कविता : अजीब है ये जिंदगी भी

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अजीब है ये जिंदगी भी 

अजनबी सी ना जाने क्यों लगती है ज़िन्दगी ,

मुझ पर हसती सी क्यों लगती हैं ज़िन्दगी,

रिश्तों की धुप में हमने देखे हैं कितने साये ,

किसी को अपना किसी को पराया समझती हैं ज़िन्दगी,

पल पल में जुडती है इस ज़िन्दगी की सांसें

एक ही पल में मगर बिखरी सी लगती हैं जिंदगी

इन रंगीन ख्वाबों में खोकर कुछ हासिल ना हुआ

फिर भी आँखों में सपने सजाती हैं जिंदगी

शायद किसी मोड़ पर मिल जाय रूठा हुआ साथी

इसी आस में आंखे बिछाती हैं जिंदगी …….

 

– मनीष जैसल

जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग

बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर विश्वविद्यालय

लखनऊ 

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