आतंकी हमले किसी भी सूरत में रोके जाने चाहिये

डॉ. किशन कछवाहा

मुम्बई में फिर तीन तीन विस्फोट हो गये जिसमें बीस से ज्यादा लोग मरे और एक सैंकड़ा से अधिक बुरी तरह घायल हो गये। क्या यह सरकार चलाने वालों के निकम्मेपन का उदाहरण नहीं है ? राष्ट्रीय जांच एजेंसी, स्पेशल प्रोटेक्शन गू्रप, टास्क फोर्स, विशेष सुरक्षाबल होने के बावजूद तीन तीन सीरियल बम धमाके हो गये। क्या इन धमाकों के माध्यम से आतंकियों ने विश्व को यह संदेश नहीं दिया कि भारत आतंकवादी घटनाओं को गंभीरता से नहीं लेता है।

9/11 के बाद से अब तक अमेरिका में कोई आतंकी घटना नहीं घटी है। क्योंकि अमेरिका सहित जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रेलिया आदि अनेक देशों ने आतंकवाद से लड़ने के लिये विशेष कानून बनाकर अपनी दृढ़ता का परिचय दिया है। वहीं आतंकवाद से लड़ने के लिये पूर्व में बनाये टाडा, पोटा और अन्य कानूनों को कांग्रेस के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार ने अपनी उदारता का परिचय देते हुये इन सख्त कानूनों को रद्द कर दिया । इतना ही नहीं तो अपनी संवेदनाये आहतों के प्रति नही वरन् आतंकवादियों और उन्हें संरक्षण देने वालों के प्रति दिखाई । बाटला हाऊस जैसे जघन्य मामलों में कांग्रेस के नेताओं ने आजमगढ़ का दौरा किया जिससे देश की सुरक्षा एजेंसियों का भी मनोबल टूटा।

ऐसा सब कुछ बोट बैंक की सतही नीयत के कारण किया गया। इसी लालच में लचर नीति अपनाये हुये है। जबकि आवश्यकता इस बात की थी कि इन आतंकवादी खतरनाक विषैले नागों का सिर कुचलने की दृढ़तापूर्ण कार्यवाही की जाती । यह सरकार सिर्फ इसी मामले में असफल सिध्द नहीं हुयी वरन् मॅहगाई, गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी जैसे मामलों में भी पूरी तरह से असफल सिध्द हुयी है।

गत गुरूवार को जब सारा देश मुम्बई में हुये विस्फोटों की श्रृंखला में आहतों एवं मृतकों के प्रति संवंदनायें व्यक्त कर रहा था उस समय राजकुमार राहुल सरकार की असफलताओं को छिपाने के लिये तर्क दिये जा रहे थे कि सभी आतंकवादी हमलों को रोक पाना कठिन है। देश के इस युवा नेता के बचकाने बयान ने युवा पीढ़ों के खून को एक प्रकार से अपमानित ही किया है। इस युवा नेता को आजादी के इतिहास का पता नहीं है कि किस प्रकार उस प्रकार के युवा क्रांतिकारियों ने जो उम्र में बहुत कम थे (कम से कम राहुल गांधी की उम्र से तो बहुत कम थे) अपने कारनामों के द्वारा इंग्लैण्ड जाकर ब्रिटिश शासकों की हेकड़ी भुला दी थी। एक युवा नेता का जिस पर कांग्रेस दंभ भरती है, का यह कहना दुर्भाग्यपूर्ण है कि आतंकी हमलों को रोका नही जा सकता। इसी दु:खद स्थिति में एक अन्य नेता को फेशन शो में व्यस्त देखा गया।

भारत में शासक वर्ग आतंकी घटनाओं से सबक लेता ही नहीं । जब कोई घटना घट जाती है तभी कुछ दिनों तक सक्रियता दिखाई देती है फिर वहीं बेढंगा रवैया अपनाया जाने लगता है। यदि इस संदर्भ में विश्व परिदृश्य पर नजर डालें तो पता चलता है जिन आतंकी संगठनों और उनके सरगनाओं को समाप्त कर दिया गया। वहां आतंक की घटनाये या तो समाप्त हो गयी या सीमित क्षेत्र तक सिमिट कर रह गयीं। यही बात सिध्द करती है कि आतंकवाद की जड़ों पर मठा डालने की जरूरत है। उसकी जड़ों पर ही प्रहार किया जाना चाहिये। भारत गत तीन दशक से इन आतंकी घटनाओं से बुरी तरह जूझ रहा है। पहले तो यह सीमांत प्रदेशों तक सीमित था अब उसका विस्तार होकर इन आतंकियों का कार्यक्षेत्र पूरा भारत हो चुका है। कश्मीर सहित उत्तरपूर्व के सभी प्रदेश ऐसी आतंकी गतिविधियों से परेशान और व्यथित हैं । चार करोड़ के आसपास अवैध बॉग्लादेशी सरकार का लचरनीति के चलते सारे देश में फैल चुके हैं। देश के 250 से ज्यादा जिले नक्सली आतंक से जूझ रहे हैं। इनके कारण अभी तक हजारों-लाखों बेगुनाह अपनी जान से हाथ धो बैठे है एवं अरबों की संपत्ति नष्ट करवा चुके हैं। ऐसी विषम परिस्थिति में किसी सत्ताधारी दल के नेता का यह कहना कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन कारनामों को रोका नही जा सकता। यह सत्ताधारी दल की हताशा का अभिव्यक्तिकरण है। यह गंभीर मामला है। इसे हल्के से नहीं लिया जाना चाहिये। हमारी सीमायें भी सुरक्षित नहीं है। एक ओर पाकिस्तान तो दूसरी और चीन हमें ऑखे दिखा रहा है। क्या इन तमाम खतरों को नजरअंदाज कर दिया जाना सही होगा ?

गत सन् 2008 में 26 नवम्बर को मुम्बई में आतंकी हमले हुये थे। तब आननफानन आधुनिकीकरण के जरिये सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने सरकार ने अनेक निर्णय लिये थे। पूर्व में लिये गये निर्णयों को दुहराया भी गया था। लेकिन इन तीन सालों में माकूल इंतजाम नहीं किये जा सके। इसी से हमारी सरकार की निष्क्रियता का बखूबी पता चल जाता है। देश के सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षाबलों की निगरानी सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से बेहतर सड़के चौंकियों की योजनायें बनाई गयी थी। उत्तराखंड के टनकपुर से लेकर बिहार के रास्ते चीन से सटी बतांगल सीमा तक जाने वाली सड़क परियोजना पर अभी तक काम शुरू नहीं कराया जा सका। इसी प्रकार बॅगलादेश सीमा पर बाड़ लगाने का काम पूरा नहीं हो सका। अगरतला से सटी बॅग्लादेश सीमा से लोग आसानी से भारत में प्रवेश कर रहे हैं। इसी प्रकार समुद्री सीमा पर निगरानी के लिये इन्टरसेप्टर वोट की व्यवस्था की जाना थी। , सीसी टीवी केमरे लगाये जाने थे, राडार, लाईट हाउसों के सहारे निगरानी कराना थी। लेकिन इन तमाम परियोजनाओं पर काम को आगे नहीं बढ़ाया जा सका। यही हाल नक्सली क्षेत्रों का है। इन क्षेत्रों में जूझ रही सीआरपीएफ के पास अच्छी किस्म की बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं है, बम निरोधक दस्ते नहीं हैं, डाग स्क्वायड, आई.डी. ब्लास्ट की दिशा में निबटने की क्षमता का अभाव बना हुआ है। इसका तो मतलब यही हुआ कि सरकार जमीनी योजनाये बनाने की अपेक्षा हवा-हवाई उपायों में ही फंसकर रह गयी है। जबकि जरूरत इस बात की है कि देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा की बिल्कुल भी अनदेखी न हो वरन् देश के दुश्मनों से कड़ाई से निपटा जाये।

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  1. कांग्रेस का इतिहास गलत तत्वों के पक्ष में खड़े होने का है. जब वी के कृष्णा मेनन ने १९४७-४८ में जीप घोटाला किया तो नेहरूजी न केवल उसे बचाया बल्कि बाद में उसे देश का रक्षा मंत्री बनाकर देश को १९६२ में चीन के हाथों पराजय तथा हजारों वर्ग मील भूमि गंवाने का कारनामा कराया. जब आसाम में पूर्वी पाकिस्तान ( अब बंगला देश) से मुस्लिम घुसपेठ की ख़बरें आयीं तो गुनाहगारों को सज़ा देने की बजाय तीनों नेताओं, फखरुद्दीन अली अहमद, मोयिनुल हक़ चोधरी, व बिमल प्रसाद चलिहा को केंद्र में मंत्री बनाकर पुरस्कृत कर दिया. परंपरा आज तक कायम है. संसद पर हमलावर अफज़ल को बिरयानी खिलाई जाती है. २६/११ के अपराधी कसब की सुरक्षा पर करोड़ों रुपये खर्च किये जाते हैं. जनता स्साली की परवाह किसे है. जनता तो चुनाव में फिर इन मक्कारों को ही वोट दे देगी. क्योंकि मिडिया राष्ट्रवादियों को खलनायक के रूप में प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध है.

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