भाषा की टूटती मर्यादाएं-अरविंद जयतिलक

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नैतिकता के उच्च आदर्शों का परखा जाना कभी खत्म नहीं होता। लेकिन बात जब सियासतदानों पर आ टिकती है तो सब कुछ बेमानी हो जाता है। उनके लिए न तो भाषा की शुचिता का महत्व रह जाता है और न ही राजनीतिक मर्यादा का मतलब। वे संविधान, संसद और जनमत सबसे उपर हो जाते हैं। जो बोलते हैं उसी को राजनीति का धर्म और मर्म समझते हैं। उनके कृत्यों से दूसरे लहूलुहान होते रहे क्या फर्क पड़ता है। सच तो यह है कि तमाशा खड़ाकर खुद तमाशा बन जाना अब सियासतदानों की फितरत बन चुकी है।

कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता और राज्यसभा सांसद मणिशंकर अय्यर जिनकी गणना देश के श्रेष्‍ठ सांसदों में होती है, के द्वारा सांसदों की तुलना जानवर से किया जाना भाषा की मर्यादा को तार-तार करने वाला है। जानना जरुरी है कि मणिशंकर अय्यर श्रेष्‍ठ सांसद होने का खिताब भी पा चुके है। ऐसे में उनसे राजनीतिक मर्यादा और भाषा की शालीनता की उम्मीद लाजिमी है। लेकिन अक्सर वे मर्यादा की हद तोड़ते देखे-सुने जाते हैं। अभी चंद रोज पहले गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार में यह कहते सुने गए कि गुजरात के लोग दीपावली पर रावण को हराए। उनका इशारा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ था। उन्होंने यह भी कहा कि मोदी लौहपुरुष नहीं लहूपुरुष हैं। विचार करें तो मणिशंकर अय्यर ‘कांग्रेसी बदजुबानी पाठशाला’ के इकलौते विद्यार्थी नहीं हैं। उन जैसे बहुतेरे और भी हैं जो विष उगलने में ही महानता समझते हैं। ऐसे ही एक और महारथी हैं कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह जो अपनी बदजुबानी के लिए कुख्यात हो चुके हैं। नरेंद्र मोदी के 3 डी चुनाव प्रचार की तीखी आलोचना करते हुए उनकी तुलना रावण से कर डाली है। अभी एक माह पहले ही उन्होंने इंडिया अगेंस्ट करप्‍शन के नेता अरविंद केजरीवाल की तुलना बॉलीवुड की आइटम गर्ल राखी सावंत से की। कहा था कि केजरीवाल राखी सावंत की तरह हैं। दोनों एक्सपोज करना चाहते हैं, जबकि दोनों के पास साबित करने के लिए कुछ भी नहीं है। देखा जाए तो दिग्विजय सिंह और मणिषंकर की मसखरी सिर्फ भारतीय राजनीति की विद्रुपता भर नहीं है बल्कि इस बात का संकेत भी है कि देश के सियासतदान सत्तालोभ में इस हद तक अवसाद के शिकार हो चुके हैं कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि क्या बोल रहे हैं। उचित ही है कि संसद सदस्यों ने जमकर मणिशंकर अय्यर की आलोचना की। लेकिन इस निष्‍कर्ष पर पहुंचना कि वे दुबारा बदजुबानी नहीं करेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। पहले भी अपनी ओछी बयानबाजी से देश को शर्मिंदा कर चुके हैं।

दुर्भाग्य यह है कि भारतीय राजनीति में बदजुबानी से जगहंसाई कराने वाले सियासी नुमाइंदों की संख्या कम होने के बजाए बढ़ती जा रही है। गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष अर्जून मोडवाडिया ने मोदी की तुलना बंदर से करते हुए मोदीराज को अंधेरगर्दी और चैपटराज कहा है। कुछ इसी तरह की जुबानी बर्बरता कांग्रेस की नेत्री रेणुका चौधरी द्वारा भी दिखाया गया। दो कदम आगे बढ़ कांग्रेसी सांसद हुसैन दलवी ने तो यहां तक कह डाला कि मोदी की तुलना सरदार पटेल से नहीं की जा सकती क्योंकि उनके आगे वे चूहा हैं। मोदी को लेकर कांग्रेस की बदजुबानी और नफरत का भाव कोई चैंकाने वाला नहीं है। स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी को मौत का सौदागर कह चुकी हैं। उनके बनाए ट्रेंड पर ही उनके पार्टी के नेता आगे बढ़ रहे हैं। पिछले दिनों अन्ना आंदोलन के दौरान कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी समाजसेवी अन्ना को भ्रष्‍टाचारी कहते सुने गए। दिग्विजय सिंह आज भी उन्हें आरएसएस का एजेंट कहने से अघाते नहीं हैं। केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान यह कहते सुने गए थे कि अगर टीम अन्ना यूपी में आती है तो उसे देख लेंगे। गत दिनों पहले आज के विदेश मंत्री और तब के कानूनमंत्री सलमान खुर्षीद टीम केजरीवाल को धमकाते सुने गए थे कि अगर वे फर्रुखाबाद आए तो लौटकर नहीं जा पाएंगे। आगे उन्होंने यह भी जोड़ा था कि बहुत दिनों से मैं कलम से काम कर रहा था लेकिन अब वक्त आ गया है कि कलम के साथ-साथ लहू से भी काम करुं। सलमान खुर्शीद यूपी विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग की मनाही के बाद भी मुस्लिम आरक्षण पर जुबान चलाना बंद नहीं किए। समझ से परे है कि 127 साल पुरानी कांग्रेस जिसका अपना शानदार इतिहास है उसके नेता अधम बयानबाजी क्यों कर रहे हैं? सवाल यह भी कि कांग्रेस का शीर्ष हाईकमान जो नैतिकता और राजनीतिक शुचिता का चादर ओढ़ रखा है वह क्यों नहीं अपने बड़बोले और कुतर्कबाज नेताओं की जुबान पर लगाम लगा रहा है? क्या यह माना जाए कि वह कारण और परिणामों को समझे बिना अपने जुबानी भस्मासुरों को कुछ भी बोलने और कहने की आजादी दे रखा है? शायद ऐसा ही लगता है। देर-सबेर कांग्रेस को भाषा की मर्यादा तो समझनी ही होगी। मजे की बात यह कि कांग्रेसी बयाबनवीर न केवल नैतिकता को किनारे रख अमर्यादित आचरण का प्रदर्शन कर रहे हैं बल्कि दस जनपथ के प्रति चाटुकारिता दिखाने की सीमाएं भी तोड़ डाले हैं। चंद रोज पहले कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता आस्कर फर्नांडिज राहुल गांधी की तुलना महात्मा गांधी से करते देखे गए। यह मानसिक दिवालियापन की हद है। यहां गौर करने वानर बात यह है कि भाषा की मर्यादा के उल्‍लंघन का दोषी सिर्फ कांग्रेसी बयानवीर ही नहीं है बल्कि मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के नेता भी कम नहीं है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जो अपनी राजनीतिक गंभीरता के लिए जाने जाते हैं पिछले दिनों वे हिमाचल प्रदेश में एक चुनावी रैली के दौरान केंद्रीय राज्य मंत्री शशि थरुर का नाम लिए बिना उनकी पत्नी को 50 करोड़ रुपए की गर्लफ्रेंड बता डाला। मोदी की इस जुबानी फिसलन पर उनकी खूब आलोचना हुई। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह अपने उटपटांग बयानों को लेकर आलोचना के पात्र बने। महिला संगठनों ने उन्हें आड़े हाथ लिया। उन्होंने रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम पर आयोजित सेमिनार के दौरान कहा था कि अच्छी बाइक, अच्छा सड़क, अच्छा मोबाइल और अच्छी गर्लफ्रेंड दुर्घटना का प्रमुख कारण है।

दूसरी ओर भाजपा के राज्यसभा सांसद और देश के जाने-माने वकील रामजेठमलानी राम को बुरा पति कह आस्थावान लोगों के मर्म पर चोट कर आलोचना के पात्र बन चुके हैं। भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी स्वामी विवकानंद और मोस्ट वांटेड आतंकी दाउद इब्राहीम का आइक्यू एक जैसा बता अपनी खूब किरकिरी कराई थी। पार्टी के लिए उनका बचाव करना मुश्किल हो गया। भाजपा के तेज तर्रार नेता और पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिंहा के एक बयान पर भी खूब बवाला मचा। उनके द्वारा राहुल गांधी को घोड़ा कहा गया। कांग्रेस भड़क गयी। यशवंत सिंहा ने कहा था कि राहुल गांधी उस घोड़े की तरह हैं जो शादी करने जा रहे दुल्हे को अपनी पीठ पर बैठाए हुए हैं। पर वह एक ही जगह ठिठक गया है, आगे बढ़ ही नहीं रहा है। यशवंत सिंहा का बयान राहुल के कमजोर आत्मविश्‍वास पर व्यंग्‍यात्मक टिप्पणी के रुप में लिया गया। लेकिन यशवंत सिंहा जैसे दिग्गज नेता से भाषा की शालीनता की उम्मीद की जाती है न कि ओछापन दिखाने की। सियासत के मैदान में चाहे कद्दावार नेता हो या छुटभैये कोई भी सोच समझकर अब बोलने को तैयार नहीं है। क्या कांग्रेस, क्या भाजपा सभी एक ही जुबान बोल रहे हैं। सपा, बसपा, शिवसेना, मनसे, राजद, जेडीयू और द्रमुक जैसे राजनीतिक दलों के नेता भी कई बार देश को शर्मसार कर चुके हैं। राजनीति में नैतिकता का शंखनाद करने वाली टीम केजरीवाल भी अपनी बदजुबानी के लिए कम कुख्यात नहीं है। स्वयं केजरीवाल कई बार उद्घोष कर चुके हैं कि संसद के अंदर हत्यारे, लूटेरे और बलात्कारी बैठे हैं। इस तरह की कुप्रवृत्ति भारतीय लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। उचित तो यह होगा कि देश के सियासतदान अपने मजबूत आचरण से आदर्श मानक गढ़े ताकि लोकतंत्र मजबूत हो।

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