विकेंद्रीकरण के सन्दर्भ में ब्राजील का अध्ययन

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-कन्हैया झा-    brazil

बीसवीं शताब्दी में ब्राजील का आधुनिकरण तीन स्तंभों आर्थिक विकास, औद्योगीकरण, एवं शहरीकरण पर आधारित था. सन 1980 में कृषि एवं खनन (प्राथमिक क्षेत्र) में संलग्न जनता का प्रतिशत घटते-घटे केवल 30 रह गया था. गरीब एवं अति-गरीब का प्रतिशत 35 होने से ब्राजील उस समय सबसे अधिक असमान देश था. उसी सदी के 50 से 80 के दशक के बीच जिस तेज़ी से शहरी जनसंख्या बढ़ी, शहरी सुविधायें उस रफ़्तार से नहीं बढ़ी. ब्राजील के सबसे संपन्न इलाके में साफ़ पानी की सुविधा 80 प्रतिशत, और सीवर की सुविधा केवल 55 प्रतिशत लोगों तक थी.

अस्सी के दशक तक जनता भी संगठित नहीं थी. जन-सुविधाओं के वितरण में राजनीतिक दलालों का बोल-बाला था. परंतु इसी दशक से ब्राजील में बदलाव शुरू हुआ. जनता ने पड़ोस-मंडलियां (Neighborhood Associations) बनाईं, जो की अ-राजनैतिक होने की वजह से सत्ता से स्वतंत्र थीं. यदि प्रशासन उन्हें जन-सुविधायें दे रहा था तो उनपर कोई उपकार नहीं कर रहा था. मजदूरों की पड़ोस-मंडलियों ने राजनीतिक पार्टियों के कब्ज़े वाली ट्रेड-यूनियनों के खिलाफ विद्रोह किया. अन्य मध्य-वर्गीय व्यावसायिक (Professional) समूहों जैसे डॉक्टर, वकील आदि ने भी पड़ोस-मंडलियों की उपयोगिता को समझा. इन आन्दोलनों से सत्ता पर लम्बे समय से काबिज़ राजनीतिक पार्टी की हार हुई.

नयी पार्टी के आने से राज-तंत्र में दलाली का वातावरण बना रहा. वास्तव में कार्यपालिका ‘सरकारी बजट’ नाम के ब्रह्मास्त्र से सभी अपने एवं विपक्षी सांसदों को मुट्ठी में रखती थी. स्थानीय स्तर के प्रशासनिक अधिकारियों की मिली-भगत से सामाजिक क्षेत्र की एवं जन-सुविधा योजनाओं का पैसा जनता की बजाय मंत्रिओं एवं सांसदों की जेबों में पहुंचता था. इस कुटिल-तंत्र को तर्कसंगत तथा निरपेक्ष बनाने में कार्यपालिका योजना मंत्रालय का पूरा उपयोग करती थी.

सन 1990 में पहली बार ब्राजील में पहली बार सत्ता में आयी मजदूर पार्टी ने बजट बनाने में जनता को भागीदार बनाया. बजट बनाने की यह प्रक्रिया दो चरणों में होती थी. पहले चरण में अ-राजनैतिक पड़ोसी संगठनों से विचार विमर्श होता था, तथा दूसरे चरण में स्थानीय चुने हुए जन-प्रतिनिधियों को शामिल किया जाता था. ये विचार-विमर्श सत्र के शुरू में ही पूर्ण कर लिए जाते थे. इनमें पिछले वर्ष में हुए कामों पर चर्चा होती थी तथा नए वर्ष के लिए प्रत्येक कालोनी में दी जाने वाली जन-सुविधाओं की प्राथमिकता तय की जाती थी.

ब्राजील द्वारा आर्थिक विकास, औद्योगीकरण, एवं शहरीकरण पर आधारित विकास का प्रतिमान भी सही नहीं था. नयी सरकार ने सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए जन-सुविधाओं में खेल-कूद, विश्राम एवं मनोरंजन, स्वास्थय आदि को भी शामिल किया. बड़े शहरों में जन-सुविधाओं की कमी से कमज़ोर वर्ग की या तो गन्दी बस्तियां (slums) या फिर अनधिकृत कालोनियां बन गयीं थीं. अभी तक प्रशासन शहरों को विश्व-स्तरीय सुन्दर बनाने की योजना के अंतर्गत शहर से बाहर विस्थापित करते थे जहां पर सालों-साल ये बिना जन-सुविधाओं के रहते थे. नयी मजदूर पार्टी की सरकार ने अनाधिकृत कालोनियों को मान्यता दी तथा गंदी बस्तियों में भी जन-सुविधाओं का विस्तार किया.

भारत में भी सन 1993 में 73 वे तथा 74 वे संविधान संशोधन से देश में शासन का तीसरा स्तर जोड़ा गया था. आदिवासी क्षेत्रों को छोड़कर गांवों में पंचायतें तथा शहरों में नगरपालिकाओं को चुनावों द्वारा बनाना राज्य सरकारों के लिए अनिवार्य था. परंतु शासन में जनता की भागीदारी दो दशकों के बाद भी नगण्य है. दिल्ली विधानसभा के दिसंबर 13 के चुनावों में एक नयी पार्टी ने शासन सम्भाला है जिन्होंने घोषणा की है कि वे प्रदेश में जनता का शासन स्थापित करेंगे. अन्य प्रदेशों के मुकबले राजधानी क्षेत्र होने से जनता में अपने अधिकारों को लेकर सजगता भी अधिक है. यदि दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री ब्राजील के अनुभवों को गहराई से समझ अभी से प्रयास करें तो अगले वर्ष के बजट में प्रदेश की जनता का सहयोग सुनिश्चित कर सकते हैं.

6 COMMENTS

  1. आप पार्टी ने परिवर्त्तन शुरू कर दिया है चाहे इस में जितना समय लगे लेकिन एक बात तय है के कांग्रेस या बीजेपी जैसी पार्टियां ये बदलाव नही कर पायेगी.

    • “आप” जो कि एक बुलबुला है….. को भी आप कुछ सालों में थर्ड फ्रंट का हिस्सा बनते हुए देखेंगे…. “मार्क माई वर्ड्स” … उसके नेता भी सपा और बसपा के क़दमों पर चलते दिखेंगे… और दर है कि केजरीवाल कहीं काशीराम जी कि तरह… विलुप्त न हों जाएं …

      • आआप एक बुलबुला हो सकता है और हो सकता है कि वह इस भ्रष्टाचार के महासागर में एक बुलबुले की तरह बिलुप्त हो जाए,पर उसके नेताओं को बसपा और सपा के कदमों पर चलने के लिए या थर्ड फ्रंट का हिस्सा बनने के लिए कोई आधार ही नहीं है. अगर वे उसका हिस्सा बनना भी चाहे तो उनका साथ कौन देगा,क्योंकि वे किसी वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व तो करते ही नहीं.

  2. श्री आर. सिंह जी नमस्कार !
    आलेख पर अपना विचार देने के लिए धन्यवाद्.

    मैंने जो लिखा वो अध्ययन का परिणाम है. आवश्यक नहीं कि जो मेने लिखा है वो सही ही हो. यह तो सीखने की प्रक्रिया है. मैं उसी प्रक्रिया के दौर से गुजर रहा हूँ.

    आपने लिखा है कि मैं आम आदमी का घोषणा पत्र दोहरा रहा हूँ. जो सही नहीं है.

    “अंत्योदय” भाजपा का मूल विचार है. उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी यह सहायक हो सकता है! आम आदमी पार्टी क्या करना चाहती है यह चिंतन करना मेरा उद्देश्य नहीं है. चाहने को तो कांग्रेस के घोषणा पत्र में भी बहुत सी बाते दिखती है. जो जमीनी हकीकत से कोसो दूर होती है. आम आदमी क्या चाहती है यह महत्वपूर्ण नहीं है. महत्वपूर्ण यह है कि आम आदमी क्या कर पाती है. यदि विकेंद्रीकरण के क्षेत्र में राजनीतिक पार्टी कुछ कर पाती है तो मुझे निश्चित ही आत्मिक संतुष्टि मिलेगी.

    • झा जी मैं आपसे सहमत हूँ कि “अंत्योदय” भाजपा के विचार श्रृंखला मेंशामिल है और इसका आधार महात्मा गांधी के साथ पंडित दीन दयाल उपाध्याय भी है,क्योंकि दोनों सत्ता के विकेंद्री करण के साथ साथ आर्थिक विकेंद्रीकरण पर भी विश्वास करते थे,पर क्या भाजपा ने इस दिशा में कोई पहल किया या कर रही है? क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि अगर आरम्भ से ही इस दिशा में व्यापक कार्य किया गया होता तो न आज इतना भ्रष्टाचार होता और न इतनी बिषमता आती.?पता नहीं आआप भी कितने दिनों तक इस विकेंद्री करण वाले सिद्धांत पर कायम रह सकेगी?अगर ऐसा नहीं होता तो आआप का उद्भव मात्र एक छलावा होकर रह जाएगा.

  3. झा जी ने इस आलेख में जो कुछ लिखा है,वह कुछ ऐसा नहीं लग रहा है कि वे आम आदमी पार्टी का घोषणा पत्र दोहरा रहे हैं.यही तो है वह लोकतंत्र जिसको आम आदमी पार्टी स्थापित करना चाहती है.भारत में इसमें शायद ब्राजील से ज्यादा अड़चने आएँगी,क्योंकि स्थापित भ्रष्ट पार्टियों का कब्ज़ा भारत में ब्राजील से ज्यादा मजबूत है. भाजपा का नई बोतल में पुरानी शराब परोसने से असली समस्या का समाधान नहीं होगा,क्योंकि जबतक आमूल व्यवस्था परिवर्तन नहीं होगा तब तक सच्चा लोकतंत्र नहीं स्थापित हो सकता और न जनता को भ्रष्ट तंत्र से छुटकारा मिल सकता है.

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