सीरिया पर चमत्कारी सहमति

पिछले पांच साल से चल रहे सीरिया के गृह युद्ध को रुकवाने पर सुरक्षा परिषद सहमत हो गई है। सुरक्षा परिषद के सभी 15 सदस्यों ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित करके Bashar-al-Assad-1इस देश में शांति स्थापित करने का संकल्प किया है। सीरिया में बशर-अल-असद का शासन है। उसके विरुद्ध एक शक्तिशाली संगठन ने बगावत छेड़ रखी है। इस लड़ाई में अब तक ढाई लाख लोग मारे गए हैं और लगभग 40 लाख लोग विस्थापित हो गए हैं। ईरान और रुस असद को टिकाए रखने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं और सउदी अरब, अमेरिका, तुर्की, जोर्डन, कुवैत वगैरह बागियों को मदद करते रहे हैं। सीरिया में पिछले कुछ वर्षों से शीतयुद्ध का नज्जारा दिखाई पड़ रहा है। महाशक्तियां सीधे-सीधे न सही, घुमा-फिराकर एक दूसरे से लड़ती रही हैं। ऐसे में संयुक्तराष्ट्र की सुरक्षा परिषद की एक राय कैसे हो सकती थी? लेकिन यह चमत्कार इस शुक्रवार को हो गया है। अभी एक-दो दिन पहले ही भारत के रक्षा मंत्री ने घोषणा की थी कि यदि सीरिया में संयुक्तराष्ट्र के तत्वावधान में सैन्य अभियान होगा तो उसमें भारत भी भाग लेगा। अब तो इस अभियान की शक्ल ही बदल जाएगी। पता नहीं कि भारत को उसमें भाग लेने की जरुरत भी होगी या नहीं।
अपने 11 सूत्री प्रस्ताव में सुरक्षा परिषद ने कहा है कि वह अगले छह माह में सीरिया में ऐसी सरकार स्थापित करने की कोशिश करेगी, जो सर्वसमावेशी हो, विश्वसनीय हो और असांप्रदायिक हो। यह सरकार 18 माह में एक संविधान बनाएगी और निष्पक्ष और जायज़ चुनाव करवाएगी। सुरक्षा-परिषद सभी पक्षों से युद्ध-विराम की अपील भी करेगी। सुरक्षा परिषद का यह प्रस्ताव इतना अच्छा है कि इस पर विश्वास ही नहीं हो रहा है, क्योंकि सउदी अरब और अमेरिका असद को फूटी आंखों भी नहीं सुहाते। उसे वे तुरंत हटाना चाहते हैं जबकि रुस और ईरान यह मानते हैं कि असद को हटाने पर सीरिया विश्व-आतंकवाद का सबसे बड़ा गढ़ बन जाएगा। वहां अराजकता का साम्राज्य हो जाएगा। वह अराजकता सारे पश्चिम एशिया में फैल जाएगी। अमेरिका और सउदी अरब मानते हैं कि इस्लामी राज्य (दाएश) के आतंकवादियों और असद के विरोधियों में फर्क करना चाहिए। रुस और ईरान इनमें कोई फर्क नहीं कर रहे हैं। उनकी फौजें दोनों को मार रही हैं, जबकि असद-विरोधियों से बात की जानी चाहिए।
दोनों खेमों में इस अंतर के बावजूद वे एक-दूसरे से सहयोग करने को तैयार हो गए हैं, यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति की विलक्षण घटना है। 17 देशों का एक समूह पिछले तीन साल से इस मुद्दे पर बातचीत कर रहा है। यह उसी का परिणाम है। अभी रुस और अमेरिका तथा सउदी अरब और ईरान अपने-अपने हठ को छोड़कर थोड़े नरम पड़े हैं। देखते हैं कि अगले छह माह में इसके कुछ ठोस परिणाम सामने आते हैं या नहीं?

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  1. लङका, राक्षस, रावण, दश मष्तिस्क, सोना, ताकत, अमेरिका, रूस, राम, राम, राम, राम।

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