भारत की भाषाओं के अध्ययन की रूपरेखा एवं भाषाओं के विवरण के आधार

 languageप्रोफेसर महावीर सरन जैन

 

भारत में भाषाओं, प्रजातियों, धर्मों, सांस्कृतिक परम्पराओं एवं भौगोलिक स्थितियों का असाधारण एवं अद्वितीय वैविध्य विद्यमान है। विश्व के इस सातवें विशालतम देश को पर्वत तथा समुद्र शेष एशिया से अलग करते हैं जिससे इसकी अपनी अलग पहचान है, अविरल एवं समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है, राष्ट्र की अखंडित मानसिकता है। अनेकता में एकता तथा एकता में अनेकता की विशिष्टता के कारण भारत को विश्व में अद्वितीय सांस्कृतिक लोक माना जाता है।

भाषिक दृष्टि से भारत बहुभाषी देश है। यहाँ मातृभाषाओं की संख्या 1500 से अधिक है (दे0 जनगणना 1991, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इण्डिया) । इस अध्याय में इसी जनगणना के आधार पर भाषाओं के बोलने वालों के आँकड़े प्रस्तुत किए जायेंगे। इस जनगणना के अनुसार दस हजार से अधिक लोगो द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं की संख्या 114 है। (जम्मू और कश्मीर की जनगणना न हो पाने के कारण इस रिपोर्ट में लद्दाखी का नाम नहीं है। इसी प्रकार इस जनगणना में मैथिली को हिन्दी के अन्तर्गत स्थान मिला है। अब मैथिली भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची की एक परिगणित भाषा है।) लद्दाखी एवं मैथिली को सम्मिलित करने पर दस हजार से अधिक लोगो द्वारा  बोली जाने वाली भाषाओं की संख्या 116 हो जाती है।

    यूरोप एवं एशिया महाद्वीप के भाषा-परिवारों में से दक्षिण एशियामें मुख्यतः चार भाषा-परिवारों की भाषायें बोली जाती हैं। भारत में भी सामी भाषा परिवार की अरबीके अपवाद के अलावा इन्हीं चार भाषा परिवारों की भाषायें बोली जाती हैं। ये चार भाषा परिवार हैं:

  भारोपीय परिवार: (भारत में भारत-ईरानी उपपरिवार की आर्य भाषाएँ तथा दरद शाखा की कश्मीरी बोली जाती हैं। कश्मीरी को अब भाषा वैज्ञानिक भारतीय आर्य भाषाओं के अन्तर्गत ही मानते हैं। भारत की जनसंख्या के 75. 28 प्रतिशत व्यक्ति इस परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता हैं। जर्मेनिकउपपरिवार की अंग्रेजी के मातृभाषी भी भारत में निवास करते हैं जिनकी संख्या 178,598 है।)

     द्रविड़ परिवार: (भारत की जनसंख्या के 22. 53 प्रतिशत व्यक्ति इस परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता हैं)

     आग्नेय परिवार (आस्ट्रिक अथवा आस्ट्रो-एशियाटिक): (इस परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता 1. 13 प्रतिशत है।

     सिनो-तिब्बती परिवार: (इस परिवार की स्यामी/थाई/ताई उपपरिवार की अरुणाचल प्रदेश में बोली जाने वाली भाषा खम्प्टी को छोड़कर भारत में तिब्बत-बर्मी उपपरिवार की भाषाएँ बोली जाती हैं। इस परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता 0. 97 प्रतिशत हैं अर्थात भारत की जनसंख्या के एक प्रतिशत से भी कम व्यक्ति इस परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता हैं)

जिन 116 भाषाओं की ओर पूर्व में संकेत किया गया है, उनमें से आठ  भाषाओं (08) के बोलने वाले भारत के विभिन्न राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में निवास करते हैं तथा जिनका भारत में अपना भाषा-क्षेत्र नहीं है।

1.संस्कृतः संस्कृत प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल की भाषा है। विभिन्न राज्यों के कुछ व्यक्ति एवं परिवार अभी भी संस्कृत का व्यवहार मातृभाषा के रूप में करते हैं।

2. अरबी एवं 3. अंग्रेजीः मुगलों के शासनकाल के कारण अरबी तथा अंग्रेजों के शासन काल के कारण अंग्रेजी के बोलने वाले भारत के विभिन्न भागों में निवास करते हैं। भारत में सामी/सेमेटिक परिवार की अरबी के बोलने वालों की भारत कुल जनसंख्या 21,975 है। भारत के सात राज्यों में इस भाषा के बोलने वालों की संख्या एक हजार से अधिक हैः  (1)बिहार (2) कर्नाटक (3) मध्यप्रदेश (4) महाराष्ट्र (5) तमिलनाडु (6) उत्तरप्रदेश (7) पश्चिम बंगाल । भारत-यूरोपीय परिवार की जर्मेनिक उपपरिवार की अंग्रेजी को मातृ-भाषा के रूप में बोलने वालों की भारत में कुल जनसंख्या 178,598 है। तमिलनाडु, कर्नाटक एवं पश्चिम बंगाल में इसके बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक है। यह संख्या तमिलनाडु में 22,724, कर्नाटक में 15,675 एवं पश्चिम बंगाल में 15,394 है।

4. सिन्धी एवं 5.लहँदाः इनके भाषा-क्षेत्र पाकिस्तान में हैं। सन् 1947 के विभाजन के बाद पाकिस्तान से आकर इन भाषाओं के बोलने वाले भारत के विभिन्न भागों में बस गए। 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में लहँदा बोलने वालों की संख्या 27,386 है। इस भाषा के बोलने वाले आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि में रहते हैं तथा अपनी पहचान मुल्तानी-भाषी के रूप में अधिक करते हैं। सिन्धी संविधान की परिगणित भाषाओं के अंतर्गत आती है। इस भाषा के बोलने वालों की संख्या 2,122,848 है। इस भाषा के बोलने वाले गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान राज्यों में अपेक्षाकृत अधिक संख्या में निवास करते हैं। ये भारत के 31 राज्यों / केन्द्रशासित प्रदेशों में निवास करते हैं। लहँदा एवं सिन्धी दोनो भाषाओं के बोलने वालों में द्विभाषिता / त्रिभाषिता / बहुभाषिता का प्रसार हो रहा है। जो जहाँ बसा है, वहाँ की भाषा से इनके भाषा रूप में परिवर्तन हो रहा है।

6. नेपालीः इसका भी भारत में कोई भाषाक्षेत्र नहीं है। यह भी परिगणित भाषाओं के अंतर्गत समाहित है। नेपाली भाषी भी भारत के अनेक राज्यों में बसे हुए हैं।। भारत में इनके बोलने वालों की संख्या 2,076,645 है। पश्चिम बंगाल, असम एवं सिक्किम में इनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। पश्चिम बंगाल में 860,403, असम में 432,519 तथा सिक्किम में 256,418 नेपाली-भाषी निवास करते हैं। इनके अतिरिक्त पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर एवं मेघालय राज्यों में तथा उत्तर भारत के हिमाचल प्रदेश में इनकी संख्या एक लाख से तो कम है मगर 45 हजार से अधिक है।

7. तिब्बतीः  तिब्बती लोग भारत के 26 राज्यों में रह रहे हैं। इनकी मातृ भाषा तिब्बती है जिनकी संख्या 69,416 है। कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल में इनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक है।

8. उर्दू जम्मू एवं कश्मीर की राजभाषा है तथा आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार कर्नाटक आदि राज्यों की दूसरी प्रमुख भाषा है। भारतीय संविधान में उर्दू को हिन्दी से भिन्न परिगणित भाषा माना गया है।  इसके बोलने वाले भारत के आन्ध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,  पश्चिम बंगाल, दिल्ली तथा तमिलनाडु में निवास करते हैं तथा भारत मे इनकी  संख्या 43,406,932 है।

भाषिक दृष्टि से हिन्दी एवं उर्दू भिन्न भाषाएँ नहीं हैं तथा इस सम्बंध में आगे विचार किया जाएगा।

भाषाओं का विवरणः आधार

  विवरण निम्न आधारों पर प्रस्तुत किया जाएगा –

(1) भाषा किस भाषा परिवार की भाषा है।

(2) भाषा परिगणित है अथवा अपरिगणित :

 भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में परिगणित भाषाओं की संख्या अब 22 है। प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल की संस्कृत के अलावा  निम्नलिखित 21 आधुनिक भारतीय भाषाएँ परिगणित  हैं:-

1.असमिया 2. बंगला 3. बोडो 4. डोगरी 5. गुजराती 6. हिन्दी 7. काश्मीरी 8. कन्नड़ 9.कोंकणी 10. मैथिली 11. मलयालम 12. मणिपुरी 13. मराठी 14. नेपाली 15. ओडि़या 16. पंजाबी 17. तमिल 18. तेलुगु 19. संथाली 20. सिन्धी 21. उर्दू

इन 22 परिगणित भाषाओं में से पन्द्रह भाषाएँ भारतीय आर्य भाषा उप परिवार  की, चार भाषाएँ द्रविड़ परिवार की, एक भाषा (संथाली) आग्नेय परिवार की मुंडा उपपरिवार की तथा दो भाषाएँ (बोडो एवं मणिपुरी)  तिब्बत-बर्मी उप परिवार की हैं। 1991 की जनगणना के प्रकाशन के समय (सन् 1997) में परिगणित भाषाओं की संख्या 18 हो गई थी। 1991 के बाद कोंकणी, मणिपुरी एवं नेपाली परिगणित भाषाओं में जुड़ गई थी। इस जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 838,583,988 थी। कुल जनसंख्या में से 96. 29 प्रतिशत लोग अर्थात् 807,441,612 व्यक्ति उन 18 परिगणित भाषाओं में से किसी एक भाषा को बोलने वाले थे।

(3) भाषा के प्रयोक्ताओं की संख्या

(4) उन राज्यों/ केन्द्र प्रशासित प्रदेशों के नाम जहाँ भाषा सबसे अधिक बोली जाती है।

8 COMMENTS

  1. माताको दूध शिशुलाई शिक्षा मातृभाषामा, प्रभाव पर्छ सृस्‍टिलाई प्रकाशको गतिमा।…. यी माथिका हरफ मेघालय शिलोंगका नेपालीभाषी पुस्तक ब्यबसायी श्री बिष्णु गौतमले २३ मार्च २००५ देखि जोड तोडका साथ प्रचार प्रसार गर्दै आएका छन् । उनले प्रकाशन गरेका पुस्तक, बिजक, लेटर प्याड, पुस्तक सुची जताततै यी हरफ देख्न पाइन्छ । नेपाली, अंग्रेजी, खासी र बंगाली भाषामा लेखिएका यी हरफले मातृभाषाको शक्तिले सृष्टिको रक्षा र यस सुन्दर बहुरंगी विश्व-बाटिकालाइ द्रुत गतिमा सुमुन्नत बनाउन टेवा मिल्ने संदेश दिन्छ ।. जन्मेपछि सम्बाद गर्न सिकेको पहिलो भाषा नै मानिसको मातृभाषा हो । संसारमा ज्ञान, सोच र कल्पनाको बहुरंगी विविधता कायम राख्न पनि मातृभाषालाइ बचाईराख्न र विकास गर्न जरुरि छ । मातृभाषामा दिइने शिक्षाले सम्बन्धित भाषा त्यसको लिपि, जातीय संस्कार र संस्कृतिको विकास तथा समाजमा उत्प्रेरणा र चेतनाको अभिवृद्धि हुन्छ । यदि कुनै भाषा लोप भएर गयो भने त्यस जतिको संस्कृति पनि लोप भएर जान्छ । संस्कृतिक सम्वृद्धिमा सबैभन्दा ठूलो योगदान भाषाको नै हुन्छ । मातृभाषामा दिइने अभिव्यक्ति सबैभन्दा परिपूर्ण र सहज हुन्छ । यदि मातृभाषा सम्पन्न भयनन भने संसारमा धेरै कारोबार हुने सम्पर्क भाषाको अवस्था पनि खोक्रो हुन जानेछ । ससाना हजारौ मातृभाषाका कारणले नै संसारका सम्पर्क भाषा सम्पन्न र हराभरा भएका हुन् । यदि कारोबारी भाषामा लिप्त भएर मातृभाषाको लोप भयो भने ज्ञान बिज्ञानको संसार उराठिलो मरुभूमि जस्तो बन्ने छ । त्यसैले शिक्षा मातृभाषामै हुनु पर्छ । मातृभाषा मानिसको मौलिक ज्ञान, शिप सृजनाको खजाना हो । यस्तो महत्वपूर्ण खजानाको रक्षामा ध्यान नदिएर क्षणिक लाभको निम्ति कारोबारमा चलेका भाषामा मात्र लिप्त हुनु समाजको भविस्य माथि गरेको बेइमानी र बाल अधिकारको हनन हो ।. प्रसिद्ध साहित्यकार रवीन्द्रनाथ टैगोरले भनेका छन्, ‘मातृभाषामा शिक्षा पाउनु मानिसको जन्मसिद्ध अधिकार हो । हामी जसरी आमाको कोखमा जन्मेका हौं त्यसैगरी मातृभाषा पनि हाम्रो कोख हो । यी दुवै आमा हाम्रालागि सधैं सजीव र अपरिहार्य छन् ।’ उनले मातृभाषाको महत्त्वलाई बुझे र बुझाउने कोसिस गरे । प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ नेलसन मण्डेलाले भनेका छन्- इफ यू स्पिक टु अ म्यान इन अ ल्याङ्वेज ही अन्डरस्ट्यान्डस, इट गोज् टु हिज माइन्ड बट इफ यू स्पिक इन हिज ल्याङ्वेज इट गोज टु हिज हर्ट । यदि कसैसँग उसले बुझ्ने भाषामा कुरा गर्नुभयो भने त्यो कुरा उसको दिमागमा मात्र पुग्छ । यदि उसको मातृभाषामा भन्नुभयो भने मुटुसम्म पुग्छ । मण्डेलाले मातृभाषाको द्रुत असरलाई प्रस्ट्याए ।. संयुक्त राष्ट्रसंघको अध्ययनअनुसार यतिबेला कारोबारमा नचलेका करिब ५३०० मातृभाषा संकटमा परेका छन् । शिक्षामा मातृभाषाको महत्त्वलाई नजरअन्दाज गरेर अबको शिक्षानीति बनाइयो भने सामाजिक र राष्ट्रिय मात्र होइन मानव जातिकै अस्तित्व संकटमा आउन सक्ने स्थिति बन्नेछ । संयुक्त राष्ट्रसंघमा सन् १९९९ बाट यस मुद्दाले स्थान पाइसकेको छ । अब यसलाई संसारभरि उपयुक्त कार्यान्वयनको खाँचो छ ।. _____________________________________________________________________________________ सर्व शिक्षा मातृभाषामा नहुनु सुक्षम गतिमा दास हुनु हो | बग्ने पानी पुग्दैन वर्षा नै चाईन्छ, सुसम्पन्न समाज बनाउन सर्व शिक्षा मातृभाषा मा चाईन्छ मनपर्‍योमनपर्‍यो · · Share PMO-Narendra Modiलाई मनपर्‍यो
    बालक बालिकालाई उदयमान बनाउनु

  2. पहले यह समझ लें कि हिन्दी का मतलब क्या है। हिन्दी के कुछ तथाकथित विद्वान एवं आलोचक केवल खड़ी बोली को हिन्दी मानने की भूल करते हैं। मैंने भाषाविज्ञान के भाषा-भूगोल एवं बोली-विज्ञान के आलोक में हिन्दी भाषा-क्षेत्र की विवेचना की है। लिंक हैः
    https://www.scribd.com/doc/105906549/Hindi-Divas-Ke-Avasar-Par?goback=.gde_2467140_member_२४८१७८३९५

  3. 3.इसकी वर्णमाला मेँ केवल 30 वर्ण हैँ पर फिर भी यह देवनागरी की 59 ध्वनियोँ को आसानी से लिख सकती है। इसका कारण यह है कि यह एक वैग्यानिक लिपि है। 4.जिन भाषाओँ की लिपि देवनागरी हो और वह हिन्दी के आस पास की भाषा हो तो उनके लिए खतरा बन जाता है। वह हिन्दी की उपभाषा मानी जाने लगतीँ हैँ इसलिए उनकी अलग लिपि होने से उनको एक विभिन्नता मालती है। इसी कारण गुजराती ने अपनी लिपि देवनागरी तो रखी पर साथ ही उसे अलग बनाने के लिए बीच मेँ अपने कुछ वर्ण भी डाले।गुजराती पूरी देवनागरी लिपि मेँ नहीँ लिखि जाती।अन्य राज्योँ ने भी अपनी भाषा को विभान्नता देने के लिए नई लिपि का निर्माण किया जैसे छत्तीसगढ ने हल्बी लिपि और राजस्थान ने भी। 5. गढवाली के कुछ शब्द देवनागरी लिपि मेँ ठीक ढंग से नहीँ उच्चारे जाते जैसे काली(मूर्ख)और काली(काला)। दोनोँ का देवनागरी मेँ एक ही उच्चारण है परन्तु गाँगड़ी मेँ ऐसा नही है।इसलिए गाँगड़ी ही गाढवाली के लिए सबसे उपयुक्त लिपि है। 6. देवनागरी मेँ प्रायः कई वर्ण और मात्राएँ लोगोँ को कठिनाई मेँ डाल देती है कि कौन सा लिखेँ जैसे ष और श ,हँस और हंस तथा री और ऋ।पर गाँगड़ी मेँ एसी कोई उलझन नहीँ है।इन सबके स्थान पर एक ही वर्ण है। 7. कई बार लोगोँ को हिन्दी मेँ देवनागरी और गढवाली या कुमाऊनी मेँ देवनागरी मेँ उलझन हो सकती है। इस प्रकार गढवाली तथा कुमाऊनी के लिए गाँगड़ी लिपि ही श्रेष्ठ है। अगर आपको मेरे विचार ठीक लगे और आप इस लिपि के बारे मेँ जानकारी प्राप्त करना चाहेँ तो कृपा इस नंबर पर फोन करेँ।M:9914417210 OR 9463660145

  4. 3.इसकी वर्णमाला मेँ केवल 30 वर्ण हैँ पर फिर भी यह देवनागरी की 59 ध्वनियोँ को आसानी से लिख सकती है। इसका कारण यह है कि यह एक वैग्यानिक लिपि है। 4.जिन भाषाओँ की लिपि देवनागरी हो और वह हिन्दी के आस पास की भाषा हो तो उनके लिए खतरा बन जाता है। वह हिन्दी की उपभाषा मानी जाने लगतीँ हैँ इसलिए उनकी अलग लिपि होने से उनको एक विभिन्नता मालती है। इसी कारण गुजराती ने अपनी लिपि देवनागरी तो रखी पर साथ ही उसे अलग बनाने के लिए बीच मेँ अपने कुछ वर्ण भी डाले।गुजराती पूरी देवनागरी लिपि मेँ नहीँ लिखि जाती।अन्य राज्योँ ने भी अपनी भाषा को विभान्नता देने के लिए नई लिपि का निर्माण किया जैसे छत्तीसगढ ने हल्बी लिपि और राजस्थान ने भी। 5. गढवाली के कुछ शब्द देवनागरी लिपि मेँ ठीक ढंग से नहीँ उच्चारे जाते जैसे काली(मूर्ख)और काली(काला)। दोनोँ का देवनागरी मेँ एक ही उच्चारण है परन्तु गाँगड़ी मेँ ऐसा नही है।इसलिए गाँगड़ी ही गाढवाली के लिए सबसे उपयुक्त लिपि है। अगर आपको मेरे विचार ठीक लगे और आप इस लिपि के बारे मेँ जानकारी प्राप्त करना चाहेँ तो कृपा इस नंबर पर फोन करेँ।M:9914417210 OR 9463660145

  5. 1.इस लिपि द्वारा लोगोँ के लिए नई कला के द्वार खुलेँगे वह हिन्दी भाषा द्वारा देवनागरी लिपि भी सीखेँगे और गढवाली तथा कुमाँऊनी द्वारा गाँगड़ी लिपि भी । 2. गढवाल तथा कुमाँऊ की अलग भाषा होने पर भी एक लिपि होने पर एकता प्रदान करेगी।

  6. प्रिय
    छत्तीसगढ़ी हिन्दी भाषा-क्षेत्र की एक क्षेत्रीय उपभाषा है। सारे विवाद का कारण यह है कि कुछ लोग हिन्दी का अर्थ खड़ी बोली मानने की भूल करते हैं। जब छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाने का आन्दोलन जोरों से चल रहा था, उसी समय मैंने यह आकलन कर लिया था कि छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के बाद कुछ लोग छत्तीसगढ़ी को हिन्दी से अलग भाषा बनवाने के लिए ज़ोर देने लगेंगे। मैंने छत्तीसगढ़ के प्रबुद्ध जनों का ध्यान इस खतरे की ओर दिलाया था। उनके आग्रह पर मैंने भाषावैज्ञानिक आधार पर भाषा और बोलियों के अंतर-सम्बंधों पर प्रकाश डाला था। मेरा लेख छत्तीसगढ़ के रायपुर के दैनिक समाचार पत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ था। उसके दो-तीन वर्षों के बाद सन् २००९ में नामवर सिंह ने यह धमाकेदार वक्तव्य दिया – “हिंदी समूचे देश की भाषा नहीं है वरन वह तो अब एक प्रदेश की भाषा भी नहीं है। उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे राज्यों की भाषा भी हिंदी नहीं है। वहाँ की क्षेत्रीय भाषाएँ यथा अवधी, भोजपुरी, मैथिल आदि हैं।“ क्या सचमुच? मैने नामवर के इस वक्तव्य पर असहमति के तीव्र स्वर दर्ज कराने तथा वस्तुस्थिति से अवगत कराने के लिए पुनः लेख लिखा। आप चाहें तो उस लेख को पढ़ सकते हैं, जिसका लिंक हैः

    आगे पढ़ें: रचनाकार: महावीर सरन जैन का आलेख : क्‍या उत्‍तर प्रदेश एवं बिहार हिन्‍दी भाषी राज्‍य नहीं हैं? https://www.rachanakar.org/2009/09/blog-post_08.html#ixzz2UyIuaQ2s
    हिंदी की अन्तर-क्षेत्रीय, सार्वदेशीय एवं अंतरराष्ट्रीय भूमिका को स्पष्ट करने के लिए मैंने सन् २०१० में विस्तृत लेख लिखा। उसका लिंक हैः
    http://www.rachanakar.org/2010/07/5.htm
    यदि आप हिन्दी भाषा क्षेत्र तथा उसके अंतर्गत आने वाले समस्त भाषिक रूपों के सम्बंधों को समझना चाहते हैं तो निम्न लिंक पर जाकर अध्ययन कर सकते हैं –
    https://www.scribd.com/doc/105906549/Hindi-Divas-Ke-Avasar-पर
    मुझे विश्वास है कि यदि आप इनका अध्ययन कर लेंगे तो बजाय पृथक लिपि में गढ़वाली को लिखने के आग्रह के, आप स्वयं यह चाहेंगे कि देवनागरी लिपि में हिन्दी भाषा क्षेत्र के सभी भाषिक रूपों को लिपिबद्ध किया जाए। हिन्दीतर भाषी लोग देवनागरी के महत्व को समझ रहे हैं। पूर्वोत्तर भारत की अनेक भाषाएँ देवनागरी को अपना रही हैं। जब हिन्दी के नामवर सिंह जैसे श्रेष्ठ आलोचक भी भावावेग में बहकर या हिन्दी भाषा-क्षेत्र की स्थिति को आत्मसात् न करने के कारण यह कह सकते हैं कि उत्तर प्रदेश एवं बिहार हिन्दी भाषी राज्य नहीं हैं तो आम आदमी का दिग् भ्रमित हो जाना स्वाभाविक है।

  7. मैँ चाहता हूँ कि गढवाली की अपनी पृथक लिपि होनी चाहिए। इसके कई लाभ हैँ।वैसे छत्तिसगढ़ मेँ हल्बी लिपि का निर्माण हो चुका है। इस भाषा के लिए गाँगड़ी लिपि उपयूक्त है।इस लिपि के बारे मेँ जानकारी प्राप्त करने तथा इसके लाभ जानने के लिए इस नंबर पर फोन करेँ।M:-9914417210।अगर आपको मेरे विचार अच्छे लगे तो भी फोन करेँ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here