन लाइफ़ बी नथिंग?’ अमृत ने सोचा कि यदि जीवन कुछ नहीं तो वे सब यहाँ क्या कर रहे थे; ‘कुछ नहीं’ से लड़ने को तैय्यारी? ज़िम्मेदारी और प्रतिबद्धता इस कोर्स के दो प्रमुख नियम थे. अमृत को लगा कि यदि परिवार, पड़ौस और पूरे देश के लोग एक दूसरे की ख़ुशी का वादा करें तो संसार कैसे अच्छे से चले.

दूसरे दिन फ़ोरम लीडर ने लोगों के ‘रैकेटस’ के विषय में तफ़सील से बात की तो अमृत को लगा कि अपनी एक गलती स्वीकार कर लेने की बजाय वह एक हज़ार बहाने बनाना पसन्द करती थी. अपनी हर मूर्खता का उसके पासे एक जवाब होता था. ‘अमृत और ग़लत, हो ही नहीं सकता!’ अपनी ही बात वह ख़ुद मुस्कुरा उठी.

तीसरे दिन लगा कि सबने अपने मन की गांठे खोल डाली थीं, माँ बाप, भाई बहन, पति पत्नी से खुल कर बातें कीं तो समाधान ख़ुद ही सामने आ गए. कई लोगों ने जाना कि उनकी चुप्पी ही ख़ुशी में आड़े आ रही थी. कई थे जो अपने परिवार से बात करने को भी राज़ी नहीं थे पर ग्रूप के दबाव में आकर उन्हें वचन निभाना पड़ता था. सभी ने महसूस किया कि छोटी छोटी बातों को मन से लगाए लोग कितने दुखी थे. उनकी परेशानियाँ दुनिया की आम परेशानियाँ थीं. लोगों ने अपने दिलो दिमाग़ को इस कूड़े से भर रखा था और जगह ही नहीं बची थी कि वे कुछ और सोच सकें. लीडर ने कहा कि यदि सब लोग अपने दिमाग़ों को बेकार की बातों से खाली कर डालें तो ढेर सी जगह ख़ाली हो जाएगी, जिसे सकारात्मक विचारों और इरादों से भरा जा सकता था.

अमृत की कहानी कोई नई नहीं थी. उसने महसूस किया कि रेचल और सन्नी के बिगड़े हुए सम्बन्धों के लिए वह ख़ुद भी उतनी ही ज़िम्मेदार थी, जितने कि वे दोनों. सन्नी माँ के बहुत क़रीब था. जब रेचल उन दोनों के बीच आई तो सब गड़बड़ हो गया. ज़िन्दगी बदली तो दोनों सकपका गए और रेचल को दोष देने लगे. एक छोटी उम्र की लड़की से, जो भारतीय संस्कृति के विषय में कुछ नहीं जानती, वे ऊँची अपेक्षा रख रहे थे. भाषा रहन सहन, पहनावा, खान पान, सभी कुछ उसके लिए नया था. रेचल ने पूरी कोशिश की अपने को सन्नी के परिवार और देश के रीति रिवाज़ अपनाने की. जब ससुराल से कोई मदद नहीं मिली तो वह झक मार कर अपनी माँ के पास गई. अनपढ़ नोरीन ने उसे और उलझा दिया. जल्दी ही वह दो बच्चों की माँ बन गई. सन्नी ने कभी माँ की ही मदद नहीं की तो रेचल की क्या करता. घर और बच्चे को सम्भालने के अलावा, सन्नी को धुले और इस्त्री किए हुए कपड़े चाहिए थे, बढ़िया नाश्ता और खाना चाहिए था और शाम को जब रेचल चाहती कि कम से कम अब तो वह बच्चों को सम्भाले, तो वह उठकर पब चल देता था. रात को थका मांदा घर लौटता तो माँ की शिकायतें सुनकर रेचल को एक दो थप्पड़ भी जड़ देता.

अमृत को आज बहुत बुरा लग रहा था कि उसने रेचल के साथ बहुत ज़्यादती की थी. वह एक अच्छी लड़की थी. नोरीन के बहकावे में आकर यदि उसने तलाक के लिए अर्ज़ी दे दी तो बच्चों का क्या होगा? नोरीन के बच्चों की तरह बैठकर वे सिगरेट और शराब पिएंगे और ड्रग्स बेचेंगे. अमृत का दिल बैठ गया.

‘यू कैन नौट बी हैप्पी इफ़ वन पर्सन इन यौर लाइफ़ इज़ सफ़रिंग. इफ़ यू वांट टु बी हैप्पी, लर्न टु फ़ौर्गिव एंड लुक फ़ौरवार्ड टु ए रिन्यूड लाइफ़.’ फ़ोरम लीडर ने कहा तो अमृत ने उसी समय 98 लोगों के सामने खड़े होकर वादा किया कि वह अपने बहु और बेटे से माफ़ी माँग लेगी और घर की ख़ुशी के लिए अपने स्वाभिमान को त्याग देगी. परिवार या पड़ौस के दुख से कोई भी अप्रभावित नहीं रह सकता. ख़ुश रहना हो तो माफ़ कर दो या माफ़ी माँग लो और आगे की सोचो. कह तो दिया पर अमृत को लगा कि बेटे बहु से माफ़ी मांगना ऐसा आसान नहीं था. लौटरी की मशीन में घूमते नम्बरों की तरह विचार उसके मन में चक्कर लगा रहे थे. ‘सौरी’ कहने का उसे कोई आसान तरीक़ा नहीं मिला. रात के साढ़े नौ बजे उसके मित्रों ने उसे अपना वादा निभाने की याद दिलाई.

‘यू कैन डु इट अमृत, यू जस्ट हैव टु पिक अप दि फोन.’ उसकी ग्रुप लीडर आइलीन उसे प्रोत्साहित कर रही थी.

रात के दस बजे उसने सन्नी और रेचल को फ़ोन किया और उन्हें लैंडमार्क फ़ोरम के बारे में तफ़सील से बताया. अदिति से कहकर उसने ब्रोशर्स आदि सन्नी के घर पोस्ट करवा ही दिए थे. रेचल और नोरीन को लगा था कि अमृत की ये कोई नई चाल थी.

‘मैं त्वानु दोनां नूँ सौरी कैना चाहून्दी हां. तुस्सी दोनों वी आपणी सारी मिसअंडरस्टैंडिंग्स क्लियर करके नवी ज़िन्दगी शुरु करो. मैं थ्वानु बस ऐसे लई फ़ोन कीता सी.’ अमृत को लगा कि जैसे फ़ोन करने के बाद वह हल्की हो गई हो.

तीन लम्बे दिनों की लम्बी लम्बी उबाऊ बहसों का यदि निचोड़ निकाला जाए तो शायद आधे घंटे का भी मसाला न निकले पर इस सबसे गुज़र के ही शायद उसे निष्कर्ष समझ में आया था. हालांकि अमृत ने अपनी कठिनाई सबके सामने नहीं कुबूल की थी पर अन्य युवक और युवतियों, ख़ासतौर पर माँ, बहुओं और बेटों के खट्टे मीठे अनुभवों से उसने बहुत कुछ सीखा था. अमृत घर लौटी, जादु की एक छड़ी लिए जिसे घुमा के वह अपने परिवार को राह पर ला सकती थी.

सोमवार की सुबह सुबह अमृत बेटे के घर पहुंच गई. उसके क़दमों में एक नया उत्साह था. सारे काम रुकवा के उसने रेचल और सन्नी को अपने पास बैठाया. वे दोनों सकपकाए हुए तो तब से ही थे जब अमृत ने फ़ोन पर उन दोनों से माफ़ी माँगी थी

’शाम नू बच्चयाँ नु मेरे वल छोड़ के तुसी दोनों कहीं बार जाओ, ते ठंड़े दिमाग़ नाल गल्ल बात करो. यू नो, इफ़ वन औफ़ अस इज़ अनहैप्पी, नन औफ़ अस कुड बी हैप्पि.’ अमृत ने कहा तो सन्नी बौखला गया. ’आइ हैव आल्सो लरन्ट ए लौट फ़्रौम दि ब्रोशर्स. आइ ऐम सो सौरी मम, वी विल बी दे बैस्ट औफ़ फ़्रैंड्स फ़्रौम नाउ औन.’ रेचल की आवाज़ में परिपक्वता की एक नई झलक थी.

‘थैंक्स रेचल बेटे, साड्डी ते आप्णी कोई कुड़ी नई सी, फेर बी मैं तैनुं नई अपना सकी. पर जो होया, ओते राख़ सुट्टो. हुन मैं त्वाडी दोन्याँ दी लाइफ़ लई ते त्वाडे बच्चयाँ दे फ़्यूचर लई वी सोचदी हाँ.’ सन्नी उन दोनों को हैरानी से देख रहा था. रेचल ने सन्नी की ओर बड़ी आशा से देखा.

‘आइ एम सीरियस, पुत्तर, मेरे मरन तों पैल्ले तुसी दोनां फेर से हैप्पी रैन लगो जिस तरां मैरिज दे वेले रउन्दे सी.’

’ओके मौम.’ आदत के अनुसार सन्नी ने कहा.

’ओके मौम से नहीं चलूगा हुन पुत्रा. तुस्सी दोना नूं बदलना पउगा. सन्नी, तैन्नुं ते होर वी ज़ियादा. तू रेचेल दी मदद करेगा, उसकी कदर करेगा तो ओहो वी तेरी कदर करेगी. तुस्सी दोनां प्यार से रओगे ते बच्चे ख़ुद ई समज जानगे.’

‘मैं बदलूँ?’ सन्नी अब भी अड़ा था बदलने वाली बात सिर्फ़ रेचल पर लागू होनी चाहिए थी.

‘तैन्नु ते पुत्रा एडवांस कोर्स वी कराना पवुगा.’ अमृत ने हंसते हुए कहा तो रेचल खिलखिला के हंस पड़ी. वह सीधी और दिल की साफ़ थी, प्यार से समझाओ तो हर बात मान जाती थी.

‘हाँ पुत्तर जी, ये नया ज़माना है और तू अब इंडिया में नईं है, समझा?’ सन्नी अभी पच्चीस का हुआ था और शक्ल सूरत से चालीस का लगता था. बियर पी पीकर उसकी तोंद निकल आई थी. वीकेंड पर वह शेव तक नहीं करता था. रेचल चिल्लाती रहती पर वह बच्चों को हाथ तक नहीं लगाता था. बाईस साल की रेचल अभी ख़ुद ही बच्ची थी, जिसके ऊपर घर बार की सारी ज़िम्मेदारियाँ छोड़ दी गई थीं. ऊपर से सन्नी की रुखाई के लिए भी अमृत बेचारी रेचल को ही दोष देती रही थी, ये कह कहकर कि ‘आपणे मर्द नुं रिझा लई कुड़्याँ की पई नई कर दीं? शम नुं सन्नी जद घार आन्दा ए ते तूं लीरे पाके पई फिरदी ए.’ जब कि घर पहुंचकर सन्नी कभी रेचल की ओर देखता भी नहीं था. अमृत को आज अपनी और सन्नी की सभी ज़्यादतियाँ साल रही थीं. बस अब और नहीं.

’तुम दोनों मेरे सिर पे हाथ रख के प्रौमिस करो.’ सन्नी की देखा देखी रेचल ने भी अमृत के सिर पर हाथ रख दिया. अमृत ने हिन्दी और अंग्रेज़ी में लिखी शपथ का एक एक पन्ना दोनों को पकड़ा दिया.

’हम वादा करते हैं कि हम पूरी कोशिश करेंगे कि अपने बच्चों को एक साफ़ सुथरा और प्यार भरा वातावरण दें ताकि आगे चलकर वे भी अच्छे इंसान और आदर्श नागरिक बन सकें. भविष्य में कोई अनबन हुई तो हम उसे आपस में बैठकर सुलझा लेंगे.’ रेचल और सन्नी ने अमृत के वाक्यों को दोहराया. अमृत ने दोनों के गाल चूमकर उन्हें दुआ दी. रेचल ने माँ की पसन्द की सौंफ़ और इलाइची वाली चाय बनाई और फिर घंटों बैठकर उन तीनों ने अपने गिले शिकवे दोहराए. अमृत के बार बार माफ़ी माँगने पर उन दोनों को भी शर्म आई. दिल हल्के हुए तो उन्हें लगा कि कैसी कैसी बेकार की बातें मन में बिठाए वे मुँह सुजाए रहे.

इतवार की सुबह सन्नी और रेचेल बच्चों को छोड़ने अमृत के फ़्लैट पर पहुंचे तो देखा दरवाज़ा खुला था, माँ की आँखों की तरह.

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दिव्‍या माथुर
अंग्रेज़ी में एम.ए. तथा दिल्ली एवं ग्लॉस्गो से पत्रकारिता में डिप्लोमा की उपाधियां प्राप्‍त करने वाली दिव्‍या जी सुप्रसिद्ध साहित्‍यकार हैं। अन्‍तर्राष्‍ट्रीय हिंदी सम्‍मेलन, लंदन में भारतीय उच्‍चायोग, यू के हिंदी समिति, कथा यू के की गतिविधियों में आपकी सक्रिय सहभागिता उल्‍लेखनीय रही है। भारत सम्‍मान, डॉ. हरिवंश राय बच्‍चन पुरस्‍कार, राष्‍ट्रकवि मैथिली शरण गुप्‍त लेखन सम्‍मान जैसे अनेक पुरस्‍कारों से आप सम्‍मानित हो चुकी हैं। नेत्रहीनता से संबंधित कई संस्थाओं में आपका सक्रिय योगदान रहा है तथा आपकी अनेक रचनाएँ ब्रेल लिपि में प्रकाशित हो चुकी हैं। कविता संग्रह- अंत:सलिला, रेत का लिखा, ख्याल तेरा और ११ सितंबर:सपनों की राख तले। कहानी संग्रह- आक्रोश।

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