समस्याओं के वक्त स्नेह का सम्बल दें, उपेक्षा और प्रताड़ना का भाव त्यागें

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– डॉ. दीपक आचार्य

समस्याएँ हर किसी के जीवन में सामने आती हैं। मनुष्य के जीवन में समस्याओं और इच्छाओं का कोई अंत नहीं है ये सागर की तरह गहरी और आसमान की तरह विराट व्यापक हैं। कई पीड़ाएं और समस्याएं पूर्व जन्मों के कर्मों का परिणाम होती हैं तो कुछ वर्तमान जन्म के असंयम और स्वेच्छाचारिता की वजह से।

समस्याएं चाहें किन्हीं भी हालातों का परिणाम हों, मानव जीवन के लिए यह विषाद और पीड़ाओं का कारण होती ही हैं। दुःखों और समस्याओं के लिए कोई भी अछूत नहीं है। इनके लिए अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, ऊँच-नीच आदि का कोई भेद नहीं है। ये देश, काल और परिस्थितियों से भी परे होती हैं।

ये समस्याएं चाहे कितनी ही बड़ी या छोटी क्यों न हों, इनका निवारण भी समय के साथ होता चला जाता है और बुरी स्थितियां समाप्त होने लगती हैं। स्पष्ट कहा जाए तो समस्याएँ समय सापेक्ष हुआ करती हैं और एक निश्चित समय तक ही अपना असर दिखाने के बाद स्वतः समाप्त हो जाती हैं। इसलिए जो लोग समस्याओं और दुःखों से त्रस्त हैं उन्हें सावधानी के साथ इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि पूरे धैर्य के साथ समय को गुजार दें। हर दुःख और समस्या के लिए निश्चित समय सीमा होती है जिसके बाद वह प्रभावहीन हो जाती है।

परेशानियों वाले दिनों के लिए सबसे अच्छा उपाय यही है कि उस समय को धीरे-धीरे पूरी प्रसन्नता के भाव रखते हुए यह समझकर गुजार दें कि अच्छा समय निश्चित आने वाला है। यह प्रकृति का अटल नियम है। परिवर्तन सृष्टि का नियम है जो कभी खण्डित नहीं हो सकता।

जो लोग दुःखों व परेशानियों से प्रभावित हैं उनसे भी ज्यादा जिम्मेदारी उन लोगों की है जो उनके घर-परिवार के हैं अथवा ईष्ट मित्र या परिचित हैं। समस्याओं से घिरे व्यक्ति के साथ कैसा बर्ताव होना चाहिए, इसके लिए भी मनोविज्ञान का सहारा लिया जाना चाहिए। पीड़ित व्यक्तियों के साथ इसी प्रकार का व्यवहार करना चाहिए जिससे उनकी पीड़ाओं और दुःखों पर मरहम का अहसास हो न कि उन्हें उद्वेलित या और अधिक पीड़ित करने वाला।

परेशानियों से जूझ रहा कोई भी व्यक्ति अपने सम्पर्क में आए अथवा हम ऐसे लोगों से मिलें, हमारा पहला फर्ज यह हो कि उन्हें हमारी मुलाकात से दिली सुकून का अहसास होना चाहिए और यह लगना चाहिए कि हमसे मिलने के बाद कुछ हल्कापन महसूस हुआ है।

आप कुछ करें या न करें, समस्याएं तो समय के साथ अपने आप गायब हो जाने वाली हैं। हमारा तो काम बस इतना होना चाहिए कि समय गुजारने लायक सम्बल प्रदान करें ताकि ऐसे प्रभावित लोगों के लिए मुश्किलों भरे ये दिन ज्यादा आत्महीनता और दर्द भरे न रहें। समस्याओं से जूझ रहे लोगों को स्नेह का संबल देना और आत्मविश्वास भरना सबसे बड़ा फर्ज और पुण्य है। ऐसे बुरे वक्त में कभी भी इन लोगों को उपेक्षित न करें, घृणा का भाव न रखें तथा किसी भी प्रकार की प्रताड़ना न दें। इन्हें न कटु वचन कहें, न किसी बात के लिए कोसें। ऐसा करने से इनका आत्मविश्वास कमजोर होता है और जब किसी व्यक्ति का आत्मविश्वास क्षीण होता है तब उसकी पीड़ाओं और परेशानियों का घनत्व बढ़ जाता है और यह स्थिति संबंधित व्यक्ति के लिए कदापि अच्छी नहीं कही जा सकती।

कोई कितनी ही बड़े दुःख-दर्द और मुश्किलों से भले घिरा हुआ हो, प्यार, स्नेह और सम्बल के दो शब्द और सान्निध्य भी इन्हें खूब सुकून दे जाता है और इनकी पीड़ाओं और दर्द का घनत्व काफी कम हो जाता है। कठिनाइयों भरे वक्त में इस प्रकार का सम्बल जो देता है वह पूरी जिन्दगी याद रखा जाता है। इसलिए जीवन में जहाँ मौका मिले, ऐसे व्यक्तियों को सम्बल प्रदान करने में कोई कंजूसी नहीं रखें जिन्हें आपका थोड़ा सा स्नेह और सम्बल नई ताजगी और ऊर्जा का अहसास कराने में समर्थ है।

 

 

 

1 COMMENT

  1. बहुत सुंदर विचार दिए हैं आपने, हम अक्सर गलती कर जाते हैं। आपके आलेख से नई प्रेरणा मिली है, निश्चित ही जब हम कष्ट में होते हैं तो सारी दुनिया से अपेक्षा करते हैं किंतु जब कोई और कष्ट में होता है तो हमें अपना कोई दायित्व नहीं लगता। जैसे कि रेल में जब हमें आरक्षण नहीं मिला होता है तो हमारी निगाहें सब के चेहरे पर लगी होती हैं कि कोई हमें बिठाले , कैसे असभ्य लोग हैं, कैसे अंसवेदनशील हैं जो हमारे जैसे भले आदमी को भी नहीं बिठा रहे ——,……. किंतु जब हम आरक्षित सीट पर पसर रहे होते हैं तो -………… ।
    धन्यवाद ,आशा है इसी तरह और लिखते रहेगे। साधुवाद

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