अन्जान

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anjanएक डर अन्जान सा, हर शख़्स के मन में बसा है |

चीख़ने पर भी, सज़ा-ए-मौत से बढ कर सज़ा है |

चुप रहो, सुनते रहो, चुपचाप सब सहते  रहो,

देखना और बोलना, एक हुक्म से कुछ दिन मना है |

हर ‘दुखद घटना’ पे दुख, होता है इस नेतृत्व को,

भूल जाना दो दिनों में, इन की पहचानी अदा है |

इन उजालों का करें क्या,   मांगते  सत्ता का घर,

भाग्य में आवाम के बस, घोर-अंधियारा बदा है |

मुस्कुराने तक का तुम को हक नही,मातम करो,

आज  ही सरकार के, दरबान का ‘कुत्ता’ मरा है |

बे-रोक सड़कों पर चले,’सरकार’ लेकर क़ाफ़िला,

इसलिए सड़कों पे कलसे,आपका चलना मना है |

जन-हितों पर फैसले, संसद में अब  होते नहीं,

आमजन के ‘पर’ कतरने,सत्र अविरल चलरहा है |

खून कब, अब तो रगों में,दौड़ता है अश्रु जल,-

‘राज’ जिसका खौलना, हर दौर में रहता मना है

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