हिन्दी में शपथ का स्वागतः ‘प्रवक्ता’ की ओर से नरेंद्र मोदी संग पूरे मंत्रिमंडल को बधाई

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nआज अगर हमारे बापू गांधीजी जिंदा होते तो सचमुच कहते 26 मई 2014 को हमारा देश आज़ाद हुआ। प्रधानमंत्री का शपथ ग्रहण तो पहले भी हुआ, लेकिन इस बार जिस शिद्दत से प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल में अधिकांशतः ने हिन्दी में शपथ ली, वो किसी नायाब क्षण से कम नहीं था। इतिहास इस पल को सुनहरे पन्नों में सुरक्षित रखेगा। वैसे तो मुहम्मद इक़बाल ने ‘सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा। हम बुलबुले हैं इसकी, यह गुलसितां हमारा।… मज़हब नहीं सिखाता, आपस में वैर रखना। हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्तां हमारा‘ ये पंक्ति वर्ष 1905 में लिखी, लेकिन आज तक अंग्रेजीत्व ने कभी न तो अखंड हिन्दी को वतन से पूर्णरूपेण मिलने दिया और न हिन्दी से हमारा हिन्दोस्तां प्रफुल्लित और सुशोभित हुआ। अगर कोई दक्षिण भारत के हों, हिन्दी के उच्चारण में कठिनता आती हो तो एक बात है, लेकिन अंग्रेजी में शपथ, भाषण या कामकाज को केवल इसलिए बढ़ावा दिया जाए, क्योंकि हम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, कम से कम हिन्दुस्तान के लिए किसी अभिशप्त भाव से कम नहीं है। इक़बाल के इस गीत में ‘आपस में वैर न रखने वाली’ पंक्ति स्कूलों में बचपन से सिखाई जाती है, हम राष्ट्रीय आयोजनों में भी झूमकर गाते हैं, लेकिन कितनों ने आज तक इसके मायने को समझा। नरेंद्र मोदी के बाद राजनाथ सिंह ने भी हिंदी में शपथ ली। फिर सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नितिन गडकरी, उमा भारती, गोपीनांथ मुंडे, रामबिलास पासवान, कलराज मिश्र, अनंत कुमार, रविशंकर प्रसाद, अनंत गंगाराम गीते (शिवसेना), नरेंद्र सिंह तोमर , जुवैल उरांव, राधामोहन सिंह, तावरचंद गहलोत, स्मृति ईरानी, डॉ. हर्षवर्धन, वीके सिंह, इंद्रजीत सिंह, संतोष कुमार गंगवाल, श्रीपदयेशो नाइक, धर्मेन्द्र प्रधान, प्रकाश जावड़ेकर, पियूष वेदप्रकाश गोयल, डॉ. जितेन्द्र सिंह, निर्मला सीतारमण, मनोज सिन्हा, निहालचंद , उपेन्द्र कुशवाहा, किरण रिजू, कृष्णपाल,  डॉ. संजय कुमार बालयान जैसे अधिकांश नेताओं ने हिन्दी में शपथ ली। आज पूरा देश वो चाहे असम हो या गोवा हो या महाराष्ट्र या बिहार या उत्तर प्रदेश, जिस तरह रिकॉर्ड मंत्रियों ने हिन्दी में शपथ ली, उससे पूरा हिन्दुस्तान हिन्दीमय नज़र आ रहा था। आज नरेंद्र मोदी ने ऐसे खास मौके पर पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आलम नवाज शरीफ को बुलाकर, दक्षेस के इतने सारे देशों को एक मंच पर सम्मिलित कर हिन्दी के जिस गौरव को बढ़ाया है,हिन्दी का आगाज़ किया है, वो गौरवमयी और हर भारतीय के लिए अपने हिन्द पर नाज़ करने से कम नहीं है। हिन्दी साहित्य युगों-युगों तक इसे सिर-आंखों पर बिठाएगा। 26 मई 2014 का ये शपथ ग्रहण आने वाले प्रधानमंत्रियों को सीख और सबक देगा। यह केवल इतिहास बनने तक ही सीमित नहीं है। आज से तो इसका आगाज है। भारत माता आज तक जिस अंग्रेजियत की बेड़ियों में जकड़ी हुई थी, वो आज मुक्त हो गई। इस वायुमण्डल में स्वच्छंद हो गई। आज शायद पहली बार ही होगा कि राष्ट्रपति भवन के परिसर में हर-हर-महादेव की तेज़ गूंज सुनाई दी, बिना किसी राजनीति की, बिना बे-रोक-टोक के। वो भी तब जब पाकिस्तान समेत दक्षेस देशों के शीर्ष नेतृत्व हमारे बीच थे। प्रवक्ता डॉट कॉम सहृदय आभार व्यक्त करती है देश के गौरवमयी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली समेत उन सारे गण्यमान्यों का जिन्होंने आज इस हिन्दुस्तान को हिन्दी की रंगीन लिबास में सुसज्जित किया। प्रवक्ता डॉट कॉम इस संक्षिप्त विचार के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री तक ये संदेश पहुंचाना चाहती है कि हम हिन्दी के लिए लड़ते हैं, हिन्द पर मिटते हैं। हिन्दोस्तां हमारा धर्म है और रग-रग में बसा कर्म… जब-जब हिन्दी और इस हिन्द को बढ़ावा देने की बात आएगी, पूरा प्रवक्ता डॉट कॉम परिवार आपके साथ है प्रधानमंत्री जी, आप बस एक आवाज़ दीजिएगा… जय हिन्द, जय हिन्दी, जय हिन्दुस्तान

3 COMMENTS

  1. वडोदरा में हिंदी
    मोदीजी ने, ऐतिहासिक जीत के पश्चात, वडोदरा में मतदाताओं का आभार व्यक्त करनेवाला भाषण हिंदी में प्रारंभ किया, तो कुछ श्रोताओं ने उन से गुजराती में बोलने का आग्रह किया।
    ऐसे प्रसंग पर कोई और नेता होता, और मतदाताओं का मन रखकर ऋण चुकाने के लिए, गुजराती में बोल देता। और यदि ऐसा होता, तो शायद ही, कोई उसे, अनुचित मानता।
    वैसे, बोलनेवाले शायद न हो पर गुजरात में हिंदी समझनेवाले बहुत हैं। वैसे समझ प्रायः सभी जाते हैं।
    ==>पर इस अवसर पर भी, मोदीजी ने जिस चतुराई और राष्ट्रीयता का ही, परिचय दिया; उससे मैं बहुत हर्षित हुआ।
    क्या कहा उन्हों ने? उन्हों ने नम्रता पूर्वक, हाथ जोडकर कहा, कि, “आप ही (वडोदरा की जनता) ने मुझे मत देकर, सारे देश का बना दिया है। कुछ धैर्य रखिए।” और ऐसा कहकर हिंदी में ही बोलना अबाधित रखा।
    ==अच्छे दिनों की आहट, और राष्ट्र चेतना के चेतक की टाप सुनाई दे रही है।
    किंतु यह जनतंत्र है। जनता का भी सहयोग और योगदान चाहिए।

  2. मुझे याद है की किसी दुर्घटना में कुछ लोग की मृत्यू हो गई थी, सभी मृतक हिन्दीभाषी थे, लेकिन जब मनमोहनसिंह वहां जा कर बोले तो अंगरेजी में बोले. कोई ऐसा भारतीय प्रधानमंत्री जिसे अंगरेजी नहीं आती वह अंगरेजी बोले तो दुःख नहीं होगा. लेकिन मनमोहन सिंह की हिन्दी अच्छी थी. बावजूद इसके वे ऐसे अवसर पर जिस पर भारतीय नागरिक से जुड़ने की आवश्यकता है वहां भी अंगरेजी में बोलते थे, ऐसे लोगो को जनता ने अच्छा जवाब दिया है.

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