तकनीकी ने डाला समाजिक संबन्धों में खलल

0
148

किसी भी राष्ट्र व पारिवारिक विकास के लिए तकनीकी और शिक्षा दो ऐसे पहिये है , जिनका तेजी के साथ चलना बेहद जरुरी हैं | इस विकास रूपी गाड़ी ने अपनी गति में तेजी के साथ बढ़ोत्तरी की है | इस समय प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा दिया गया नारा “डिजिटल इंडिया” देशवासियों को तकनीकी के साथ चलने का संदेश देने के लिए काफी है | यह ऐसा दौर है ,जिसमें भारत में सूचना व प्रद्योगिकी क्रांति का जादू सर चढ़ कर बोल रहा है | इस क्रांति ने समाज में ऐसा परिवर्तन लाया है कि आज क्या बुजुर्ग ,क्या नौजवान ,हर कोई इसके साथ कंधा से कंधा मिला कर चलने के लिए तैयार है | होना भी चाहिए क्योकिं आज हम सभी विकासशील से विकसित राष्ट्र की तरफ तेजी से अपना कदम बढ़ा रहे है लेकिन इस चकाचौंध में हम सभी अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को भूलते जा रहे हैं |आज सामाजिक संबंधो में विकास होने के बदले तेजी से ह्रास होता जा रहा है , इसका परिणाम पारिवारिक न्यायालयों में आसानी देखा जा सकता है | जितनी तेजी से हमारे शिक्षा स्तर व समाजिक स्तर में सुधार हुआ है उतनी ही तेजी के साथ हमारे सामाजिक सम्बन्धो में गिरावट दर्ज की गई है |आज भारत का कोई भी ऐसा जिला मुख्यालय नहीं है ,जिनमें पारिवारिक मामलों में काफी बढ़ोत्तरी दर्ज न की गई हों | हमारें इसी आधुनिकतावाद का परिणाम हैं कि आज भारत में वृद्धाश्रमों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई हैं |

इस आधुनिकतावाद की पटकथा तों उस समय ही लिख दी गई थीं जब भारत में सूचना व प्रद्योगिकी क्रांति की शुरुआत हुई | उस समय किसी भी भारतीय के जेहन में यह प्रश्न नहीं उठा होगा कि इस क्रांति का सीधा असर भारतीय संस्कृति व सामाजिक व्यवस्था पर पड़ेगा | शायद इसी बात को ध्यान में रखकर मसहूर समाजशास्त्रियों में से एक “टापलर”ने समाजीकरण के लिए “सूचना क्रांति” को जिम्मेदार माना , जिसका परिणाम आज साफ परिलक्षित है |समाजिक व्यवस्था के लिए जरुरी है कि हम अपनी रीति-रिवाज ,संस्कार ,सभ्यता व संस्कृति को बचा कर रखे लेकिन आज हम पश्चिमी सभ्यता ,संस्कार व संस्कृति के इतने दीवाने हो गयें है कि अपनों को पहचानना भूल गए हैं |अगर हम इस समस्या के मूल जड़ में जाए तों कारण साफ स्पष्ट हो जाएगा क्योंकि 21वीं सदी में जीवन –यापन करने का दंभ भरने वालें इन महानुभावों कें फेसबुक व वाट्सएप जैसें सोशल साईट के मित्रो की सूची में तो मित्रों की संख्या हजारों में होती हैं लेकिन घर आने पर इन्हें अपने माता –पिता से बात तक करने का समय नहीं मिलता | इसी समस्या के कारण आज मथुरा जैसे कई ऐसे शहर हैं ,जहाँ विधवाश्रम व वृधाश्रमों की संख्या में काफी तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही हैं | खुद प्रधानमंत्री मोदी ने भी हरियाणा में “बेटी बचाओं , बेटी पढाओं”योजना की शुरुआत करते हुए साफ कहा था कि आजादी के बाद भारत में वृधाश्रमों की संख्या में काफी तेजी से बढ़ोत्तरी हुई हैं |

जब सर्वप्रथम दूरसंचार क्रांति की शुरुआत भारत में हुई थी तों हर किसी के चेहरें पर ख़ुशी थी | इस ख़ुशी का कारण साफ था क्योंकि लोगों को संवाद करने के लिए कागज व कलम से छुट्टी मिलने वाली थी | हद तों तब हो गई जब इस तकनीक का प्रयोग संदेश भेजने के लिए होने लगा | इससे निश्चित रूप से लोगों को कागज व कलम से तो मुक्ति मिली ही साथ में ये विभिन्न प्रकार के एप्लीकेशन लोगों के लिए सस्ता संदेश वाहक की भूमिका अदा करने लगे | शुरू में तो इन एप्लीकेशनों का प्रयोग प्रयोगकर्ताओं ने सार्थक रूप में किया लेकिन समय बितता गया और ऐसा समय आया जब वैवाहिक समबन्ध बिच्छेद में इन सोशल साईटो ने अपनी महती भूमिका निभाना शुरू किया | हाल ही के दिनों में मध्यप्रदेश का मिनी मुंबई कहा जाने वाला शहर इंदौर में रोचक आंकड़े सामने आये हैं | पारिवारिक न्यायलय इंदौर के ताजा रिपोर्ट के अनुसार ,इंदौर में हर 5 दिन में 6 तलाक़ हों रहें हैं | इन मामलों के तह में जाने पर पता चलता हैं कि फेसबुक – वाट्सएप इसके लिए बड़ी वजह हैं | आकड़ों पर ध्यान दिया जाय तों इंदौर में वर्ष 2014 में 438 पति –पत्नीं अलग हुए जबकि 624 मामलें पेंडिंग में हैं | फैमिली कोर्ट इंदौर के प्रिंसिपल काउंसलर सीमा मालवीय ने इस मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए साफ कहा कि इस समय कोर्ट में सोशल मीडिया और हाईफाई लाइफस्टाइल से जुड़े मामलें काफी आ रहे हैं | यह स्थिति केवल इंदौर की ही नहीं है अपितु कई ऐसे शहर है जो इस समस्या से दो – चार हो रहे हैं | प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी के परवारिक न्यायलय के भी आकड़े कुछ ऐसी ही स्थिति को बयां कर रहे है | कुटुम्ब न्यायालय वाराणसी के अनुसार प्रत्येक वर्ष 50 से 100 तलाक अधिक हो रहे हैं |

भारतीय सामाजिक व्यवस्था शुरू से ही सामाजिक संबन्धों पर टिकीं हैं , तभी तो समाज को सामाजिक संबन्धों का संजाल कहा गया हैं | यह जरुरी है कि हम भी आधुनिकता के साथ कदम से कदम मिला कर चले लेकिन ये जरुरी नहीं कि हम अपनी भारतीय संस्कृति ,सभ्यता आदि को विल्कुल भूल जाए | अब जब इस बीमारी ने अपना पाव पसारना शुरू कर दिया है तो जरुरी है कि हम हमेशा अपने सामाजिक संबन्धों का ख्याल रखे व भारतीय संस्कृति व सभ्यता को जीवित रखने में अपनी सहभागिता दे |

-नीतेश राय (स्वतंत्र टिप्पणीकार)

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here