सुशासन के कीर्तिमान गढ़ने का समय

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डा रवि प्रभात

उत्तरप्रदेश का परिणाम लगभग अव्याख्येय है, राजनीतिक विश्लेषक उत्तर प्रदेश के परिणामों को लेकर नई शब्दावली बढ़ने की कश्मकश में है, विपक्ष भौचक्का है , विस्मित है , जनता अपना चमत्कार दिखा चुकी है और मोदी-अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा इतिहास रच चुकी है ।
यह अद्भुत विजय अब इतिहास का हिस्सा है , मोदी सरकार के मध्यकाल में यह एक पड़ाव की तरह है जहां से पूरा संगठन और सरकार तरोताजा हो कर नई ऊर्जा के साथ नए लक्ष्यों की सम्पूर्ति के लिए आगे बढ़ सकते हैं।
लोकतंत्र में बड़ी जीत बड़ी जिम्मेदारी लेकर आती है , एक तरह से भाजपा के लिए यह स्वर्णिम काल की तरह है ।केंद्र में सरकार चलाने के साथ-साथ प्रदेशों में भी 52 प्रतिशत से अधिक जनता की सेवा करने का अवसर उसे मिला है ।स्थानीय निकायों से लेकर केंद्र सरकार तक हज़ारो जनप्रतिनिधि भाजपा के कार्यकर्ता हैं ।जब अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में भाजपा का विस्तार हो रहा था , कहीं कहीं स्थानीय निकायों और एक दो राज्य में भाजपा की सरकार बन चुकी थी तब एक अधिवेशन में वाजपेई साहब ने कहा था ‘आज समाज में यह स्थिति है कि केवल भाजपा का जनप्रतिनिधि ही नहीं अपितु भाजपा का कार्यकर्ता होना भी  गरिमा का विषय है , जनता का उस पर अटूट विश्वास है ,भाजपा के कार्यकर्ता इस जिम्मेदारी को समझें’। मेरे हिसाब से आज का समय  वाजपेयी साहब के उन वाक्यों को पुनः स्मरण कर और उन पर अक्षरशः  अमल करने का है ।
लोकतंत्र केवल सत्ता हथियाने का अश्वमेधयाग भर नहीं है अपितु सत्ता के माध्यम से सेवा करने का सशक्त माध्यम है, लोकतंत्र में सहभाग करने वाली किसी भी पार्टी को इस तथ्य को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। सत्ता के मामले में कांग्रेस की स्थिति किसी समय में ऐसी ही थी जैसी आज भाजपा की है , निकायों से लेकर केंद्र तक कांग्रेस की का ही बोल बाला था। ऐसे में कांग्रेस ने खुद को सत्ता का पर्याय मानने की भारी चूक की जिसका खामियाजा उसे सत्ता से बेदखल हो कर भुगतना पड़ा।
सत्ता का अपना एक स्वभाव होता है जिससे भारतीय जनता पार्टी को बेहद सावधान रहने की आवश्यकता है, भारत की जो स्थिति है उसमे उच्च लक्ष्यो की प्राप्ति के लिए केंद्र या प्रदेश में केवल एक कार्यकाल से बृहद गुणात्मक परिवर्तन आने वाला नहीं है, केवल उसकी नींव रखी जा सकती है। हमारे सामने दो उदाहरण हैं एक केंद्र में वाजपेयी सरकार का दूसरा प्रदेशो में मोदी, रमन सिंह और शिवराज की सरकार का। वाजपेयी सरकार ने अच्छे कार्यों की नींव रखी लेकिन किन्ही कारणों से अगला अवसर न मिलने की वजह से उनके शुरू किये अच्छे कामों पर अवरोध लग गया और वह विकास यात्रा आगे न बढ़ सकी।इसी तरह गुजरात , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में एक के बाद एक अवसर मिलने से जनता की मूलभूत आवश्यकताओ से लेकर मूलभूत ढाँचे तक में व्यापक परिवर्तन हुआ और जनता के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन आया, जिसे अनुभव कर जनता ने पुनः पुनः इन्हें सत्ता से नवाजा।इसलिए अगर वास्तविकता में मूलभूत परिवर्तन करना है तो सत्ता में आने के साथ साथ सत्ता में बने रहने पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।
अब समय आ गया है जब भाजपा को प्रत्येक निर्वाचित जनप्रतिनिधि के लिए  विशिष्ट आचार संहिता का प्रावधान करना चाहिए , जिसमें नैतिकता , सदाचार , इमानदारी, संवेदनशीलता और सहृदयता जैसे उच्च मानक हो जिनके पालन को सुनिश्चित कराया जाए । क्योंकि भले ही जनता ने मोदी जी और पार्टी की विचारधारा पर विश्वास करके भाजपा को वोट दिया हो परंतु रोजमर्रा की समस्याओं के लिए कार्यकर्ताओं जनता का साबका पार्षद , विधायको और सांसदों से ही पड़ता है ।अगर इन लोगों का आचरण विपरीत किस्म का होगा तो जनता का विश्वास टूटेगा और उसे दूसरे विकल्प की तरफ देखना पड़ेगा । दिल्ली में एमसीडी उसका उत्कृष्ट उदाहरण है ,  लोगों ने लोकसभा में 7 सीट भाजपा को देने के बाद भी विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल पर भरोसा दिखाया और पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा । इस बात को स्वीकार ने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि जनता भाजपा के पार्षदों की निष्क्रियता से खासी परेशान थी। इसलिए भाजपा के प्रत्येक निर्वाचित जनप्रतिनिधि को विशिष्ट आचार संहिता के दायरे में लाया जाए और उसकी पालना सुनिश्चित कराई जाए। जब तक भाजपा का  प्रत्येक जनप्रतिनिधि मोदी की का शैली नहीं अपनाएगा तब तक जनता में रोष का खतरा बना रहेगा ।
यह स्वर्णिम अवसर इस बात का भी है कि कैसे जातिगत भेदभाव के बिना आम जनता की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित की जाए , मोदी सरकार ने सत्ता को जनता के नजदीक लाने के कुछ उपाय आरंभ किए हैं ।उन्हें प्रदेश सरकार  से लेकर नीचे तक  के लोग अपनाये इस बात की आवश्यकता है। सरकार को खुद चलकर देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए। अंतिम व्यक्ति की भागीदारी वोट डालने पर समाप्त नहीं होकर वहां से वह शुरु होनी चाहिए,  इससे प्रत्येक आम भारतीय के मन में जहां लोकतंत्र के लिए विशिष्ट सम्मान पैदा होगा वहीँ भगवा दल के लिए भी विशिष्ट लगाव पैदा होगा। यह समय जनता का आत्मसम्मान सुनिश्चित करने से लेकर उसके प्राथमिकताओं को सहृदयता पूर्वक पूरे करने का भी है।
बदली स्थितियों में जब भाजपा एकमात्र ऐसा दल है जो सुशासन को आगे रखकर चुनाव में जाता है , तो स्वाभाविक तौर पर भाजपा के कर्ताधर्ताओं को अपनी शैली को और ज्यादा प्रोफेशनल बनाना पड़ेगा। मेरा मानना है कि भाजपा कोई केंद्रीकृत रिसर्च टीम का गठन करना चाहिए, जिसमें पार्टी प्रतिनिधियों से लेकर विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल हों। इस पूरी टीम का उद्देश्य भाजपा शासित तमाम राज्यों को ध्यान में रखकर,  आम जनता की सरकार से क्या अपेक्षा है ? गांव ,गरीब, किसान, मजदूर ,दलित ,शोषित ,वंचित, महिला ,युवा ,शहरी मध्यवर्ग ,छात्र वृद्ध और कर्मचारी जैसे तमाम तबकों की क्या समस्याएं हैं ? उनका क्या समाधान संभव है ? किस तरह की योजनाएं आम जनता के दिल को छुएंगी, इस सब का गहन शोध करना होना चाहिए। साथ ही एक सर्वे विंग भी गठित हो , जिसका कार्य जनप्रतिनिधियों की  कार्यपद्धति  की रिपोर्ट बनाने से लेकर सरकार द्वारा लागू की जाने वाली योजनाए जमीन पर कितनी क्रियान्वित हो पा रही हैं, अफसरों का क्या रवैया है , कहीं योजना भ्रष्टाचार की भेंट तो नहीं चढ़ रही , जनता उससे कितना प्रभावित हो रही है , कहां कहां न्यूनताये हैं, इन न्यूनताओं को कैसे पूरा किया जा सकता है , इस सब की ईमानदार, विस्तृत रिपोर्ट तैयार करके भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अवगत कराये।
इन दोनों टीम द्वारा किए गए रिसर्च को सभी मुख्यमंत्रियों की समन्वय छमाही बैठक में रखा जाए तथा जवाबदेही तय हो । जहां इन छमाही बैठक में जमीनी स्थिति की समीक्षा हो वही आगामी छमाही के विस्तृत लक्ष्य भी तय किए जाएं । अच्छी योजनाओं को एक दूसरे राज्य की परिस्थिति को देखकर लागू करने पर भी विचार हो।
जनता का मानना है कि अब भाजपा को एक मोदी नहीं 14 मोदी ,14 रमन सिंह,14 शिवराज, 14 अमित शाह चाहिए तुमने जिनके अंदर जनता की सेवा करने की इतनी भूख हो कि अपने को पूरी तरह जनता की सेवा में झौंक दें,और जनता के दिल पर राज करें।
भाजपा के वैचारिक धरा बेहद मजबूत रही है , इसका लाभ भी उसे मिला है।  जहां दीनदयाल उपाध्याय जी  ने देश के अंतिम व्यक्ति के विकास के लिए एकात्म मानववाद और अंत्योदय का दर्शन दिया , वही हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और सर्वधर्मसमभाव के अडिग विचार ने सदा ही भाजपा को लोकप्रियता तथा मजबूती प्रदान की है ।यह समय अंत्योदय, विकास , सुशासन , हिंदुत्व , राष्ट्रवाद और  सर्वधर्म समभाव इन 6 बिंदुओं को पूर्णतः अपनी शासन पद्धति में समाविष्ट करके निरंतर आगे बढ़ने का है।सुशासन के नए प्रतिमान गढ़ने का समय है , अगर इनमें से एक भी बिंदु कमजोर पड़ेगा तो समस्या आएगी । उत्तर प्रदेश के जीत इन 6 बिंदुओं/स्तंभों पर ही आधारित है। भले ही राजनीतिक विश्लेषक अपनी अवसरवादी व्याख्याएं कर रहे हो। इन बिन्दुओ को अगर संक्षेप में कहना हो तो विकास और हिंदुत्व के मिश्रित अजेंडे से ही “एक बार आओ बार बार आओ “का मंत्र साकार हो सकेगा।

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  1. आज भारत में राष्ट्रीयता की समर्थक राजनीति और राष्ट्रीयता के प्रति भारतीयों में नया उत्साह-भरा वातावरण अवश्य ही भारत के भाग्य-विधाता युगपुरुष नरेन्द्र मोदी जी में हमारे प्रगाढ़ विश्वास का प्रतीक है|

    डॉ. रवि प्रभात जी आपका निबंध, “सुशासन के कीर्तिमान गढ़ने का समय” युगपुरुष मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा द्वारा देश व देशवासियों की सेवा हेतु उनके राजनैतिक स्वर्णिम अवसर को भली भांति परिभाषित करता है| राष्ट्रवादी शासन के साथ जनता में आप जैसे बुद्धिजीवियों की सहभागिता और हिंदुत्व के आचरण पर आधारित कुशल न्याय व विधि व्यवस्था के अंतर्गत जनता-उन्मुख कार्यकलापों द्वारा मैं भारत का पुनर्निर्माण होते देखता हूँ| आपको मेरा साधुवाद|

    हमारे सांझे विचार होते हुए भी आपका कथन, “सत्ता के मामले में कांग्रेस की स्थिति किसी समय में ऐसी ही थी जैसी आज बीजेपी की है…” स्वयं मेरे लिए एक विवाद का मुद्दा रहा है| जब तक इस विषय पर निष्पक्ष शोध कार्य न होगा—जो अब तक संभव न था—मैं १८८५ में जन्मी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को सदैव फिरंगियों का प्रतिनिधि कार्यवाहक मानता रहूँगा| राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह कैसे पर्यायवाची शब्द हो सकते हैं?

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