पिछली दुर्घटनाओं से सबक ले रेलवे

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मध्य प्रदेश के हरदा से तक़रीबन पच्चीस किलोमीटर दूर खिड़किया और भिंगरी के बीच मंगलवार देर रात करीब 11:30 बजे भयंकर रेल हादसा हो गया.भारी बारिश के चलते माचक नदी का पानी कई फूट बढ़ गया जिससे नदी पर बना रेलवे पुल धस गया जिसके चलते मुंबई से वाराणसी जा रही कमायनी एक्सप्रेस और पटना से मुंबई जा रही जनता एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गई.पुल के धसने से जनता एक्सप्रेस के पांच डिब्बे व इंजन और कमायनी एक्सप्रेस के ग्यारह डिब्बे नदी में गिर गये.इस भीषण हादसे में लगभग 31 यात्रियों की मौत हो गई है, अभी मृतको की संख्या बढने की आशंका है और 100 से अधिक लोग घायल हैं. ये हादसा एकबार फिर रेलवे के सुरक्षा प्रणाली पर सवालिया निशान लगा रहा है तथा रेल हादसों को रोकने की रेलवे के उन सभी दावों की पोल खोल रहा है जो दावे वो हर रेल हादसा होने के पश्चात् करते हैं. हर बजट में यात्रियों के सुरक्षा व सुविधा के नाम पर लम्बें –चौड़े वादें किए जाते हैं. परन्तु, इस पर कोई सरकार अमल नहीं करती है.बहरहाल,फिर वही पुरानी परम्परा जो भारत में चलती आई है उसी को दोहराते हुए रेल मंत्रालय ने मुआवज़े की घोषणा तथा जाँच के आदेश दे दिये हैं. हर घटना की जाँच के लिए समिति का गठन होता है, जाँच होती है मगर रिपोर्ट को ईमानदारी से पेश नहीं किया  जाता.अमूमन भारतीय रेल में हर दिन कहीं न कहीं छोटी –मोटी दुर्घटना होती रहती है मगर ऐसे गंभीर विषय पर न तो रेलवे प्रशासन गंभीर है और न ही रेलवे मंत्रालय. नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के मुताबिक 2014 में रेल हादसों के 28,360 मामले दर्ज हुए.इनमें 2013 के मुकाबले 9.2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई.2013 में 31,236 हादसे दर्ज किये गये थे.इसमें ज्यादातर मामलें लगभग 61.6 फिसदी लोगों के ट्रेन से गिरने या रेलवे ट्रैक पर ट्रेन की चपेट में आने के रहे.लेकिन फिर स्थिति इस वर्ष railगम्भीर होती दिख रही. जब रेल मंत्री सुरेश प्रभु बजट पेश कर रहे थे उस वक्त बारह बार सुरक्षा शब्द का इस्तेमाल किया था.लेकिन यात्रियों को कितनी सुरक्षा मिल रही ये बात अब किसी से छिपी नहीं है.जब से राजग सरकार ने सत्ता की कमान संभाली है भारतीय रेल ने बुरा प्रदर्शन किया है. रेलवे सुरक्षा के मोर्चे पर अब तक पूरी तरह विफल रही है. अभी कुछ ही महीनों पहले असम के कोकराझार में चंपावती नदी में सिफुंग पैसेंजर के डिब्बे गिरे थे जिसमे 38 लोग घायल हो गए थे.वहीँ उत्तर प्रदेश में रायबरेली के पास देहरादून से वाराणसी जा रही जनता एक्सप्रेस भी दुर्घटनाग्रस्त हुई थी जिसमे तकरीबन 37 यात्रियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था तो लगभग 200 से अधिक लोग घायल हुए थे.इस प्रकार भारत में रेल दुर्घटनाओं की एक लंबी फेहरिस्त है जो रेलवे प्रशासन व शासन की नाकामी को दर्शाता है.आखिर रेलवे पुरानी घटनाओं से सबक क्यों नहीं लेती. अमूमन रेल दुर्घटनाओं के पीछे सिग्नल में खराबी,जर्जर पटरियों,कोहरा व मानवीय गलती प्रमुख होती है, हर बजट में सरकारें तमाम प्रकार की योजनाओं की घोषणा करती हैं जिसमे रेल यात्रियों की सुख,सुविधा और सुरक्षा को तरजीह दी जाती है. कई परियोजनाओं का शुभारंभ होता है लेकिन योजना को पूरा होने में तय अवधि से अधिक वर्ष लग जाते हैं जो हमारी रेलवे की विफलता का प्रमुख कारण है.समय से पटरियों की मरम्मत नहीं होती जिससे पटरिया घिस जाती है और दुर्घटना को दावत देती है.इस दुर्घटना पर हम गौर करे तो रेलवे की बड़ी नाकामी हमारे सामने निकल कर आती है.जब भारी बारिश से पुल पर पानी भरा आया था उस समय रेलवे प्रशासन ने इसके प्रति गंभीरता क्यों नहीं बरती ? रेल दुर्घटना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर सामने आयी है इसका समाधान भी इस दिशा में सही योजना का निर्माण कर उसे सही  क्रियान्वयन के द्वारा ही किया जा सकता है.पिछले साठ सालों में रेलवे के सुधार के लिए तमाम समितियों का गठन किया गया .देश की सभी सरकारों ने  उन समितियों की रिपोर्ट को नजरअंदाज किया.वर्ष 1962 में कांग्रेस ने कुंजरू समिति बनाई पर उसकी रिपोर्ट पर अमल नहीं किया फिर 1968 में बांचू समिति गठित की गई उसकी रिपोर्ट को भी नकार दिया गया फिर 1978 में सिकरी समिति इस प्रकार लगभग कई समितियों का गठन तो किया गया लेकिन उसके रिपोर्ट को कूड़ेदान में फेक दिया गया. वर्ष 2012- 2013 में तात्कालिक रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने एक बजट पेश किया जिसमे रेल आधुनिकीकरण पर जोर दिया गया.इस दूरदर्शी बजट में 5.60 लाख करोड़ रूपये आधुनिकीकरण आदि के नाम पर खर्च का प्रस्ताव दिया गया था.काकोदकर समिति ने अपने रिपोर्ट में कहा था कि आगामी पांच वर्षो में सुरक्षा उपकरणों व सुरक्षा उपायों के लिए एक लाख करोड़ रूपये की आवश्यकता है वहीँ दूसरी तरफ पित्रोदा समिति ने रेल के आधुनिकीकरण और रेल को भविष्य की रेल बनाने के लिए 8 लाख 39 हजार करोड़ रूपये की आवश्यकता की बात की थी इस बजट में इन दोनों समितियों की सिफारिशों को लागू करने की योजना बनाई गई थी.सुरक्षा पर गंभीर चिंता व्यक्त करने वाली काकोदकर और पित्रोदा समिति को भी सियासत की भेंट चढना पड़ा. रेलवे में सियासी हस्तक्षेप का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि तत्कालीन रेल मंत्री को भी अपना पद गवाना पड़ा.भारत की लगभग सभी सरकारें रेलवे सुरक्षा जैसे गंभीर विषय को तवज्जो देने,यात्रियों की जान –माल की रक्षा करने के बजाय अपनी सियासत साधने में लगी रहती हैं.भारतीय रेल दुनिया का चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है जो प्रतिदिन 19 हजार ट्रेनों का संचालन करता है.जिसमे 12 हजार ट्रेनें यात्री सेवा के लिए तथा 7 हजार ट्रेने माल ढोने का काम करती हैं.भारतीय रेल हर दिन 2.3 करोड़ यात्रियों को उसके गंतव्य तक पहुँचाने का काम करती है लेकिन यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि आज़ादी के इतने वर्षो के बाद भी रेलवे यात्रियों की सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकी.एक तरफ सरकार बुलेट ट्रेन की बात करती है तो वहीं दूसरी तरफ एक्सप्रेस ट्रेन भी विलंब से चलती है. अभी फिलहाल में वक्त की मांग यही है कि सरकार पहले रेलवे की पटरियों का नवीनीकरण करे और ऐसी दुर्घटनाओं से सबक ले जिससे आने वाले दिनों में इस प्रकार के हादसों की पुनरावृत्ती न हो.

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