सर्वोच्च न्यायालय का अहंकार

सर्वोच्च न्यायालय का अहंकार

चेन्नई उच्च न्यायालय के कुछ अवैध निर्माणों को ढहाने के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। मामला सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे की पीठ में आया। न्यायमूर्ति दवे ने अपने फ़ैसले में अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर चेन्नई उच्च न्यायालय के निर्णय पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस तरह अवैध निर्माणों को अगर नियमित किया गया तो एक दिन हत्या और बलात्कार को भी नियमित कर दिया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय सिर-आँखों पर लेकिन टिप्पणी कही से भी उचित प्रतीत नहीं होती है। इस टिप्पणी में सर्वोच्च न्यायालय का अहंकार दिखाई पड़्ता है। हत्या-बलात्कार को अवैध कालोनियों के नियमितीकरण से नहीं जोड़ा जा सकता। सरकार को कुछ फ़ैसले जनहित में लेने पड़ते हैं। अभी-अभी केन्द्र सरकार ने दिल्ली की लगभग १९०० कालोनियों को नियमित करने का आदेश किया है। सुप्रीम कोर्ट उसको भी रद्द कर सकता है या स्टे दे सकता है। गृहविहीनों को आश्रय देने के लिए सरकार को सुन्दरीकरण और मौजूदा नियमों में संशोधन कर ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं। सरकारी महलनुमा आवासों में रहने वाले कभी भी गरीबों की पीड़ा को समझ नहीं पाएंगे। ऐसी टिप्पणी लालू, मुलायम, मायावती और ममता की ओर आई होती तो कुछ भी आश्चर्य नहीं होता लेकिन विद्वान न्यायाधीश की टिप्पणी अनावश्यक और आपत्तिजनक है। कोर्ट को संविधान और वर्तमान नियमों के अन्तर्गत फैसला सुनाने का पूरा अधिकार है लेकिन गैरवाज़िब टिप्पणी से परहेज़ करना चाहिए। वैसे ही जयललिता के जमानत के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय द्वारा ज़मानत की याचिका खारिज़ कर देने के बाद भी जमानत दिए जाने में एक हजार रुपये के लेन-देन का मामला अभी ठंढ़ा नहीं हुआ है। एक न्यायालय ही है जिसपर जनता का भरोसा थोड़ा-बहुत कायम है। लेकिन ऐसी टिप्पणी से भरोसा उठ जाना स्वाभाविक होगा। क्या कारण है कि लालू जैसे नेताओं की जमानत याचिका उच्च न्यायालय के स्तर से खारिज़ हो जाती है परन्तु सुप्रीम कोर्ट धड़ल्ले से ऐसे लोगों को ज़मानत दे देता है। दाल में कुछ काला तो है ही। एक गरीब तो सुप्रीम कोर्ट की दहलीज़ पर कभी फटक ही नहीं सकता लेकिन अपेक्षाकृत कम धनी लोगों की याचिकायें भी वर्षों से लंबित पड़ी रहती हैं। सुप्रीम कोर्ट जिस तेजी से राजनेताओं और धनवानों की याचिकाओं पर त्वरित सुनवाई करता है, वह भी संदेह के घेरे में है। अलग-अलग सरकारी महकमों में २००५, २००६ एवं २००७ में व्याप्त भ्रष्टाचार का तुलनात्मक अध्ययन किया गया जिसमें शिक्षा व्यवस्था के बाद न्यायपालिका नंबर दो के स्थान पर हमेशा काबिज़ रही जिसमें लोवर कोर्ट सर्वाधिक भ्रष्ट, हाई कोर्ट अपेक्षाकृत कम भ्रष्ट और सुप्रीम कोर्ट दाल में नमक के बराबर भ्रष्ट पाए गए। ट्रांसपेरेसी इंटरनेशनल (इंडिया) के उपाध्यक्ष डा. एस.के.अग्रवाल द्वारा जारी की गई सूची के अनुसार देश के सबसे भ्रष्ट महकमों के नाम मेरिट के अनुसार निम्नवत है –

१. शिक्षा व्यवस्था

२. न्यायपालिका

३. स्वास्थ्य सेवाएं

४. पुलिस

५. राजनीतिक दल

६. संसद/विधान सभाएं

७. रजिस्ट्री और परमिट सेवा

८. बुनियादी सुविधाएं (टेलिफोन, बिजली, जल आदि)

९. कर राजस्व

१०. वाणिज्य/निजी क्षेत्र

११. मीडिया

(संदर्भ उधारी संविधान: दूषित लोकतंत्र, पृष्ठ – ४४,४५, लेखक प्रो. वीरेन्द्र कुमार, प्रकाशक – पिलग्रिम्स प्रकाशन, वाराणसी)

सर्वोच्च न्यायालय अपनी नाक के नीचे फल-फूल रहे भ्रष्टाचार की तो अनदेखी करता है लेकिन दूसरों के फैसलों पर अनावश्यक टिप्पणी करके अपनी ओर उठी ऊंगली को दूसरी ओर मोड़ने का बार-बार प्रयास करता है। भ्रष्टाचार का सर्वाधिक असर समाज के गरीब समुदाय पर पड़ता है जिनकी कोई सिफ़ारिश नहीं होती। पुलिस, न्यायायिक और कानूनी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार आम लोगों को समानता के अधिकार से वंचित करने का जघन्य अपराध है। न्याय में विलंब से देश में कितना बड़ा तूफ़ान खड़ा होता है, उसका जीता-जागता प्रमाण रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले का कई दशकों तक कोर्ट में लंबित रहना है। आज जबकि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना निर्णय सुना दिया है, सुप्रीम कोर्ट ने उसके अमल पर रोक लगा रखी है। उसे २-जी, ३-जी, ए.राजा, मायावती, मुलायम, ममता, जय ललिता, लालू यादव ……….. से फुर्सत ही कहां है? इतने महत्त्वपूर्ण मामले पर त्वरित सुनवाई करके मामले का निपटारा करना सर्वोच्च न्यायालय की प्राथमिकता सूची में होना चाहिए था। पता नहीं यह मामला कहां अटका पड़ा है। Justice delayed is justice denied.

 

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विपिन किशोर सिन्हा
जन्मस्थान - ग्राम-बाल बंगरा, पो.-महाराज गंज, जिला-सिवान,बिहार. वर्तमान पता - लेन नं. ८सी, प्लाट नं. ७८, महामनापुरी, वाराणसी. शिक्षा - बी.टेक इन मेकेनिकल इंजीनियरिंग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. व्यवसाय - अधिशासी अभियन्ता, उ.प्र.पावर कारपोरेशन लि., वाराणसी. साहित्यिक कृतियां - कहो कौन्तेय, शेष कथित रामकथा, स्मृति, क्या खोया क्या पाया (सभी उपन्यास), फ़ैसला (कहानी संग्रह), राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं (शोध पत्र), संदर्भ, अमराई एवं अभिव्यक्ति (कविता संग्रह)

2 COMMENTS

  1. बिपिन जी, एक साहसिक प्रतिक्रिया देकर आपने बर्र के छत्ते में हाथ तो डाला ही है.माननीय सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाओं को स्वीकार करने का भी कोई सुनिश्चित पैमाना नहीं है.ये केवल जज साहब के निजी संतोष ( सब्जेक्टिव सेटिस्फेक्शन) पर आधारित है.एक मामले में मुझे माननीय सर्वोच्च न्यायालय में जाने का अवसर मिला.केस में याचिकाकर्ता को निकली सभी अदालतों से मत मिली थी लेकिन उसके केस में किसी भी निचले स्तर से न तो तथ्यों का और न ही विधि का और न ही न्याय निर्णयों का सही परिक्षण किया गया था और आखिरी उम्मीद सर्वोच्च न्यायालय ही बच थी.लेकिन जब उसका केस एडमिशन के लिए बेंच के समक्ष प्रस्तुत हुआ तो माननीय न्यायमूर्ति महोदय ने ये कहकर ख़ारिज कर दिया की तुम्हे तो नीचे से किसीने नहीं माना है अतः यहाँ भी नहीं सुना जायेगा..ये सहज ही सोचने वाली बात है की यदि निचले स्तर से उसे राहत मिली होती तो वह सर्वोच्च न्यायालय में आता ही क्यों?उसकी बात को सुनने का अवसर तो मिलना ही चाहिए था.लेकिन ऐसा नहीं हुआ.विद्वान वकील साहब ने पहले ही कह दिया था की जिस जज की बेंच में केस लगा है वो एडमिशन के मामले में बहुत कंजूस है.ऐसे में माननीय सर्वोच्च न्यायालय को एडमिशन के सम्बन्ध में ओब्जेक्टिवली विचार करने चाहिए और एडमिशन के सम्बन्ध में ऑब्जेक्टिव तरीका अपनाने के लिए एक निश्चित मापदंड निर्धारित करना चाहिए ताकि जज साहब के रहमोकरम पर निर्णय न हों बल्कि न्यायसंगत ढंग से निर्णय हों.इस बारे में स्पष्ट प्रक्रिया निर्धारित की जानी चाहिए.
    बिपिन जी ने जो मामला उठाया है उसको पढ़कर मेरे मन में भी ऐसे ही विचार आये थे कि अनधिकृत निर्माण और हत्या एवं बलात्कार के मामलों कि तुलना का क्या औचित्य है.लेकिन जज साहब तो जज साहब हैं जो कहदें वही कानून है.दूसरों को संयमित भाषा का उपदेश देने वाले स्वयं ही असंयमित टिप्पणी करके अपनी संस्था की प्रतिष्ठा तो नहीं ही बढ़ाते हैं.बिपिन जी को साहसिक एवं सामयिक विषय उठाने के लिए साधुवाद.

  2. is desh ki sabhi samasyao ka mool karan avaidik shasan pranali hai. bhrastachar adi sabhi choti-badi samasyao ko jarmool se door karne ke liye chunav pranali se namankan, jamanat rashi, chunav chinh aur e.v.m. ko poorn roop se hatana atyant awashyak hai. jab tak chunav prakriya se uprokt ye char nahi hataye jayenge tab tak ”Bharat Nirvachan Ayog” ko ‘Bharat Vinashak Ayog’ parhe aur samjhe. namankan, jamanat rashi, chunav chinh aur e.v.m. ke karan Bharat Nirvachan Ayog vartman me samasyao ka janmdata aur poshak hai.

  3. विपिनजी । यदि यह क्रमवार सूचि सही है तब तो देश गर्त मैं जा नहीं रहा बल्कि गर्त मैं चला गया है. शिक्षा की संस्थाएं जिन्हे मंदिर की उपमा दी जाती है क्रमांक १ पर है अब वितो देश का मालिक कौन होगा क्या मालूम?

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