आतंकवादी और मैं

 डॉ. कौशल किशोर मिश्र 

रात को दो बजे मेरा दरवाजा किसी ने खटखटाया तो मैंने सोचा किसी का पेट दर्द कर रहा होगा और उसे पुदीन हरा चाहिए होगा। मेरे घर का पुदीन हरा बांटते-बांटते खत्म हो गया था। मैंने बंद दरवाजे से ही कहा भाई मुझे मालूम है कि तुम्हें पेट दर्द हो रहा है पर मेरा पुदीन हरा खत्म हो गया है बाजू के धुर्वे जी के घर देख लो।

मगर दरवाजा खटखटाना और तेज हो गया तो लगा कि मामला गंभीर है। मैंने उठते-बैठते कहा भाई दरवाजे पर रहम करो मैं खोल रहा हूं।

दरवाजा खोलने पर देखा तो मेरे पेट में ही दर्द होने लगा। मुझे लगा कि पेट को गीला होने से बचाने के लिए मुझे एबाउट टर्न होना पड़ेगा। सामने एक सज्जन बंदूक की नाल सामने किए हुए अंदर बलात घुस आए। मैंने हिम्मत करके पूछा – सर मैंने आपको पहचाना नहीं कुछ याद तो आ रहे हैं।

बंदूक के पीछे वाला चेहरा शरीफ बोला – गूंगे! मैं आतंकवादी हूं। मैं डर गया। रात को दो बजे हैं। घुप अंधेरा है और टिमटिमाती बत्ती में एक मूर्ख बंदूक तान खड़ा है तो कोई भी निडर डर जाएगा। मगर मैंने कहा अहा, आपके बारे में पढ़ता ही रहता था। आज साक्षात् दर्शन हो गए। आपके आने से यह गरीब की कुटिया पवित्र हो गई। बिराजो महाराज! मैं विराजने नहीं सोने आया हूं। तुम पहरा देना उन्होंने कहा।

मैंने चिचोरी की ‘महाराज मुझे भी आतंकवादी बना लो।’

उन्होेंने कहा सरल नहीं है। वैसे भी जो बंदूक हमें फायनेंस करते है उन्होंने तीस प्रतिशत कटौती को कहा है। देख नही रहे हो कितने आत्म समर्पण कर रहे हैं।

 

मैंने उनके पैर पकड़ लिए और कहा हजूर भक्त की इतनी इच्छा तो पूरी करनी ही पड़ेगी। उन्होंने अफसर बनकर जवाब दिया ‘ठीक है बोडो’ आतंकवादी संगठन में कुछ जगह खाली है।

मैंने कहा ‘नहीं महाराज मुझे तो नक्सली बनना है।’ वे बोले नहीं। वहां बहुत मारा-मारी है कोई जगह खाली नही है। मैंने कहा मुझे कंप्यूटर आता है। इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमीशन में माहिर हूं। उन्होंने जूता खोलते हुए कहा इलेक्ट्रॉनिक इंजिनियर तो बहुत मारे-मारे फिर रहे हैं। जब पोस्ट खाली होगी तब तुम्हें बता दूंगा।

इतने में मेरी पत्नी उठ गई। आंख मलते हुए आई और उन्हें देख कर बोली ‘आह! आतंकवादी भैया मैं चाय बनाकर लाती हूं।

मैंने सोचा एक आतंकवादी दूसरे को कितने जल्दी पहचान गया। नहीं बहन चाय पीकर आया हूं। इतने में खटपट सुन कर मेरी सास उठ गई। उन्होंने कड़क आवाज में पूछा कौन खटर-पटर है। मैं घर जमाई हूं। मुझे आश्चर्य हुआ जब आतंकवादी ने श्रध्दा से कहा ”मैं जग्गू हूं! मां जी पाय लागू।”

सास जी आई तो आतंकवादी श्रध्दा से झुक गया सास जी बोली अच्छा रामदीन का लड़का है। क्या हाल है तेरी सास के। वह कांप गया। एक आतंकवादी सास का नाम सुनकर कांप गया। घिघियाकर बोला अच्छी है पांच किलो वजन बढ़ गया है।

सास ने कहा अच्छा तो है। जमाई सिलसिले से लग जाए तो सास बेचारी निसफिकर हो जाती है। इस निठ्ठले को भी सिलसिले में लगा लो।

मैं कसमसा गया। इनके घर का पूरा काम तो करता हूं। खेत जोतता हूं। बैलों की देखभाल करता हूं। फसल घर पर लाकर देता हूं। एक पैसे भी खर्चे के लिए नहीं मांगता और मुझे निठ्ठला कहा जा रहा है।

वह आतंकवादी बोला अच्छा मां जी मैं चलता हूं। आप लोग आराम करें। मैं पहरा देता रहूंगा।

मैंने सोचा कि कितना झूठ बोल रहा है कहा तो कह रहा था कि वह मेरे घर में आराम करेगा और कहां अब कह रहा है कि हम आराम करें वह बाहर पहरा देगा। उसके बाद मैं बाहर छोड़ने गया फिर हम नक्सली समस्या के वास्तविक मुद्दे पर आ गए। मैंने कहा जंगल वालों के मूंह बड़े होते जा रहे हैं। सारा गांव परेशान हैं।

उसने कहा यहां पर फैक्ट्रियां खुलनी चाहिएै विकास हो तो हमारी जरूरत नहीं पड़ेगी। अंतर्राष्ट्रीय जंगल हमारे किले हैं। पुलिस से हम नफरत करते हैं। शोषण ने हमारे हाथ में बंदूक पकड़ा दी। अच्छा ये बतलाओ तुम मंत्री को खत्म कर सकते हो? मैंने कहा ये तो राष्ट्रद्रोह होगा। अबे तोते वह राष्ट्र सेवा होगी। अच्छा ये बताओ कि हम पुलिस को ही क्यों मारते हैं। मैंने कहा कि वे अत्याचार के प्रतीक होते हैं। वह बोला नही ढेंचू। हम पुलिस को इसलिए मारते हैं ताकि हमारी समानांतर सरकार चलती रहे।

* लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। 

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