अंधश्रद्धालु धर्मान्धताके पोखर में डुबकी लगाते रहेंगे

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जब तक यह भृष्ट समाज व्यवस्था कायम है , अंधश्रद्धालु धर्मान्धताके पोखर में डुबकी लगाते रहेंगे !

कुछ साल पहले  जब  गुजरात के अक्षरधाम मंदिर सहित   अन्य मजहबों के धर्म गुरुओं की रासलीलाओं  की सीडी  बाजार में आई तो    धर्म-मजहब से जुड़े असमाजिक तत्वों की काली करतूत  और अंध श्रद्धा से सम्पृक्त  धर्मान्ध -मानव समूह  का भेड़िया धसान पथ संचलन जग जाहिर हो गया । वाकई साइंस ने और आधुनिक सूचना संचार  क्रांति  ने  एक काम तो मानवता के लिए जरूर  बेहतर किया है कि  अब वे गुनहगार भी वेपर्दा हो रहे हैं,जो धर्म-मजहब के स्वयंभू ठेकदार बन बैठे हैं।  जिन पर न केवल अंध श्रद्धालुओं को बल्कि राज्य सत्ता को भी बड़ा नाज  हुआ करता है । धार्मिक पाखंडवाद और गुरु घंटालों के प्रति अंधश्रद्धा  का इस आधुनिक साईंस  युग में  जीवित रहना एक चमत्कार ही है। वर्ना  इसी उन्नत तकनीकि  ने  ही तो कांची कामकोटी पीठधीश्वर स्वामी जयेंद्र सरस्वती जैसे बड़े-बड़े दिग्गजों की पोल खोलकर उन   को  भी शर्मशार किया है। नेताओं के स्ट्रिंग आपरेशन हुए तो   राजनैतिक भृष्टाचार ,रिश्वतखोरी , व्यापम भंडाफोड़ ,नेताओं का कदाचार तथा काले धन इत्यादि  के विमर्श का गूलर फुट गया। यह सब सोसल मीडिया में , डिजिटल -इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ही नहीं सर्च इंजन के मार्फ़त   विश्व व्यापी हो चला है। इसी  तरह धार्मिक अंधश्रद्धा और  पाखंड में ,पूजा स्थलों में तथा साम्प्रदायिक उन्माद  के केन्द्रो में भी जो अमानवीय आचरण व्याप्त है वो भी उन्नत तकनीक की बदौलत   अब  शिद्दत से उजागर हो रहा है।रामपाल जैसे ढोंगियों को जेल के सींकचों तक ले जाने में इस आधुनिक टेक्नॉलॉजी का अभूतपूर्व योगदान है। राजनैतिक संरक्षण की  हेराफेरी भी अब छुप नहीं सकती।

लगभग साल भर पहले  इंदौर के अपने आलीशान  विशालकाय आश्रम में छुपा  कुख्यात  -बलात्कारी संत  ‘बापू’ उर्फ़  कथावाचक – आसाराम’  जब जोधपुर पुलिस के हत्थे  चढ़ा ,तब उसकी और उसके अनुयाइयों की ही नहीं बल्कि  भाजपा नेताओं की भी  प्रतिक्रिया थी कि इस में  -‘माँ – बेटे का हाथ है’। माँ याने सोनिया गांधी। बेटा  याने राहुल गांधी।   केंद्र की तत्कालीन   मनमोहन – सरकार और राजस्थान की गेहलोत सरकार ने यदि अपने कार्यकाल में  कोई यादगार और बेहतरीन कार्य किया है तो वो है – आसाराम को जेल में ठूँसना। हालाँकि  आसराम को इतनी बड़ी हैसियत तक ले जाने के लिए  यही नेता  और यही सत्ता की  राजनीति भी जिम्मेदार है।  इसी के साथ   ही  अंध श्रद्धालु जनता भी  बराबर की जिम्मेदार है ,जो धार्मिक पाखंड के खिलाफ कुछ भी सुनना  पसंद   नहीं करती। अंधश्रद्धालुओं के वोट से सत्ता पाने वाले साम्प्रदायिक नेता भी इस राष्ट्र विरोधी पाखंडवाद को पनपने में सहायता करते रहते हैं।

न्याय पालिका के भय से भाजपा और उसकी सरकार चाहते हुए भी इन पाखंडी बाबाओं की मदद नहीं कर पा रही है। यही वजह है कि  आसाराम को साल भर में जमानत भी नहीं मिली है।   भारत में आजादी के दौरान और उसके भी पहले मुग़ल काल में कई सन्यासी विद्रोह पढ़ने -सुनने में आये हैं। इस देश में योग ,सन्यास और नैतिक मूल्यों को स्थापित करने में  सभी धर्मों के संतों,कवियों और महात्माओं का बड़ा योगदान रहा है। किन्तु आजादी  के बाद  देश  में इस क्षेत्र में गिरावट और चरम पतन का सिलसिला थम नहीं रहा है।  इस दुखद और शर्मनाक  स्थति के लिए शायद  लोकतान्त्रिक सुविधा का बेजा दुरूपयोग  ही जिम्मेदार है।  राजनीतिक  गिरावट,साहित्यिक बदचलनी  और पूँजीवादी  व्यवस्था भी इस अंधश्रद्धा के लिए  कुछ कम   जिम्मेदार नहीं  है। यह कटु सत्य है कि सभी धर्मों,सम्प्रदायों और पंथों में  पापाचार की भयानक प्रतिद्व्न्दिता तो है ही इसके साथ ही  इन सभी के असंवैधानिक कृत्यों  से राष्ट्र राज्य को भी सदा खतरा हुआ करता  है।

८० के दशक में कांग्रेस की शह पर संत भिंडरा वाला , अमेरिका की शह  पर  गंगासिंह ढिल्लो , सिमरनजीतसिंह मान  ,इंदिराजी के हत्यारे और पाकिस्तान पोषित   उनके  ही जैसे  अन्य  सैकड़ों मरजीवड़ों ने भी भारत में  धार्मिक अंधश्रद्धा के नाम पर  -एक  अलग देश खालिस्तान के नाम पर -देश में खूनी  मंजर  मचा रखा था। यह सब पाकिस्तान की शह पर और अकाल तख्त  के तत्कालीन  कटटरपंथी साम्प्रदायिक देशद्रोही  करता धर्ताओं  की  कुटिल करतूतों के तिलस्म तथा   कांग्रेस की असफल  राजनैतिक नीतियों तथा चालबाजियों का  ही संयुक्त  परिणाम था ।  इतिहास गवाह है कि तब   देश की अखंडता अक्षुण रखने के  लिए स्वर्ण मंदिर में भी पुलिस को प्रवेश करना पड़ा था । इंदिरा जी , ललित माकन जी ,तथा हजारों देश  भक्तों को अपना बलिदान देना पड़ा। हजारों  निर्दोष  सिखों और गैर सिखों को पंजाब , दिल्ली और पूरे  भारत  में जान से हाथ धोना पड़ा था। इस नर संहार के लिए भी  धार्मिक अंध श्रद्धा और धार्मिक पाखंडवाद ही जिम्मेदार है।  वेशक विदेशी दुश्मन ताकतें  भी  इस तरह के  भयानक नर  संहार  कराने में बराबर की  भागीदार  रहीं  हैं।  पाकिस्तान की आईएसआई और अमेरिका की सीआईए  के कच्चे -चिठ्ठे तो अब  विस्तार से   बिकीलीक्स भी  दुनिया को  बाँट रहा हैं।

यदि मोदी जी के नेतत्व में केंद्र में भाजपा या एनडीए की सरकार नहीं बनती और  पुनः यूपीए सरकार ही बनती तो रामपाल से पहले  स्वामी रामदेव का  जेल जाना  सुनिश्चित था।  वे भले ही राष्ट्रवाद की बड़ी -बड़ी बातें करें या अपने उत्पादों ,अपने योग प्रदर्शन से आवाम को प्रभावित करने की कोशिश करें किन्तु उनके खिलाफ जितने भी आरोप लगे हैं उनमे से एक भी निरस्त किये जाने योग्य नहीं है। यह तो  राजनीति  की ही  बलिहारी है कि  ‘खुदा मेहरवान तो गधा पहलवान ‘।  अभी तो  स्वामी रामदेव की बीसों घी में है। न केवल केंद्र सरकार बल्कि उत्तराखंड की ‘हरीश रावत सरकार भी उनकी मिजाज पुरसी में लगी हुई है। किन्तु बकरे की अम्मा कब तक खेर मनाएगी ? जिस दिन  भारत की न्यायपालिका को कोई अहम सुराग हाथ लगा की समझो इन बाबा जी  के काम भी लग गए।  तब कोई राजनैतिक संरक्षण या लोम -विलोम काम नहीं आएगा। रामदेव का व्यावसायिक  साम्राज्य भी  भारत में अंधश्रद्धा को बढ़ावा दे रहा है।

गुरमीत  राम रहीम -डेरा बाबा सच्चा सौदा ,स्वामी नित्यानंद ,इच्छाधारी स्वामी भीमानंद ,स्वामी दुराचारी  ,स्वामी सदाचारी ,स्वामी  चुतियानन्द , हवा में उड़ने वाला बाबा ,पानी पर चलने वाला बाबा,  निर्मल बाबा ,अमुक बाबा ,धिमुक बाबा  -ढेरों बाबा हैं जिन्हे जेल जाना ही होगा। ये जो  संत [?] बाबा  रामपाल अभी भारत के अंधश्रद्धालुओं की मूर्खता पर जेल में अठ्ठहास  कर रहा है।  वह तो  धार्मिक  अंधश्रद्धा  और  पाखंडवाद  की हांडी का एक चावल मात्र है। आर्य समाज की जागरूकता और बहादुरी के फलस्वरूप -विगत २० नवम्वर को  हरियाणा एवं पंजाब  हाई  कोर्ट  की  तगड़ी  न्यायिक  सक्रियता के फलस्वरूप – यह  गुरु घंटाल जेल के सींकचों से पहले पुलिस रिमांड  तक जा पहुंचा है। हालाँकि  हरियाणा की नयी -नयी खटटर सरकार  का  इस बदमाश ‘संत रामपाल’ को उसके १२ एकड़ में फैले विशालकाय  ‘सतलोक’ आश्रम से  गिरफ्तार करने का  इरादा कदापि नहीं था। क्योंकि इस बाबा के श्री चरणों में वे पहले ही   कई मर्तवा शीश नवा चुके  हैं । इसके अलावा और भी कई बाबाओं और गुरु घंटालों का ‘संघ परिवार’ और भाजपा से सीधा नाता  रहा  है।  इन बाबाओं और थैलीशाहों के प्रसाद पर्यन्त ही तो  भाजपा और संघ परिवार की राजनैतिक ‘रोजी-रोटी’ चलती है। अशोक सिंहल ,प्रवीण तोगड़िया जी को इन पाखंडी बाबाओं में राष्ट्रीय अस्मिता दिखती है।  एक ‘बाबा राम-रहीम -डेरा सच्चा सौदा वाले’  तो हरियाणा  विधान सभा चुनाव में  भाजपा का प्रचार  भी करते रहे हैं । आम चर्चा है कि  भाजपा के वरिष्ठ और कद्दावर राष्ट्रीय नेता कैलाश विजयवर्गीय ने उन्हें मनाया होगा। जबकि यह सभी जानते हैं कि  कैलाश जी को  चुनाव जिताने के लिए किसी बाबा के सहयोग की जरुरत  कदापि  नहीं हुआ करती।  वे तो  स्वयं अजातशत्रु हैं। अजेय हैं।जहाँ  वे खड़े हो जाते हैं  ‘विजयश्री’  वहीँ जन्म लेने को मजबूर हो जाया करती है।राम रहीम को तो बचाव का राजनैतिक तोड़ चाहिए इसलिए भी वह सत्तासीन नेताओं से प्यार की पेगें बढ़ा रहा है।

आसाराम   की तरह  ही  रामपाल ने भी सोचा होगा कि  अब तो रंग रंगीले  ‘बाबाओं-स्वामियों’ की तरफदार  सरकर आ गई है। अब न केवल केंद्र में बल्कि प्रांतों में भी  बाबाओं की पसंद की सरकारें आती जा  रही  है, इसलिए ‘सैंया भये कोतवाल -अब डर  काहेका’ । अब भाजपा के बड़े नेता और प्रवक्ता भी देवी जुबान से  कह  रहे हैं कि ” हरियाणा सरकार  और उसकी  पुलिस  को इस  गिरफ्तारी के दौरान मीडिया कर्मियों पर अनावश्यक लाठी चार्ज से बचना चाहिए था ” ।  वैसे  मीडिया पर हरियाणा सरकार  के पुलिसिया अत्याचार  से देश को एक फायदा तो अवश्य ही  हुआ  है। जो मीडिया कल तक खट्टर जी  की चरण वंदना कर रहा था वो अब  न केवल ‘खट्टर काका ‘ की धुलाई कर रहा  है, न केवल देश भर में फैले इसी तरह के पाखंडी -उन्मादी बाबाओं की पोल खोलने में जुट गया है ,  बल्कि भाजपा को भी लपेटे में ले रहा है।  इस हमले के बाद  मीडिया ने भाजपा नेताओं के और  इन पाखंडी बाबाओं  के नाजायज –  नापाक अन्तर्सम्बन्ध भी उजागर करना  शुरू कर दिये  है। अब तो मीडिया  ‘मोदी मोह पाश ‘ से भी कुछ-कुछ   छिटकने लगा है ।  प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और अन्य वरिष्ठ  भाजपा नेता  की  इस ‘पाखंडी  बाबा वाद ‘  पर  चुप्पी को मीडिया ने ‘मोनी बाबा ‘ के दौर से भी बदतरीन और असहनीय माना है। इन घटनाओं पर केंद्र  सरकार की चुप्पी देशभक्तिपूर्ण कैसे  कही जा  सकती है ?

यह सुविदित है कि  संत रामपाल  २००६ में हत्या का  आरोपी  माना गया था , वह २००८ से जमानत पर चल रहा है।  तभी से उसकी अनेकों बार गिरफ्तारी टलती रही है । अपनी गिरफ्तारी पर इतने प्रबल प्रतिरोध बाबत उसका यह जबाब बहुत महत्वपूर्ण है कि “मुझे मेरे अनुयाइयों-भक्तों और चेलों ने बंदी बना रखा था ‘।उसकी इस बात पर यकीन क्यों न किया जाए ?  चेलों का  कहना है कि  बाबा संत रामपाल ने हम सबको बंदी बना रखा था।  इसे सिरे से ख़ारिज क्यों न किया जाए ?  सोचने की बात है कि  अकेला रामपाल २० हजार  उजडड  अंध श्रद्धालुओं  को कैसे रोक सकता है ?  आसाराम भी उतना ताकतवर नहीं था। उसे भी उसके बदमाश गुर्गों ने पहले तो  जेल तक पहुचाया बाद में ‘अरण्य रोदन’ में जुट गए। रामपाल ने कोर्ट की अवज्ञा की और पेशी पर नहीं गया।उसे   किसने  रोका यह अंतिम फैसला तो न्यायपालिका ही करेगी। किन्तु इतना तो एक अदना सा इंसान -जड़मति मूर्ख भी समझ सकता है कि  सुरंगे खोदना ,बंदूकें ,हथगोले चलाने ,पेट्रोल बम फेंकने और नेताओं से लेकर वकील -कोर्ट कचहरी तक अपना ताना – बाना  कायम रखने के लिए क्या एक ही शख्स जिम्मेदार ही सकता है ?  किसी भी ढोंगी बाबा ,संत  के दरबार में या  मठ , मंदिर ,मस्जिद ,चर्च ,गुरुद्वारे में  या मस्जिद  जैसे धर्म स्थल पर जो भीड़ जुटती है  क्या उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं ? हालांकि जनता के इस तरह लाखों की तादाद में एकत्रित होने पर हादसों को पूरी तरह रोक पाना संभव नहीं किन्तु इन मेलों- ठेलों  और बाबाओं के आश्रम  – पंढालों  पर ‘स्पेस सेटेलाइट’ की नजर अवश्य होनी चाहिए। चाहे मजहब -धर्म का समागम हो या राजनैतिक सम्मलेन -सभी  का  पूरा  लेखा -जोखा   देश की संसद और सरकार के पास अवश्य  होना चाहिए।

हालाँकि  गनीमत यह है कि  ऐंसे बाबाओं कि  या किसी भी अन्य गैर सम्वैधानिक सत्ता केंद्र की ओकात नहीं है कि  ‘न्यायपालिका ‘ की ताकत के सामने टिक सके।  जिस न्याय पालिका ने सीबीआई के चीफ को ही रिटायरमेंट  से १२ दिन पहले ही  ‘झंडू बाम’ बना डाला तो इन  आबाओं  -बाबाओं की ओकात ही क्या है ?  वेशक  इस दौर में  न्याय मंच से जो  अधिकांस बेहतरीन फैसले  देश के समक्ष अवतरित हुए हैं  उनसे देश का सम्मान और आत्म विश्वाश  तो अवश्य ही लौटा है। आसाराम को सबक सिखाने के बाद लगता है की क़ानून अब  रामपाल  को  भी अपने  निशाने पर  ले चूका है। उस पर  न्यायिक अवमानना के अलावा – देश द्रोह ,  श्रद्धालुओं को जबरियां बंधक बनाना ,भूमिगत सुरंगें बनाना  -बिस्फोटक असलाह  जुटाना  ,राष्ट के खिलाफ जंग का ऐलान करना तथा मीडिया और पुलिस पर हमला  करना  इत्यादि इतने मुकदमे  आरोपित हैं कि   इस पाखंडी संत को  फांसी की सजा भी शायद  कम ही पड़ेगी।
मार्क्स ने तो सिर्फ कहा था कि  ‘धर्म -मजहब की अंधश्रद्धा एक अफीम ही है’।  किन्तु संत रामपाल  ,संत  आसाराम ने  तो पंचेन  बूटी  और मादक द्रव्यों के सेवन उपरान्त इस उक्ति को साबित भी कर दिया। पूँजीवादी  लोकतंत्र में   लालची पूँजीपति  और सत्ता के दलालों को  जनता  की  समस्याओं से ध्यान हटाने और  सत्ता के खिलाफ पैदा होने वाले जन संघर्ष को न्यूट्रीलाइज’ करने के लिए – धार्मिक  अंधश्रद्धा और  पाखंडवाद को बढ़ावा दिया जाता है।  अब बाबा  और देवियाँ पैदा नहीं होते  बल्कि पैदा किये जाते हैं ।  जिस तरह  पाकिस्तान के मदरसों में मौलाना कम आतंकी ज्यादा पैदा  हो रहे हैं, उसी तरह भारत में और खास तौर  से गुजरात  के सरस्वती शिशु मंदिरों में  पाखंडी बाबाओं और सत्ता के दलाल नेताओं की पैदावार  बढ़ रही है।  आसाराम इसी तरह की पैदाइस है। वह अपने पूँजीपति  दलालों -चेलों के घटिया उत्पादों को बाजार में अपने नाम से बिकवाता रहा है । इन्ही धंधेबाजों के  मार्फ़त भोली भाली महिलाओं और लड़कियों का सगील हरण  भी करता रहा है  । आसाराम का तो  राम नाम सत्य होने वाला है। अब ये ढोंगी संत रामपाल भी कुछ दिनों देश के मीडिया  पर राज करेगा। इसकी लीलाओं के चर्चे होंगे।  यह कोई खास बात नहीं  कि   यह साला  हरामी दूध से  नहाता  था और  इसके शरीर के ‘धोबन’ से जो खीर  पकाई  जाती  थी ,उसी खीर को महाप्रसाद के रूप में ‘भक्तो’ अनुयाइयों और जायरीनों को प्रदान किया जाता था । जो लोग किसी बाबा ,साधु -संत या  किसी बड़े आश्रम ,मठ  या किसी भी मजहबी संस्थान से जुड़े हैं वे  इस घटना से सबक सीखने की कोशिश करे।

आसाराम तो शायद कभी न कभी छूट  भी सकता है किन्तु इस  देशद्रोही रामपाल  का बच पाना अब कदापि संभव नहीं है। इन गिरफ्दारियों  से पहले काँची  कामकोटि  पीठाधीश्वर स्वामी श्री  जयेंद्र सरस्वती  जी महाराज , स्वामी नित्यानंद , चन्द्रा स्वामी  भी हवालात की हवा खा चुके हैं। इन मठाधीशों के अलावा भी अनेक गुरु घंटाल ,बाबा,स्वामी,मुल्ला ,मौलाना,इमाम,पादरी ,ग्रंथी ,ज्ञानी और धर्मात्मा या तो जेल जा चुके हैं या किसी राजनैतिक संरक्षण के चलते अब तक बचे रहे हैं। चूँकि न्यायिक सक्रियता का नियम है कि  उसे समाज को पटरी पर चलाने के लिए निरंतर निर्बाध ‘बलि’ चाहिए इसलिए बहुत सम्भव है कि  आने वाले दिनों में न्याय पालिका द्वारा   और भी  धर्मान्ध दुष्ट जेल भेजे जाएंगे।  दो-चार को  फाँसी भी   हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं !

तमाम  चिंतक ,वुद्धिजीवी ,लेखक ,संपादक,पत्रकार ,कवि   और खास तौर  से प्रगतिशील -जनवादी साहित्यकार इस विमर्श  में अपना सिद्धांत  पेश करते रहे हैं। जब कभी कहीं किसी सामाजिक ,सांस्कृतिक या साम्प्रदायिक विकृति , धर्मान्धता ,अशिक्षा और सामंती अवशेषों  के प्रति  अंधश्रद्धा का पर्दाफास होता है तो   आस्तिकता बनाम नास्तिकता का विमर्श खड़ा आकर दिया जाता है। यदि रामपाल के दुघ्ध स्नान  उपरान्त उसके  शरीर  की गंदगी को  खीर के रूप में सेवन करना आस्तकिता है तो इस  आस्तिकता से वह नास्तिकता बेहतर है जो  मेहनतकश  आवाम को  बेहतरीन इंसान बंनाने की तमन्ना रखती है।  इस अंधश्रद्धा के अपवित्र   पाखंडवाद को उद्दाम रूप प्रदान करने में  वैश्विक  पूँजीवाद  का अवांछनीय  सहयोग भी कमतर नहीं है। किन्तु  जो बुद्धिजीवी इस मजहबी उन्माद को  सभ्यताओं के संघर्ष में बदलते हुए देख रहे हैं या इसे वर्तमान  वैज्ञानिक भौतिकवाद का अनिवार्य  उत्पाद समझ बैठे हैं वे जनता  को उस की नकारात्मक मनोवृति से बचाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। वे धन्यवाद के पात्र हैं।
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य पर नजर दौड़ाएं तो स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है कि राष्ट्रों,समाजों,और व्यक्तियों  के उत्थान  पतन में सूचना – सम्पर्क क्रांति का ,शिक्षा का  साइंस एंड टेक्नॉलॉजी का और लोकतांत्रिक आकांक्षाओं की राजनीति का  बहुत ही  महत्वपूर्ण  और बराबर का अवदान  हो रहा है।
कतिपय उत्तर आधुनिक  अवयवों ने अपने दौर के रासायनिक योगकीकरण से दुनिया के तमाम  राष्ट्रों ,समाजों , सभ्यताओं  और धार्मिक आस्थाओं में चरम पतन  के भयानक  रसातल  भी निर्मित किये हैं।  मसला   चाहे वो  इजरायल बनाम फिलिस्तीन  का  हो !  मसला चाहे वो अफगानिस्तान में तालिवान वनाम लोकतंत्र का हो !  मसला  चाहे वो सीरिया -इराक  में आईएस के लड़ाकों  के भयानक खूनी  मंजर का  हो ! मसला चाहे पाकिस्तान  के आतंकी चेहरे का  हो  ! मसला चाहे अमेरिका ,यूरोप,या  नाटो की शर्मिंदगी का हो  ! मसला  चाहे भारत में  कश्मीर ,पंजाब में आतंकवाद का मसला हो या मसला यत्र-तत्र -सर्वत्र धर्मान्धता  – साम्प्रदायिकता का हो !  ये  सभी मसले शायद  मानव सभ्यता के प्रारंभिक दौर में ही शुरू हो चुके  होंगे ।धरती की भौगोलिक स्थति ,सामाजिक -आर्थिक उत्थान-पतन और वैश्विक यायावरी ने इसे   सामंती या राजशाही के दौर में  परवान चढ़ाया होगा। कहीं कहीं राज्य सत्ता को इस पाखंडवाद से मदद मिली होगी। कहीं -कहीं  राज्य सत्ता ने इस पाखंडवाद को सर  चढ़ाया होगा। इस दौर में भी यह सिलसिला जारी है।  किन्तु वर्तमान उन्नत  लोकतान्त्रिक  या प्रजातांत्रिक और खुले  समाज में मानव  अधिकार  , वैयक्तिक  स्वतंत्रता के नारों के बीच पतन की संभावनाएं कमतर ही हैं। वेशक लोगों की  उत्थान में उतनी रूचि नहीं दिखाई जितनी कि  नैतिक पतन में उत्साह दिखाया जाता है। किन्तु  पतन  जब अपने चरम पर हो  तो उत्थान का ध्रव  खुद-ब- खुद सक्रिय हो उठता है.  चूँकि इस युग में  साक्षरता बढ़ी  है  ,जीवन यापन के संसाधनों में इजाफा हुआ  है  और चौतरफा  ‘उदारवाद’ का नारा लग रहा  है  तो यह कैसे संभव है कि  अंधश्रद्धालु  धर्मान्धता के पोखर में डुबकी नहीं लगाएँगे ?

श्रीराम तिवारी

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