सुन्दरवन तथा न्यू मूर द्वीप पर संकट के बादल

– मनोज श्रीवास्तव मौन

दुनिया में अपने सदाबहार वनों के कारण 3500 किमी. के क्षेत्रफल में फैले और तटबंध से सुरक्षित वन्यक्षेत्र सुंदरवन के रूप में पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। सुंदरवन के परिक्षेत्र में स्थित न्यू मूर द्वीप समुद्र की गहराइयों में समा गया है। भारत-बांग्लादेश के मध्य विवादित 9 किलोमीटर परिधि वाले इस निर्जन द्वीप को बांग्लादेश में तालपट्टी और भारत में पुर्बासा कहा जाता है। यह क्षेत्र 1954 के आंकड़ों के अनुसार समुद्र तल से 2-3 मीटर की ऊंचाई पर स्थित था जो वर्तमान में समुद्र में विलीन हो गया है।

वर्तमान में न्यू मूर द्वीप के खोने के बाद यह संकट सुंदरवन क्षेत्र पर आ गया है। यहां पर अधिकांश नदियों के तटबंध समुद्र के जलस्तर बढ़ने से टूटने की कगार पर आ गये हैं। पिछले वर्ष आइला तूफान के प्रभाव से कई तटबंध क्षतिग्रस्त हो गये हैं। कलकत्ता के जादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्र वैज्ञानिकों के अनुसार वैश्विक जलवायु परिवर्तन से समुद्र का जलस्तर बढ़ गया है। यह क्षेत्र पुरातन काल से ही भारत का सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र रहा है। वर्तमान में होने वाली वर्षा से भी इस क्षेत्र में नुकसान की मात्रा काफी बढ़ी है। सुंदरवन के द्वीप अपने अस्तित्व पर प्रकृति की दोहरी मार झेलने को विवश हो रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र में पर्यावरण कार्यक्रम की पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘भारत उन 27 देशों में से एक है जिसमें समुद्र जलस्तर बढ़ने की मार का खतरा सबसे अधिक है।’ पश्चिम बंगाल में सुंदरवन विकास मामलों के मंत्री गांगुली ने कहा कि सुंदरवन के लोगों के सामने अब अपने जीवन को बचाने का सवाल है और हमें अपने प्रयासों से तटबंध को बचाना ही होगा। इसके लिए उन्होंने सुंदरवन बचाओ अभियान को सागर द्वीप से लेकर गोसाबा तक तटबंध बचाने के अभियान के रूप में चलाने का भी आवाह्न किया।

आइला तूफान में गाँवों के तबाह हो जाने के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने तटबंधों की सुरक्षा के लिए 5000 करोड़ रुपये की राहत राशि देने का आश्वासन भी दिया था। सुंदरवन विकास मामलों के मंत्री श्री गांगुली ने सुंदरवन बचाओ अभियान की शुरुआत करने का ऐलान किया है। मानव की प्रकृति भी बहुत अजीब है, वह ऐसी समस्याओं को जो समय के साथ धीरे से आने वाली होती हैं, उसको सदैव ही नकार देती है। परंतु आज की सच्चाई यह है कि मानव समाज को जिससे डर लगता है उसको ही सहेजने का प्रयास भी करता है।

बंगाल की खाड़ी में पचास किलोमीटर के दायरे में 130 शहर बसे हैं, जिनमें 25 करोड़ लोग रहते हैं। उन सभी लोगों को बढ़ते हुए समुद्र के जल स्तर से खतरा है। कोलकाता के विख्यात भू-वैज्ञानिक प्रो. प्रणबेस सन्याल ने जो कि सुंदरवन में कई दशक काम कर चुके हैं बताया कि लोहा चारा, घोड़ा मार और गंगा सागर आपस में मिले हुए थे। लोहा चारा टापू 80 साल से कम समय में ही डूब चुका था। अब न्यू मूर द्वीप भी खोने की तैयारी कर रहा है।

आज के ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों ने अपना असर तेज कर दिया है साथ ही इस टापू से जंगल लगभग गायब हो गये है। आज आवश्यकता है कि इन जंगलों को और तटबंधों को बचाया जाय जिससे कि एक भारतीय क्षेत्र को अपने से अलग होने से रोका जा सके। सुरदरवन बचाओ अभियान को केन्द्र की भी सहायता दिलाया। जाए जिससे कि इस सभ्यता को लोप होने से बचा लिया जाए और एक और द्वारिका की जैसी पुनरावृत्ति नहीं होने पाये।

* लेखक समाजसेवी है।

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