पत्रकारिता को शर्मसार करता तरूण तेजपाल प्रकरण

शादाब जफर’’शादाब’’ 

tejpalयह कैसी विडम्‍बना है कि कल तक जिन साधू और पत्रकारों पर समाज के मार्गदर्शन की जिम्मेदारी होती थी आज वही लोग सामाजिक मर्यादाओं का चीरहरण कर अपनी जिम्मेदारी को भूल समाज और सामाजिक रिश्तों को अपनी हवस के आगे तार तार करने में लगे है। अपनी सनसनीखेज खबरों से दुनिया में सनसनी मचाने वाले तहलका के संपादक तरूण तेजपाल ने कभी ये सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन वो खुद भी एक ऐसी खबर बन जाएंगे जिस से समस्त पत्रकार जगत का सर शर्म से झुक जायेगा। और जमाना उन पर थू थू करेगा। अपनी बेटी की उम्र की महिला पत्रकार के यौन उत्पीड़न के आरोप में घिरे ’’तहलका’’ पत्रिका के प्रमुख संपादक तरुण तेजपाल प्रायश्चित स्वरूप खुद ही 6 महीने की छुट्टी पर चले गए हैं।

संस्थान से खुद को अलग करने की सूचना तेजपाल ने ई-मेल के जरिए तहलका की प्रबंध संपादक शोमा चटर्जी को दे दी है। शोमा ने तेजपाल के इस तरह संस्थान से हटने के बारे में अधिक बात न करते हुए कहा कि यह हमारा आंतरिक मामला है। वहीं, तेजपाल के इस प्रायश्चित पर सवाल खड़े होने लगे हैं। पत्र में तेजपाल ने कहा कि पिछले कुछ दिन बहुत परीक्षा वाले रहे और मैं पूरी तरह इसकी जिम्मेदारी लेता हूं। एक गलत तरह से लिए फैसले, परिस्थिति को खराब तरह से लेने के चलते एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई जो उन सभी चीजों के खिलाफ है जिनमें हम विश्वास करते हैं और जिनके लिए संघर्ष करते हैं। उन्होंने कहा कि मैंने संबंधित पत्रकार से अपने दुर्व्यवहार के लिए पहले ही बिना शर्त माफी मांग ली है लेकिन मैं महसूस कर रहा हूं कि और प्रायश्चित की जरूरत है। तहलका के संस्थापक सदस्य तेजपाल ने अपने पत्र में लिखा है, क्योंकि इसमें तहलका का नाम जुड़ा है और एक उत्कृष्ट परंपरा की बात है, इसलिए मैं महसूस करता हूं कि केवल शब्दों से प्रायश्चित नहीं होगा। मुझे ऐसा प्रायश्चित करना चाहिए जो मुझे सबक दे। इसलिए मैं तहलका के संपादक पद से और तहलका के दफ्तर से अगले छह महीने के लिए खुद को दूर करने की पेशकश कर रहा हूं।

सवाल ये उठता है कि इतने गम्भीर मसले पर जिस से आज पूरा देश जंग लड रहा हो तरूण तेजपाल खुद ही मुजरिम बनने के बाद खुद को खुद सजा दे सकते है क्या तरूण नही जानते कि हमारी देश में मुजरिमो के लिये पूरी न्यायिक प्रक्रिया है जिस से हर छोटे बडे, अमीर गरीब, सत्ताधारी, प्रशासनिक दोषी व्यक्ति को होकर गुजरना पडता है। उन्होने अपने लिये कैसे छः महीने की छुटटी सजा और प्रायश्चित के तौर पर तय करली और अगर खुद तय भी की तो पर इतना सब होने के बाद क्या सिर्फ छः महीने का अज्ञातवास सजा के रूप में बहुत है। एक मासूम की जिंदगी से खिलवाड की सजा सिर्फ छः महीने की छुटटी। क्या कठोर करावास के हकदार नही बनते तरूण तेजपाल आखिर क्यों आज देश का पूरा मीडिया जगत खामोश है क्यो देश के बुद्धिजीवियों को सांप सूंघ गया है।

मैं लगभग पच्चीस सालो से पत्रकारिता के क्षेत्र में हॅू और मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हॅू कि इस प्रकार का अरोप आज तक किसी भी पत्रकार पर नही लगा जैसा तरूण तेजपाल के दामन पर लगा है। मीडिया में जो खबरें छनकर आ रही हैं, उसके अनुसार पीड़ित लड़की बहुत कम उम्र की है और घटना के बाद से ही सदमे में है। पीड़िता के साथ दो बार यौन उत्पीड़न हुआ और यह तब हुआ जब ’’थिंक इवेंट’’ चल रहा था। बताया जा रहा है कि यह घटना पिछले सप्ताह गोवा में ’’थिंक इवेंट’’ के दौरान घटी। नशे की हालत में तरुण ने इस लड़की का यौन उत्पीड़न किया। उन्होंने उसके कपड़े फाड़ दिए और उससे भी आगे बढ़ गए..। हैरानी की बात ये है कि पीड़िता तरुण की बेटी की उम्र की है। उसने यौन उत्पीड़न की शिकायत ई-मेल के जरिए की है। इस बारे में उसने तरुण की बेटी को भी बताया। पीड़ित लड़की के पिता भी तरुण के दोस्त हैं। आज आखिर हम किस पर विश्वास करे ये सिर्फ यौन उत्पीडन का ही मामला नही बल्कि एक ऐसा गम्भीर मुद्दा है जिस ने लडकी के जिस्म के साथ ही कई रिश्तो का भी चीरहरण किया है। कल कौन मां बाप अपनी बहॅू बेटियो को हमारे संस्थानो में भेजेगा अगर भेजेगा भी तो घर लौटने में उस की बेटी या बहूॅ को थोडी भी देर हो जायेगी तो उस के मन में बुरे ख्यालो का कैसा तूफान मच जायेगा आज हम इस का तसव्वुर कर सकते है।

पीडि़त लडके के बयान पढकर ही मेरा सिर शर्म से झुक रहा है उस का ये कहने कि मैं उन की बहुत इज्जत करती हूं। वे मेरे पिता के समान हैं। उन्होंने 2 बार मेरे साथ हरकत मैं रोते हुए अपने कमरे में आई। मैंने अपने साथ हुई हरकत के बारे में पत्रिका के तीन सहयोगियों को बताया। पीडित लड़की ने ईमेल में ये भी लिखा है कि जब मैंने अपने साथ हुई शर्मनाक घटना के बारे में तरुण की बेटी को बताया तो तरुण काफी नाराज हो गए.. मैं डर गई थी ।

आज पूरे देश में तरूण तेजपाल पर थू-थू हो रही है, मीडिया जगत में तरुण तेजपाल का नाम काफी पुराना है और तहलका जैसे संस्थान में रहकर उन्होंने कई सनसनीखेज प्रकरण उजागर किए हैं। उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगने के बाद आज देशवासियो के दिलो के साथ ही मीडिया में भी सवाल खड़ा हो रहा है कि यह मामला पुलिस में क्यों नहीं जा रहा है? क्या इस खुलासे के बाद पुलिस खुद संज्ञान ले सकती है? खुद ही जज बनकर प्रायश्चित करने का यह फैसला कितना उचित है ? कहना ही पडेगा कि आज आसा राम के बाद तरुण तेजपाल ने अपनी बेटी समान अपने दोस्त की बेटी के साथ जिस प्रकार की घिनौनी हरकत की है कहना ही पडेगा कि आज बाड़ ही खेत खाने लगी है।

4 COMMENTS

  1. प्रश्न अपराध का है और उस प्रक्रिया से तेजपाल को गुजरना चाहिए -वैसे मीडिया के लिए यह भी एक खबर बन गयी है
    वैसे मधुसूदनजी आज कोई आश्रम है ही नहीं – भोगवाद के केंद्र हैं -भौतिकतावादी, बाज़ारू व्यवस्था …
    संघ को भी प्रवृत्ति मार्ग के प्रचारक चाहिए – अविवाहित नहीं ..वह अपवाद है नियम नही

  2. The media in general in Hindusthan has very low standard since independence and at present is the lowest and it is in deep mud [ dal dal me fansha hai] . Most of the editors and journalists in print media, electronic media or Telivision etcs are not only dishonest but have sold their souls for greed and power like politicians .
    In greed is sin , in sin death said Ravindranath Tagore in his speech in Peking in 1923 and Tao -te -cing said ‘ No greater calamity than greed. These sentences carry the wisdom and our journalists must be above greed and tempatations if they wish to serve the people and country otherwise they must not go in this profession.
    The Tehalka organisation and Tarun Tejpal are like living dead and finished.
    We have failed and failed our culture, our Sanskars and no lessons learnt from the history and this is not the last tragedy.

  3. जब वृक्ष जड से ही सड रहा है, तो केवल पत्तों को छाँटने-काटने से क्या होगा?
    किसी भी समाचार पत्र को खोलें, किसी भी विज्ञापन को देखें—–आपको संज्ञान हो जाएगा।
    जो पाप हमारे मस्तिष्क में बसा है, उसे वाणी या लेखन से छिपाने पर भी वह छिपेगा नहीं।
    मनसा-वाचा-कर्मणा —-शुद्धि,– यही राज मार्ग है।
    पुरखे जो बता गये हैं—वे मूरख नहीं थे।

    पर आँधी से बचने-बचाने के लिए बालकों पर अच्छे संस्कार करना ना भूले।
    आज ब्रह्मचर्याश्रम डाँवाडौल है। ग्रहस्थाश्रम जीवन के अंत तक चल रहा है।सामान्य व्यक्ति आज ग्रहस्थाश्रम में ही मरता है।
    यह होता इस लिए भी है, कि, जीवन में, आध्यात्मिकता नहीं है।वानप्रस्थाश्रम जो पहले दो आश्रमों पर आदर आधारित अंकुश रखता था, वह, समाप्त हो गया है। कुछ मात्रा में ही, आर एस एस, और आर्य समाज इत्यादि के प्रचारक आज वानप्रस्थी माने जा सकते हैं। यह मात्रा बहुत बहुत कम है; इसी लिए समस्या खडी होती है।
    सारी आध्यात्म रहित —जडवादी, भौतिकतावादी, शीघ्र-पूर्ति में रुचि रखनेवाली विचार धाराओं वाले देश भक्त अवश्य सोचें।
    कि, प्रगति का यह आपका रास्ता कहीं नर्क में तो जाता नहीं, ना?
    और क्या कहें?
    —–तरूण तेजपाल आज निस्तेजपाल हो गये?

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