तमाशा नहीं शहादत है ये

हिमांशु तिवारी आत्मीय

…अब तो जवाब दीजिए मोदी जी

आज माँ के आँचल का कोई कोना अनाथ हो गया क्योंकि इस दफे मां ने आंचल से बेटे के नहीं बल्कि बेटे के कफन पर अपना दर्द पोंछा है….

जी हां पठानकोट. जरा महसूस कीजिए उस डर को जो एक मां की छाती में तेज सांसों के तौर पर उभर रहा है, एक बीवी को जिसकी आंखे टकटकी बांधकर न्यूज चैनलों की ओर ताक रही हैं, दोनों हाथों को जोड़कर मन्नतें मांग रही हैं, दुआएं कर रही हैं सुहाग की सलामती की खातिर. एक बहन की भाई के लिए फिक्र के बारे में जरा सोचकर तो देखिए. आंखों में आंसुओं का सैलाब लिए बस अरदास कर रही है कि ताउम्र भाई की कलाई में वो राखी बांधती रहे. उसकी वो राखी असल में भाई की हिफाजत करती रहे. इन सबके बीच हम एक पिता को तो भूल ही गए जो कल तक बड़े गर्व से कहता था कि मेरा बेटा फौज में है. जो अक्सर ये भी बतलाता था कि उसकी आंखें हैं उसका बेटा, उसका कलेजा है उसका लाल. रेडियो को कान से सटाये हुए वो शहीदों के नाम को बड़े आहिस्ते से सुन रहा है. पर, मन ही मन अपने प्रभु से प्रार्थना कर रहा है कि उसका बेटा सुरक्षित हो.

बहरहाल आंखे नम हो गई हैं. क्योंकि इन तमाम शब्दों से टकराते हुए कर्नल निरंजन भी याद आए, संजीव कुमार, जगदीश चंद, मोहित चंद, फतेह सिंह और कुलवंत सिंह समेत गुरसेवक सिंह की तस्वीरों पर लटकते हुए इन हारों ने दिल को हरा दिया है. जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो कुर्बानी में भारत मां के ये लाल भी शरीक हो गए. लेकिन क्यों, कैसे जबकि सुरक्षा के तमाम दावे किए जाते हैं. अधिकारियों की मानें तो बीते शनिवार को कुछ बंदूकधारी वायुसेना के परिसर में दाखिल होने में सफल हो गए थे.

यूजीसी ने ली हमले की जिम्मेदारी

इस बीच पाकिस्तान स्थित संयुक्त जिहादी काउंसिल ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है. यह काउंसिल 15 आतंकी संगठनों से बना है, जिसका प्रमुख हिजबुल मुजाहिद है. बहरहाल पूरे मामले में एक बात और सामने आई कि कहीं न कहीं यूजीसी नामक संगठन पूरे मामले से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहा है.

पाकिस्तान का नापाक हमला

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने पाकिस्तान को वो तमाम सुबूत सौंपे हैं जिनके आधार पर पाकिस्तान को अल्टीमेटम दिया गया है कि वो कार्यवाही करे. दरअसल कहीं न कहीं ये पुष्ट हो चुका है कि हमले की योजना पाकिस्तान के नापाक लोगों ने ही तैयार की थी.

क्या हैं सुबूत
· पीएमओ या विदेश मंत्रालय की ओर से इस बारे में ऑफिशियली कुछ नहीं कहा गया.
· पाकिस्तान विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि हम आतंकवाद को खत्म करने के लिए कमिटेड हैं. भारत से मिली लीड्स पर काम कर रहे हैं.
· एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, डोभाल पाकिस्तान के एनएसए नसीर खान जंजुआ से लगातार कॉन्टैक्ट में हैं.
· उन्होंने एयरबेस पर हमले में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का हाथ होने, टेररिस्ट्स के कॉल रिकॉर्ड्स, पाकिस्तानी नंबर, जिन पर बात हुई और आतंकियों के बॉर्डर क्रॉस कर आने के सबूत सौंपे हैं.

पहला सबूत

मारे गए आतंकियों में से एक ने पाकिस्तान में बने एपकोट कंपनी के शूज पहने थे. इस कंपनी का पूरा नाम ‘ईस्ट पाकिस्तान क्रम टैनेरी’ है.

दूसरा सबूत

एक मीडिया रिपोर्ट में गुरदासपुर के पूर्व एसपी सालविंदर सिंह के दोस्त राजेश वर्मा के हवाले से बताया गया है कि एयरबेस में दो आतंकी पहले ही घुस चुके थे. वर्मा के मुताबिक, उनको किडनैप करने के बाद आतंकियों ने फोन पर पाकिस्तानी हैंडलर्स से बात की थी. आतंकी ने हैंडलर्स से कहा कि उनके दो आदमी पहले ही एयरबेस में हैं और वे उन्हें जल्द ही ज्वाइन कर लेंगे.

हालांकि सवाल अब भी वहीं का वहीं है कि हमला आखिर कैसे हो गया. दरअसल जासूस के नाम पर सेना के कुछ लोग महत्वपूर्ण जानकारियों का साझा आतंकी संगठनों से करते रहे. जिनके खिलाफ कार्यवाही का हलकान होना भी एक वजह के तौर पर सामने आता है. अब जानकारी के हवाले से अगर बात की जाए तो पता चलता है कि पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले की साजिश बीते एक साल से रची जा रही है. पुलिस ने बेस कैंप की जानकारी पाकिस्तान तक पहुंचाने के आरोप में 30 अगस्त 2014 को आर्मी के एक जवान सुनील कुमार को गिरफ्तार किया था. वह राजस्थान के जोधपुर जिला गांव गुटेटी का रहने वाला था. देश की सुरक्षा से जुड़े इस मामले में पुलिस की हीलाहवाली सामने आई. पुलिस ने वक्त पर चालान कोर्ट में पेश नहीं किया, जिस कारण आरोपी को कोर्ट से बेल मिल गई. वहीं मीडिया में आई खबरों के मुताबिक आईएसआई के दो एजेंटो को शक के आधार पर जम्मू कश्मीर के राजौरी से गिरफ्तार किया गया था. बताया जाता है कि इसमें से एक तो कारगिल युद्ध में शामिल रहा भारतीय सेना का जवान भी मिला हुआ है. पुलिस के मुताबिक मुनव्वर अहमद मीर नाम का भारतीय सैनिक कई अहम दस्तावेज आईएसआई को भेज रहा था. कहीं न कहीं इन मामलों से भांप लेना चाहिए था कि साजिश रची जा रही है और उस पर अमल करने की भी पूरी कोशिश की जाएगी. लेकिन लापरवाही बरतते हुए इन्हें अनदेखा कर दिया गया फलस्वरूप सात जवानों की लाशें बिछाने में आतंकी सफल हो गए. हां कोशिश कुछ बड़ा कर गुजरने की जरूर थी लेकिन सेना के जवानों के हौसलों के सामने इनके नापाक इरादे पस्त हो गए.

क्या था आतंकियों का रास्ता

दरअसल पठानकोट में जो हमला हुआ वो लगभग जुलाई में पंजाब के गुरदासपुर के दीनानगर पुलिस थाने में हुए हमले की तर्ज पर था. आईबी हो या फिर आर्मी इंटेलिजेंस और रॉ को भी पूरा यकीन है कि ये आतंकी पाकिस्तान के बहावलपुर से आए थे. आपको बताते चलें कि गुरदासपुर और पठानकोट के करीब रावी नदी है. इसके करीब कुछ नाले भी हैं . हालांकि इन क्षेत्रों पर पूरी निगरानी रखी जाती है लेकिन ऊंची ऊंची घास का सहारा लेकर आतंकी घुसपैठ करने में कामयाब हो जाते हैं.

पूरे मामले में मोदी सरकार को दोषी ठहराया जा रहा है. जिसमें सवाल है कार्यवाही. एक सवाल ये भी है कि लोकसभा चुनाव के दौरान जो मोदी पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने की बात कहकर जनता को लुभा रहे थे, वो वादा आखिर कहां गुम हो गया. सोशल मीडिया में पीएम मोदी की कुछ दिन पूर्व हुई पाकिस्तान यात्रा को लेकर भी सवाल किए जा रहे हैं. जनता चाहती है, शहीद बेटों के परिजन चाहते हैं कि पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देना जरूरी है. पाक से बातचीत की दिशा में प्रयास नहीं बल्कि उसे इस बात का एहसास कराना होगा कि सरकार संवेदनशील है भारत पर आतंकी हमलों को लेकर. महज दिखावे से बात नहीं बनने वाली.

नया साल तमाम दिलों को गमज़दां कर गया. मनहूस साबित हो गया शहीदों के परिजनों की खातिर. आखिर किसी ने अपना भाई तो किसी ने अपना बेटा तो किसी ने अपना पति और पिता खोया है.

जनता महसूस कर रही है असुरक्षित

पठानकोट में हुआ हमला हो या फिर कानपुर में हमले की धमकी जो खबरों के तौर पर हमारे कानों में पड़ती है. सच कहूं तो इससे असुरक्षित महसूस होता है क्योंकि समाज में लूटपाट, हत्या, किडनैप जैसे मामले कुछ कम नहीं. इसके बाद आतंक की ये खबरें डर को जहन में और गहरा कर देती हैं.
-श्वेता तिवारी, हाउस वाइफ

भीड़भाड़ वाले इलाकों में अब तो जाने से भी डर लगने लगा है. मुंबई धमाकों को ये दिमाग फिर से रिकॉल कर लेता है. असुरक्षित महसूस कर रहा हूं. आर्मी सरीखे समाज में फैली अराजकता को मिटाने की छूट हर आम आदमी को होनी चाहिए.
– शिवेन्द्र प्रताप सिंह, बिजनेसमैन

हमलों की ये खबरें परिवार के लिए फिक्र पैदा कर देती हैं. समझ नहीं आता कि कहां जाएं और कहां नहीं. जहन में लगभग हर जगह असुरक्षित सी लगती है. डर इस बात का रहता है कि कब कोई धमाका हो जाएगा और जिंदगी खत्म. सरकार को आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाना चाहिए. जुमलेबाजी खत्म कर उन्ही की जुबान में जवाब देना चाहिए.
– महेंद्र कुंवर, बिजनेसमैन

तो ये थी आतंकवाद की तस्वीर को अपनी आँखों के सामने देखते हुए लोगों की प्रतिक्रिया. सवाल है भारत कब सुरक्षित होगा. कब तक सीज फायर उल्लंघन झेलता रहेगा, कब आतंकियों के खिलाफ कार्यवाही को सख्त किया जाएगा ताकि गर्व से कह सकें कि भारत जुल्म सहता नहीं बल्कि आतंकियों को उनकी असली जगह पहुंचाता है

हिमांशु तिवारी आत्मीय

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