तीआं तीज दीआं…

teejपरमजीत कौर कलेर

आज मौसम बड़ा बेईमान है अजी ये हम नही कह रहे ये तो मौसम का बदलता मिज़ाज है । जनाब इस मौसम के भी तो क्या कहने  कभी पलभर में घनघोर काली घटाएं चढ़ आती हैं तो कभी पल भर में धूप चढ़ जाती है। मौसम का ये बेईमानपन और आंखमिचौली होती है सावन के महीने में।इस महीने में लड़कियों की खुशी का तो कोई ठिकाना नहीं रहता। इस खुशगवार मौसम में पक्षी भी किलकारियां मारते प्रतीत होते हैं।सावन के महीने का महिलाएं , लड़कियां बेसब्री से इंतजार करती हैं क्यों होता है लड़कियों को इस महीने का इंतजार आईए आपकी बेसब्री करते हैं दूर और आपको बताते हैं इस महीने को वेदना, श्रद्धा और आस्था का महीना क्यों माना जाता है। अब तो आप समझ ही गए होंगे कि हम किस त्यौहार की बात कर रहें हैं जी हां हम बात कर रहें हैं तीज के त्यौहार की ।

आया सावन झूम के जी हां सावन की प्यारी ऋतु क्या आती है वो अपने साथ लाती है ढेर सारी  खुशियां। ऊपर से हो रही  बरसात तो फिर तो इस ऋतु का अपना ही नजारा है जनाब। तीखी ,चुभती गर्मीं से ये  सुहानी ऋतु हमें निजात दिलाती है । इसी सुहाने मौसम का आनन्द उठाता दिखाई देता है हर कोई । इंसान तो इंसान है भई पशु पक्षियों की भी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता। मोर खुशी के मारे इस सुहाने मौसम में मदमस्त चाल चलते हैं। चारो और खेतों पर नजर मारने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो हरियाली की चादर बिछी हो और खुशी के मारे फसलें भी झूम उठती हैं  । सावन के इस सुहावने मौसम के दौरान ही आता है तीज का त्यौहार ।जिसे उतर भारत में  बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है..तीज का ये त्यौहार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन मनाया जाता है। पूरे भारत में मनाए जाने वाले इस त्यौहार को अलग अलग राज्यों में अपने ही अंदाज में मनाया जाता है…तीज सावन महीने में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन मनाया जाता है । लड़कियों , औरतों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता। क्योंकि ये हैं ही औरतों का त्यौहार जो पूरे पन्द्रह दिन चलता है। बेटिया , नवविवाहित लड़किया औरतें सब इस पर्व का इंतजार का बड़ी बेसब्री से करती हैं। सावन की तृतीया के व्रत का अपना ही अहम महत्व है । तीज के दिन भगवती पार्वती सौ सालों की कठिन तपस्या के बाद शिव से मिली थी।  इस दिन मां पार्वती की पूजा अर्चना करके महिलाएं व्रत रखती हैं।गुरूबाणी में रचित बारहमाह में देसी महीनों में एक सावन महीना होता है जिसे बहार का मौसम कहा जाता है। सावन का ये महीना प्रभू भक्ति के लिए  विशेष स्थान रखता है , इसलिए जिसने प्रभू की भक्ति स्टार्ट नहीं की उन्हें भी इस महीने प्रभू भक्ति शुरू कर देनी चाहिए गुरू नानक देव जी फरमाते हैं …

मोरी रूणझून लाईयां भैणे सावन आया…

तीज को अलग अलग नाम जाना जाता है इसे हरितालिका, तीज, तीयां के हरितालिका जिसका मतलब हरियावल से है। ऐसा भी माना जाता है कि पार्वती की सहेली उन्हें पिता और प्रदेश से हर कर जंगल में ले गई थी , हरित का मतलब है हरण करना और तालिका मतलब सहेली। उतर भारत में इसे हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है, ये खास तौर पर लड़कियों और महिलाओं का त्यौहार है । पंजाबी में इसे तीयां के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है धीयां। अभिप्राय यह है कि ये लड़कियों , बेटियों का त्यौहार जिसे ब्याही , कुंवारी हर महिला इसे बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाती हैं। पूरे पन्द्रह दिन तक चलने वाला ये लम्बा त्यौहार है। तीज को प्रकृति के साथ मेल का पर्व कह लिया जाए तो कहना ज़रा भी गलत न होगा। जो बना है सिर्फ औरतों के लिए ये गुण महिलाओं में ही होते हैं , आदमी इसे नहीं समझ सकते।सावन के इस पर्व का सम्बंध कृषि और हरियाली से भी है वर्षा की फुहारे मानों लहलहाती फसलों का श्रंगार कर रही हों। आषाढ़ महीने की तिलमिलाती धूप से लोगों को सावन की फुहारें  ठंडक दिलाती  हैं । मानो ये ऋतु लोगों के लिए वरदान बनकर आती है। आसमान पर उमड़ घुमड़ कर आते बादल सब एक का मन हर लेते हैं फसलें भी खुशी के मारे हिलोरे खाने लगती हैं।पहले अगर सावन के महीने में इन्द्रदेवता मेहरबान नहीं  होते थे तो इन्द्रदेवता को खुश करने के लिए भी गांव की लड़कियों के पास कई उपाय करती थी और इन टोटको अपनाती थी कपड़े का एक गुड्डा और गुड्डी बनाती थी और उसे जलाती थी और झूठा रोना रोती हुई इन्द्रदेवता से गुजारिश करती हुई कहती थी …………

वर वे मीहां चिटि्टया

असी गुड्डा गुड्डी पिट्टिया

अगर फिर भी इन्द्रदेवता न माने तो वे प्रार्थना करती हुई कहती है

वर वे मियां कालिया असी

गुड्डा गुड्डी साड़िया

गुड्डा गुड्डी को जलाने के बाद वो घर आकर मीठे चावल बनाती हैं

छोटी लड़कियां भी कम नहीं हैं वो भी ईश्वर के आगे निवेदन करती हुई कहती हैं ……………

अल्लड़ बल्लड बावे दा

बावा मींह लिआवेगा

बावी बैठी छटेगी

ते बावा बैठा खावेगा

लगता है ये सब गुजरे जमाने की बातें हो गई हैं।क्योंकि आज की भागमभाग भरी जिन्दगी में किसी के पास टाईम नहीं है तीज मनाने का

लड़कियों का त्यौहार है तो भई लड़कियां, महिलाएं  अपने को सजाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती। अपने को सजाने के लिए सिर की चोटी से लेकर पैर के नाखून तक सजाती है। हाथों को सजाने के लिए महिलाएं अपने हाथों पर महंदी रचाती हैं। यही नहीं अपनी कलाईयों को सजाने के लिए रंग बिंरगी चूड़िया पहनती हैं ।

पहले वो चूड़ियां चढ़ाते वक्त बनजारे से अठखेलिया करती हुई कहती थी…………

आ वनजारिया बहि वनजारिया कित्थे ने तेरे घर वे –सावन के महीने की खासियत ये होती है कि इन दिनों नवविवाहिता लड़किया भी अपने ससुराल से मायके घर आ जाती हैं भाई अपनी बहनों को ससुराल से मायके घर लाते हैं। इसीलिए तो कहते हैं………

साऊन वीर कटठीयां करे..

भादो चन्दरी विछोड़े पाए

हरियाली तीज के बाद नवविवाहिता का अपने सिंधारे का इंतजार करती हैं  और जो लड़कियां मायके नहीं जाती उनके लिए मायके वाले तीज का संधारा उसके ससुराल में भेजते हैं जिसमें मेहंदी , लड़की और उसके पति , ननद और सास के कपड़े  , झुल्ले के लिए रस्सी , फट्टी, मिठाईया , घेवर गहना या पैसे भेजे जाते हैं …नवविवाहिता इस सिंधारे को पाकर बहुत खुश होती हैं।जिन लड़कियों की सगाई हुई होती है उसके लिए ससुराल वाले सिंधारा भेजते हैं।

इस महीने लड़की  अपनी सास के माथे नहीं लगती , मायके घर आ के न उसे किसी बात की फिक्र होती है उसे बस फिक्र होती है तो वो है बस मौज मस्ती करने की। इस दिन महिलाएं प्रकृति से मेल खाती हुई चूड़ियों, आभूषणों और नए कपड़ों से अपना श्रंगार करती हैं।  पीपल के वृक्षों पर झूले डाले जाते हैं सारी औरतें, लड़कियां इक्टठी होकर झूले डालती हैं  और इतनी ऊंची झूला चढ़ाती हैं कि बस देखने वाले बस देखते ही रह जाते हैं । वो झूला ऐसे झूलती है मानो वो आसमान से बातें कर रहीं हों। पंजाब में तो इसका अपना ही खुमार होता हैं। इसीलिए तो कहा भी गया है …………….

साऊन महीना बागीं पींघां

रल मिल सखीयां पाईयां

सावन के महीने का अपना ही स्वाद होता है इसे प्रेमी प्रेमिका के महीना कह लिया जाए तो कहना गलत न होगा। सावन की झड़ी में सभी सहेलियों इस रिमझिम का मजा लेती हुई घूमती हैं। कुदरत भी इस महीने में मानो अठखेलियां करती है कभी एकदम से घोड़ों की टाप के समान बारिश होने लगती है तो कभी एक दम से काली घटा चढ आती है मानो रात हो गई हो फिर मुटियारों का मन क्यों न मचलेगा। उनकी एड़ी अपने आप ही थिरकने को मजबूर हो जाती है।मन हिचकोले खाने लगता है जब पंजाब की मुटियारे गिद्दा डालती है तो ऐसे प्रतीत होता है कि मानो धरती हिलोरे खा रही हों।

साऊन महीने दिन गिद्दे दे

सभे सहेलियां आईयां

भिज्ज गई रूह मित्रा

शाम घटा चढ़ आईयां

गिद्दे में डाली जाने वाली बोलियों से लड़किया अपने दिल के गुबार को निकालती है……. जब भाई अपनी बहन को लेने के लिए उसके ससुराल जाता है तो लड़की की सास उसके भाई की खातिरदारी नहीं करती …….वो अपनी सास को उलाहना देते हुए कहती है ……

सस्से तेरी मेह मर जे

मेरे वीर नू सूकी खंड पाई

जिन लड़कियों का भाई उन्हें लेने के लिए उनके ससुराल नहीं जाता वो सास ताना मारती हुई कहती है

तैनू तीयां नू लैण न आए बहुतिया भरावां वालिए…

ये भी माना जाता है कि अगर किसी लड़की के हाथों में खूब महंदी चढ़े तो कहा जाता है कि उस लड़की को  अपनी सास से बेहद प्यार होता है। ये भी विश्वास किया जाता है कि अगर सावन के इस महीने झूला न झूले तो वो अगले जन्म में मेढक की जून में पड़ता है। इसलिए हर एक को झूला जरूर झूलना चाहिए।

सावन की झड़ी लगती है तो मौसम तो खुशगवार हो ही जाता हैं ये महीना गर्मी से निजात दिलाने और ठंडक दिलाने वाला होता है।महिलाएं तो इस महीने का इंतजार बड़ी बेसब्री से करती हैं।  इस में महिलाओं , लड़कियों  की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता।

महिलाएं , लड़कियां पूरी तरह सज धज कर निकलती है हर एक की खव्हाइश होती है कि हर किसी  की नजर उन पर ही टिक जाए। लम्बे परादें , रंग बिरंगे कपड़े, गहनों से लदी मानो सारी औरतें नवविवाहिता हो। यही नहीं वो अपने को  सजाने के लिए ब्यूटी पार्लर का भी रूख करती हैं । तीयां वाले दिन दोपहर ढलते ही सारी लड़किया तैयार होकर , सिर गुंदवा के,हार श्रंगार करके, रस्से उठाकर हिरणों के झुंड के सामान तीज मनाने के लिए चल देती हैं। छायादार वृक्षों में  झूले डाले जाते हैं खुले मैदान में तीयां लगती हैं झूले झूलती लड़कियों को देखकर वृक्ष भी मानो खुशी के मारे झूम रहें हों। सहेलियां , ननद और भाभियां इक्टठी होकर झूले झूलती और अठखेलियां करती हैं। बारिश में की फुहारों में भीगते नाचते हुए वो तीज मनाती हैं…….

पंजाबी में तीज को तीयां कहा जाता है । तीयां जो कि नाम से स्पष्ट है धीयां , पंजाबी में धीयां को बेटियां कहा जाता है सो ये त्यौहार कुड़ियों और चिड़ियों के लिए । जब मेघा बरसते हैं तो मानो तो उनका स्वागत बड़े ही हर्षोल्लास से किया जाता है। खेतों में जाकर हरियाली तीज की पूजा अर्चना की जाती है।  त्यौहार सावन ऋतु का स्वागत करने के लिए मनाया जाता है  साथ ही ईश्वर से प्रार्थना की जाती है कि किसानों के लिए ये सावन की ये रिमझिम फसल को हरा भरा कर दे।

साऊन महीने मीय पिया पैंदा, पिपली पींघा पाईयां

रल मिल सखीया पीघां झूटण, ननदा ते भरजाईयां

हर राज्य में मनाए जाने वाले इस त्यौहार को अपने अपने ढंग से मनाया जाता है, महिलाओ अपनी लोक रंग में रंगी गीत गाती …जिस लड़की की मां उसे तीज मनाने के लिए आनाकनी करती है वो अपनी मां से मिन्नतें करती हुई कहती है…..

मैं वी माएं पींघ झूटणी , अम्बरी पींघ मैनू पा दे

सावन की इस  झड़ी का लुत्फ पशु पक्षी भी मनाने में पीछे  नहीं रहना चाहते ।लोकनृत्य और गिद्दे और किकली से झूम रही मुटियारों को देखकर खुशी में गीत गाते है पपीहे की पी पी सबका मन मोह लेती है। मगर जिस लड़की का पति प्रदेश गया हो वो उसके लिए पपीहे की और कोयल की मीठी आवाज कड़वी लगती है उसके लिए ये महीना बिरह का बन जाता है क्योंकि उसके पति परमेश्वर उसके पास नहीं होता।

सावन का महीना हो और  कुछ मीठा न बने ये तो हो ही नहीं सकता। । बारिश की रिमझिम के साथ हर घर में सावन के स्वागत के लिए बनते हैं खीर पूड़े और इसलिए तो जो इस महीने खीर पूड़े नहीं खाता तो उसके बारे में कहा जाता है…..

सावन खीर न खाधी आ ते क्यों जमिया अपराधियां…

सावन महीने में पड़ रही बरसात  का लुत्फ उठाने के लिए  खीर पूड़े बनाए जाते हैं इसलिए तो लड़कियां अपनी मां को बोली के माध्यम से समझाती हुई कहती हैं …….

पूड़ि्ड़यां नू जी करदा भाबो पूड़े पकादे ।

वही वो लोक बोलियों के माध्यम से अपनी सास पर कटाक्ष कसती हुई कहती हैं …

सस्स मेरी ने पूड़े बनाए नाल बनाई खीर

खान पीण दा वेला होइयां टिड्ड च पै गई पीड़

रत्ता दई जवैन , रत्ता दई जवैन…गांवों में तो इस त्यौहार को रविवार वाले दिन इस तीज का स्पेशल उत्साह देखने को मिलता है,  जिसमें सभी लड़किया महिलाएं इक्टठी होकर गिद्दा डालती है कुड़ियो चिड़ियों के  इस त्यौहार को बड़ी बेसब्री से इंतजार करती हैं क्योंकि एक  न तो सास का डर होता है और न ही फिक्र और पन्द्रह दिन अपने मायके घर में सास के ताने भी सहने नहीं पड़ते। उसे अपनी सहेलियों में जो मौज मस्ती करने का मौका मिल जाता है वो और कहां

कभी लोक गीतों से अपनी अमिट छाप छोड़ने वाला हरियाली तीज की चमक भी लगता है फीकी पड़ती जा रही है। भागदौड़ भरी इस जिन्दगी में त्यौहार मनाने के ढंग भी बदल गए हैं।

अब तीज के त्यौहार मनाने के मायने ही बदल गए हैं इन पर भी बनावटी रंग चढ़ता नजर आ रहा है। पहले क्या होता था को सिर को सजाने के लिए नैन से औरतें सिर गुंदवाती थी ….

नैने मेरा सिर गुंद दे

ऊते पादे डाक बंगला

मगर अब न तो नैन से सिर गुंदवाया जाता है न ही वो उत्साह रहा है तीज के मनाने का , जो पहले हुआ करता था। अब तीज का त्यौहार न तो खुले बागों में और खुले खेतों में झूले डाल कर किया जाता है न ही वो लोक गीतों की रंगत रही है इसकी जगह ले ली है डी जे ने । अगर तीज मनाई जाती है तो वो है डी जे की धुनों पर ।  झूले खुली जगह और  पेड़ो की डालों पर न डाल कर बल्कि क्लब और बैंक्वट हॉलों में मनाए जाते हैं। न वो ढोलक की थाप रही और न वो लोक धुनें ।लगता है महिलाओं के इस  त्यौहारों पर भी पश्चिमी संस्कृति हावी होती जा रही है।नई जनरेशन अपने को माडर्न कहलाने में लगी हैं। अपने संस्कारों और रीति रिवाजों को भूलती जा रही हैं।ये त्यौहार यूनिवर्सिटयों और कालेजों ,क्लबों  तक ही सीमित होकर रह गया हैं। कालेज , यूनिवर्सिटयां और क्लब  ही अपनी संस्कृति को प्रफुल्लित करने में लगे हैं। इन त्यौहारों को मनाने का ढंग बेशक  बदल गए हैं मगर इनको थोड़ा बहुत अगर सहेज कर रखा है तो वो है हमारे गांव।

सावन के महीने को अलविदा कहने को किसी का दिल नहीं करता भई यह महीना हैं ही मेल मिलाप करने का।आपसी प्यार और सद्भभावना  के इस त्यौहार को खास कर लड़कियां अलविदा कहना नहीं चाहती वो कहती हैं कि अगले साल फिर से ये महीना जल्दी से आए और वो इसी तरह जश्न मनाए।

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