आतंक से लहूलुहान पाकिस्तान

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पाकिस्तान
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अरविंद जयतिलक
आतंकवाद को शह देने का नतीजा है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से जुड़े समूह जमातुल अहरार के एक आत्मघाती हमलावर ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर को खून से रंग दिया। खुद को बम विस्फोट से चिथड़ा कर गुलशन-ए-इकबाल पार्क में ईस्टर मना रहे 70 से अधिक लोगों की भी जान ले ली है। हमले में तीन सैकड़ा से अधिक लोग बुरी तरह घायल हुए हैं और इनमें से कुछ जीवन-मौत के बीच झुल रहे हैं। मरने वाले लोगों में अधिकतर ईसाइ समुदाय से हैं जिससे प्रतीत होता है कि हमलावर का मकसद धर्म विशेष के लोगों को नुकसान पहुंचाना था। माना जा रहा है कि यह हमला पंजाब के पूर्व गवर्नर सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को पिछले दिनों दी गयी फांसी का बदला है। अभी कुछ माह पहले बेखौफ आतंकियों ने पेशावर के निकट चारसद्दा स्थित बाचा खान विश्वविद्यालय को निशाना बनाकर 21 छात्रों की जान ली और 50 से अधिक लोगों को बुरी तरह घायल किया। उस समय हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने ली और धमकी दी कि ऐसे और हमले होते रहेंगे। याद होगा 16 दिसंबर, 2014 को भी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के आतंकियों ने पेशावर के सैनिक स्कूल में अंधाधंुध गोलियां बरसाकर 150 से अधिक निर्दोष छात्रों की जान ली। उस दरम्यान भी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने कहा था कि यह हमला जिहादियों के परिवारों पर हमले का बदला है। गौरतलब है कि पाकिस्तान की सेना वजीरिस्तान में आतंकियों के सफाए के लिए जर्ब-ए-अज्ब अभियान चली रही है और उस अभियान में हजारों आतंकी मारे जा चुके हैं। इस अभियान से बौखलाया तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को सबक सिखाने पर आमादा है। पर मौंजू सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान इन आतंकी हमलों से सबक लेते हुए आतंकी संगठनों को खाद-पानी मुहैया कराना बंद करेगा? कहना मुश्किल है। कारण वह आतंकवाद को लेकर अपनी गुड और बैड टेररिज्म की नीति में फंसा हुआ है। नतीजा उसकी धरती बार-बार खून से लाल हो रही है। आश्चर्य लगता है कि एक ओर वह उत्तरी वजीरिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के आतंकियों के खिलाफ अभियान चला रहा है वहीं दूसरी ओर जैश-ए-मुहम्मद और जमात-उद-दावा जैसे संगठनों को खुलकर प्रश्रय भी दे रहा है। ऐसे में सवाल लाजिमी है कि फिर पाकिस्तान तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान सरीखे उन आतंकी संगठनों से मुकाबला कैसे करेगा जो पाकिस्तान का वजूद मिटाने पर आमादा हैं। याद होगा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने ही 2014 में अटारी-बाघा सीमा पर बीटिंग रिट्रीट समारोह के दौरान भीषण आत्मघाती हमलाकर 60 लोगों की जान ली थी। उस समय उसने कहा था कि यह हमला नार्थ वजीरिस्तान और खैबर इलाकों में सैन्य कार्रवाई का बदला है। तहरीक-ए-तालिबान के दुस्साहस से पाकिस्तान को अहसास हो जाना चाहिए कि सांप को दूध पिलाना कितना खतरनाक होता है। यह हमला एक किस्म से पाकिस्तान की सत्ता व सेना दोनों के लिए चुनौती है जो दूम दबाए खड़ी हैं।

पाकिस्तान को समझ लेना होगा कि उसके दामन में पल रहे आतंकी इस कदर मजबूत हो चुके हैं कि वे उसकी संप्रभुता को मिटाने में सक्षम हैं, और इसके लिए कोई और नहीं बल्कि वह स्वयं जिम्मेदार है। अभी पिछले दिनों उसके मित्र अमेरिका द्वारा भी कहा गया कि पाकिस्तान आतंकियों के लिए जन्नत है। यह भी उद्घाटित हो चुका है कि पाकिस्तान की सेना एवं खूफिया एजेंसी आइएसआइ आतंकी संगठनों से मिली हुई है और उन्हें आर्थिक मदद दे रही है। यह भी सामने आ चुका है कि पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ के कुछ अधिकारी आतंकी संगठनों से मिलकर ऐसे लोगों को मरवाने का बीड़ा उठा रखे हैं जो पाकिस्तान में लोकतंत्र को मजबूत होते देखना चाहते हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि राजनीतिक दलों के कुछ नेताओं का आतंकी संगठनों से संबंध है और वे पाकिस्तान में लोकतंत्र को फलने-फूलने देना नहीं चाहते। पाकिस्तान में आतंकियों की बढ़ती ताकत सिर्फ पाकिस्तान के लिए ही चिंता का विषय नहीं है बल्कि यह स्थिति विश्व बिरादरी के लिए भी खतरनाक है। इसलिए और भी कि पाकिस्तान एक परमाणु संपन्न देश है। उसके पास 200 से अधिक परमाणु बम और भयंकर आयुधों का जखीरा है। इन हमलों से सवाल गहराने लगा है कि क्या आतंकी जमात पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को हासिल करने की फिराक में हैं?

इससे इंकार नहीं किया जा सकता। गत वर्ष पहले यह सच्चाई दुनिया के सामने आ चुका है कि अमेरिका पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को अपने कब्जे में लेने के लिए किसी आपात योजना पर काम कर रहा है ताकि वह आतंकियों के हाथ न लगे। गौरतलब है कि मई 2011 में अमेरिकी राष्ट्रपति के पूर्व सलाहकार जैक करावेल्ली ने बीबीसी-5 को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों और सामग्री को कब्जे में लेने की गुप्त योजना मौजूद है। फिलहाल पाकिस्तान बारुद के ढे़र पर है और उसे समझना होगा कि वह आतंकवाद को नेस्तनाबूंद करके ही स्वयं को सुरक्षित रख सकता है। गौर करें तो मौजूदा समय में पाकिस्तान आतंकवाद प्रभावित देशों में शीर्ष पर है और उसकी स्थिति इराक, सीरिया और लेबनान से भी बदतर है। पाकिस्तान की राष्ट्रीय आंतरिक सुरक्षा नीति यानी एनआइएसपी के मुताबिक 2001 से 2013 के बीच हिंसा की 13000 से भी अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। गौर करें तो यह आंकड़ा इराक में हुई घटनाओं से कुछ ही कम है। 2007 में पाकिस्तान में आतंकवाद की 500 से अधिक घटनाएं हुई जो 2013 अंत तक 13 हजार से पार पहुंच गयी।

अमेरिकी संगठन स्टार्ट की मानें तो पाकिस्तान में इराक से अधिक हमले हुए हैं। देखा जाए तो इसके लिए पाकिस्तान खुद जिम्मेदार है। वह अपनी धरती पर आतंकियों को प्रश्रय ही नहीं दे रखा है बल्कि विकास के लिए विदेशी संस्थाओं से मिलने वाली मदद को विकास पर खर्च करने के बजाए भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों पर लूटा रहा है। भारत द्वारा बार-बार पुख्ता सबूत दिए जाने के बाद भी वह मुंबई बम विस्फोट के मास्टरमाइंड दाऊद इब्राहिम जो आइएसआइ की निगरानी में है, को सौंपने को तैयार नहीं है। आतंकवाद पर उसके लचर रवैए का ही नतीजा है कि आज उसके एक बड़े भू-भाग पर परोक्ष रुप से आतंकियों का कब्जा हो चुका है। एक दशक से जनरल मुशर्रफ, जनरल कियानी, आसिफ अली जरदारी और मियां नवाज शरीफ दहशतगर्दी को नेस्तनाबूद करने का राग अलाप रहे हैं लेकिन सच्चाई है कि वह भी दहशतगर्दों के खिलाफ नहीं हैं। पिछले दिनों भारत के पठानकोट में हुए आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर को लेकर जिस तरह नरमी दिखायी गयी उससे साबित हो जाता है कि पाकिस्तान आतंकवाद को लेकर तनिक भी गंभीर नहीं है। यह अचरज है कि एक ओर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को लगातार चुनौती परोस रहा है वहीं वह तालिबान को बातचीत के टेबल पर लाने के लिए उसके उन सभी शर्तों को स्वीकार करने की हामी भर रहा है जो पाकिस्तान की संप्रभुता के लिए खतरनाक है। यह किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान तालिबान का मकसद राजनीतिक नेतृत्व को खत्म कर देश में इस्लामी या शरीया कानून स्थापित करना है। पाकिस्तान की सेना का रवैया भी ढेरों आशंकाएं पैदा करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह आतंकियों को लेकर नरम है। आतंकियों को लेकर जनरल राहिल शरीफ की नरमी दुनिया के सामने उजागर हो चुकी है। वे हाफिज सईद जैसे आतंकियों को खुलकर खेलने का मौका दे रहे हैं। अभी भी पाकिस्तान के पास वक्त है कि वह अपनी धरती को तबाह होने से बचाने के लिए कड़े फैसले ले और भारत व अमेरिका के साथ मिलकर अपने देश में पसरे आतंकियों को खत्म करे। उसे भारत विरोधी नीति का भी परित्याग करना होगा। अगर पाकिस्तान सोचता है कि उसकी भूमि पर आश्रय लिए आतंकी संगठन सिर्फ भारत को ही क्षत-विक्षत करेंगे तो यह उसकी भूल है। बेहतर होगा कि वह सच का सामना करते हुए अपनी भूमि पर अवस्थित आतंकी शिविरों को नष्ट करे। उसे समझना होगा कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान सरीखे आतंकी संगठनों से मिल रही चुनौती से उसकी संप्रभुता और साख दोनों खतरे में है।

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