तापी गैस पाइपलाइन: एक महत्वाकांक्षी परियोजना

समीर जाफ़री

मध्य एशिया, भू-राजनैतिक दृष्टिकोण से हमेशा से ही विश्व का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है. सोवियत संघ के पतन के बाद इस क्षेत्र का महत्व और अधिक बढ़ गया है क्योंकि यह आधुनिक “सिल्क रोड” का एक भाग होने के साथ-साथ 21 वीं सदी के शक्ति केन्द्र समझे जाने वाले रूस, भारत और चीन के पड़ोस में भी स्थित है. दूसरी ओर अमेरिका भी अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति के माध्यम से इस क्षेत्र में अपने पैर जमाने का पूरा प्रयास कर रहा है. इस क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए वह एशियाई विकास बैंक द्वारा प्रस्तावित ट्रांस अफ़ग़ान गैस पाइपलाइन अथवा तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया (तापी) पाइपलाइन का सक्रिय रूप से समर्थन कर रहा है.

1680 किलोमीटर लंबी पश्चिम देशों के समर्थन वाली प्रस्तावित तापी पाइपलाइन को ईरान- पाकिस्तान भारत (आईपीआई) पाइपलाइन की प्रतिद्वंद्वी परियोजना के रूप में भी देखा जा रहा है. यह पाइपलाइन अपने मुख्य स्रोत, तुर्कमेनिस्तान के दौलताबाद क्षेत्र से भारतीय सीमा स्थित पंजाब राज्य के फाज़िल्का तक गैस पहुंचाएगी. 7.6 अरब डॉलर की यह परियोजना इन सभी चारों देशों की ऊर्जा सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है बशर्ते कि यह परियोजना इस विशाल निवेश पर होने वाली भारी लागत और इसके रास्ते में आने वाले अस्थिर एवं अशान्त क्षेत्रों से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों पर काबू पा सके.

युद्ध से लगभग तबाह हो चुके अफगानिस्तान के लिए यह पाइपलाइन रोज़गार और राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकती है, जिससे कि अफगानिस्तान के विकास में सहयोग मिलेगा. तापी भारत और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्थाओं के लिए ऊर्जा का एक स्वच्छ स्रोत होने के साथ-साथ इन दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने में भी सक्षम है. और तो और, इस परियोजना से मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के बीच अंतर-क्षेत्रीय सहयोग का एक नया अध्याय शुरू होने की भी प्रबल संभावना है.

हालांकि शीत युद्ध खत्म हो चुका है और सोवियत उत्तराधिकारी रूस का प्रभाव इस क्षेत्र में काफी सिकुड़ गया है. इसके बावजूद चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए तथा पांव पसारते रूस को नियंत्रित करने हेतु, अमेरिका के लिए मध्य एशिया का अभी भी बहुत महत्व है. इसके अलावा क्षेत्रीय विकास परियोजनाओं में अमेरिका की भागीदारी, उसके सैनिकों और सैन्य अड्डों की उपस्थिति को वैधता प्रदान करेगी. इस परियोजना के लिए वॉशिंगटन का समर्थन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका ने अपने कूटनीतिक दबाव के चलते सफलतापूर्वक कुछ समय के लिए भारत को आईपीआई पाइपलाइन से दूर कर दिया है.

दिलचस्प बात यह है की तापी को रूस की भी हरी झंडी प्राप्त है और उसने अपनी गैस कंपनी गाज़प्रोम के माध्यम से इस परियोजना में भाग लेने की दिलचस्पी ज़ाहिर की है. तापी परियोजना के साझेदार देशों ने भी सुझाव दिया है कि अज़रबैजान, कजाकिस्तान और उजबेकिस्तान के साथ-साथ गाज़प्रोम भी पाइपलाइन के लिए एक सप्लायर बन सकती है. यदि मास्को इस परियोजना का एक हिस्सा बनता है तो वह सफलतापूर्वक यूरोपीय संघ द्वारा प्रस्तावित नबुको पाईपलाइन को गैस स्रोतों से वंचित कर सकेगा, जिससे कि रूसी गैस पर यूरोपीय निर्भरता बनी रहेगी. क्षेत्र में एक बड़ी भूमिका के लिए रूस पहले से ही ताजिकिस्तान से पाकिस्तान को अधिशेष बिजली का हस्तांतरण करने वाली महत्वाकांक्षी CASA 1000 परियोजना को अंजाम दे रहा है. भारत के लिए भी तापी परियोजना ‘ऊर्जा सुरक्षा’ से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. भारत के लिए यह उस ऊर्जा संपन्न मध्य एशिया में पैर जमाने का एक माध्यम है जहां चीन पहले से ही मौजूद है. इस प्रकार मध्य एशिया सभी प्रमुख विश्व शक्तियों के लिए भू-राजनीतिक लाभ का एक अखाडा बन कर रह गया है.

क्षेत्र की राजनीतिक स्थिरता भी इस महत्वपूर्ण परियोजना का भविष्य निर्धारित करेगी . नवस्वतंत्र मध्य एशियाई देशों के जन्म के बाद से ही इस क्षेत्र ने राजनीतिक अस्थिरता और धार्मिक व जातीय संघर्ष का अनुभव किया है. अमेरिका ने जहां पश्चिमी लोकतंत्र के प्रसार की आड़ में “रंगीन क्रांतियों” को बढ़ावा दिया, वहीं रूस ने हमेशा सोवियत युग के अपने पसंदीदा तानाशाहों का समर्थन किया है ताकि वह इस क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाये रख सके. आज, तुर्कमेनिस्तान में लोकतांत्रिक शासन के बावजूद वहाँ की राजनीतिक स्थिति नाजुक बनी हुई है.

पारगमन शुल्क और सुरक्षा तंत्र पर सहमति बनना एक कठिन कार्य है. चूंकि यह पाइपलाइन अफगानिस्तान के हेरात व कंधार तथा पाकिस्तान के बलूचिस्तान जैसे दुर्गम एवं अशांत क्षेत्रों से होकर गुज़रेगी, अतः यह ज़रूरी हो जाता है कि एक पूर्णत: परिभाषित संस्थागत कानूनी प्रावधान बनाया जाए. 1994 का यूरोपीय ऊर्जा चार्टर, जोकि यूरोप भर में ऊर्जा पारगमन एवं सुरक्षा के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है, इस विषय में मार्गदर्शन कर सकता है. इसके बावजूद भारत को आईपीआई पाइपलाइन को एक वास्तविकता बनाने के लिए अपने प्रयासों को जारी रखना चाहिए क्योंकि केवल तापी भारत की तेज़ी से बढती अर्थव्यवस्था की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं होगी. भारत के लिए यह भी आवश्यक है कि वह विभिन्न स्रोतों से अपनी निर्बाध ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करे. साथ ही साथ भारत को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उसका इस्तेमाल मध्य एशियाई क्षेत्र में अमेरिका के मोहरे के रूप में न होने पाए. यदि इन सभी पहलुओं का ध्यान रखा जाता है तो तापी परियोजना वास्तव में सभी सम्बद्ध देशों के लिए फ़ायदे का सौदा साबित होगी.

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