पर्यावरण को लेकर भारत की सराहनीय पहल

0
118

envडॉ. मयंक चतुर्वेदी

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्बन उत्सर्जन को लेकर युरोपियन देशों को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जिस तरह से फटकार लगाना शुरू किया है, उससे अब साफ झलकने लगा है कि दुनिया में भारत आज स्वस्थ वैश्विक पर्यावरण को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित है। भारत की ओर से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को 22 अप्रैल पृथ्वी दिवस के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत पूरे विश्व को पर्यावरण प्रदूषण को कम करने की राह दिखा सकता है। पृथ्वी हमारी मां है और हम सब उसकी संतान हैं।, उन्होंने विकसित देशों को भारत पर दोषारोपण करने के लिए फटकार लगाते हुए यहां तक कह दिया था कि भारत आगामी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में पर्यावरण का एजेंडा तय करेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के अंतरराष्ट्रीय मंच पर लगातार नेतृत्वकारी भूमिका में आने का प्रभाव अब न केवल आर्थ‍िक और राजनैतिक क्षेत्र में साफ दिखाई देने लगा है, बल्कि पर्यावरण के मोर्चे पर भी पहली बार विश्व समुदाय को एक गंभीर संदेश देने की तैयारी हमारे देश ने पूरी कर ली है। इस संबंध में हम भारत के अपने घोषित राष्ट्रीय लक्ष्य (आइएनडीसी) को लेकर किए जाने वाली घोषणाओं को देख सकते हैं। इसमें तय समय सीमा के अंदर विभिन्न लक्ष्यों का जिक्र किया गया है।

वास्तव में जीवन और मृत्यु के बीच का जो चक्र है, समष्टि में उसके क्रम को इस प्रकार व्यवस्थि‍त किया गया है कि प्रकृति बिना अवरोध के निरंतर स्वयं को उसी प्रकार संतुलन करते हुए चलती रहती है जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर और हमारी आकाश गंगा के सभी ग्रह-उपग्रह, तारे अपने-अपने केंद्र में गतिशील हैं। कहने का तात्पर्य है कि हमारे सामने जो चुनौतियां आज विद्यमान हैं वह प्रकृति जन्य नहीं, वरन मानव की स्व प्रदत्त हैं। वस्तुत: इसके वाबजूद धन्य है यह नेचर जिसने उसी मानव के हाथ में स्वयं को सवांरने का अवसर भी दे दिया है लेकिन दुनिया के मनुष्य हैं कि समस्यायें तो उत्पन्न कर लेते हैं और जब समाधान की बात आती है तो विश्वभर के देश आपस में बातें तो बहुत करते हैं लेकिन व्यवहारिक धरातल पर भारत जैसे कुछ ही देश गंभीरतापूर्वक आगे आते हैं।

वैश्विक आंकड़ों को देखें तो चीन दुनिया का सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाला (करीब 23 प्रतिशत) कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ने वाला देश है, यहां जैव ईंधन की सबसे ज्यादा खपत है। जबकि औद्योगिक देशों में प्रति व्यक्ति के हिसाब से अमरीका दूसरे नंबर पर (लगभग 18 फीसदी) सबसे अधिक प्रदूषण फैलाता है। ये दोनों देश मिल कर दुनिया के लगभग आधे प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार हैं और तीसरे पर भारत (करीब छह फीसदी) है। ये सभी देश आज जैव ईंधन की सबसे ज्यादा खपत करते हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि चीन, अमेरिका और भारत दुनिया में सबसे अधि‍क प्रदूषण उत्पन्न करने वाले देश हैं। यहां तक कि पर्यावरण बचाने की वकालत करने और खुद को इसका झंडाबरदार बताने वाले देश जर्मनी और ब्रिटेन की बात है तो यह भी दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले शीर्ष 10 देशों में शुमार हैं।

इन सभी के बीच भारत को लेकर कहा जा सकता है कि यहां पर्यावरण के मामले निपटाने के लिए राष्ट्रीय ग्रीन ट्राइब्यूनल बना है। भारत ने पर्यावरण के लिए बहुत काम किया है और वह उन गिने-चुने देशों में शामिल है, जिसने सबसे पहले हवा और पानी प्रदूषण से बचाने के लिए कानून बनाए। लेकिन आज यह गंभीर प्रश्न है कि क्या चीन और अमेरिका को साथ लिए वगैर पर्यावरण सुधार की दिशा में कारगर सफलता हासिल की जा सकती है ? उत्तर होगा बिल्कुल नहीं।

आज हवा को विभि‍न्न जहरीली गैसों के कृत्त‍ि‍म उत्सर्जन से विषाप्त कर दिया गया है। इसी प्रकार पानी को भौतिक सुख की सामग्र‍ियों के निर्माण के लिए उपयोग करते हुए उसके भण्डारन के स्त्रोतों में कचड़ा-कूड़ा और जो भी अपशि‍ष्ट हो सकता था उसमें डालकर बेकार करने के साथ इस सीमा तक खराब कर दिया गया है कि जीवन का साक्षात अमृत नीर भी आज अनेक नई-नई बिमारियों को उत्पन्न करने का कारण बन रहा है। यही हाल दुनियाभर में मनुष्यों ने धरती का अधि‍क पैदावार के लालच में उसकी धारण क्षमता से अधि‍क रसायनों का उपयोग कर उसका किया है।

1997 में जापानी शहर क्योटो में हुए पर्यावरण समझौते को अभी दुनियाभर के देश मानक के तौर पर मानते जरूर हैं, लेकिन विश्व का सबसे बड़ा प्रदूषक देश अमेरिका इसे नहीं स्वीकारता, और जो देश किसी तरह इस अनुबंध को स्वीकार करते भी हैं वहां भी यह सांकेतिक ही है। जबकि इस अनुबंध से जुड़ी सच्चाई यह है कि यदि दुनियाभर के देश इसे पूरी तरह स्वीकार कर लें तो गहराते पर्यावरण प्रदूषण के संकट से जुड़ी सत्तर प्रतिशत समस्यायें समाप्त हो सकती हैं। वस्तुत: आज सिर्फ अमेरिका को ही नहीं सभी को यह समझना होगा कि पृथ्वी के स्वास्थ्य को सही सलामत रखने के लिए पर्यावरण प्रदूषण कम करने की जवाबदेही किसी एक देश की नहीं सभी की सामूहिक है। हवा, पानी और विभि‍न्न गैस बहते वक्त यह निश्चित नहीं करती कि हमें एक तय सीमा के बाहर नहीं जाना है। जिस देश से उत्सर्जित हुए हैं, उसी देश की सीमा में रहेंगे।

यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का वैज्ञानिक आकलन करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था आई.पी.सी.सी. के इस दिशा में किए गए अभी तक के सभी शोध यही इशारा कर रहे हैं कि भारत, पाकिस्तान, चीन और लद्दाख की प्रलयंकारी बाढ़ें, लगातार बढ़ रही भीषणतम गर्मी, मध्योत्तर अफ़्रीका में वर्षों से पड़ रहा अकाल, उत्तरी ध्रुव से हिमखंडों का अलग होना, रूस में धुएँ के कारण कई क्षेत्रों में साँस लेने में आ रही परेशानी, गंगा, कोलोराडो और निजेर जैसी नदियों का जल प्रवाह साल-दर-साल कम होते जाना जैसे तमाम पर्यावरण से जुड़े नकारात्मक प्रभाव समय के साथ बढ़ते जायेंगे और इसका मुख्य कारण होगा इंसान का प्रकृति से कट कर अधि‍कतम पदार्थवादी हो जाना।

वस्तुत: ऐसी परिस्थि‍तियों में यह भारत की इस दिशा में भावी तैयारी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वस्थ पर्यावरण की दिशा में संवेदना ही कहलाएगी कि देश के केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इसके लिए प्रभावी मसौदा तैयार किया है, जिसमें कि एक ओर पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्य का संपूर्णता के साथ ध्यान रखा गया है, तो दूसरी ओर देश के विकास की जरूरत का भी इसमें पूरी तरह ख्याल रखा गया है। इस वर्ष दिसंबर में पेरिस में होने वाले जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) की 21वीं बैठक से पहले भारत इस घोषणा के जरिए अपनी भविष्य की पूरी रणनीति दुनिया के सामने रखेगा।

इसमें ऐसी योजना बनाई गई है जो गरीबी उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा, पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य पर सार्वभौमिक पहुंच, लैंगिक समानता, जल और स्वच्छता आदि संबंधी लक्ष्यों को भी साथ ले कर चलने की तैयारी सभी की समान रहे। भारत इसके जरिए बहुत स्पष्ट समय सीमा के अंदर विभिन्न लक्ष्यों को पूरा करने का वादा और खाका सभी के समक्ष रखने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल बर्लिन यात्रा के दौरान यह कह भी चुके हैं कि पेरिस सम्मेलन का एजेंडा भारत ही तय करेगा। उन्होंने सौर ऊर्जा पर विभिन्न देशों को साथ मिल कर काम करने की पहले ही अपील की है और लगातार इस दिशा में भारत में सौर ऊर्जा को केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से बढ़ावा दिया जा रहा है।

अब 195 देशों के इस होने वाले सम्मेलन में उम्मीद जग रही है कि भारत की प्रदूषण मुक्त पर्यावरण को लेकर की जा रही प्रभावी पहल के कारण दुनिया के अन्य देशों को भी झुकना पड़े और वे भारत के समर्थन में आ जाएं। पेरिस सम्मेलन का मुख्य लक्ष्य जहरीली गैसों के उत्सर्जन को घटा कर धरती पर बढ़ते औसत तापमान को दो डिग्री से नीचे लाना रखा गया है। यहां प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह दिखाना भी चाहेगा कि वह किसी दबाव के सामने झुकने वाला तो बिल्कुल नहीं है।

वैसे भी प्रदूषण मुक्त पर्यावरण रखना कुछ देशों की नहीं सभी की समान जिम्मेदारी है। अत: दुनिया के तमाम देशों को एक साथ यह भी समझना होगा कि पर्यावरण किसी देश के हितों से ज्यादा नैतिक मूल्यों का मसला है, इसे लेकर कितने भी कड़े से कड़े कानून बना लिए जायें, बात नहीं बनने वाली है जब कि उन पर अमल करने के लिए सभी देश स्वत: स्वयं में इच्छाशक्ति जाग्रत नहीं कर लेते हैं। फिर भी यहां यह कहा ही जा सकता है कि गहराते पर्यावरण प्रदूषण संकट के बीच आगे होकर की जा रही भारत की यह पहल विकसित, विकासशील और तीसरी दुनिया के देशों के बीच सराहनीय अवश्य है।

Previous articleकितना साकार हुआ स्‍वच्‍छ भारत का सपना
Next articleजंगल में मोर नाचा तो किसने देखा ?
मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here