भारत में जहां नारी को देवी की उपाधि दी गयी है। वहीं कितनी विडम्बना है कि स्त्री जाति के प्रति परिवार और समाज में लगातार अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं। दुष्कर्म, ऑनर किलिंग, छेड़छाड़, मारपीट, महिलाओं की तस्करी, कन्या भ्रूणहत्या जैसे वर्षों से चले आ रहे थे तथा आज भी विद्यमान है। तमाम संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद महिलाएं, बच्चियां शरीरिक-मानसिक शोषण की धड़ले से शिकार हो रही हैं।
इन सबके अलावा पिछले कुछ वर्षों से महिलाओं पर तेजाब फेंकने की घटना में बढ़ोतरी हुई है। अभी हाल ही में नौसेना के कोलाबा अस्पताल में बतौर नर्स के रूप चयनित दिल्ली की प्रीति राठी पर मुंबई में एक युवक ने तेजाब फेंक दिया और जीवन-मृत्यु के बीज जूझती प्रीति आखिर जिंदगी की जंग हार गयी। इसके कुछ समय पूर्व ही उत्तर प्रदेश के शामली जिले में चार बहनों पर तेजाब फेंक दिया गया था। दुष्कर्म और तेजाबी हमले जैसे बर्बर कृत्यों पर अंकुश नहीं लग पर रहा है। एक तरफा प्रेम में हताश युवक लड़कियों को जीवित मृत करने के लिए ऐसा घृणित कृत्य करने में संकोच नहीं कर रहे। दरअसल, यह मात्र युवा पीढ़ी की संवेदनहीनता या कुंठा ही नहीं बल्कि इन अपराधों के खिलाफ लंबी लचीली कानून व्यवस्था भी है जो अपराधी को बढ़ावा देती है।
सामंती मानसिकता से ग्रस्त पुरूष नारी को अपनी निजी संपत्ति समझता है। उसे छेड़ने, फब्तियां कसने, शारीरिक-मानसिक प्रताड़ना देने में ही वह अपनी मर्दानगी समझता है। आज स्त्रियों के प्रति बढ़ते अत्याचार और हिंसा का ग्राफ मात्र भारत ही नहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित पूरे एशिया में तेजी से बढ़ रहा है।
व्यापक परिप्रेक्ष्य में गत वर्ष 2011 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध 2.25 लाख थे। दरअसल, पिछले दो दशकों मैं आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत के साथ ही महिलाओं के प्रति बर्बरता और क्रूरता में भी वृद्धि देखी गयी। इसके अलावा राज्य का सरकारी तंत्र एवं मीडिया महिलाओं के यौन शोषण पर अंकुश लगाने के बजाय इसे बढ़ावा ही देता है। आज समाज में बढ़ती आधुनिकता तथा पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण तथा बाजार की शक्तियों और आक्रामक उपभोग अभियान का दबाव नवीन विज्ञापनों के जरिये मुखर हुआ है जिसमें स्त्रियों के तन को कामोत्तेजना के उपकरण के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
महिलाओं पर तेजाबी हमले को रोकने के उद्देश्य से वर्ष 2008 में केन्द्र सरकार ने पहल की। उस समय सभी राज्य सरकारें तेजाब फेंकने की घटनाओं पर कड़ी सजा के लिए सहमती थीं। इस अपराध के तहत अपराधी को न्यूनतम सजा सात साल करने को कहा गया हालांकि महिला आयोग व अन्य संगठनों की मांग थी कि न्यूनतम सजा दस साल और अधिकतम सजा उम्र कैद हो। राज्य सरकारें पीड़िता को मुआवजा सुनिश्चित करने के भी पक्ष में थी। इसके बाद वर्ष 2010 में गृह मंत्रालय की एक उच्च स्तरीय समिति ने तेजाबी हमला करने वालों को दस साल की कैद और दस लाख रुपये जुर्माने की सिफारिश की थी। तेजाबी हमलों को लेकर सख्त कानून बनाने की मांग काफी समय से की जाती रही है। लेकिन इस दिशा में आज भी कड़े कानूनों का अभाव है।
यदि महाराष्ट्र सरकार प्रीति राढ़ी के मृत्यु के पश्चात 5 लाख मुआवजा देकर इतिश्री कर लेती है तो इससे महिलाओं, युवतियों पर तेजाब फेंकने की प्रवृति कम नहीं हो जाएगी। यह तो एक प्रकार का दोगलापन है कि सिरफिरा एक भविष्योन्मुख युवती के उपर तेजाब फेंकता है, उसे शारीरिक रूप से बर्बाद करता है तथा अंत में उसकी जीवन लीला समाप्त हो जाती है। प्रीति जैसी बेटियों ने कितना बड़ा स्वप्न देखा था लेकिन वह स्वप्न, स्वप्न ही रह जाता है। युवतियां अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाती हैं। मेरा मानना है कि देश के राजनीतिक दलों को तेजाब बेचने वाले, खरीदने वाले, सहयोग करने वाले तथा तेजाब फेंकने वाले व्यक्तियों को कानूनी दायरे में लाने की जरुरत है तथा इस कानून में पांच लाख रुपये जुर्माना, आजीवन सश्रम कारावास तथा उसी तरह धीरे –धीरे उस व्यक्ति पर तेजाबीकरण करने की होनी चाहिए। अन्यथा सिरफिरे एक तरफा प्रेम, घृणा तथा जबरन विवाह से बाज नहीं आएंगे तथा नैना साहनियों, प्रिय दर्शिनी मट्टुओं तथा प्रीति राठियों के साथ तेजाबीकरण होता रहेगा और सरकार हाथ पर हाथ रखे रहेगी। आज मातृशक्ति तथा सरकार को पाठ्यक्रमों में तेजाबीकरण जैसी दुष्प्रवृतियों को देने की जरुरत है ताकि आज की युवा पीढ़ी जाने कि यह एक अमानवीय कृत्य है।