लेने सबाब तीर्थ का, घर से निकल पड़े |
केदार-बद्री धाम के, दर पे निकल पड़े |
सब ठीक चल रहा था,मौसम भी साफ था,
कुछ बादलों के झुण्ड,बरसने निकल पड़े |
दीवानगी-ए-अकीदत पे जरा गौर तो करें,
ठहरे जरा सी देर मगर,फिर से चल पड़े |
लाखों का वो हुजूम जो,चल तो रहा था,पर-
फटने को बादलों के भी,जत्थे निकल पड़े |
दर्शन की मन में आस,जहन में जुनून था,
होकर निडर बरसात में, आगे वे चल पड़े |
दिखला रहा था रौद्र रूप, रुद्र शिव मगर,
करते हुए अवहेलना, बंदे निकल पड़े |
कुदरत ने छेड़छाड़ का, ऐसा दिया सबक,
रूपों में जल के रुद्र, निगलने निकल पड़े |
जलप्रलय के रूप ने,सब कर दिया तबाह,
वो हादसा हुआ के,’राज’ के आंसू निकल पड़े |