कहानी / कौशल्या

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आर. सिंह 

कभी कभी अचानक कुछ ऐसा घटित हो जाता है जिसका पहले से आभास भी नहीं रहता. मेरे साथ भी पिछले दिनों कुछ ऐसा ही गुजरा.आज मै सोचता हूँ कि वह क्या था सत्य था या मात्र स्वप्न?

एक लम्बे अरसे के बाद मैं इस इलाकें में आया था.वर्षों बीत गए जब मैं पिछली बार यहाँ से गुजरा था.तब भी मैं कोई अच्छा खासा युवक तो नहीं था, पर उस समय वृद्धावस्था दूर नजर आ रही थी. समय बीतते देर नहीं लगती और जब मै इसबार यहाँ आया हूँ तो मेरी उम्र पैंसठ को पार कर चुकी है. यह भी संयोग ही कहा जाएगा कि मेरी मुलाकात एक ऐसे मित्र से हो गयी जो प्राथमिक कक्षाओं से मेरे साथ था. मैट्रिक के बाद हमलोगों के रास्ते अलग अलग होगए थे, पर मित्रता कायम थी. पर कभी कभी ऐसा भी होता है कि आँख ओट तो पहाड़ ओट.हमलोगों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.बाद में तो शायद एक ही दो बार मिले थे. हमलोग अलग अलग नौकरी में थे और वह किसी कार्य बस मेरे शहर में आया था मुझे तो उसके कार्यक्रम का भी पता नहीं था ,पर जब वह आया तो उसको देख कर बेहद खुशी हुई. हमलोग एक दूसरे से लिपट गए .यह भी नहीं सोचा कि पत्नी क्या सोचेगी.दृष्टि उठी तो देखा कि वह मुस्कुराये जा रही है. ऐसे भी मेरी पत्नी के मुस्कुराने और हँसने की अदा निराली है. शायद ही कोई ऐसा समय हो जब वह मुस्कुराती या हँसती न हो.मेरी सुखी गृहस्थी में इन मुकुराहटों का बहुत बड़ा योगदान है.

उस मित्र से मुलाकात का यह संयोग अच्छा लगा. मैं यहाँ आया तो था किसी अन्य चक्कर में.मुझे तो यह भी स्मरण नहीं था कि सेवा निवृति के बाद यहीं उसने अपना मकान बना लिया है. वह तो मिलते ही गले से लिपट गया.अरसे का विछोह क्षण भर में दूर हो गया न कोई गिला न शिकवा. उसे भी शायद यह अनुभव हुआ कि उसने अपने स्थाई निवास का पता तो मुझे दिया ही नहीं था. उससे लिपटने पर ऐसा लगा कि समय का व्यवधान खत्म हो गया है और आज भी हम स्कूल के छात्र हैं. वह तो मुझे पकडे पकडे ही अपने घर ले गया. आसपास के लोग हमलोगों को देख कर अवश्य हँस रहे होंगे, पर इस और ध्यान देने की भी फुर्सत किसे थी? घर पास ही था .मैं तो यह भी भूल गया कि मुझे कहीं और पहुंचना था.मित्र ने इसमे भी तत्परता दिखाई और सूचना दे दी कि देव वहां कल पहुंचेगा. मुझे तो लगा था कि घर में उसकी पत्नी होगी. उसके बच्चे तो दूसरे शहरों में थे, यह मुझे मालूम था. पर यहाँ तो केवल एक नौकर था मित्र ने बताया कि पत्नी तो एक सप्ताह पहले से बेटी के घर गयी हुई हैं. नौकर तो मेरे लिए चाय पानी का प्रबंध करने चला गया और हमलोग अपने गप्प में लग गए क्या क्या बातें हुई. यह स्मरण कर के हंसी भी आती है. हमलोग इसी बीच खाना भी खाए पर बातें थी कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थी. उस रात न जाने बचपन की कितनी कहानियां स्मरण की गयी. वह एक तरह से मेरा लंगोटिया यार था. हमलोगों का गाँव भी आसपास ही था सबसे बड़ी बात यह थी कि हमलोगों की प्राथमिक शिक्षा एक स्कूल से प्रारम्भ हुई थी और माध्यमिक शिक्षा में भी हमलोग साथ थे .प्राथमिक विद्यालय के भी कुछ किस्से दुहरा कर हमलोग हंसते रहे. माध्यमिक शिक्षा के दिनों के तो इतने किस्से थे कि याद करते करते हीं शायद रात्रि का अवसान हो जाता,फिर मित्र को लगा कि थका मांदा आया है ,कल फिर इसको निकलना है अतः अब विश्राम करना चाहिए. मैं अपने कमरे में आ गया .कमरा बंद करके बती बुझाने के पहले मैंने यो ही कमरे में इधर उधर नजर घुमाई. कमरा बहुत ही स्वच्छ था, पर एक कोने में मुझे अख़बार का एक पुराना पन्ना पड़ा दिखाई दिया ,शायद कमरे की सफाई के समय छुट गया था.मैंने उत्सुकता वस उस पन्ने को उठालिया अखबार का वह पन्ना ज्यादा पुराना नहीं था. उसमे प्रकाशित एक ख़ास समाचार ने मेरा ध्यान अवश्य खीचा .उस इलाके के एक प्रसिद्ध नेता के अभिनन्दन के बारे में विस्तृत समाचार प्रकाशित हुआ था. मुझे याद आया कि कुछ महीनों पहले ही तो वे इस शहर में आये थे. उन नेता जी का जन्म तो इसी इलाके में हुआ था,पर उनका कार्यक्षेत्र अन्यत्र था.

बहुत पहले चुटकुला सुना था कि अमेरिका से लौटे हुए एक सज्जन ने अपने बचपन के मित्रों को खाने पर बुलाया..सभी मित्र किसी न किसी रोजगार या नौकरी में लगे हुए थे. दो दिनों के अन्दर सभी उपस्थित हो गए उनको अपने उस मित्र की कमी खटक रही थी, जो पढाई लिखाई से तो दूर भागता था,

पर मित्रता में किसी से पीछे नहीं था.

अमेरिका से लौटे मित्र ने पूछा” श्याम तो कोई परीक्षा पास नहीं कर सका था. लगता है हम मित्रों में एक वही असफल रहा.”

दूसरा मित्र तुरत बोला,”क्या बात करते हो?हमलोगों में सबसे सफल वही है. जानते ही हो कि चतुराई और तिकड़म बाजी उसमे ठूसठूस कर भरी थी.आजकल वह बहुत बड़ा नेता है.”

ये बड़े नेता शशिकांत भी कुछ वैसे हीं हैं.

उन्हीं के बारे में सोचते सोचते मैं विस्तर पर लेट गया. लगा कि मुझे झपकी सी आयी, पर शायद तुरत मेरी आँख खुल गयी .मेरे विस्तर के पास एक औरत खड़ी थी जो बीते हुए कल की कहानी लग रही थी. उम्र से वह पैंतालीस छयालिस वर्षों की लग रही थी, पर उसको देखकर ऐसा लग रहा था जैसे एक निचुड़ा हुआ सुन्दर पुष्प हो. पर अभी भी सौन्दर्य की झलक उसके चेहरे पर थी, पर वह मात्र झलक थी, जिसको देख कर लग रहा था कि बीते दिनों में यह अप्रतिम सुंदर रही होगी. मैं तो आश्चर्य चकित हो गया. और हडबडा कर अपने विस्तर से उठने लगा ,पर उसने आँखों ही आँखों में वही पडा रहने का संकेत किया .न जाने उन आखोँ में क्या जादू था कि मैं अपने विस्तर पर ही पड़ा रहा मै तो यह भी नहीं समझ पा रहा था कि इस रात्रि बेला में एक सुंदर इमारत के खँडहर स्वरूप यह देवी मेरे कमरे में क्यों आयी है? मेरी आँखें ऐसे भी चौंधिया रही थी, क्योंकि उसकी आँखों में अभी भी कुछ ऐसी चमक थी,जो लग रहा था कि किसी को भष्म कर सकती थी.

मैं तो उसे एक टक देखता ही रहा.मेरे मुंह से तो कोई बोल भी नहीं फूटा. वह भी कुछ देर टक मुझे देखती रही फिर बोली,”आपने मुझे पहचाना नहीं ?’

मैंने पड़े पड़े ही नकारात्मक स्वर में शीश हिलाया. बोला मैं फिर भी नहीं. लगता था कि मेरी जिह्वा तालू से चिपक गयी है.

“मैं कौशल्या हूँ.”

मैं अचानक बोल पड़ा “कौशल्या,कौशल्या कौन?”

“सचमुच आपको कुछ भी याद नहींहै?”

प्रश्न उसने अवश्य पूछा,पर उसके स्वर से ऐसा नहीं प्रतीत हो रहा था कि मेरे इस इनकार से उसे आश्चर्य हुआ. ऐसा लगा कि वह इसी प्रकार केउत्तर की उम्मीद कर रही थी.

वह बोली,”अच्छा जाने दीजिये .क्या आपको अपने बगल के गाँव वाले रामाधार सिंह भी नहीं याद हैं?’

मैं असमंजस में पड़ गया मुझे तो रामाधार सिंह भी नहीं याद आ रहे थे. अब मुझे अपनी स्मरण शक्ति पर जोर देना पड़ा.याद तो कुछ ख़ास आया नहीं ,पर मस्तिष्क में धुंधली सी तस्वीर अवश्य उभरी उस आदमी की जिसका दर्दनाक अंत हुआ था.शायद वही रामाधार सिंह थे.

“हाँ, एक सज्जन की याद तो आ रही है,जिनकी पत्नी का पहले देहांत हुआ था, उसके थोड़े दिनों के बाद वे भी चल बसे थे.,पर वह तो बहुत पुरानी कहानी है.”

“मैं उन्हीं रामाधार सिंह के बारे में बात कर रहीं हूँ.मै उन्हीं की पुत्री हूँ.”

मैं कह तो गया था,पर लगा कि मैं कुछ गलत बोल गया.मुझे लगा कि उस मृतक की कहानी से इसका क्या सम्बन्ध हो सकता है.इसको देखने से तो ऐसा लगता है कि उनकी मृत्यु के समय इसकी उम्र कोई अधिक नहीं रही होगी.मुझे बहुत आश्चर्य हुआ,जब उसने कहा कि वह उन्हीं रामाधार सिंह के बारे में बात कर रही थी.

यह भी एक अजब कहानी थी.रामाधार सिंह अच्छे खासे खाते पीते घर के थे. पिता की मृत्यु हो गयी थी. पर माँ जीवित थी. अच्छी कद काठी के व्यक्ति थे. विवाह उनका बहुत उम्र बीतने पर हुआ था अच्छी खासी सुन्दर पत्नी थी उनकी. उन्होंने तो शादी पुत्र प्राप्ति के लिए की थी, पर उत्पन्न हुई कन्या और वह भी इतनी सुन्दर कि छूने पर मैली हो जाने का डर.तो यही है उनकी वह पुत्री.

शशिकांत भी उसी गाँव के एक अच्छे खाते पीते घर का वारिस था. उसके दो भाई भी थे, पर यह उनलोगों से अलग था. उसके दोनों भाई पढने लिखने में तीव्र बुद्धि वाले थे, पर शशिकांत आरम्भ से ही पढाई लिखाई से अलग भागने वाला,पर चालाकी में बड़ों बड़ों का पर कुतरने वाला था. एक दो वर्ष ही बड़ा होगा शशिकांत कौशल्या से. शशिकान्त दस बारह वर्ष छोटा रहा होगा मुझसे. बचपन में तो किसी ने ध्यान भी नहीं दिया कि शशिकान्त और कौशल्या के बीच बचपन की मित्रता के सिवा भी कुछ और है. दोनों अधिकतर साथ ही रहते थे. जैसे जैसे दोनों की उम्र बढ़ती गयी दोनों की मित्रता भी बढती गयी.

कौशल्या राजपूत कन्या थी जब कि शशिकांत कायस्थ कुल भूषण था .दोनों के माता पिता में मित्रता के साथ पड़ोस वाली निकटता भी थी. दोनों का घर आसपास होने के कारण कौशल्या और शशिकांत एक दूसरे के धर में घुसे रहते थे. दोनों की पढाई लिखाई एक दो वर्षों के अंतर पर शुरू हुई थी, पर जहां कौशल्या पढने में तेज थी, वहीं शशिकांत पढाई के मामले में बचपन से ही फिसड्डी था,पर शैतानी में उस्ताद.

ऐसे भी वे लोग बगल के गाँव के थे. मेरा तो अपने गाँव से भी सम्बन्ध लगभग टूट ही गया था, अतः दूसरे गाँवों के बारे में ज्यादा जानकारी रखने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था. मुझे तो पूर्ण रूप से यह भी ज्ञात नहीं था कि शशिकांत और कौशल्या ने क्या किया. ऐसे मुझे यह मालूम था कि शशिकांत किसी तरह कालेज तक पहुँच गया था और बाद में कौशल्या को अपनी जाल में फंसा कर शहर ले आया था, पर किसी को पता नहीं चला था कि वे दोनों कहाँ रहते हैं. ये सब बातें मुझे एक एक करके याद आ रही थी, पर वास्तिवकता से पूर्ण रूप से अवगत नहीं होने के कारण मैंने चुप रहना ही मुनासिब समझा.

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वह बता रही थी. शशिकांत बचपन से ही उसे अच्छा लगता था.वे साथ खेलते थे साथ खाते थे. उनलोगों को देख कर अक्सर लोगों को उनके भाई बहन होने का शक होता था. उनके मातापिता भी उनको उसी रूप में देखते थे, पर उन्हें क्या पता था कि गुड्डे गुड्डियों का ब्याह रचाने वाले दो बच्चे अपने को भी वैसा ही समझ रहे थे. कौशल्या को स्वयं नहीं पता चला कि वह कब खेल ही खेल में अपना दिल शशिकांत को दे बैठी.

गाँव की पाठशाला में दोनों साथ साथ पढने जाते थे.जैसे जैसे उनकी उम्र बढ़ती गयी, उनका एक दूसरे के प्रति लगाव भी बढ़ता गया. ऐसा समय भी आया कि वे एक दूसरे को देखे बिना रह नहीं पाते थे. पहले तो लोगों की दृष्टि में यह नहीं आया. लोग इसको उन दोनों का लड़कपन ही समझते रहे. कक्षाए अलग अलग थी, पर मौका मिलते ही वे साथ हो जाते थे. पहले तो खुल्लम खुला, पर उम्र बढ़ने के साथ थोडा लुक छिप कर. लोगों का ध्यान धीरे धीरे आकर्षित अवश्य हुआ, पर उन्होंने सोचा कि बचपन से साथ रहते आयें हैं धीरे धीरे अपने समझ जायेंगे. पर जब उम्र बढ़ने के साथ ही लुका छिपी का यह खेल जोर पकड़ने लगा तो लोगों की निगाहें उठी, क्योंकि यह शहर तो था नहीं जहाँ चौदह पंद्रह वर्ष के युवक युवती खुले आम एक दूसरे के हाथ में हाथ डाल कर घूम सकते थे. यह गाँव था और गाँव की एक मर्यादा होती है. वे दोनों भी इस सत्य से वाकिफ थे, अतः सावधानी तो बरतते ही थे. लोगों को लगने लगा था कि यह केवल पड़ोस की दोस्ती नहीं है.फिर भी उन लोगों को साहस नहीं हुआ कि वे इस बात को तूल दे सके. एक तो रामाधार सिंह के एकलौती बेटी का प्रश्न था. बिना किसी प्रमाण के उनकी बेटी के विरुद्ध एक बात भी कहना बर्रे के छत्ते में हाथ देने जैसा था..फिर शशिकांत का अपना दबदबा.उस उम्र में भी उसके मित्रों की संख्या बहुत बड़ी थी, जिसमे हर तरह के युवक थे. देखने से लगता था कि वे युवक शशिकांत के लिए कुछ भी कर सकते थे. यह बेवजह भी नहीं था. शशिकांत यारों का यार था. इतना होते हुए भी उसके मित्रों की पंहुच कौशल्या तक नहीं थी. कौशल्या के निकट उसका कोई मित्र नहीं फटक सकता था.

स्कूल की पढाई तो समाप्त होनी ही थी. शशिकांत भी एक दो बार लुढ़कने के बाद येनकेन प्रकारेण परीक्षा में उत्तीर्ण होकर कालेज में पढने के लिए शहर आ गया था. यह भी संयोग ही था कि शशिकांत के परीक्षा में अनुतीर्ण होने के कारण वह कौशल्या के साथ ही मैट्रिक की परीक्षा पास कर सका. कौशल्या बेचारी तीव्र बुद्धि होते हुए भी परीक्षा के बद पढाई छोड़ने को विवश हो गयी. गाँव की लडकी के लिए यही क्या कम था कि वह मैट्रिक की परीक्षा पास कर गयी. अब तो उसकी शादी की तैयारी होने लगी थी, पर राजपूत जाति में उसके योग्य लड़का मिलना कठिन सिद्ध हो रहा था. कौशल्या तो शशिकांत के प्रेम में पागल थी, पर किसी को बताती कैसे? बताने का परिणाम भी उसको ज्ञात था.

शशिकांत तो शहर चला गया, पर लगता था कि कालेज में जाने के बाद भी वह कौशल्या को नहीं भूला था. छुट्टियों में दो चार बार ही गाँव आने की नौबत आयी, पर वह कभी भी कौशल्या से मिलना नहीं भूला. एक बार एकांत पाते ही कौशल्या ने अपने मन की बात कह दी. शशिकांत तो लगता है ,इसी का इन्तजार कर रहा था. वह बोल ही पड़ा, ”मैं तो तुम्हे बचपन से प्यार करता हूँ, पर डर से बोल नहीं पाता था. तुम्हारे पिता से तो डर लगता ही था,यह भी डर था कि तुम इनकार न कर दो.”

अब जब कि बात सामने आ गयी तो दोनों ओर से शिकवे शिकायतों के साथ करार वादे भी शुरू हो गए. उन दोनों को यह तो मालूम था ही कि उनके परिवार वाले तो इसके लिए कभी तैयार नहीं होंगे. शशिकांत ने वादा किया कि अपना थोड़ा भी ठौर ठिकाना होते ही वह उसको शहर ले जाएगा .वह बोला, “एक बार शहर पहुँच गए तो किसी बात का डर नहीं. ऐसे भी वह शहर यहाँ से इतना दूर है कि लोगों को कुछ पता भी नहीं चलेगा .फिर तो मौज ही मौज होगी.”

शशिकांत ने अपने वाक्चातुर्य से ऐसा जाल बुना कि वह सपनों में खो गयी. पर उसने कहा कि उसके व्याह की बात चल रही है,कहीं शादी तय हो गयी तो क्या होगा?

“मैं तो तुम्हारे सिवा अन्य किसी के बारे में सोच ही नहीं सकती,”

शशिकांत ने उसको दिलाशा दी, “उम्मीद तो नहीं है कि इतना जल्दी यह सब होगा.भगवान पर भरोशा रखो उनकी कृपा से सब ठीक हो जाएगा.”

शशिकांत शहर में क्या करता था,यह कौशल्या को ज्ञात नहीं था.वह तो सोचती थी कि शहर में वह पढाई लिखाई कर रहा होगा.उसे कहाँ ज्ञात था कि शशिकांत शहर में रहकर ,कालेज का छात्र होते हुए भी पढाई लिखाई के अतिरिक्त सब कुछ करता था. अपने मित्रों के साथ मिलकर कालोनी में उपद्रव करना, लडकियों को छेड़ना , किसी से भी उलझ जाना उसके लिए आम बात थी. उसके संगी साथी भी एक से बढ़ कर एक थे. अब तो वह छात्र संघ का पदाधिकारी भी बन गया था. उसकी धाक बढ़ गयी थी. उसके रंगढंग से लग रहा था कि उसकी कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा है ,जिसकी ओर वह बढ़ रहा था. वह मजदूरों को भी उनके संघर्ष में साथ देने लगा था .कौशल्या को यह सब कहाँ पता था?.ये सब कहानियाँ तो उसने बाद में सुनी थी.

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बिल्ली के भाग से छींका टूटा . उसी समय जयप्रकाश नारायण का भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ हो गया. शशिकांत ने आव देखा न ताव . वह अपने संगी साथियों के साथ इस आन्दोलन में कूद पडा. जयप्रकाश नारायण का वह आन्दोलन भ्रष्टाचार और अनैतिकता के विरुद्धथा ,पर बहती गंगा में हाथ धोने के लिए शशिकांत जैसे लोग भी उसमे शामिल हो गए . संगठन शक्ति उसमें थी ही. जल्द ही उसने उस आन्दोलन में अपना विशिष्ठ स्थान बना लिया. आन्दोलन में भाग लेने वाले अग्रणी युवकों में उसकी गिनती होने लगी.

जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चलने वाला वह आन्दोलन अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित था. उसमें हिंसा की कोई गुंजाईश नहीं थी. शाशिकांत जैसे युवक उस आन्दोलन में शामिल तो हो गए थे, पर वे मन मसोस कर हीं अहिंसा का पालन कर रहे थे. आन्दोलन धीरे धीरे जोर पकड़ रहा था और लोगों के सहयोग से पराकाष्ठा पर पहुच ही रहा था कि आपातकाल की घोषणा हो गयी,

आपातकाल की घोषणा होते ही आन्दोलन के सभी वरिष्ठ नेता बंदी बना लिए गए. भाषणों पर रोक लग गया. एक विशेष संस्था के लोगों को ख़ास निशाना बनाया गया. उससे सम्बंधित लोगों को यदि जेल नहीं भी ले जाया गया तो भी नौकरीसे तो बर्खास्त कर ही दिया गया., समाचार पत्रों पर पूरी पावंदी लगा दी गयी. कुछ समाचार पत्रों ने तो अपना सम्पादकीय देना ही बंद कर दिया. शशिकांत यदपि उस संस्था से सम्बंधित नही था ,फिर भी आन्दोलन का एक विशिष्ठ युवा नेता तो था ही, अतः उसे भी कुछ महीनों के लिए जेल की हवा खानी पडी. जेल से छूटा तो उसकी एक पहचान बन चुकी थी. न जाने कहाँ से उसके पास अब पैसे भी आने लगे थे. कालेज तो छुट ही चुका था .ऐसे कालेज जाने की उसकी कोई इच्छा भी नहीं थी. अब उसे मजदूरों की रैलियों में भाषण देते देखा जाने लगा. हडतालों में भी बढ़ चढ़ कर भाग लेने लगा. शाशिकांत के सौभाग्य बस कौशल्या की अभी शादी नहीं हो सकी थी. इसी बीच समय निकाल कर वह उसे शहर ले आया. कौशल्या बता रही थी ,किसी को कानोकान खबर नहीं हुई और वह शशिकांत के साथ शहर आ गयी. वह तो अति प्रसन्न थी. शहर में शशिकांत ने न केवल घर ले रखा था, बल्कि उसके लिए एक स्थानीय अस्पताल में नर्स के प्रशिक्षण का भी प्रबंध कर रखा था. कौशल्या को किसी तरह का संदेह न हो ,इसके लिए उसने एक स्थानीय मंदिर में उससे व्याह भी रचा लिया

.दिन बीतते रहे.कौशल्या देख रही थी कि वह दिनों दिन अधिक से अधिक व्यस्त होता जा रहा है.

गाँव में जब तक उन दोनों की शादी का समाचार पहुंचा तब तक बहुत देर हो चुकी थी. उसके माता पिता को तो समझमें हीं नहीं आया था कि कौशल्या घर छोड़कर कहाँ चली गयी. लज्जा बस उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं लिखवाई थी. लोगों के पूछने पर एक दूर के रिश्तेदार का नाम बता दिया था.लोगों को संदेह तो था,पर वे कुछ कह नहीं पाते थे,. पर अब जो खबर मिली तो उसके माता पिता तो एकदम बदहवास हो गए.एक तो वे पहले ही एकलौती बेटी के वियोग में पागल से हो गए थे. माँ ने तो पहले से ही बिस्तर पकड़ रखा था.उन्होंने तो कौशल्या को मरा हुआ ही समझ लिया था .दूसरी जाति में कौशल्या की शादी और पड़ोस के लड़के का विश्वासघात उसकी माँ के लिए प्राण लेवा सिद्ध हुआ,यह खबर सुनते ही वह स्वर्ग सिधार गयी. बाप ने भी प्रतिज्ञा कर ली कि वे इस कुलक्षणी का मुंह न देखेंगे..पत्नी की मृत्यु के बाद वे भी अधिक दिनों तक ज़िंदा नहीं रहे. माता पिता के मृत्यु का समाचार उसे एक साथ ही मिला.बहुत रोई थी. वह अपने को उन दोनों के मृत्यु का कारण मानती थी और सही भी था.वे क्या जानते थे कि जिस बेटी को वे इतना प्यार करते थे वही इतनी निष्ठुर निकलेगी? बहुत दिनों तक उसे यह दुःख सालता रहा, पर शशिकांत के प्यार ने धीरे धीरे उसे सामान्य स्थिति में ला दिया.शशिकांत ने बहुत धीरज बंधाया उसे.

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आपात काल समाप्त हो चुका था और साथ ही साथ संसद के लिए चुनाव की घोषणा भी हो चुकी थी.अब तो बड़े जोर शोर से चुनाव की तैयारियां होने लगी.लोगों को लग रहा था कि कांग्रेस का शासन समाप्त होने वाला है.हुआ भी वही.दिल्ली में जनता पार्टी की सरकार बनी.जनता पार्टी ने शासन में आते ही कुछ ही दिनों के अंतराल में उन राज्यों की सरकारों को बर्खास्त कर दिया,जिन राज्यों में जनता पार्टी को भारी बहुमत मिला था. लगता है,शशिकांत इसी अवसर की ताक में था.चालाक और तिकडमबाज तो वह आरम्भ से था.उसने अपनी गोटी बैठाने का यह सुनहरा अवसर देखा.वह जानता था कि अगर किसी तरह से उसे जनता पार्टी से टिकट मिल गया तो उसका विधायक बनना निश्चित है.पर टिकट मिलना इतना आसान नहीं था.सभी को मालूम था कि टिकट मिलने का मतलब है विधान सभा में पहुंच जाना. शशिकांत लोकप्रिय अवश्य था,पर उसे किसी संगठन का साथ नहीं प्राप्त था.कुछ ही अपने ख़ास लोग थे उसके.एक होड़ सी लगी हुई थी जनता पार्टी का टिकट प्राप्त करने के लिए.बड़े बड़े तिकड़म भिडाये जा रहे थे.वह कौशल्या से कहता भी था कि वह इस अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहता.किसी न किसी तरह विधान सभा के लिए उसे टिकट प्राप्त करना ही है.

शशिकांत कुछ दिनों से बेतरह बेचैनी की अवस्था से गुजर रहा था.इस मामले में वह कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता था.अब वह बार बार कौशल्या से से कहने लगा कि वह इस अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहता.किसी न किसी तरह विधान सभा के लिए उसे टिकट प्राप्त करना ही है.कुछ पूछने पर भी वह विस्तार पूर्वक बताता नहीं था.उस दिन वह अचानक बोला,”कौशल्या तुम मेरे लिए क्या कर सकती हो?”

कौशल्या तो उसके प्रेम में पागल थी.तुरत बोली,”अपने प्राण न्योछावर कर सकती हूँ.तुम जो आज्ञा दोगे,उसका पालन करूंगी.”

“तुमको मालूम है कि मेरा भविष्य इस पर निर्भर है कि मुझे विधान सभाके लिए पार्टी की तरफ से टिकट मिल जाए.जीत तो मैं जाउंगा ही.”

उसे यह मालूम तो था,पर वह समझ नहीं पा रही थी कि इसमे वह क्या योगदान कर सकती है?उसने यही कहा भी.

शशिकांत बोला,”तुम उस नेताजी को तो जानती हो.स्त्रियों का वह वह बहुत सम्मान करते हैं. तुमसे तो उन्हें ख़ास लगाव हैं.अगर तुम उनसे कहोगी तो वे तुम्हारी बात टाल नहीं सकते हैं.मेरा भविष्य उन्ही के हाथों में है”

वह अधिक तो कुछ समझती नहीं थी,पर शशिकांत की बुद्धि पर उसे पूरा भरोसा था.वह तो विधायक की पत्नी कहलाने का भी स्वप्न देखने लगी थी.बड़े बड़े नेताओं से उसका मिलना जुलना तो था ही. अवसर देख कर वह कौशल्या को भी साथ ले जाने लगा था.वह जानता था कि जो काम वह स्वयं नहीं कर सकता है,वह काम भी उसके पत्नी के लिए संभव है.एक दो नेताओं ने खुलकर उसके पत्नी के सौन्दर्य की प्रसंशा की थी.उसे इस नेता के बारे में तो अच्छी तरह ज्ञात था कि सौदर्य उनकी बहुत बड़ी कमजोरी है.एक दो बार उन्होंने कौशल्या की भी निकटता प्राप्त करने का प्रयत्न किया था.शशिकांत को लगने लगा कि चुनाव की घोषणा होने के पहले ही किसी न किसी तरह उनका समर्थन उसके लिए आवश्यक है.वे नेता यदपि अविवाहित थे,पर उनका सम्बन्ध प्रच्छन्न रूप से कुछ स्त्रियों से था ,यह यह बात शशिकांत को मालूम थी.उसे उस नेता के हाव भाव से यह भी ज्ञात हो गया था कि वे उसके पत्नी की तरफ बेहद आकर्षित हैं.उसने शीघ्र से शीघ्र अपनी दाव चलने की सोची.उसे कौशल्या की स्वीकृति भी मिल चुकी थी.वह क्या जानती थी कि उसका पति उसे नर्क में ढकेलने के लिए ले जा रहा है. वह पहले भी शशिकांत के साथ वहां जा चुकी थी.उस दिन जब वे दोनों नेता जी के घर पहुंचे तो उनका आवास खाली खाली सा लगा.कहीं कोई भीड़ भाड़ नहीं.एक दो आदमी जो बैठे हुए थे वे लोग भी इन दोनों के पहुँचने के थोड़ी देर बाद वहाँ से निकल गए. शशिकांत तो सब सोच समझ कर आया था.नेता जी से भी शायद उसको पहले बात हो चुकी थी.अनजान थी तो केवल वह.बहुत देर तक बातें होती रही.बातों के साथ पीना पिलाना भी चलता रहा.नौकर भी न जाने कहाँ था कि साकी का काम उसे ही करना पड़ा. इसी बीच टिकट के बारे में भी बात हुई.उन्होंने कहा,”तुम और कौशल्या मेरे इतने नजदीक हो कि तुम्हें टिकट न देने का प्रश्न ही नहीं उठता .वैसे भी तुम जनता के लिए जेल की यातना भी भुगत चुके हो.बेफिक्र रहो तुम्हें टिकट अवश्य मिलेगा.”

फिर खाना पीना भी हुआ.खाना समाप्त होने तक वह काफी थकान अनुभव करने लगी.कुछ नशा सा भी उसको लगा.नेता जी ने उनको वहीं रूक जाने की सलाह दी.वह तो रूकना नहीं चाहती थी,पर शशिकांत ने भी जब उसकी अवस्था की याद दिलाई,तो वह रूकने को तैयार हो गयी.खाना खाने के बाद भी थोड़ी बहुत बातें हुई वह तो थकान के साथ थोड़े शरूर में भी थी.उसे लगा कि पेय पदार्थों में अवश्य कुछ ऐसा है जिससे वह वह अपने आपको संभाल नहीं पा रही थी.अब वे उसके निकट ही बैठे थे.वह भी उनके पास से हट नहीं पा रही थी.उन्होंने जब उसके हाथों को अपने हाथों में लिया तो वह बोली,”शशिकांत को टिकट मिल जाएगा न?

‘”निस्संदेह”

फिर उन्होंने शशिकांत को इशारा किया कि वह उसको विस्तर पर ले जाए..उसको तो पता भी नहीं चला कि कब वे शशिकांत की जगह उसके विस्तर में घुस गए.जब तक उसका नशा उतरता और वह कुछ समझ पाती,तब तक तो वह उनके हवस का शिकार हो चुकी थी

कौशल्या तो समझ ही नहीं सकी कि यह क्या हो गया और अब वह क्या करे? एक तो यह कि उस नेता जी का इतना नाम और दबदबा था कि उनके विरुद्ध एक शब्द भी बोलना कठिन था..दूसरे घटना चूंकि उनके घर के अन्दर रात्रि बेला में घटी थी, अतः कोई भी इस बात पर विश्वास नहीं करता. सब यही समझते कि उनको बदनाम करने के लिए यह साजिश है. ऐसे भी उसे लगा कि वह अकेले कर भी क्या सकती है? शशिकांत तो उसका साथ देगा नहीं. उसे तो यह भी लगा कि यह शशिकांत की सोची समझी चाल थी. अब उसे याद आया कि शशिकांत ने कहा था कि बिना उसके मदद के वह शायद ही टिकट पा सके. उसने शशिकांत को हर तरह की सहायता का बचन भी दिया था, तो क्या यही मदद वह चाहता था? कौशल्या को पहली बार लगा कि उसने गलत आदमी से प्यार किया. पहली बार उसे लगा कि शाशिकांत उससे प्यार नहीं करता. उसे लगा कि शशिकांत जैसा तिकडमी और महत्वाकांक्षी व्यक्ति शायद प्यार कर ही नहीं सकता . उसे लगा कि शशिकांत ने उसे अपनी सफलता के लिए सीढी की तरह इस्तेमाल करने के लिए ही उससे प्रेम और शादी का ढोंग रचाया. पर आज वह इतना विवश थी कि अपने आपको को कोसने और आंसू बहाने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर सकती थी. शशिकांत को वह अब तक अच्छी तरह जान चुकी थी. उसे मालूम था कि उसके विरुद्ध वह कुछ भी करना उसके लिए संभव नहीं था .शशिकांत के साथ वह घर आ गयी. .शशिकांत ने उससे रात की घटना के लिए माफी भी मांगी. फिर बताया कि चाह कर भी वह कुछ नहीं कर सकता,पर कौशल्या को तो यह दिखावा ही लगा.

अब तो सब कुछ उसकी समझ में आ चुका था. वह समझ गयी थी कि यह राजनीति एक ऐसा खेल है, जिसमे सड़ांध के सिवा कुछ नहीं है.शशिकांत ने उसके बाद कुछ अन्य लोगों की सच्ची झूठी कहानियाँ भी उसे सुनाई थी और कहा था कि अच्छा है तुम उस घटना को भुला दो..पर उस घटना को भूलना अब संभव नहीं था.शशिकांत को चुनाव लड़ने के लिए टिकट तो मिल गया ,पर उसके पहले कौशल्या को एक बार फिर उस नर्क के मार्ग से गुजरना पड़ा. इस बार पूरे होशो हवास में उसे नेता जी की सेवा में उपस्थित होना पड़ा .शशिकांत ने अपने दांवपेंच से उसे ऐसा करने के लिए विवश कर दिया था .नेता जी ने इस बार उसको बहुत प्यार किया .उसे बहुत देर तक अपने सीने से लगाये रहे ,वह भी उनके आलिंगन में बंधक रदर्शाती रही कि वह बहुत प्रसन्न है.वह रात्रि भी उनके बाँहों में कटी.

यथा समय चुनाव संपन्न हुआ और शशिकांत विजयी हुआ.

अब वह विधायक की पत्नी थी, पर अपनी ही निगाहों में गिर चुकी थी .उसे तो यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि शशिकांत के आगे बढ़ने की जो कीमत उसने चुकाई थी ,वह उचित था या नहीं.

पता नहीं शशिकांत के मन में क्या था? वह जब विधायक बन कर राजधानी गया तो उसे उसी शहर में छोड़ गया. उसने बहाना ये बनाया कि वह अभी नया नया है. उसे रहने का उचित स्थान नहीं मिला है. उसे शशिकांत की बातों पर विश्वास करने के अलावे अन्य उपाय क्या था? शशिकांत के विधायक बनते ही उसे भी तरक्की मिल गयी थी और वह नर्स बन गयी थी. अस्पतlल में उसका सम्मान भी बढ़ गया था. उसने शशिकांत से नौकरी छोड़ने की बात भी कही थी,पर उसने मना कर दिया था. कहा था कि जब तक वहां रहने का उचित प्रबंध नहीं हो जाता है तब तक यहीं रहो. उसकी नौकरी का भी हवाला उसने दिया था .कहा था कि अभी नौकरी छोड़ने का समय नहीं आया है.

वह सुन्दर तो थी हीं .अस्पताल में उसके चाहने वालों की भी कमी नहीं थी ,पर अधिकतर लोगों को मालूम था कि वह विवाहित है और एक विधायक की पत्नी है. ऐसे उसे देखने से कोई नहीं कह सकता था कि वह विवाहित है. शशिकांत ने तो उसे सिन्दूर भी लगाने से मना कर रखा था, पर वह सुहाग का यह चिह्न धारण अवश्य करती थी ,पर बड़े ही सुक्ष्म रूप में. .बहुत ध्यान देने पर भी शायद ही किसी को वह दृष्टिगोचर होता हो.

अस्पताल में एक डाक्टर अभी नया नया आया था. उम्र भी उसकी अधिक नहीं थी. वह उसमें दिलचस्पी लेने लगा.

कौशल्या ने कहा कि वह झूठ नहीं बोलेगी. वह भी उस डाक्टर के आकर्षण में बंधने लगी थी. वह तो ऐसे भी शशिकांत के चंगुल से निकलने का मार्ग ढूंढ रही थी. उसे लगा कि डाक्टर से सम्बन्ध होने से शायद उसे शशिकांत से छुटकारा मिल जाये. शशिकांत के लिए उसका प्यार तो उसी दिन समाप्त हो गया था, जिस दिन वह पहली बार नेता जी के हवस का शिकार बनी थी. उस समय से अब तक वह उस सम्बन्ध को किसी तरह ढो रही थी. जिस नर्क का कष्ट वह भुगत रही थी ,उससे छुटकारे के लिए हमेशा तडपती रहती थी .डाक्टर के रूप में उसे अपनी डूबती नैया का कर्णधार दिखने लगा था. पता नहीं उस डाक्टर ने उसमे क्या देखा कि वह अपने नर्स के प्यार में दिनोंदिन आगे बढ़ने लगा. ऐसे कौशल्या को अपनी किस्मत पर भरोसा नहीं रह गया था, फिर भी उसने डाक्टर के बढ़ते क़दमों को रोका नहीं. डाक्टर और नर्स का सम्बन्ध ऐसा होता है कि डाक्टर के प्यार के पथ पर बढ़ते कदम पर किसी की निगाह नहीं गयी. बहुत दिनों बाद अब वह फिर से सपने देखने लगी थी. ऐसे भी शाशिकांत से उसकी शादी मात्र औपचारिकता थी. एक दो बार वह इसकी और इशारा भी कर चुका था. उस समय तो वह विवश थी, अतः चुप रह गयी थी, पर अब उसे लगने लगा था कि उसी बात को वह उसके विरुद्ध हथियार के रूप में इस्तेमाल करेगी.

सच कहती हूँ, बड़े अच्छे दिन थे वे भी. जिस कौशल्या के दिल में जीने की कोई तमन्ना नहीं रह गयी थी, वहीं अब उसे जिन्दगी का नया डगर दिखलाई पड़ने लगा.

कौशल्या बता रही थी कि उसकी वह खुशी भी क्षणिक सिद्ध हुई. डाक्टर ने उससे कभी पूछा नहीं था कि वह कुंवारी है या शादीशुदा. उसने भी अपनी तरफ से बताने की कोई आवश्यकता नहीं महसूस की थी. शशिकांत से सम्बन्ध भी ऐसा हो गया था कि बताने लायक कुछ था भी नहीं. वह तो अभी भी अपनी तरफ से वह सम्बन्ध ढोने को विवश थी, पर शशिकांत के निगाह में शायद ही इसका कोई महत्त्व हो. खुशी के इस दौर में वह भूल गयी थी कि कुछ लोगों को अवश्य मालूम होगा कि वह शशिकांत से सम्बन्ध रखती है. वह उनकी व्याहता है या नहीं यह तो प्रमाणिक रूप से शायद ही किसी को ज्ञात हो. डाक्टर ने उस के समक्ष जब शादी का प्रस्ताव रखा तो वह मन ही मन खुशी से झूम उठी. उसे लगने लगा कि शायद उसके मुक्ति का समय आने ही वाला है. फिर भी वह चुप रही. डाक्टर ने जब बहुत जोर दिया तो उसने सोचने के लिए एक दो दिनों का समय माँगा. डाक्टर को इसमे कोई हानि नहीं नजर आयी. वह मुस्कुरा कर बोला “ सिर्फ दो दिनों का समय दे सकता हूँ.मैं उससे अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकता.”

कौशल्या को कहाँ मालूम था कि वे दो दिन उसकी खुशियों पर भारी पड़ जायेंगे और सब कुछ बदल जाएगा .

डाक्टर के कुछ सहयोगी उनके बढ़ते संपर्क को बड़ी पैनी नजर से देख रहे थे. वे समझ नहीं पार हे थे कि डाक्टर आखिर चाहता क्याहै? उन लोगों को मालूम था कि वह कौन है. उन्ही सहयोगियों में से एक से डाक्टर ने उसके साथ शादी की चर्चा कर दी. उसका साथी बोला,”कौशल्या के बारे में तुम क्या जानते हो?”

“कुछ विशेष नहीं. हाँ मैं यह अवश्य जानता हूँ कि मैं उसे प्यार करता हूँ और उससे शादी करना चाह्ता हूँ.” यह डाक्टर का उत्तर था.

उसका मित्र बोला, “शशिकांत को तो जानते ही हो ,अरे वही नेता जी. आजकल तो बहुत चर्चा में हैं. कौशल्या का उनसे सम्बन्ध है. इस अस्पताल में यह बात सबको मालूम है. कुछ तो यह भी कहते हैं कि कौशल्या उनकी पत्नी है. हमलोगों को इस के शशिकांत की पत्नी होने पर तो विश्वास नहीं होता, क्योंकि पत्नी होती तो यहाँ क्यों रहती ?पत्नी न सही, प्रेमिका तो हो ही सकती है.”

डाक्टर को तो अपनी कानों पर विश्वास नहीं हुआ. फिर उसने सोचा कौशल्या से ही क्यों न पूछ लिया जाए.वह क्या बताती? उसने अपनी स्थितिं सत्य सत्य बता दी. कहा भी कि अब तोशशिकांत से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है.शशिकांत तब तक प्रसिद्ध हो चुका था. तिकडमी तो वह था ही.उसने पार्टी में अपना एक ख़ास स्थान बना लिया था. डाक्टर में इतना साहस भी नहीं था कि अब वह कौशल्या की ओर आँख उठा कर भी देखता. कुछ ही दिनों में डाक्टर ने उस अस्पताल की नौकरी के साथ साथ वह शहर भी छोड़ दिया.

मैंने पूछ ही दिया, “तुम शशिकांत के पास क्यों नहीं चली गयी? उस समय तो वे मंत्री बन गए थे.”

वह बोली, “जिस समय की यह बात है, उस समय वे मंत्री तो नहीं बने थे, पर बहुत सी संस्थाओं के अध्यक्ष आदि अवश्य बन गए थे..”

मुझे याद आया कि उन्हीं दिनों शशिकांत किसी कालेज के कार्यकारिणी के भी अध्यक्ष थे. उन दिनों अफवाह थी कि उस कालेज में प्राध्यापक बननेके लिए उनकी मुट्ठी गर्म करना आवश्यक है. महिलाओं को तो उनके साथ एक रात बिताने पर ही वहाँ नियुक्ति हो सकती थी.यह बात कहाँ तक सत्य थी, यह नहीं पता?

कौशल्या ने कहानी आगे बढाई, वह बोली, “मैं उनसे मिलने गयी थी. वे अपना ही रोना रोने लगे और मुझे वहीं रहने की सलाह दी. फिर बोले कि व्यस्तता के कारण उसके पास नहीं आ पा रहे थे, पर अब अवश्य आयेंगे .एक दो बार आये भी ,पर रात बिता कर चले गये. लगता था कि बहुत छुप कर आते थे,मेरे पास.”

उसने बताया, “मैं तिलतिल मरती रही. किसी से अपना दुखड़ा भी नहीं कह सकती थी. बाद में तो वे मंत्री बन गए,पर तब तक मैं थक चुकी थी. अब मैं वह पुष्प भी नहीं रह गयी थी, जिस पर वे मंडराते थे. उन्होंने एक तरह से नाता तोड़ ही लिया था.ऐसे उनके मंत्री बनने के बाद एक बार साहस करके मिलने के लिए गयी थी,पर भेंट नहीं हुई. धमकी अवश्य मिली कि जान की खैर चाहती हो तो चुप्पी साध लो. मैंने चुप्पी साधने में कुशल समझी. पेट भरने के लिए नौकरी तो थी ही, पर भविष्य अन्धकारमय लगता था. एक बार तो मैंने एक पत्रकार को भी अपनी दास्ताँ सुनाई ,पर उसने उनके विरुद्ध कुछ भी लिखने से इनकार कर दिया .उसने भी यही सलाह दी कि जान प्यारी है तो अपना मुंह बंद ही रखो. अब तो जिन्दगी से तंग आ गयी हूँ. न्याय की उम्मीद तो है नहीं. किसके पास जाऊं? कौन न्याय दिलाएगा मुझे?”

मैं यह हृदय विदारक कहानी सुनकर बहुत बेचैन हो गया. यकायक जोर से बोल पड़ा, “मैं न्याय दिलाऊंगा तुम्हें. तुमको अवश्य इन्साफ मिलेगा.”

मैं जोर जोर से बड़बड़ाने लगा था. फिर मित्र की आवाज सुनाई पडी.वह मुझे झकझोर रहा था. “ये किसके लिए इन्साफ की बात कर रहे हो? सपना देख रहे थे क्या?”

मैं हडबड़ा कर उठ बैठा.आँखें फाड़ फाड़ कर इधर उधर देखने लगा, पर वहाँ तो मेरे मित्र के अतिरिक्त कोई नहीं था. जगने में देर हो गयी थी. सुबह की धूप चारो ओर फ़ैली हुई थी. तो क्या मैं अभी तक स्वप्न देख रहा था? तो क्या कौशल्या सपने में मेरे पास आयी थी? मुझे गंभीर देखकर मित्र ने ज्यादा कुछ पूछना आवश्यक नहीं समझा.बोला,” लगताहै स्वप्न देख रहे थे. मैं तुम्हे बहुत देर से देख रहा था. मुझे लगा था कि अब तक तो जग गए होगे, क्योंकि तुम्हे जाना भी है. पर देखा कि तुम नींद में हो तो जगाना उचित नहीं समझा, क्योंकि तुम बहुत देर से सोये भी थे. पर जब तुम जोर जोर से बोलने लगे मैंने जगाना ही उचित समझा. ऐसे भी तुमको जाने के लिए देर हो रही थी. चलो अब जल्दी तैयार हो जाओ. नहीं तो आज रूक ही जाओ.”

रूकना तो संभव नहीं था.अतः मित्र से विदा लेकर मैं वहाँ से निकल पड़ा.

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मैं वहाँ से लौट कर अपने शहर में आ गया. वह स्वप्न मेरे दिलो दिमाग पर बुरी तरह छाया रहा. बाद में मैंने कौशल्या के बारे में पता लगाने का बहुत प्रयत्न किया, पर मुझे निराशा ही हाथ लगी. जिस अस्पताल में वह नौकरी करती थी,उसे कुछ अरसे पहले ही उसने छोड़ दिया था. उसके बाद न जाने वह कहाँ चली गयी थी?लोग तो यह भी न बता सके कि वह जीवित है या मर गयी?

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