स्वीटजरलैंड सबसे अमीर कैसे???

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-दिवस दिनेश गौड़

मित्रों शीर्षक पढ़ कर चौंका जा सकता है कि तुम्हे क्या पड़ी है कोई देश कितना भी अमीर क्यों है? तुम तो अपने देश की चिंता करो न कि तुम्हारा देश इतना गरीब क्यों है? किन्तु मित्रों मेरा आपसे आग्रह है कि कृपया एक बार मेरे इस लेख को ध्यान से अवश्य पढ़ें। लेख शायद जरूरत से ज्यादा लम्बा हो जाये और बीच में शायद आप को ऐसा भी लगे कि मै कहीं लेख के मुख्य शीर्षक से कहीं भटक गया हूँ किन्तु जो बात आपको कहना चाहता हूँ उसके लिये आपके कुछ मिनट चाहूँगा।

मित्रों जैसा कि आप सब लोग जानते ही होंगे कि विश्व में इस समय करीब २०० देश हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के पिछले वर्ष के एक सर्वेक्षण के अनुसार विश्व में ८६ महा दरिद्र देश हैं और उनमे भारत १७वे स्थान पर आता है। अर्थात ६९ महा दरिद्र देश भारत से ज्यादा अमीर हैं। केवल १६ महा दरिद्र देश विश्व में ऐसे हैं जो भारत के बाद आते हैं। दुनिया का सबसे अमीर देश इसके अनुसार स्वीटजरलैंड है। मित्रों अब प्रश्न यहाँ से उठता है कि स्वीटजरलैंड सबसे अमीर कैसे है? मेरे एक परीचित एवं अग्रज तुल्य देश के एक वैज्ञानिक श्री राजिव दीक्षित से मिली एक जानकारी के अनुसार स्वीटजरलैंड में कुछ भी नहीं होता। कुछ भी का मतलब कुछ भी नहीं। वहां किसी प्रकार का कोई व्यापार नहीं है, कोई खेती नहीं, कोई छोटा मोटा उद्योग भी नहीं है। फिर क्या कारण है कि स्वीटजरलैंड दुनिया का सबसे अमीर देश है?

मित्रों श्री राजीव दीक्षित के एक व्याक्यान में उन्होंने बताया था कि वे एक बार जर्मनी गए थे और वहां एक प्रोफेसर से उनका विवाद हो गया। विवाद का विषय था ”भारत महान या जर्मनी?” जब कोई निर्णय नहीं निकला तो उन्होंने एक रास्ता बनाया कि दोनों जन एक दूसरे से उसके देश के बारे में कुछ सवाल पूछेंगे और जिसके जवाब में सबसे ज्यादा हाँ का उत्तर होगा वही जीतेगा और उसी का देश महान। अब राजीव भाई ने प्रश्न पूछना शुरू किया। उनका पहला प्रश्न था-

प्र-क्या तुम्हारे देश में गन्ना होता है?

उ-नहीं।

प्र-क्या तुम्हारे देश में केला होता है?

उ-नहीं।

प्र-क्या तुम्हारे देश में आम, सेब, लीची या संतरा जैसा कोई फल होता है?

उ-(बौखलाहट के साथ) हमारे देश में तो क्या पूरे यूरोप में मीठे फल नहीं लगते, आप कुछ और पूछिए।

प्र-क्या तुम्हारे देश में पालक होता है?

उ-नहीं।

प्र-क्या तुम्हारे देश में मूली होती है?

उ-नहीं।

प्र-क्या तुम्हारे देश में पुदीना, धनिया या मैथी जैसी कोई चीज होती है?

उ-(फिर बौखलाहट के साथ) पूरे यूरोप में पत्तेदार सब्जियां नहीं होती, आप कुछ और पूछिए।

इस पर राजीव भाई ने कहा कि मैंने तो तुम्हारे यहाँ के डिपार्टमेंटल स्टोर में सब देखा है, ये सब कहाँ से आया? तो इस पर उसने कहा कि ये सब हम भारत या उसके आस पास के देशों से मंगवाते हैं। तो राजीव भाई ने कहा कि अब आप ही मुझसे कुछ पूछिए। तो उन्होंने और कूछ नहीं पूछा बस इतना पूछा कि भारत में क्या ये सब कूछ होता है? तो उन्होंने बताया कि बिलकुल ये सब होता है। भारत में करीब ३५०० प्रजाति का गन्ना होता है, करीब ५००० प्रजाति के आम होते हैं। और यदि आप दिल्ली को केंद्र मान कर १०० किमी की त्रिज्या का एक वृत बनाएं तो इस करीब ३१४०० वर्ग किमी के वृत में आपको आमों की करीब ५०० प्रजातियाँ बाज़ार में बिकती मिल जाएंगी। इन सब सवालों के बाद प्रोफेसर ने कहा कि इतना सब कूछ होने के बाद भी आप इतने गरीब और हम इतने अमीर क्यों हैं? ऐसा क्या कारण है कि आज आपकी भारत सरकार हम यूरोपीय या अमरीकी देशों के सामने कर्ज मांगने खड़ी हो जाती है? प्राकृतिक रूप से इतने अमीर होने के बाद भी आप भिखारी और हम कर्ज़दार क्यों हैं?

तो मित्रों शंका यही है कि प्राकृतिक रूप से इतने अमीर होने के बाद भी हम इतने गरीब क्यों हैं? और यूरोप जहाँ प्रकृति की कोई कृपा नहीं है फिर भी इतना अमीर कैसे?

मित्रों भारत को विश्व में सोने की चिड़िया कहा गया किन्तु एक बात सोचने वाली है कि यहाँ तो कोई सोने की खाने नहीं हैं फिर यहाँ विश्व का सबसे बड़ा सोने का भण्डार बना कैसे? यहाँ प्रश्न जरूर पैदा होते हैं किन्तु एक उत्तर यह मिलता है कि हम हमेशा से गरीब नहीं थे। अब जब भारत में सोना नहीं होता तो साफ़ है कि भारत में सोना आया विदेशों से। किन्तु हमने तो कभी किसी देश को नहीं लूटा। इतिहास में ऐसा कोई भी साक्ष्य नहीं है जिससे भारत पर ऐसा आरोप लगाया जा सके कि भारत ने अमुक देश को लूटा, भारत ने अमुक देश को गुलाम बनाया, न ही भारत ने आज कि तरह किसी देश से कोई क़र्ज़ लिया फिर यह सोना आया कहाँ से? तो यहाँ जानकारी लेने पर आपको कूछ ऐसे सबूत मिलेंगे जिससे पता चलता है कि कालान्तर में भारत का निर्यात विश्व का ३३% था। अर्थात विश्व भर में होने वाले कुल निर्यात का ३३% निर्यात भारत से होता था। हम ३५०० वर्षों तक दुनिया में कपडा निर्यात करते रहे क्यों की भारत में उत्तम कोटी का कपास पैदा होता था। तो दुनिता को सबसे पहले कपडा पहनाने वाला देश भारत ही रहा है। कपडे के बाद खान पान की अनेक वस्तुएं भारत दुनिया में निर्यात करता था क्यों कि खेती का सबसे पहले जन्म भारत में ही हुआ है। खान पान के बाद भारत में करीब ९० अलग अलग प्रकार के खनीज भारत भूमी से निकलते है जिनमे लोहा, ताम्बा, अभ्रक, जस्ता, बौक् साईट, एल्यूमीनियम और न जाने क्या क्या होता था। भारत में सबसे पहले इस्पात बनाया और इतना उत्तम कोटी का बनाया कि उससे बने जहाज सैकड़ों वर्षों तक पानी पर तैरते रहते किन्तु जंग नहीं खाते थे। क्यों की भारत में पैदा होने वाला लौह अयस्क इतनी उत्तम कोटी का था कि उससे उत्तम कोटी का इस्पात बनाया गया। लोहे को गलाने के लिये भट्टी लगानी पड़ती है और करीब १५०० डिग्री ताप की जरूरत पड़ती है और उस समय केवल लकड़ी ही एक मात्र माध्यम थी जिसे जलाया जा सके। और लकड़ी अधिकतम ७०० डिग्री ताप दे सकती है फिर हम १५०० डिग्री तापमान कहा से लाते थे वो भी बिना बिजली के? तो पता चलता है कि भारत वासी उस समय कूछ विशिष्ट रसायनों का उपयोग करते थे अर्थात रसायन शास्त्र की खोज भी भारत ने ही की। खनीज के बाद चिकत्सा के क्षेत्र में भी भारत का ही सिक्का चलता था क्यों कि भारत की औषधियां पूरी दुनिया खाती थी। और इन सब वस्तुओं के बदले अफ्रीका जैसे स्वर्ण उत्पादक देश भारत को सोना देते थे। तराजू के एक पलड़े में सोना होता था और दूसरे में कपडा। इस प्रकार भारत में सोने का भण्डार बना। एक ऐसा देश जहाँ गाँव गाँव में दैनिक जीवन की लगभग सभी वस्तुएं लोगों को अपने ही आस पास मिल जाती थी केवल एक नमक के लिये उन्हें भारत के बंदरगाहों की तरफ जाना पड़ता था क्यों कि नमक केवल समुद्र से ही पैदा होता है। तो विश्व का एक इ तना स्वावलंबी देश भारत रहा है और हज़ारों वर्षों से रहा है और आज भी भारत की प्रकृती इतनी ही दयालु है, इतनी ही अमीर है और अब तो भारत में राजस्थान में बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर में पेट्रोलियम भी मिल गया है तो आज भारत गरीब क्यों है और प्रकृति की कोई दया नहीं होने के बाद यूरोप इतना अमीर क्यों?

तो मित्रो इसका उत्तर यहाँ से मिलता है। उस समय अफ्रीका और लैटिन अमरीका तक व्यापार का काम दो देशों चीन और भारत से होता था। आप सब जानते ही होंगे कि अफ्रीका दुनिया का सबसे बड़ा स्वर्ण उत्पादक क्षेत्र रहा है और आज भी है। इसके अलावा अफ्रीका की चिकित्सा पद्धति भी अद्भुत रही है। सबसे ज्यादा स्वर्ण उत्पादन के कारण अफ्रीका भी एक बहुत अमीर देश रहा है। अंग्रेजों द्वारा दी गयी ४५० साल की गुलामी भी इस देश से वह गुण नहीं छीन पायी जो गुण प्रकृति ने अफ्रीका को दिया। अंग्रेजों ने अफ्रीका को न केवल लूटा बल्कि बर्बरता से उसका दोहन किया। भारत और अफ्रीका का करीब ३००० साल से व्यापारिक सम्बन्ध रहा है। भौगोलिक दृष्टि से समुद्र के रास्ते दक्षिण एशिया से अफ्रीका या लैटिन अमरीका जाने के लिये इंग्लैण्ड के पास से निकलना पड़ता था। तब इंग्लैण्ड वासियों की नज़र इन जहाज़ों पर पड़ गयी। और आप जानते होंगे कि इंग्लैण्ड में कूछ नही था, लोगों का काम लूटना और मार के खाना ही था, ऐसे में जब इन्होने देखा कि माल और सोने भरे जहाज़ भारत जा रहे हैं तो इन्होने जहाज़ों को लूटना शुरू किया। किन्तु अब उन्होंने सोचा कि क्यों न भारत जा कर उसे लूटा जाए।।। तब कूछ लोगों ने मिल कर एक संगठन खड़ा किया और वे इंग्लैण्ड के राजा रानी से मिले और उनसे कहा कि हम भारत में व्यापार करना चाहते हैं हमें लाइसेंस की आवश् यकता है। अब राज परिवार ने कहा कि भारत से कमाया गया धन राज परिवार, मंत्रिमंडल, संसद और अधीकारियों में भी बंटेगा। इस समझौते के साथ सन १७५० में थॉमस रो ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नाम से जहांगीर के दरबार में पहुंचा और व्यापार करने की आज्ञा मांगी। और तब से १९४७ तक क्या हुआ है वह तो आप भी जानते है।

थॉमस रो ने सबसे पहले सूरत के एक महल नुमा घर को लूटा जो आज भी मौजूद है। फिर पड़ोस के गाँव में और फिर और आगे। खाली हाथ आये इन अंग्रजों के पास जब करोड़ों की संपत्ति आई तो इन्होने अपनी खुद की सेना बनायी। उसके बाद सन १७५७ में रोबर्ट क्लाइव बंगाल के रास्ते भारत आया उस समय बंगाल का राजा सिराजुद्योला था। उसने अंग्रेजों से संधि करने से मना कर दिया तो रोबर्ट क्लाइव ने युद्ध की धमकी दी और केवल ३५० अंग्रेज सैनिकों के साथ युद्ध के लिये गया। बदले में सिराजुद्योला ने १८००० की सेना भेजी और सेनापति बनाया मीर जाफर को। तब रोबर्ट क्लाइव ने मीर जाफर को पत्र भेज कर उसे बंगाल की राज गद्दी का लालच देकर उससे संधि कर ली। रोबर्ट क्लाइव ने अपनी डायरी में लिखा था कि बंगाल की राजधानी जाते हुए मै और मीर जाफर सबसे आगे, हमारे पीछे मेरी ३५० की अंग्रेज सेना और उनके पीछे बंगाल की १८००० की सेना। और रास्‍ते में जितने भी भारतीय हमें मिले उन्होंने हमारा कोई विरोध नहीं किया, उस समय यदि सभी भारतीयों ने मिल कर हमारा विरोध किया होता या हम पर पत्थर फैंके होते तो शायद हम कभी भारत में अपना साम्राज्य नहीं बना पाते। वो डायरी आज भी इंग्लैण्ड में है। मीर जाफर को राजा बनवाने के बाद धोखे से उसे मार कर मीर कासिम को राजा बनाया और फिर उसे मरवाकर खुद बंगाल का राजा बना। ६ साल लूटने के बाद उसका स्थानातरण इंग्लैण्ड हुआ और वहां जा कर जब उससे पूछा गया कि कितना माल लाये हो तो उसने कहा कि मै सोने के सिक्के, चांदी के सिक्के और बेश कीमती हीरे जवाहरात लाया हूँ। मैंने उन्हें गिना तो नहीं किन्तु इन्हें भारत से इंग्लैण्ड लाने के लिये मुझे ९०० पानी के जहाज़ किराये पर लेने पड़े। अब सोचो एक अकेला रोबर्ट क्लाइव ने इतना लूटा तो भारत में उसके जैसे ८४ ब्रीटिश अधीकारी आये जिन्होंने भारत को लूटा। रोबर्ट क्लाइव के बाद वॉरेन हेस्टिंग्स नामक अंग्रेज अधीकारी आया उसने भी लूटा, उसके बाद विलियम पिट, उसके बाद कर्जन, लौरेंस, विलियम मेल्टिन और न जाने कौन कौन से लुटेरों ने लूटा। और इन सभी ने अपने अपने वाक्यों में भारत की जो व्याख्या की उनमे एक बात सबमे सामान है। सबने अपने अपने शब्दों में कहा कि भारत सोने की चिड़िया नहीं सोने का महासागर है। इनका लूटने का प्रारम्भिक तरीका यह था कि ये किसी धनवान व्यक्ति को एक चिट्ठी भेजते थे जिसमे एक करोड़, दो करोड़ या पांच करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की मांग करते थे और न देने पर घर में घुस कर लूटने की धमकी देते थे। ऐसे में एक भारतीय सोचता कि अभी नहीं दिया तो घर से दस गुना लूट के ले जाएगा अत: वे उनकी मांग पूरी करते गए। धनवानों के बाद बारी आई देश के अन्य राज्यों के राजाओं की। वे अन्य राज परीवारों को भी ऐसे ही पत्र भेजते थे। कूछ राज परिवार जो कायर थे उनकी मांग मान लेते थे किन्तु कूछ साहसी लोग ऐसे भी थे जो उन्हें युद्ध के लिये ललकारते थे। फिर अंग्रेजों ने राजाओं से संधि करना शुरू कर दिया।

अंग्रेजों ने भारत के एक भी राज्य पर शासन खुद युद्ध जीत कर नहीं जमाया। महारानी झांसी के विरुद्ध १७ युद्ध लड़ने के बाद भी उन्हें हार का मूंह देखना पड़ा। हैदर अली से ५ युद्धों में अंग्रेजों ने हार ही देखी। किन्तु अपने ही देश के कूछ कायरों ने लालच में आकर अंग्रेजों का साथ दिया और अपने बंधुओं पर शस्त्र उठाया।

सन १८३४ में अंग्रेज अधिकारी मैकॉले का भारत में आगमन हुआ। उसने अपनी डायरी में लिखा है कि ”भारत भ्रमण करते हुए मैंने भारत में एक भी भिखारी और एक भी चोर नहीं देखा। क्यों कि भारत के लोग आज भी इतने अमीर हैं कि उन्हें भीख मांगने और चोरी करने की जरूरत नहीं है और ये भारत वासी आज भी अपना घर खुला छोड़ कर कहीं भी चले जाते हैं इन्हें तालों की भी जरूरत नहीं है।” तब उसने इंग्लैण्ड जा कर कहा कि भार त को तो हम लूट ही रहे हैं किन्तु अब हमें कानूनन भारत को लूटने की नीति बनानी होगी और फिर मैकॉले के सुझाव पर भारत में टैक्स सिस्टम अंग्रेजों द्वारा लगाया गया। सबसे पहले उत्पादन पर ३५०%, फिर उसे बेचने पर ९०% । और जब और कूछ नहीं बचा तो मुनाफे पर भी टैक्स लगाया गया। इस प्रकार अंग्रजों ने भारत पर २३ प्रकार के टैक्स लगाए।

और इसी लूट मार से परेशान भारतीयों ने पहली बार एकत्र होकर सब १८५७ में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति छेड़ दी। इस क्रांती की शुरुआत करने वाले सबसे पहले वीर मंगल पाण्डे थे और अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के लिये शहीद होने वाले सबसे पहले शहीद भी मंगल पांडे ही थे। देखते ही देखते इस क्रान्ति ने एक विशाल रूप धारण किया। और इस समय भारत में करीब ३ लाख २५ हज़ार अंग्रेज़ थे जिनमे से ९०% इस क्रांति में मारे गए। किन्तु इस बार भी कूछ कायरों ने ही इस क्रान्ति को विफल किया और अंग्रेजों द्वारा सहायता मांगने पर उन्होंने फिर से अपने बंधुओं पर प्रहार किया।

उसके बाद १८७० में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रान्ति छेड़ी हमारे देश के गौरव स्वामी दयानंद सरस्वती ने, उनके बाद लोकमान्य तिलक, लाला लाजपतराय, वीर सावरकर जैसे वीरों ने। फिर गांधी जी, भगत सिंह, उधम सिंह, चंद्रशेखर जैसे बीरों ने। अंतिम लड़ाई लड़ने वालों में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस रहे हैं। सन १९३९ में द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब हिटलर इंग्लैण्ड को मारने के लिये तैयार खड़ा था तो अंग्रेज साकार ने भारत से एक हज़ार ७३२ करोड़ रुपये ले जा कर युद्ध लड़ने का निश्चय किया और भारत वासियों को वचन दिया कि युद्ध के बाद भारत को आज़ाद कर दिया जाएगा और यह राशि भारत को लौटा दी जाएगी। किन्तु अंग्रेज अपने वचन से मुकर गए।

आज़ादी मिलने से कूछ समय पहले एक बीबीसी पत्रकार ने गांधी जी से पूछा कि अब तो अंग्रेज जाने वाले हैं, आज़ादी आने वाली है, अब आप पहला काम क्या करेंगे? तो गांधी जी ने कहा कि केवल अंग्रेजों के जाने से आज़ादी नहीं आएगी, आज़ादी तो तब आएगी जब अंग्रेजो द्वारा बनाया गया पूरा सिस्टम हम बदल देंगे अर्थात उनके द्वारा बनाया गया एक एक कानून बदलने की आवश्यकता है क्यों कि ये क़ानून अंग्रेजों ने भारत को लूटने के लिये बनाए थे, किन्तु अब भारत के आज़ाद होने के बाद इन सभी व्यर्थ के कानूनों को हटाना होगा और एक नया संविधान भारत के लिये बनाना होगा। हमें हमारी शिक्षा पद्धति को बदलना होगा जो कि अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाए रखने के लिये बनाई थी। जिसमे हमें हमारा इतिहास भुला कर अंग्रेजों का कथित महान इतिहास पढ़ाया जा रहा है। अंग्रेजों कि शिक्षा पद्धति में अंग्रजों को महान और भारत को नीचा और गरीब देश बता कर भारत वासियों को हीन भावना से ग्रसित किया जा रहा है। इस सब को बदलना होगा तभी सही अर्थों में आजादी आएगी।

किन्तु आज भी अंग्रेजों के बनाए सभी क़ानून यथावत चल रहे हैं अंग्रेजों की चिकित्सा पद्धति यथावत चल रही है। और कूछ काम तो हमारे देश के नेताओं ने अंग्रेजों से भी बढ़कर किये। अंग्रेजों ने भारत को लूटने के लिये २३ प्रकार के टैक्स लगाए किन्तु इन काले अंग्रेजों ने ६४ प्रकार के टैक्स हम भारत वासियों पर थोप दिए। और इसी टैक्स को बचाने के लिये देश के लोगों ने टैक्स की चोरी शुरू की जिससे काला बाजारी जैसी समस्या सामने आई। मंत्रियों ने इतने घोटाले किये कि देश की जनता भूखी मरने लगी। भारत की आज़ादी के बाद जब पहली बार संसद बैठी और चर्चा चल रही थी राष्ट्र निर्माण की तो कई सांसदों ने नेहरु से कहा कि वह इंग्लैण्ड से वह उधार की राशी मांगे जो द्वितीय विश्व युद्ध के समय अंग्रेजों ने भारत से उधार के तौर पर ली थी और उसे राष्ट्र निर्माण में लगाए। किन्तु नेहरु ने कहा कि अब वह राशि भूल जाओ। तब सांसदों का कहना था कि इन्होने जो २०० साल तक हम पर जो अत्याचार किया है क्या उसे भी भूल जाना चाहिए? तब नेहरु ने कहा कि हाँ भूलना पड़ेगा, क्यों कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सब कूछ भुलाना पड़ता है। और तब यही से शुरुआत हुई सता की लड़ाई की और राष्ट्र निर्माण तो बहुत पीछे छूट गया था।

तो मित्रों अब मुझे समझ आया कि भारत इतना गरीब कैसे हुआ, किन्तु एक प्रश्न अभी भी सामने है कि स्वीटजरलैंड जैसा देश आज इतना अमीर कैसे है जो आज भी किसी भी प्रकार का कार्य न करने पर भी मज़े कर रहा है। तो मित्रों यहाँ आप जानते होंगे कि स्वीटजरलैंड में स्विस बैंक नामक संस्था है, केवल यही एक काम है जो स्वीटजरलैंड को सबसे अमीर देश बनाए बैठा है। स्विस बैंक एक ऐसा बैंक है जो किसी भी व्यक्ति का कित ना भी पैसा कभी भी किसी भी समय जमा कर लेता है। रात के दो बजे भी यहाँ काम चलता मिलेगा। आपसे पूछा भी नहीं जाएगा कि यह पैसा आपके पास कहाँ से आया? और उसपर आपको एक रुपये का भी ब्याज नहीं मिलेगा। और ये बैंक आपसे पैसा लेकर भारी ब्याज पर लोगों को क़र्ज़ देता है। खाताधारी यदि अपना पैसा निकालने से पहले यदि मर जाए तो उस पैसा का मालिक स्विस बैंक होगा, क्यों कि यहाँ उत्तराधिकार जैसी कोई परम्परा नहीं है। और स्वीटजरलैंड अकेला नहीं है, ऐसे ७० देश और हैं जहाँ काला धन जमा होता है इनमे पनामा और टोबैको जैसे देश हैं।

मित्रों आज़ादी के बाद भारत में भ्रष्टाचार तो इतना बढ़ा कि मधु कौड़ा जैसे मुख्यमंत्री ने झारखंड का मुख्यमंत्री बनकर केवल दो साल में ५६०० करोड़ की संपत्ति स्विस बैंक में जमा करवा दी। जब मधु कौड़ा जैसा मुख्यमंत्री केवल दो साल में ५६०० करोड़ रुपये भारत के एक गरीब राज्य से लूट सकता है तो ६३ सालों से सत्ता में बैठे काले अंग्रेजों ने इस अमीर देश से कितना लूटा होगा? ऐसे ही थोड़े ही राजीव गांधी ने कहा था कि जब मै एक रूपया देश की जनता को देता हूँ तो जनता तक केवल १५ पैसे पहुँचते हैं। कूछ समय पहले उत्तर प्रदेश के एक आईएएस अधिकारी अखंड प्रताप सिंह के घर जब इन्कम टैक्स का छापा पड़ा तो उनके घर से ४८० करोड़ रुपये मिले। पूछताछ में अखंड प्रताप सिंह ने बताया कि ऐसे मेरे १९ घर और हैं। और इस प्रकार से ये पैसा पहुंचता है स्विस बैंक।

तो मित्रों अब यहाँ से पता चलता है कि भारत आज़ादी के ६३ साल बाद भी इतना गरीब देश क्यों है और स्वीटजरलैंड इतना अमीर क्यों है? इसका उत्तर यह है कि १५ अगस्त १९४७ को भारत आज़ाद नहीं हुआ था केवल सत्ता का हस्तांतरण हुआ था। सत्ता गोरे अंग्रेजों के हाथ से निकल कर काले अंग्रेजों के हाथ में आ गयी थी।

और आज इन्ही काले अंग्रेजों की संताने आज हम पर शाशन कर रही हैं। वरना क्या वजह है कि मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में नयी दुनिया नामक एक अखबार की पुस्तक का विमोचन करने पहुंचे चिताम्बरम ने यह कहा कि भारत तो हज़ारों वर्षों से भयंकर गरीब देश है। और इन्ही काले अंग्रेजों की एक और संतान हमारे प्रधान मंत्री जी हैं। जब ये प्रधान मंत्री बनने के बाद पहली बार ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय गए तो वहां उन्हà ��ंने कहा कि भारत तो सदियों से गरीब देश रहा है, ये तो भला हो अंग्रेजों का जिन्होंने आकर हमें अँधेरे से बाहर निकाला, हमारे देश में ज्ञान का सूरज लेकर आये, हमारे देश का विकास किया आदि आदि। अगले दिन लन्दन के सभी बड़े बड़े अखबारों में हैडलाइन छपी थी की भारत शायद आज भी मानसिक रूप से हमारा गुलाम है। और ये वही काले अंग्रेज हैं जो खुद तो देश का पैसा स्विस बैंक में जमा करते गए किन्तु गुजरात जैसे प्रदेश में भी विकास करने वाले नरेन्द्र भाई मोदी पर पता नहीं क्या क्या घटिया आरोप लगाते रहे। मानसिक गुलामी की बाढ़ इतनी आगे बढी कि हमारा मीडिया भी उसमे गोते खाने लगा। देश पर २०० साल तक राज़ करने वाली ईस्ट इण्डिया कम्पनी को एक भारतीय उद्योगपति संजीव मेहता ने १५० लाख डॉलर मूल्य देकर खरीद लिया, जिस कम्पनी ने भारत को २०० साल गुलाम बनाया वह कम्पनी आज एक भारतीय की गुलाम हो गयी है, किन्तु देश के किसी भी चैनल पर इसे नहीं देखा गया क्यों कि हमारा टीआरपी पसाद मीडिया तो उस समय सानिया शोएब की कथित प्रेम कहानी को कवर करने में बिजी था न, उस समय देश से ज्यादा शायद ये दो प्रेम के पंछी मीडिया के लिये जरूरी थे।

तो मित्रों अब यदि इन काले अंग्रेजों से आज़ादी चाहिए तो फिर से कोई स्वतंत्रता संग्राम छेड़ना होगा, कोई क्रान्ति को जन्म देना होगा। फिर से किसी को मंगल पण्डे बनना होगा, किसी को भगत सिंह तो किसी को सुभाष चन्द्र बोस बनना होगा। क्यों कि जीवन जीने के केवल दो हे तरीके इस देश में बचे हैं कि या तो जो हो रहा है उसे सहते रहो, शान्ति के नाम पर यथास्थिति बनाए रखो, और सब कूछ सहते सहते मर जाओ या फिर खड़े हो जाओ एक संकल्प के साथ और आवाज़ उठाओ अन्याय के विरुद्ध, फिर से खड़ी करो एक क्रान्ति, और केवल मै और मेरा पारिवार की विचारधारा से भार आकर मेरा राष्ट्र की विचारधारा को अपनाओ। किन्तु आज इस देश में यथास्थिति वाले लोग अधिक है। उन्ही से पूछना चाहूँगा कि क्या ये दिन देखने के लिये ही तुम्हारे पूर्वजों ने जीवन का बलिदान दिया था, क्या उनका त्याग व्यर्थ जाएगा, क्या आज तुम्हारे पूर्वजों को तुम प र गर्व होगा, क्या आने वाली पीढी को तुम पर गर्व होगा, क्या अपनी आने वाली पीढ़ी के लिये विरासत में तुम इन काले अंग्रेजों को छोड़ के जाओगे? आचार्य विष्णु गुप्त (चाणक्य) ने कहा था कि जितनी हानि इस राष्ट्र को दुर्जनों कि दुर्जनता से हुई है उससे कहीं अधिक हानि इस राष्ट्र को सज्जनों कि निष्क्रियता से हुई है। क्या आप सज्जन हमेशा निष्क्रीय ही बने रहेंगे? अब कोई भी यह पूछ सकता है कि हम क्या करें? मित्रों करने को बहुत कूछ है करने की इच्छा शक्ति होनी चाहिए। यदि आप में इच्छा शक्ति है, यदि आप में ज्ञान है तो आप खुद अपने लिये राह बना सकते हैं। चाणक्य ने मगध सम्राट धननंद के दरबार में उसे ही ललकारते हुए कहा था कि मेरे ज्ञान में अगर शक्ति है तो मै अपना पोषण कर सकने वाले सम्राटों का निर्माण स्वयं कर लूँगा।

मित्रों मै जानता हूँ कि ये लेख कूछ अधिक लम्बा हो गया है और इसमें लिखी गयी सभी बातों को आप भी जानते होंगे, किन्तु फिर भी इन सब बातों को एक साथ पिरो कर आपके सामने लाना जरूरी था क्यों कि कूछ राष्ट्र विरोधी शक्तियां चर्चा के समय बहुत से ऊट पटांग सवाल कर सकती हैं, तथ्यों की मांग उनकी तरफ से होती रहती है, जहाँ तक हो सकता था मैंने बहुत कूछ लिख देने की कोशिश की है, इस लिये मैंने पूरा इतिहास ही लिख डाला। अब भी यदि किसी तथ्य की आवश्यकता है तो हम पुराने समय में नहीं जा सकते कि सब कूछ आप को सीधा प्रसारण दिखा सकें। आशा करता हूँ कि सभी प्रश्नों के उत्तर आपको मिल जाएंगे और फिर भी कूछ रह जाए तो मै उत्तर देने के लिये प्रस्तुत हूँ।

धन्यवाद…जय हिंद…

10 COMMENTS

  1. आदरणीय प्रेम सिल्ही जी इस सम्मान के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद…
    राजिव भाई दीक्षित के निधन पर मुझे भी बहुत दुःख हुआ, दो दिन तक तो किसी काम में मन ही नहीं लगा, मन में बेचैनी भी थी की एक और अनमोल रत्न भारत माँ ने खो दिया…मै उनसे कई बार मिला…उनके ज्ञान और व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुआ…उन पर एक लेख लिखने की बहुत इच्छा है, किन्तु कुछ दिनों से अपने ऑफिस के काम से ट्यूर पर ही रहा तो अधिक समय न मिला…किन्तु अब जल्दी ही एक लेख राजिव भाई पर लिखने वाला हूँ…आशा है आपको पसंद आये…

  2. मैंने श्री राजिव दीक्षित जी के दु:खद निधन के बारे में प्रवकता.कॉम की ओर से प्रस्तुत कोई लेख को देखने की अभिलाषा से वेबसाईट को खोजा| ऐसा कोई मृतविवरण तो नहीं मिला, संभवतः ठीक प्रकार से खोज न की हो लेकिन आपका लेख अवश्य देखने और पढ़ने को मिला| आपके लेख में बताये तथ्य को सभी जानते हैं लेकिन बहुत कम लोग हैं जो सोचते भी हैं| लेकिन सोचने वालों की संख्या इतनी कम है कि जैसे बड़े से बर्तन में पाँव भर दूध उबल उबल कर जल जाये नष्ट हो जाये और किसी को मालुम ही न हो| मेरे विचार में जवाहरलाल नेहरु के प्रयोगात्मक समाजवाद से उत्पन्न अभाव से बचने के लिए स्वतन्त्र भारत की पहली पढ़ी-लिखी पेशेवर युवा पीढ़ी ने १९७० दशक से भारत छोड़ अमरीका और दूसरे पाश्चिम देशों में जा बसने का जो बीज बोया था वह वास्तविकता में संपूर्ण आज़ादी थी—अंग्रेजों के बनाये कानूनी चक्रव्यूह से और समाजवाद से| और आज आपका लेख पढ़ ऐसा प्रतीत होता है कि तथाकथिक स्वतंत्रता के तिरेसठ वर्षों बाद आज की युवा-पीढ़ी इन काले अंग्रेजों की सत्ता को उखाड फैंक यथार्थ स्वतंत्रता प्राप्त करेगी| आपका लेख सभी हिंदी-भाषी व प्रांतीय भाषों में प्रकाशित पत्रिकाओं में प्रस्तुत होना चाहिए|

  3. श्री दिवस दिनेश गौड़ जी को बहुत बहुत बधाई. आपने कुछ पराग्राफो में पूरा इतिहास (सच्चा इतिहास) लिख दिया है. यह वास्तविक सत्य है की हमारे देश में सच्चा इतिहास कभी पढाया नहीं जाता है. जो इतिहास पढाया जाता है वोह अंग्रजो द्वारा approved है. कहते है — दूध का जला —— —–. जब हमारे देश के लोगो को इतिहास नहीं पता होगा तो उनके खून में उबाल कहाँ से आएगा. फिर से गौड़ जी को धन्यवाद.

  4. आलेख की विषय वस्तु भले ही सर्वज्ञात है किन्तु उसे प्रमाणिक स्वरूप देने का यह य्र्यास अच्छा है …भाषा प्रवाह में कतिपय धत्ता विधानों की कमी तथा पुनरावृति दोष से बचें ..आलेख -कुल मिलाकर देशभक्त पूर्ण है किन्तु मोदी जी को सम्मानित करने के फेर मेंअन्य अनेक गुमनाम वास्तविक .राष्ट्रवादियों की उपेक्षा अपने आप ही हो जाना स्वाभाविक है …दिवस दिनेश गौर का आलेख प्रकाशित कर प्रवक्ता .कॉम ने बेहतरीन देशभक्ति पूर्ण कार्य किया है ..साधुवाद …

    • आदरणीय तिवारी जी…उत्साहर्धन के धन्यवाद…
      भाषा प्रवाह में कमी और पुनरावृति दोष को मै भी स्वीकार करता हूँ, क्यों कि मै अभी अभी लेखन से जुड़ा हूँ| पेशे से इंजीनियर हूँ अत: तकनीकी में रहते हुए लेखन से दूर रहा, किन्तु अब आगे लिखता रहूँगा| आशा है मेरे आने वाले लेख आपको पसंद आएं| और रही बात नरेन्द्र भाई मोदी की तो तिवारी जी विचारों में भिन्नता के कारण शायद आपका मेरा मतभेद रहे इस मामले में, क्यों कि मैंने खुद गुजरात के विकास को भली प्रकार से देखा है| राजस्थान का रहने वाला हूँ, गुजरात का पड़ोसी होने के कारण उसे काफी कुछ जानता हूँ|
      और अन्य राष्ट्रवादियों को मै अनदेखा नहीं करूँगा| मोदी का जिक्र केवल इस लिए क्यों की एक राष्ट्रवादी नेता होने के बाद भी उन्हें हमेशा उपेक्षा ही मिली है| मोदी जी अकेले काम करने में सक्षम हैं, उन्हें इन उपेक्षाओं की भी चिंता नहीं है, फिर भी मेरा कर्तव्य था कि मै अपने प्रिय नेता का स्मरण करूं|

  5. दिवस भाई,
    बहुत बढ़िया और सन्तुलित अंदाज़ में आपने समझाया है…
    लेख लम्बा होते हुए भी ऊबाऊ नहीं रहा, इसे उपलब्धि कहा जा सकता है…
    आप जैसे युवाओं से इस प्रकार के राष्ट्रवादी और भी लेखों की उम्मीद है…
    हार्दिक शुभकामनाएं…

    • आदरणीय सुरेश भाई…उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद…
      आप जैसे अग्रजों का आशीर्वाद मिलता रहा तो और भी लिखूंगा| आशा है वह भी आपको पसंद आएगा|

  6. गौड़ जी आपने तो बड़े ही रोचक तरीके से पूरा अर्थशास्त्र और इतिहास समझा दिया | कितना अच्छा हो अगर ये इतिहास राहुल गाँधी जैसे और उनकी जी हजूरी करने वाले कुछ विदेशी चश्मा पहनने वाले लोगों को समझ आता | इन्हें ये बातें विश्वसनीय लगती ही नहीं इनके लिए क्या होगा |

    • शंकर जी उत्साहवर्धन के लिये बहुत धन्यवाद…

      शंकर जी हमारे देश में राहुल गांधी कोई अकेला नेता नहीं है जो हमें उसी पर निर्भर होना पड़े| हमें राहुल गांधी की जरुरत नहीं है, हमें तो जरुरत है आप जैसे देश भक्तों की जो देश के लिये समर्पण का भाव रखते हैं, जो देश के इतिहास पर गर्व करते हैं, उसकी संस्कृती पर गर्व करते हैं, उसकी शक्ति पर गर्व करते हैं| केवल राहुल ही एक अकेला रास्ता नहीं है, यह देश इतना शक्तिशाली है कि खुद अपने लिये नए और उपयुक्त रास्ते बना सकता है| सबसे बड़ी शक्ति आवाम की है, आवाम खुद इतनी बड़ी शक्ति है कि बड़ी से बड़ी सत्ता को उखाड़ कर फेंक सकती है, बड़ी से बड़ी व्यवस्था को बदल सकती है| दुःख है तो बस इस बात का कि यह शक्ति बिखरी हुई है| जिस दिन यह शक्ति संगठित हो जाएगी तो जिस तरह अंग्रेज भागे थे हमारा देश छोड़ कर इन काले अंग्रेजो को भी हम देश से निकाल कर बाहर फेंक देंगे| जरुरत बस एक होने की है| आप और हम राष्ट्र आराधन करते रहें तो यह भी संभव है|

  7. आदरणीय प्रवक्ता जी…प्रवक्ता.कॉम पर यह मेरा पहला लेख है, इसे छापने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद…

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