-प्रमोद भार्गव-
-संदर्भः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा-
नदियों के जल-बंटवारे का विवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं राश्ट्रीय स्तर पर भी विवाद का विषय बना रहा है। ब्रह्मपुत्र को लेकर चीन से,तीस्ता का बांग्लादेश से, झेलम का पाकिस्तान से और कोसी को लेकर नेपाल से विरोधाभास कायम हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्तों में खटास सीमाई क्षेत्र में कुछ भूखंडों,मानव-बस्तियों और तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर पैदा होती रही है। हाल ही में दोनों देशों के बीच संपन्न हुए भू-सीमा समझौते के जरिए एक विवाद पर तो कमोवेश विराम लग गया,लेकिन तीस्ता की उलझन बरकरार है। इसी महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश यात्रा पर निकल रहे हैं। ढाका में होने वाली द्विपक्षीय वार्ता से उम्मीद बंधी है कि आखिरकार यह उलझन भी सुलझ जाएगी।
विदेश नीति में अपना लोहा मनवाने में लगे नरेंद्र मोदी से ढाका यात्रा के दौरान दोनों देशों में परस्पर दोस्ती की मजबूत गांठ बंध जाने की उम्मीद बढ़ी है। यह उम्मीद इसलिए ज्यादा है,क्योंकि पिछले माह ही मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने बांग्लादेश के साथ कुछ बस्तियों और भूक्षेत्रों की अदला-बदली में सफलता प्राप्त की है। यह समझौता संसद में आम राय से पारित भी हो गया है। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि तीस्ता नदी से जुड़े जल बंटवारे का मसला भी हल हो जाएगा। यह विवाद 2011 में ही हल हो गया होता, यदि प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अड़ंगा नहीं लगाया होता ? अब ममता ने मोदी के साथ ढाका यात्रा का न्यौता कबूल करके यह जता दिया है कि वे मसले के हल को राजी हैं। यदि इस समस्या का समाधान निकल आता है तो यह मसला मोदी-ममता की दोस्ती प्रगाढ़ करने की दिशा भी तय करेगा, जिसके दूरगामी परिणाम जनता दल के एका में रोड़ा बन सकते है।
तीस्ता के उद्गम स्रोत पूर्वी हिमालय के झरने हैं। ये झरने एकत्रित होकर नदी के रूप में बदल जाते हैं। नदी सिक्किम और पष्चिम बंगाल से बहती हुई बांग्लादेश में पहुंचकर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है। इसलिए सिक्किम और प. बंगाल के पानी से जुड़े हित इस नदी से गहरा संबंध रखते हैं। मोदी ने मसले के हल के लिए ममता बनर्जी के साथ सिक्किम की राज्य सरकार से भी सलाह मशविरा किया है,जो समस्या के हल की दिषा में सकारात्मक पहल कही जा सकती है। क्योंकि पानी जैसी बुनियादी समस्या का निधान किसी राज्य के हित दरकिनार करके संभव नहीं है।
हालांकि वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के बांग्लादेश दौरे से पहले इस नदी जल के बंटवारे पर प्रस्तावित अनुबंध की सभी शर्तें सुनिश्चित हो गई थीं,लेकिन पानी की मात्रा के प्रश्न पर ममता ने आपत्ति जताकर ऐन वक्त पर डॉ सिंह के साथ ढाका जाने से इनकार कर दिया था। हालांकि तब की षर्तें सार्वजानिक नहीं हुई हैं,लेकिन ऐसा माना जाता है कि वर्षा ऋतु के दौरान तीस्ता का प. बंगाल को 50 प्रतिशत पानी मिलेगा और अन्य ऋतुओं में 60 फीसदी पानी दिया जाएगा। ममता की जिद थी कि भारत सरकार 80 प्रतिशत पानी बंगाल को दे, तब इस समझौते को अंतिम रूप दिया जाए। लेकिन तत्कालीन केंद्र सरकार इस प्रारुप में कोई फेरबदल करने को तैयार नहीं हुई,क्योंकि उस समय केंद्रीय सत्ता के कई केंद्र थे। नतीजतन लचार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह षर्तों में कोई परिवर्तन नहीं कर सके। लिहाजा ममता ने मनमोहन सिंह के साथ ढाका जाने की प्रस्तावित यात्रा को रद्द कर दिया था। लेकिन अब राजग सरकार ने तबके मसौदे को बदलने के संकेत दिए हैं। लिहाजा उम्मीद की जा रही है कि प. बंगाल को पानी देने की मात्रा बढ़ाई जाएगी। हालांकि 80 प्रतिशत पानी तो अभी भी नहीं मिलेगा,लेकिन पानी की मात्रा बढाकर 65-70 फीसदी तक पहुंचाई जा सकती है ? इन संभावनाओं के चलते ही ममता,मोदी के साथ ढाका यात्रा को राजी हुई हैं।
ममता बनर्जी राजनीति की चतुर खिलाड़ी हैं, इसलिए वे एक तीर से कई निशाने साधने की फिराक में भी हैं। तीस्ता का समझौता प. बंगाल के अधिकतम हितों को ध्यान में रखते हुए होता है तो ममता बंगाल की जनता में यह संदेश देने में सफल होंगी कि बंगाल के हित उनकी पहली प्राथमिकता हैं। जल बंटवारे के अलावा ममता की दिलचस्पी कोलकाता और अगरतला के बीच वाया ढाका बस सेवा शुरू कराने में भी है। इस सेवा को शुरू करने में कोई विशेष बाधा नहीं है। जब सीमा समझौते और जल-बंटवारे जैसे बड़े व जटिल मुद्दे हल हो सकते है तो बस सेवा तो बहुत छोटी आकांक्षा है। गोया इस आकांक्षा की पूर्ति होती है तो संपर्क और आवाजाही के और भी अनेक रास्ते खुलेंगे। कालांतर में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से व्यापार व पर्यटन को बढ़ावा देने के मकसद से बांग्लादेश से भी भारत को मदद मिलेगी। वैसे भी नरेंद्र मोदी सरकार का मुख्य मकसद व्यापार के जरिए देष का चहूंमुखी विकास ही है। लेकिन इन जरूरी समस्याओं के निदान के साथ साहित्य और संस्कृति के आदान-प्रदान की भी जरूरत है। क्योंकि एक समय बांग्लादेश भारत का ही भूभाग रहा है। इसलिए दोनों देशों के बीच तमाम सांस्कृतिक समानताएं हैं। बांग्लादेश और पष्चिम बंगाल की मात्र भाशा बंग्ला है। ध्यान रहे सांस्कृतिक समानताएं सांप्रदायिक सद्भाव की पृष्ठभूमि रचने का काम करती हैं और इसमें साहित्य का प्रमुख योगदान रहता है। गोया, तीस्ता की जलधारा दोनों देषों के बीच षांति और समन्वय के नए आयाम रचेगी,यह गुंजाइश ममता की सहमति से बढ़ गई है।