आतंकवाद के नाम पर दो पड़ोसी मुल्कों में युद्धोन्माद फैलाना अमानवीय कृत्य है

श्रीराम तिवारी

इस में कोई शक नहीं कि भारत के खिलाफ पड़ोसी राष्ट्रों और खास तौर से पाकिस्तान का रवैया सदैव ही शत्रुतापूर्ण रहा है.चाहे भारत में अलगाव वादियों की घुस पैठ का मामला हो,चाहे नकली नोट छापकर भारतीय अर्थव्यवस्था को चौपट करने की कुत्सित कोशिश का मामला,चाहे नदी जल-बटवारे का मामला हो,चाहे कश्मीर को बर्बादी की ओर ले जाने का मामला हो या संयुक राष्ट्र संघ में विगत ६४ सालों से भारत के खिलाफ लगातार विष-वमन का मामला हो;इन सभी मामलों में पाकिस्तान ने भले ही भारत को विषधर की तरह काटा हो ,किन्तु भारत ने उसे अपने बिगडेल छोटे भाई की मानिंद समझकर हर बार उसे माफ़ ही किया है!

भारतीय दार्शनिक परम्परा में एक आख्यान बहुश्रुत है- एक बड़े संत-महात्मा जी अपने शिष्यों के साथ नदी स्नान करने गए तो नदी तट पर उन्हें विच्छू ने काट लिया,महात्माजी ने विच्छू को उठाकर पानी में फेंक दिया.संतजी जब पानी में डुबकी लगा रहे थे तब उन्हें फिर उसी विच्छू ने काट लिया.संतजी ने विच्छू को फिर वहीं नदी जल में छोड़ दिया और जब संतजी जल से बाहर निकलने लगे तो उन्हें फिर विच्छू ने काट लिया ,तब भी उन महात्माजी ने शांत भाव से बिना किसी उदिग्नता के विच्छू {जी} को वहीं जीवित छोड़ दिया.एक शिष्य ने कहा-गुरुदेव आपने इस दुष्ट को जीवित क्यों छोड़ा?तो गुरूजी ने कहा-वत्स,विच्छू का स्वभाव है काटना सो वह अपने स्वभाव वश काटने को मजबूर है और संत{सज्जन आदमी}का स्वभाव है धैर्य,शील और सहनशीलता सो मेंने अपने स्वभाववश विच्छू को लगातार क्षमा किया.यदि वह पुनः कटेगा तो भी में अपने सात्विक स्वभाव से पतित नहीं होने वाला.यह दर्शन न तो कायरों का है , न अधैर्यों का है,और न युद्ध से विरत सन्यासियों का है.यह नितांत वुद्धिमत्तापूर्ण और वास्तविक राष्ट्रवाद का द्योतक है.

सुप्रसिद्ध राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषग्य और पूर्व नौ सेना अधिकारी -उदय भास्कर ने भी प्रकारांतर से स्वीकार किया है कि “हम पाकिस्तान में छिपे आतंकियों को हुबहू अमेरिकी तर्ज पर नहीं मार सकते” उन्होंने स्पष्ट कहा कि ‘भारत,पाकिस्तान में छुपे मुंबई बम काण्ड के दोषियों व् २६/११ के दोषियों को पाकिस्तान में घुसकर वेशक मार सकता है,हमारी फौज इसमें सक्षम है किन्तु भारत-पाकिस्तान के बीच की भौगोलिक स्थिति और ऐतिहासिक सम्बन्ध इसकी इजाजत नहीं देते’ उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा दौर में भारत को सबसे बड़ा खतरा पाकिस्तान व् चीन में जमा हो रहे परमाणु बमों के जखीरे का है.”श्री उदय भास्कर जी अभ्यास मंडल की ग्रीष्म कालीन व्यख्यान माला में इंदौर के प्र्वुद्ध् जनों को संबोधित कर रहे थे.मेरे मत में अमिरीकी शील्ड कमांडो की तरह पाकिस्तान में कार्यवाही न करने की कुछ वजह और है. भारत -पाकिस्तान की दूरी अमेरिका और पाकिस्तान जैसी नहीं है.भले ही एक ही भूभाग के दो अलग-अलग राष्ट्र हों किन्तु जहां भारतीय हिस्से में संप्रभुता,प्रजातंत्र और धर्मनिरपेक्षता जैसी खूबियाँ परवान चढ़ रहीं हैं वहीं पाकिस्तानी हिस्से में अमेरिका,सउदी अरब और चीन के हथियारों का जखीरा तो है ही साथ ही वहां के परमाणु बम पर फौज का हाथ है,चूँकि पाकिस्तानी फौज का एक ही मकसद है की भारत को बर्बाद करना अतेव वे सिर्फ किसी ऐसें बहाने का इन्तजार कर रहे हैं जो न केवल भारत पर बमों की वर्षा का सबब हो बल्कि पकिस्तान की जनता में प्रजातांत्रिक चाहत को भी नेस्तनाबूद कर दे. भारत अपना पड़ोसी नहीं बदल सकता उसे हर-हालत में उसीके साथ रहना है, हमें नापाक मनसूबे पालने वालों के उकसावे में आकर ऐंसा कुछ नहीं करना चाहिए कि पाकिस्तानी फौज हीरो वन जाए.चूँकि पाकिस्तानी आवाम न तो अपनी रक्तपिपासु फौज को पसंद करती है और न ही उस “जेहाद’ को जो ओसामा या पाकिस्तान स्थित विभिन्न आतंकी गुटों का शगल है,अतः वहाँ की आवाम या सरकार के नैतिक समर्थन मिले बिना भारत को अमेरिकी कार्यवाही की नक़ल नहीं करना चाहिए.चूँकि अमेरिका को पकिस्तान की शशक्त सत्तासीन लाबी का,पाकिस्तानी मीडिया का और आई एस आई का भरपूर समर्थन हासिल था अतः एक मई-२०११ की आधी रात को अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के आदेश पर 9/11 के हमले के लिए जिम्मेदार अल -कायदा के ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में घुसकर मारने का दुस्साहस किया . भले ही पाकिस्तान को अमेरिकी हमले पर ऐतराज़ न हो किन्तु जब भारत ऐसा करेगा तो वो मार खाकर चुप नहीं बैठेगा .

हम भारत के हर गाँव -शहर-महानगर में वैठे घोषित-अघोषित आतंकवादियों को तो पकड़ नहीं रहे, जिन्हें जेलों में होना चाहिए वे रेलों में हैं और जिन्हें अदालतों ने मौत की सजा सुना दी है ,वे माल पुआ खा रहे हैं.पाकिस्तान में छुपे बैठे दो दर्जन आतंकवादियों को मारने के लिए बैचेन हो रहे हैं.जब १९९३ का मुंबई बम काण्ड हुआ,कंधार विमान अपहरण काण्ड हुआ,२६/११ का मुंबई हमला हुआ,कारगिल हुआ,तब हम ऐंसा करते जो अमेरिका ने एक मई-२०११ को किया है तो कोई और बात थी.अब यदि अमेरिका ने अपने अनुषंगी के घर में घुसकर मुहं काला किया है तो भारत को उसके भव्य और जिम्मेदार राष्ट्र होने के अनुरूप ही व्यवहार करना चाहिए.

भारत को अपने दूरगामी लक्ष्यों के मदेनज़र अपनी आंतरिक और वाह्य सुरक्षा पर ध्यान देना चाहए.राजनैतिक शुचिता,भृष्टाचार विहीन प्रशाशन और सभ्य सुशिक्षित बनाते हुए भारतीय आवाम को उसके मूलभूत अधिकारों की आपूर्ती के साथ-साथ व्यक्ति ,समाज,और राष्ट्र के रूप में दायित्व वोध के लिए कृत संकल्पित किये जाने का ध्येय होना चाहिए.बात-बात में गाहे-बगाहे चाहे क्रिकेट हो या अंतर राष्ट्रीय परिघटना ,भारत और पाकिस्तान के कुछ ‘अंधराष्ट्रवादी’एक दूसरे पर हमला किये जाने की वकालत करते रहते हैं ये युद्ध सिंड्रोम सिर्फ उन्हें ही आकर्षित नहीं करता जो विश्व मंच पर हथियारों के उत्पादक और विक्रेता हैं, यह उन्हें भी आशान्वित करता है जो ‘मरे का मांस खाने वाले हुआ करते हैं”

भारत -पाकिस्तान में युद्ध नहीं होना चाहिए क्योकि यह दोनों के हित में नहीं है.इसके अलावा इन बिन्दुओं पर भी ध्य्नाकर्षण होना चाहिए.

एक-भृष्टाचार और विदेशी क़र्ज़ से लदे भारत-पाकिस्तान की पूंजीवादी -सामंती सत्तारूढ़ ताकतें,युद्ध के बहाने अपने पापों को छिपाने के लिए न्यायपालिका और मीडिया को मन माफिक नियंत्रित कर लेंगी.

दो-युद्ध खर्च के बहाने जन-कल्याण -मद में कटौती की जायेगी अर्थात गरीव वर्ग का जीना दूभर हो जायेगा.

तीन-करारोपण में वृद्धि की जाएगी,ईमानदार व्यपारी कंगाल हो जायेगा.जो जमाखोर ,कालाबाजारी करेंगे,वे महंगाई बढाकर ,मिलावट करके अपनी जिजीविषा सुरक्षित रखेंगे.

चार-महंगाई और खाद्द्यान्न संकट दुर्धर्ष होता चला जायेगा.विकाश कार्य अवरुद्ध होंगे.

पांच-भारत-पाकिस्तान के संघर्ष में भले ही सारी दुनिया सैधांतिक तौर पर भारत के साथ होगी किन्तु तेल उत्पादक देश अन्ततोगत्वा पाकिस्तान का ही समर्थन करेंगे. क्योंकि भारत के समर्थक-सद्दाम हुस्सेन,यासिर अराफात शहीद हो चुके हैं,कर्नल गद्दाफी और हुस्नी मुबारक जैसे भारत -मित्रों को अमेरिका ने चुन-चुन कर निशाना बनाया है इस्लामिक जगत में अब सिर्फ ईरान पर ही आशाएं टिकीं हैं.

छेह -चीन भारत को अपना प्रवल प्रतिद्वंदी मानकर खुद होकर चाहेगा की भारत और पकिस्तान में युद्ध हो ताकि भारत कमजोर हो और चीन की बराबरी के सपने न देखे.

सात-भारत के परम्परागत मित्र -क्यूबा,वियतनाम,ब्रजील ,बोलीविया ,मारीसश और सोवियत संघ हुआ करते थे ,जिनमें सोवियत संघ तो निश्चय ही जब से वहां कम्युनिस्म ख़त्म हुआ है भारत की जैसे रीढ़ ही टूट गई सो अब सिर्फ उसकी वीटो पावर की विरासत ही बची है.

आठ-भारत पाकिस्तान में किसी भी मुद्द्ये पर यदि युद्ध की नौबत आती है तो पाकिस्तान ही पराजित होगा इसमें किसी को शक नहीं क्योकि न केवल सेन्य बल बल्कि एक विशाल प्रजातांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में भारत को पाकिस्तान से कई गुना ज्यादा बढ़त हासिल है.

लेकिन युद्धोपरांत दोनों राष्ट्रों का स्वरूप वैसा ही होगा जैसा की ‘महाभारत’युद्धोपरांत था.याने की दोनों पक्षों की भारी तवाही होगी सिर्फ अपने-अपने खांडव वन शेष रहेंगेखंडहरों में परणित राष्ट के बुझे हुए पांडव ध्वन्साव्शेशों पर पुनः नए उद्योग ,नई इमारतें ,नए पुल ,नए अस्पताल बनाने के लिए उन्ही साम्राज्यवादियों के सामने झोली फैलाने को अभिशप्त होंगे ,जिन्होंने मारक हथियार और आपस में युद्धोन्माद का सबब पेश किया है.मीडिया का एक हिस्सा स्पष्ट रूप से इन दिनों भारत की जनता को युद्धोन्मादी बनाने में जुटा है.यह हिस्सा निसंदेह देश की जनता के सरोकारों से कोसों दूर है.

सारी दुनिया जानती है की जब -जब भारत और पाकिस्तान में संघर्ष छिड़ता है तो महाशक्तियों को अपनी पूंजीवादी आर्थिक मंदी से उभरने का भरपूर मौका मिलता है,उनके हथियारों के आउट डेटेड जखीरे भारत -पाकिस्तान के युवाओं को मरने -मारने के काम आते हैं.शक्तिशाली युद्धखोर राष्ट्रों के ऐशो -आराम का सामान जुटाने के लिए भारत पाकिस्तान की जनता ही क्यों अपनों का लहू बहाने को आतुर रहती है? क्या युद्ध ही अंतिम विकल्प है सभ्य संसार के लिए ?

1 COMMENT

  1. आदरणीय तिवारी ने अच्छा लिखा है. यह सही है की भारत पाकिस्तान के युद्ध में दोनों को ही नुक्सान ही होगा. आपकी लिखी बाते सही है. किन्तु इतिहास उठा कर देखा जाय तो पता चलेगा की भारत ने पाकिस्तान के गठन के बाद नुक्सान ही सहा है. पाकिस्तान की हर गलती से पाकिस्तान को जितना नुक्सान हगा है उससे बहुत बहुत ज्यादा नुक्सान भारत को ही हुआ है.
    * हमे इस भुलावे में नहीं रहना चाइये की आम पाकिस्तान भारत से अछे रिश्ते बनाना चाहता है. चाहने से कुछ नहीं होता है. जब युद्ध का माहोल होगा तो हर निवासी अपने देश का समर्थन करेगा. हमारे देश में वास्तविक इतिहास की सिक्षा नहीं दी जाती है. पाकिस्तान में बचपन से बच्चो को भारत के खिलाफ भड़काया जाता है. मैं पाकिस्तान से घ्रणा करने की बात नहीं कह रहा हूँ किन्तु हमें पाकिस्तान से हमेशा ही सतर्क रहने चाइये.
    * बहुत अधिक सहनशीलता कायरता की निशानी कब बन जाती है पता ही नहीं चलता है.
    * कारगिल युद्ध में भारत का लगभग ५० हजार करोड़ से ज्यादा आर्थिक नुक्सान हुआ और सेकड़ो जवान मारे गय. क्या भारत ने एक भर भी पाकिस्तान से कहा की हमारे नुकसान की कीमत दो. जब अमेरिका अपना युद्ध खर्च उस देश से वसूल कर सकता है तो भारत क्यों नहीं. दुनिया जानती है की पाकिस्तान उस स्तिथि में नहीं की हमें कुछ दे सके. किन्तु हम विश्व पटल पर यह जता तो सकते थे की भारत आगे से ऐसी गुस्ताखी चाहे किसी भी देश द्वारा की जाय बर्दाशत नहीं करेगा.
    * हम क्यों पाकिस्तान में हमला करके आतंकवादी शिविर ख़त्म नहीं कर सकते है. कहेंगे की इससे पाकिस्तान प्रत्यक्ष हमला समझ कर युद्ध करेगा. हमें यह समझना चाइये की जो कुत्ते भोकते है वोह काटते नहीं. पाकिस्तान की ऐसी स्तिथि नहीं की भारत से प्रत्यक्ष युद्ध कर सके. कुछ सौ मिसाइल से वोह भारत का कुछ नहीं बिगड़ सकता है. हमारी सेना भी कमजोर नहीं है, मुह तोड़ जवाब देगी. चार फूटे चीनी दुम दबा कर तमाशा ही देखेंगे. १९६२ का युद्ध भारत की सेना ने नहीं हरा था, वोह शर्मनाक हार कमजोर राष्ट्रीय राजनीती की थी जिसके आज तक हमारी सरकार ने दस्तावेज भी सार्वजनिक नहीं किये.
    * कहते है की जो कांच के घर में रहते है वोह दुसरे के घर में पत्थर नहीं फेकते. पाकिस्तान एक परमाणु हतियार छोड़ेगा तो हम क्या हाथ पर हाथ धरे बठे बठेंगे. इस बार पाकिस्तान में हिम्मत नहीं की भारत पर प्रत्यक्ष हमला कर सके. हाँ अप्रतयक्ष हमला वोह हर तरीके से कर ही रहा है (आतंकवाद, नकली नोट, कूटनीति, धार्मिक उन्माद, हर मंच पर भारत के खिलाफ जहर उगलना आदि)
    * निढाल हाथी को तो कुत्ते भी काटते है. किन्तु दहाड़ते शेर को छेड़ते की हिम्मत कोई नहीं करता है. हम क्यों नहीं दहाड़ते शेर बने ताकि पाकिस्तान, चाइना या कोई और देश हमारी और आँख उठाकर नहीं देखे.

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