राजनीतिक दलों में मचा घमासान

political-partiesजनता करेगी जारी फरमान

अमल कुमार श्रीवास्तव…

भारतीय राजनीति के इतिहास में वास्तविक सूर्योदय 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में हुआ था, जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ के नाम से एक राजनैतिक दल का गठन किया था। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह लैंप था और 1952 के संसदीय चुनाव में इस पार्टी ने दो सीटों पर जीत दर्ज कराकर भारत की राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराया था। लेकिन किसे पता था कि इतने मशक्कत के बाद खड़ा किया गया जनसंघ, आपातकाल में हुए हादसे का शिकार हो जायेगा और जनसंघ सहित भारत के प्रमुख राजनैतिक दलों का विलय होकर जनता पार्टी बनेगा और 1980 में विचारधारा में मतभेद होने के कारण इसका बिखराव होकर भारतीय जनता पार्टी के रूप में एक नये राजनैतिक संगठन का निर्माण होगा, जो भविष्य में एक राष्ट्रीय पार्टी व वर्तमान में शसक्त विपक्ष की भूमिका निभायेगा। 1980 में हुए भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद इसका नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी जी के हाथो में सौंपा गया। अटल जी ने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचने तक उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया। अटल जी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे जिन्होने गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के 5 साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मन्त्री थे। कभी किसी दल ने आनाकानी नहीं की। इससे उनकी नेतृत्व क्षमता का पता चलता है, लेकिन आज उसी नेतृत्व क्षमता की कमी साफतौर पर दिखाई देने लगी है। वर्तमान समय में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में हुए विलम्ब के कारणों पर प्रकाश डाले तो यह साफतौर पर दिखाई देता है कि पार्टी के भीतर  उनके नाम को लेकर कुछ लोगों में असंतोष व्याप्त है। किसी ने कहा है कि किसी देश के विकास के लिए यह बहुत जरूरी है कि सत्ता पर काबिज राजनैतिक दल की अपेक्षा विपक्ष की सशक्त भूमिका होना बहुत जरूरी है और भाजपा विपक्ष में होने के बावजूद अपने आपसी मतभेदों के कारण कमजोर दिखाई प्रतीत हो रही है। हालांकि इस समय भारतीय राजनीति में जहां एक ओर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी आमजन में चर्चा का विषय बने हुए है, वहीं दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी ने भी लोगों के, खसतौर पर युवाओं के दिल में अपने लिए जगह बनाना शुरू कर दिया है। आगामी लोकसभा चुनाव में पूरा देश इन दो शख्सियत के चुनाव को लेकर चर्चाएं कर रहा है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स से लेकर सभी प्रकार की मीडिया इनके छोटे से छोटे क्रियाकलापों पर नजरे टिकाये बैठा है। हर कोई एकदूसरे की कमियां गिनाने का अवसर खोज रहा है, जबकि इस क्रम में हाल फिलहाल कांग्रेस पहले पायदान पर है क्योकि हाल ही में हुए इतने घोटाले और इनके विरूद्ध हुए जनआंदोलनों को जनता नहीं भूला पा रही है। जिसका खामियाजा आगामी लोकसभा चुनाव में केन्द्र सरकार को सत्ता चले जाने पर हर्जाने के रूप में भुगतना पड़ सकता है। हालांकि वर्तमान भाजपा में चल रहे अंत:कलह को देखते हुए भी यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि वह सरलता से सत्ता पर काबिज हो सकेगी। अब तो फैसला देश की जनता के हाथों में है कि वह किसके साथ जायेगी और किसका सितारा बुलन्द होगा।

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