आतंक से लहूलुहान ब्रसेल्स

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brusselsअरविंद जयतिलक

बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में आतंकियों का हमला रेखांकित करता है कि अमेरिका, रुस और फ्रांस द्वारा निशाना बनाए जाने के बाद भी इस्लामिक स्टेट की कमर टूटी नहीं है और उसमें अब भी समूची दुनिया को दहलाने का माद्दा बचा है। चंद रोज पहले जब रुसी राष्ट्रपति पुतिन ने सीरिया से अपनी फौज की वापसी की घोषणा की और कहा कि जिस मकसद से रुस ने अपनी सेना सीरिया भेजा था वह मकसद पूरा हुआ तो दुनिया में संकेत गया कि इस्लामिक स्टेट की कमर टूट चुकी है और अब उसका उठना मुश्किल होगा। लेकिन जिस सुनियोजित रणनीति से उसने ब्रुसेल्स स्थित गुलजार रहने वाले अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और यूरोपिय संघ के मुख्यालय के नजदीक मेट्रो स्टेशन को दहलाया है उससे रुस और अमेरिका की अपनी पीठ थपथपाए जाने की पोल खुल गयी है। साथ ही यह भी प्रमाणित हो गया है कि यूरोपिय देशों की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां इस्लामिक स्टेट से निपटने में नाकाम हैं। गौर करें तो इस हमले में तीन दर्जन लोगों की मौत हुई है और दो सैकड़ा से अधिक लोग घायल हुए हैं। ध्यान दे ंतो इस्लामिक स्टेट ने इस हमले को पेरिस हमले की तर्ज पर अंजाम दिया है। उल्लेखनीय बात यह है कि यह हमला पेरिस हमले के संदिग्ध ब्रसेल्स निवासी सालेह अब्देसलाम की गिरफ्तारी के चंद दिनों बाद हुआ है।

बेल्जियम की पुलिस ने ब्रसेल्स में आतंकवाद विरोधी छापेमारी में जिन पांच लोगों को गिरफ्तार किया उसमें पेरिस हमलों का संदिग्ध सालेह अब्देसलाम भी शामिल है। सालेह अब्देसलाम 13 नवंबर को पेरिस में किए गए घातक हमलों के बाद से ही फरार था। संभव है कि इस्लामिक स्टेट इस गिरफ्तारी की प्रतिक्रिया में बदला के तौर पर यह हमला किया हो। वैसे भी ब्रसेल्स आतंकी संगठनों का अड्डा बन चुका है और 2014 में ही इस्लामिक स्टेट ने यहां के म्युजियम को निशाना बनाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी थी। यह भी खुलासा हो चुका है कि पेरिस हमले की साजिश भी ब्रसेल्स में ही रची गयी। यहां के थिंकटैंक एगमोंट की मानें तो यूरोपिय देशों में बेल्जियम ऐसा देश है जहां से प्रति व्यक्ति आधार पर सबसे अधिक लड़ाके सीरिया जाकर इस्लामिक स्टेट में शामिल होते हैं। वाशिंगटन के ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन के मुताबिक हाल ही में यहां से 650 लड़ाके इस्लामिक स्टेट में शामिल होने के लिए सीरिया गए। चूंकि बाहर से आए आधे से अधिक मुसलमान बेरोजगार और गरीब हैं लिहाजा वे आसनी से आतंकवाद के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। महत्वपूर्ण बात यह कि ब्रसेल्स में बाहर से आने वाले मुसलमानों की आबादी लगातार बढ़ रही है। यहां के उपनगरीय इलाके मोलेनबीक में मुस्लिम आबादी 40 फीसद के पार पहुंच चुकी है। आंकड़ों पर गौर करें तो मौजुदा समय में केवल ब्रसेल्स में ही 70 हजार से अधिक विदेशी नागरिक हैं और इनमें मुसलमानों की तादाद सबसे अधिक है। बेल्जियम पर हुए इस हमले ने इतिहास के कई संदर्भों को सतह पर ला दिया है।

बेल्जिमय को युद्ध का मैदान कहा जाता है। 16 वीं सदी से लेकर 18 वीं सदी तक यूरोप की कई लड़ाईयां बेल्जियम की धरती पर लड़ी गयी। अगर यूरोपिय शक्तियां शीध्र ही इस्लामिक स्टेट को नेस्तनाबूंद नहीं की तो बेल्जियम एक बार फिर युद्ध के मैदान के रुप में नजर आएगा। भौगोलिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो बेल्जियम उत्तर-पश्चिमी यूरोप में यूरोपिय संघ के संस्थापक देशों में से एक है। एक उच्च औद्योगिक परिक्षेत्र के केंद्र में इसकी अवस्थिति ने इसे मजबूत अर्थव्यवस्था वाला देशों में शुमार कर दिया है। इतिहास में जाएं तो बेल्जियम पहला यूरोपिय महाद्वीपीय देश था जो उन्नीसवीं सदी के शुरुआत में औद्योगिक क्रांति से गुजरा। बेल्जियम एक धर्म निरपेक्ष देश है और यहां का लाइसिस्ट संविधान सभी को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है। सरकार आमतौर पर व्यवहार में इस अधिकार का सम्मान करती है। आतंकी संगठन इसी का फायदा उठाकर अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देते हैं। सुरक्षा विश्लेषकों की मानें तो बेल्जियम की जनसंख्या में शामिल मुसलमानों में अधिकांश सुन्नी संप्रदाय के हैं और उन्हें इस्लामिक स्टेट की विचारधारा से लगाव है। अधिकांश धनाढ्य मुसलमानों द्वारा इस्लामिक स्टेट को आर्थिक मदद भी दी जाती है।

दरअसल बेल्जियम में घुसपैठ का मुख्य कारण वह शेनजेन संधि है जिसके कारण बेल्जियम का बाॅर्डर जर्मनी, फ्रांस, नीडरलैंड और लक्जमबर्ग के साथ खुला हुआ है। इसी का फायदा उठाकर अराजकता के शिकार मुस्लिम देशों के नागरिक आसानी से बेल्जियम पहंुच जाते हैं। मेट्रोपोलिटन शहर ब्रसेल्स में हजारों विदेशी कंपनियों के कार्यालयों के अलावा 80 से अधिक विश्व प्रसिद्ध संग्रहालय हैं जिसके चलते रोजगार से जुड़े लोग और सैलानियों का यहां आना जाना वर्ष भर लगा रहता है। ऐसे में बेल्जियम प्रशासन द्वारा आतंकियों को चिंहित करना किसी चुनौती से कम नहीं होता है। दूसरी ओर यहां की सुरक्षा व्यवस्था बेहद कमजोर है। यहां के नागरिक अपने व्यक्तिगत जीवन में ज्यादा पुलिसिया हस्तक्षेप भी पसंद नहीं करते। और आतंकी संगठन इसका फायदा उठाकर अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने में सफल होते हैं। ध्यान देना होगा कि पिछले वर्ष ब्रसेल्स के म्यूजियम पर होने वाले हमलों के आरोपी सालेह अब्देसलाम समेत अन्य आरोपी ब्रसेल्स के ही रहने वाले हैं। पेरिस हमलों का एक अन्य खूंखार आतंकी हामिद अबाऊद भी इसी सरजमीं का है। यहां के थिंकटैंक एगमोंट की माने तो ब्रसेल्स में कई आतंकी संगठनों के स्लीपर सेल मौजुद हैं। अगर उन्हें कुचला नहीं गया तो यूरोप को ब्रसेल्स जैसे अन्य हमलों के लिए तैयार रहना होगा।

लेकिन तमाशा यह है कि इस खतरनाक हमले से सबक लेने के बजाए रुस और अमेरिका जैसी महाशक्तियां गैर जिम्मेदराना तरीके से प्रतिक्रियाएं व्यक्त कर रही हैं। रुसी विदेश मंत्रालय द्वारा कहा गया है कि यह हमला आतंकवाद को लेकर पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंड को उजागर करता है। रुस ने यह भी कहा है कि नाटो और रुस के ठंडे पड़े राजनयिक संबंध से आतंकवाद के खिलाफ जंग कमजोर हुई है। दूसरी ओर अमेरिका ने सधी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए अपना बचाव किया है। राष्ट्रपति ओबामा ने कहा है कि बेल्जियम में हुए आतंकी हमले के बाद अमेरिकी नेतृत्व वाला गठबंधन इस्लामिक स्टेट के ठिकानों पर हमले जारी रखेगा। किंतु ब्रसेल्स की घटना ने साबित कर दिया है कि दोनों महाशक्तियों के बीच इस्लामिक स्टेट से निपटने की रणनीति पर कोई ठोस सहमति नहीं बनी है और वे एकदूसरे को नीचा दिखाने का ही प्रयास कर रहे हैं। दुनिया को अच्छी तरह पता है कि रुस और अमेरिका द्वारा इस्लामिक स्टेट पर हमला आतंकवाद को कुचलने के लिए नहीं बल्कि इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए किया जा रहा है।

अमेरिका का मकसद सीरिया के शासक बशर-अल-असद को अपदस्थ करना है वहीं रुस का मकसद एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था की रीढ़ को तोड़कर नई विश्व व्यवस्था में अपना सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त करना और बशर-अल-असद के दुश्मनों को कुचलकर अमेरिकी प्रभाव को कम करना है। कहना गलत नहीं होगा कि ब्रसेल्स पर हमला आतंकवाद पर अमेरिकी और यूरोपिय महाशक्तियों की विभाजनकारी मानसिकता, विश्वशांति के प्रति अदूरदर्शिता और असमन्वयपूर्ण सामरिक विफलता का नतीजा है। इस हमले में सिर्फ ब्रसेल्स ही लहूलुहान नहीं हुआ है बल्कि हमले के जरिए बेल्जियम की बहुविविधता, बहुनस्लीयता और बहुसंस्कृति को भी चोट पहुंचा है। इस हमले ने एक किस्म से पश्चिमी देशों को ललकारा है कि वह इस्लामिक स्टेट के विरुद्ध नई गोलबंदी को आकार देकर दिखाएं। पश्चिमी देशों को समझना होगा कि जब तक वे सीरिया को लेकर चल रहे मतभेदों पर विराम नहीं लगाएंगे तब तक उनके लिए इस्लामिक स्टेट को कुचलना आसान नहीं होगा। समझना होगा कि रुस और अमेरिका के हमलों से लथपथ होने के बावजूद भी इस्लामिक स्टेट के पास धन की कमी नहीं है। वह विध्वंसक हथियार और टेक्नालाॅजी से लैस है और उसकी ताकत लगातार बढ़ रही है। उसके जेहादी फौज में न सिर्फ सीरिया, इराक और इस्लामिक जगत के कट्टरपंथी सोच के लोग शामिल हैं बल्कि यूरोपिय देशों के जेहादी तत्व भी शामिल हैं, जो एक इशारे पर कहीं भी कहर बरपाने को तैयार हैं। यह सही है कि रुस और अमेरिका ने उसकी ताकत के असल स्रोत तेलशोधक कारखाने को नष्ट कर भारी नुकसान पहुंचाया है लेकिन अभी तक उसकी रीढ़ टुटी नहीं है और यहीं वह कारण हैं कि वह फुफकारने से बाज नहीं आ रहा।

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