तालकटोरा में कांग्रेस

-फख़रे आलम-  congress

भारतीय राजनीति की अहम क्षण कहिए इसे अथवा सोचा-समझा राजनीति की! एक ही समय पर जहां भाजपा बहुमत के लक्ष्य को छूने की योजना बनाई जा रही हो! तो नई दिल्ली स्थित तालकटोरा में देशभर के कांग्रेसी 2014 को फतह करने के लिए अपने नेता और अपनी उपलब्ध्यिों को गिनाकर अपने कार्यकर्ताओं में जोश पैदा कर रहे थे। लखनऊ और पटना में हजारों करोड़ों के योजनाओं की झड़ी लग रही थी। दिल्ली पर शासन करने वाली आप पार्टी और उनके मुख्यमंत्री अपनी आपसी कलह और राजधनी में घटित हुई शर्मसार करने वाली घटना से परेशान थी। चार राज्यों में पराजय और घोर आलोचनाओं और अपने 10 वर्षों के विफल कार्यकाल से परेशान कांग्रेस को फिर से खड़ा करने का आत्ममंथन ताल कटोरा में हुआ। कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व और पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पार्टी के कार्यकर्ता राहुल गांधी के नाम का ऐलान सुनना चाहती थी। मगर पार्टी ने बहत कुछ सोच विचार कर इस तरह की घोषणा से बचती रही।
कांग्रेस पार्टी को तालकटोरा स्टेडियम में सिर्फ अपनी चिंताएं सता रही थीं! पार्टी, प्रधनामंत्री, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष सिर्फ अपने कार्यकाल के 10 वर्षों की बखान कर रहे थे और अपनी वाहवाही करते रहे। अपनी उपलब्धियों और अपने द्वारा उठाये गये कदमों और पास करवाए गये बिलों पर चर्चाएं कर रहे थे। पार्टी की अध्यक्ष ने अपने सम्बोधन और अध्यक्षीय भाषण में जिन बिन्दुओं को छूआ, उसी विषयों पर प्रधनमंत्री और कांग्रेस के उपाध्यक्ष और कांग्रेसजनों के उम्मीद राहुल गांधी ने आक्रमणशैलियों के साथ पार्टी में उर्जा भरते नजर आए। कांग्रेस पार्टी ने मंच पर अपने वर्तमान पुरोधाओं के साथ मध्य में गांधीजी और फिर एक और नेहरू तो दूसरी ओर पटेल को स्थान दिया।
पार्टी ने अपनी उपलब्धियों और सरकार के द्वारा उठाये गऐ कदमों की बखान की, विपक्ष और सरकार के सामने उत्पन्न कठिनाइयों और चुनौतियों का वर्णन किया। सेक्युलरवाद और भारत की संस्कृति एवं सभ्यताओं के साथ-साथ सौहार्द की बात कही। मगर पार्टी ने आसाम, राजस्थान और मुजफ्फरनगर के भाईचारा और सौहार्द की चर्चा नहीं की। नौ सिलिंडर से आगे 12 सिलिंडर तक बढ़ाने की वकालत की, मगर बुझते चूल्हे के स्थाई हल पर बात नहीं की। महंगाई पर चिंता जताई, मगर हल के लिये भरोसा नहीं दिया। 14 करोड़ गरीब लोगों को मध्य वर्ग तक पहुंचाने की बात की मगर बढ़ते बेरोजगारी और सरकार क्षेत्रों में खाली पड़े पदों को भरने की बात नहीं की। 21वीं सदी का भारत ऐसा होगा। राजीव गांधी क्या, इन्दिरा गांधी, जवाहर लाल और प्रत्येक देश प्रेमी का आत्मा यह सब देखकर दुखी हो रहा होगा। इतने ईमानदार प्रधानमंत्री का कार्यकाल भ्रष्टाचार के छीटों, अराजकता शिथिलता, बेढंगेपन, कुशासन, सांप्रदायिक दंगे, बढ़ते मूल्यों, घटते रोजगार के अवसरों, बिजली, पानी की समस्याओं, शिक्षा का गिरा स्तर, अवश्य ही यूपीए के 10 वर्षों और प्रधानमंत्री को असफल, सुस्त प्रधानमंत्री के रूप में इतिहास में जगह देगी!
कांग्रेस के आशा और एक मात्रा उम्मीद राहुल गांधी को कांग्रेस के कार्यकर्ता और कांग्रेस के नेता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार और पार्टी अध्यक्ष देखना चाहते थे। खासकर युवा कांग्रेसी इसका पक्षधर था! राहुल का उत्साह भी बता रहा था कि वह एक आधुनिक और नवीन भारत का निर्माण चाहते हैं। पार्टी की कार्यशैली और प्रति को बदलना चाहते हैं। मगर उनकी लाचारी भी दिखी कि वह साफ शब्दों में कह रहे थे। प्रजातंत्र में एक व्यक्ति सरकार नहीं चलाता। उन्हें अपनी चूक तो पता भी, मगर अपफसोस नहीं! निदान और उठने वाले कदमों का जबाव नहीं था! उन्हें अपने पद, पार्टी को सत्ता में वापसी और सरकार का बचाव करना तो आया मगर आम आदमी की समस्याओं का निदान समझ में नहीं आया। 2014 में फिर से कैसे सत्ता प्राप्त किया जाए, उसकी चिंता साफ झलकी, मगर आम लोगों का चूल्हा बन्द हो जाए। बच्चे बूंद-बूंद दूध को तरसे, नौजवान बेरोजगारी और अशिक्षा से राह भटक गए, इसकी चिंता नहीं। अपनी विफलताओं पर सेक्यूलर की रोटी सेंकती कांग्रेस पार्टी तालकटोरा तक ही सिमटकर रह गई और उनकी चिंता, उनका मंथन दिल्ल ही नहीं थी, सिर्फ तालकटोरा तक सीमित रह गई जबकि अपेक्षा देशभर में गूंजने की हो रही थी।

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  1. कटोरे में ही सीमित हो कर रह गया कांग्रेस का अधिवेशन.कुछ नया नहीं था अपने पहले कार्यकाल में सफल रहे एक योग्य प्रधानमंत्री को पार्टी ने अपने भ्रष्ट नेताओं के हाथों बलि चढ़वा दिया पर अब्वक्त आने पर अपने अयोग्य नाकाम नेता को पदस्थ करने हेतु उनकी सभी उपलब्धियों पर पानी फेर दिया.और वे भी शिव बने उस हलाहल को पीते रहे न जाने उनकी क्या मजबूरियां रही. फिर भी कार्यकर्ताओं में जान भरने की कोशिश उनके हाव भावों से उत्साहित नहीं लगी. विचानिया यह है कि हर नेता राहुल राहुल चिल्ला रहा है पर वह उनसे क्या अपेक्षा रखता है यह नहीं बोलता. न मनमोहनसिंह ,न मोदी और न राहुलकिसी के पास भी एक फूंक में देश की समस्याओं को हल करने की क्षमता है.पर आज कांग्रेस ने देश को जिस भवसागर के बीच खड़ा कर दिया है वहाँ से राहुल जैसे नौसिखिये नाविक से तो नाव बचती नहीं दिखती.

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