रजनीश कुमार
दिल्ली मेट्रो ने महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए लाइटर, माचिस और चाकू रखने की इजाजत दी है. अब तक दिल्ली मेट्रो में यात्रा के दौरान लाइटर, माचिस और चाकू जैसी प्रतिबंधित वस्तुओं को ले जाने की मनाही थी. यह फैसला केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) ने लिया है. सीआईएसएफ के तरफ से कहा गया है की यह फैसला अक्टूबर में ही लिया जा चुका था. इस फैसले के पीछे तर्क दिया गया है की सिक्यॉरिटी चेक के दौरान मेट्रो स्टेशनों पर होने वाले झगड़ों को बंद किया जा सकेगा. इस फैसले के बाद प्रश्न उठता है कि क्या सीआईएसएफ को महज कुछ झगड़ों को सुलझाने के बदले लोगों की सुरक्षा के साथ खिलबाड़ करने की छूट दी जा सकती है? इस फैसले को दिल्ली मेट्रो का गैर जिम्मेदाराना फैसला ही कहा जायेगा. यदि देखा जाये दिल्ली मेट्रो के इस फैसले ने एक ही पल में देश की आधी आवादी को अपराधी घोषित कर दिया है. दिल्ली मेट्रो की नजर में यात्रा करने वाला हर पुरुष अपराधी हो जाता है. वो इसलिये की यह छूट सिर्फ महिलाओं को दी गई है. इसका संदेश साफ है कि महिलाओं को पुरुषों से खतरा है. ऐसे में दोनों के बीच एक खाई उत्पन्न होगी जोकि आने वक्त में और गहरी होती जायेगी. यदि इसे सुरुक्षा की दृष्टिकोण से देखे तो इसे दिल्ली पुलिस की नाकामी क्यों नहीं कहा जाये. दिल्ली मेट्रो के इस फैसले को इस नजर से भी गैर जिम्मेदाराना कहा जायेगा की हाल ही में सीआईएसएफ ने एक बयान जारी कहा था की साल 2016 में मेट्रो स्टेशन में चोरी के मामलें में 91 फीसदी महिला चोर पकड़ी गई. ऐसे में दिल्ली मेट्रो का यह फैसला उनको हौसला प्रदान करेगी. अब मेट्रो के अंदर आराम से चाकू के बल पर वह चुपचाप काम कर के निकल जायेगी और सीआईएसएफ हाथ मलते रह जायेगा, यदि वह इसमें संदेह के आधार पर पकड़ी भी गई तो एक पल के लिये वह कानून का हवाला देकर निकल जायेगी. इसमें कोई शक नहीं की नए साल के जश्न के दौरान बेंगलुरु और दिल्ली में यौन हिंसा जैसी घटना महिलाओं के सूरक्षा पर सवाल खड़ी करती है. ऐसी घटनायें प्रशासनिक स्तर की चूक को दर्शाता है, लेकिन इस आधार पर आप पूरी सोसायटी को तो जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते है? दरअसल, देशभर में एक ऐसा होव्वा खड़ा कर दिया गया जिसमें आप महिलाओ से संबंधित किसी मुद्दे पर आप थोड़ी भी अलग राय रखते हो तो आपको सीधे महिला विरोधी की कतार में खड़ा कर दिया जाता है. लेकिन दिल्ली मेट्रो के यह फैसला सबसे ज्यादा सुरक्षा पर सवाल खड़ा करती है. ऐसे में किसी महिला की मदद से आंतकी वारदरात को भी अंजाम दिया जा सकता है. ऐसे में वह महिला आराम से बच निकलेगी. क्या हम इस बात से इंकार कर सकते है कि किस तरह ‘एलटीटीई’ में एक महिला को ही मानव बम के रुप में इस्तेमाल कर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की नृशस हत्या कर दी थी. ऐसे में सवाल उठता है कि दिल्ली मेट्रो ने जल्दबाजी में यह फैसला लिया है या फिर पूरी तरह से जांच के बाद. महिला सुरक्षा को लेकर हमेशा से ही तमाम तरह की बातें की जाती हैं. तमाम तरह के दावे किए जाते हैं, कई तरह की पहल भी की जाती है लेकिन फिर भी देश में दिल्ली और बेंगलुरु जैसी इस तरह की घटना महिलाओं की सुरक्षा पर सवालिया निशान उठा देती है. खासतौर से दिल्ली की लड़कियों में अपनी सुरक्षा को लेकर अभी भी डर बैठा हुआ है. लेकिन इस डर को बाहर निकालने के लिये दिल्ली मेट्रो को यह फैसला तो कतई भरोसेमंद नहीं कहा जा सकता है.